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प्रतिमान प्रमाण
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रत्ती, णिप्फावा - निष्पाव - वल्ल नामक धान्य विशेष, मंडलओ - मंडलक-बारह कर्ममाषक के तुल्य, सुवण्ण - अशरफी।
भावार्थ - जिससे प्रतिमान किया जाता है, विशेष रूप से माप-तौल किया जाता है, वह प्रतिमान है। जैसे गुञ्जा, कागणी, कर्ममाषक, निष्पाव, मंडलक एवं स्वर्ण (अशरफी)।
पांच गुंजाओं का एक कर्ममाषक, चार कागणियों का अथवा तीन निष्पावों का एक कर्ममाषक होता है। यह माप कागणी की अपेक्षा से है।
बारह कर्ममाषकों या अड़तालीस कागणियों का एक मण्डलक होता है। सोलह कर्ममाषकों या चौषठ कागणियों का एक सुवर्ण (अशरफी) होती है।
विवेचन - गुंजा, रत्ती, घोंगची और चणोटी ये चारों समानार्थक नाम हैं। गुंजा एक लता का फल है। इसका आधा भाग काला और आधा भाग लाल रंग का होता है। इसके भार के लिए पूर्व में कहा जा चुका है। सवा गुंजाफल (रत्ती) की एक काकणी होती है। त्रिभागन्यून दो गुंजा अर्थात् पौने दो गुंजा का एक निष्पाव होता है। इसके बाद के कर्ममाषक आदि का प्रमाण सूत्र में उल्लिखित है।
एएणं पडिमाणप्पमाणेणं किं पओयणं?
एएणं पडिमाणप्पमाणेणं सुवण्णरयय-मणि-मोत्तिय-संखसिलप्पवालाईणं दव्वाणं पडिमाणप्पमाणणिवित्तिलक्खणं भवइ। सेत्तं पडिमाणे। सेत्तं विभागणिप्फण्णे। सेत्तं दव्वप्पमाणे।।
शब्दार्थ - रयय - रजत, मोत्तिय - मौक्तिक - मोती, सिल - शिला - स्फटिक, पवाल - प्रवाल - मूंगा।
भावार्थ - इस प्रतिमान प्रमाण का क्या प्रयोजन है?
इस प्रतिमान प्रमाण द्वारा सोना, चांदी, मणि, मोती, शंख, स्फटिक, मूंगे आदि द्रव्यों का माप प्रमाणित होता है, ज्ञात होता है।
यह प्रतिमान का स्वरूप है। इस प्रकार विभाग निष्पन्न प्रमाण का विवेचन समाप्त होता है। .. ... यह द्रव्य प्रमाण का स्वरूप है। विवेचन - लोक व्यवहार में शक्कर आदि मन, सेर, छटांक आदि के द्वारा तौले जाते
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