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अनुयोगद्वार सूत्र
गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - बद्धेल्लया य १ मुक्केल्लया य २। तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं असंखिजा, असंखेजाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखिज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखेजहभागो। तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते ण अणंता, अणंताहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, सेसं जहा ओरालियस्स मुक्केल्लया तहा एए वि भाणियव्वा।
भावार्थ - हे भगवन्! वैक्रिय शरीर कितने प्रकार के प्ररूपित हुए हैं? हे आयुष्मन् गौतम! वैक्रिय शरीर दो प्रकार के बतलाए गए हैं - १. बद्ध एवं २. मुक्त।
इनमें जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं। वे कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी द्वारा अपहृत होते हैं। क्षेत्रतः वे असंख्यात श्रेणी प्रमाण हैं। वे श्रेणियाँ प्रतर के असंख्यातवें भाग तुल्य हैं।
मुक्त वैक्रिय शरीर अनंत हैं। वे कालतः अनंत उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी द्वारा अपहृत होते हैं। अवशेष वर्णन मुक्त औदारिक शरीरों के सदृश कथनीय है।
बद्ध-मुक्त आहारक शरीर : परिमाण केवइया णं भंते! आहारगसरीरा पण्णत्ता?
गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - बद्धेल्लया य १ मुक्केल्लया य २। तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं सिय अत्थि सिय णत्थि, जइ अत्थि जहण्णेणं एगो वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सहस्सपुहत्तं। मुक्केल्लया जहा ओरालिया तहा भाणियव्वा।
भावार्थ - हे भगवन्! आहारक शरीर कितने प्रकार के परिज्ञापित हुए हैं? हे आयुष्मन् गौतम! आहारक शरीर दो प्रकार के कहे गए हैं - १. बद्ध एवं २. मुक्त।
उनमें से जो बद्ध हैं, वे कदाचित् होते हैं, कदाचित् नहीं होते हैं। यदि बद्ध होते हैं तो जघन्यः एक, दो या तीन तथा उत्कृष्टतः सहस्र पृथक्त्व - दो सहस्र या तीन सहस्र हो सकते हैं।
मुक्त आहारक शरीर (जो अनंत हैं) का विवेचन मुक्त औदारिक शरीर के समान भणनीय है।
विवेचन - यहां बद्ध और मुक्त आहारक शरीर की संख्या का वर्णन है। बद्ध आहारक शरीरों के कदाचित् होने अथवा कदाचित् न होने का अभिप्राय यह है कि आहारक शरीर का
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