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अनुमान प्रमाण - पूर्ववत् अनुमान
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विवेचन - प्रत्यक्ष में प्रति उपसर्ग और अक्ष का मेल है। अक्ष अनेकार्थक है। इसका मुख्य अर्थ आत्मा है। आत्मा के अर्थ में जहाँ इसका प्रयोग होता है, तब पुल्लिंग होता है। अक्ष शब्द का अर्थ इन्द्रिय, नेत्र आदि भी है। जहाँ ये अर्थ प्रयुक्त होते हैं, वहाँ नपुंसकलिंग में (अक्षं) आता है।
'अक्ष्णोति जानाति वा इति अक्षः' - जो जानता है, उसे अक्ष कहा जाता है। वह ज्ञान जो मन एवं इन्द्रियों की सहायता के बिना सीधा आत्मा से होता है अथवा जिसके लिए इन्द्रिय आदि का सहयोग अपेक्षित नहीं होता, वह प्रत्यक्ष है। जिन सांसारिक पदार्थों को हम आँखों से देखते हैं, इन्द्रियों से जानते हैं, लोक में उसे भी प्रत्यक्ष कहा जाता है किन्तु वह तत्त्वतः प्रत्यक्ष नहीं है। लोक प्रयोग को देखते हुए जैन दार्शनिकों ने उसे सांव्यावहारिक प्रत्यक्ष कहा है, जिसका तात्पर्य यह है, यद्यपि वह प्रत्यक्ष तो नहीं है किन्तु व्यवहार में प्रत्यक्ष के रूप में अभिहित होता है। इस दृष्टि से जो ज्ञान साक्षात् आत्मा द्वारा होता है, वह नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष तथा जो इन्द्रियों के माध्यम से होता है, लौकिक दृष्टि से प्रत्यक्ष कहा जाता है। इसी दृष्टि से इसका विवेचन किया जा रहा है। यह ध्यान देने योग्य है कि नैश्चयिक दृष्टि से 'सांव्यावहारिक प्रत्यक्ष' परोक्ष ही है।
अनुमान प्रमाण से किं तं अणुमाणे ? अणुमाणे तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - पुव्ववं २ सेसवं २ दिट्ठसाहम्मवं ३। शब्दार्थ - पुव्यवं - पूर्ववत्, सेसवं - शेषवत्, दिट्ठसाहम्मवं - दृष्ट साधर्म्यवत्। भावार्थ - अनुमान प्रमाण कितने प्रकार का है? . यह तीन प्रकार का परिज्ञापित हुआ है - १. पूर्ववत् २. शेषवत् ३. दृष्ट साधर्म्यवत्।
१. पूर्ववत् अनुमान से किं तं पुव्ववं? पुव्ववंगाहा - माया पुत्तं जहा णटुं, जुघाणं पुणरागयं।
काइ पच्चभिजाणेजा, पुव्वलिंगेण केणइ॥१॥
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