________________
३१६
अनुयोगद्वार सूत्र
समुदय - सम्मिलन और समन्वय से बने अनंत संघातों से एक रेशा बनता है। ऊपर के संघात के अविसंघाटित रहने पर नीचे का संघात विसंघाटित - विघटित नहीं होता।
ऊपर के संघात के विसंघाटित - विच्छिन्न होने का अन्य समय है तथा नीचे का संघात अन्य समय में विसंघाटित होता है। इसलिए वह समय नहीं है। .
अतः समय इससे भी सूक्ष्मतर कहा गया है।
विवेचन - यहाँ पर अनंत संघातों में प्रति समय में अनंत अनंत संघात विसंघटित होना समझना चाहिये, यदि एक-एक समय में एक-एक संघात विच्छिन्न होगा तो अनंत समय हो जायेंगे। अतः अनंत संघाती की पूर्ण राशि के एक असंख्यातवें भाग रूप अनंत संघात प्रतिसमय विच्छिन्न होना समझना चाहिये।
समयसमूह मूलक काल विभाजन असंखिजाणं समयाणं समुदयसमिइसमागमेणं सा एगा आवलिय' त्ति वुच्चड़, संखिजाओ आवलियाओ-ऊसासो, संखिज्जाओ आवलियाओ-णीसाओ। गाहाओ - हट्टस्स अणवगल्लस्स, णिरुवक्किट्ठस्स जंतुणो।
एगे ऊसासणीसासे, एस पाणुत्ति वुच्चइ॥१॥ सत्तपाणूणि से थोवे, सत्त थोवाणि से लवे। लवाणं सत्तहत्तरीए, एस मुहुत्ते वियाहिए॥२॥ तिण्णि सहस्सा सत्त य, सयाई तेहत्तरं च ऊसासा।
एस मुहुत्तो भणिओ, सव्वेहिं अणंतणाणीहिं॥३॥ एएणं मुहत्तपमाणेणं तीसं मुहुत्ता-अहोरत्तं, पण्णरस अहोरत्ता-पक्खो , दो पक्खा -मासो, दो मासा-उऊ, तिण्णि उऊ-अयणं, दो अयणाई-संवच्छरे, पंच संवच्छराई-जुगे, वीसं जुगाई-वाससयं, दस वाससयाई-वाससहस्सं, सयं वाससहस्साणं-वाससयसहस्सं, चोरासीइंवाससयसहस्साई-से एगे पुव्वंगे, चउरासीई पुव्वंगसयसहस्साई-से एगे पुव्वे, चउरासीइं पुव्वसयसहस्साई-से एगे तुडियंगे, चउरासीइंतुडियंगसयसहस्साई-से एगे तुडिए, चउरासीइंतुडियसयसहस्साई-से एगे
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org