________________
अंगलु स्वरूप - आत्मांगुल
२७५
गाहा - अंगुल विहत्थि रयणी, कुच्छी धणु गाउयं च बोद्धव्वं।
जोयण सेढी पयरं, लोगमलोगे वि य तहेव॥१॥ शब्दार्थ - विहत्थि - वितस्ति-बालिस्त (अंगुष्ठ से कनिष्ठिका पर्यन्त फैले हुए हाथ का प्रमाण), रयणी - हस्त (अंगुली से कोहनी पर्यन्त), कुक्षि - काँख से लेकर हथेली पर्यन्त, गाउयं - गव्यूति-कोस, जोयण - योजन-चार कोस की लम्बाई, धणु - पुरुष के समानान्तर फैले हुए दोनों हाथों की लम्बाई का माप, सेढी - श्रेणी-असंख्य योजन कोटि-कोटि का माप जितनी, पयर - प्रतर-श्रेणी से गुणित श्रेणी के गुणनफल से प्राप्त माप।
भावार्थ - विभागनिष्पन्न क्षेत्र का क्या स्वरूप है?
गाथा - अंगुल, वितस्ति, रत्नी, कुक्षि, धनुष, गव्यूति, योजन, श्रेणी, प्रतर, लोक एवं अलोक - ये विभागनिष्पन्न क्षेत्र प्रमाण के रूप हैं॥१॥
विभाग निष्पन्न की आद्य इकाई अंगुल है। अतएव अब अंगुल का विस्तार से विवेचन करते हैं।
अंगुल स्वरूप से किं तं अंगुले? अंगुले तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - आयंगुले १ उस्सेहंगुले २ पमाणंगुले ३। भावार्थ - अंगुल के कितने प्रकार हैं? अंगुल तीन प्रकार का बतलाया गया है - १. आत्मांगुल २. उत्सेधांगुल तथा ३. प्रमाणांगुल।
१. आत्मांगुल से किं तं आयंगुले?
आयंगुले - जे णं जया मणुस्सा भवंति तेसि णं तया अप्पणो अंगुलेणं दुवालस अंगुलाई मुहं, णवमुहाई पुरिसे पमाणजुत्ते भवइ, दोण्णिए पुरिसे माणजुत्ते भवइ, अद्धभारं तुल्लमाणे पुरिसे उम्माणजुत्ते भवइ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org