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अनुयोगद्वार सूत्र
सव्वत्थोवे सूइअंगुले, पयरंगुले असंखेजगुणे, घणंगुले असंखेजगुणे। सेत्तं आयंगुले।
शब्दार्थ - कयरे - कौन से, कयरेहितो - किनसे, अप्पा - अल्प, बहुया - बहुत, तुल्ला - तुल्य, विसेसाहिया - विशेषाधिक, सव्वत्थोवे - सर्वस्तोक-सबसे कम।
भावार्थ - हे भगवन्! इन-सूचि अंगुल, प्रतर अंगुल एवं घन अंगुल में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है?
(आयुष्मन् गौतम!) सबसे छोटी सूचि अंगुल है, प्रतर अंगुल उससे असंख्येय गुना अधिक है और घनांगुल (प्रतरांगुल से) असंख्येय गुना अधिक है।
२. उत्सेधांगुल. . से किं तं उस्सेहंगुले? . उस्सेहंगुले अणेगविहे पण्णत्ते। तंजहा - गाहा - परमाणू तसरेणू, रहरेणू अग्गयं च वालस्स।
लिक्खा जूया य जवो, अट्ठगुण-विवड्डिया कमसो॥१॥ भावार्थ - उत्सेधांगुल कितने प्रकार का है? उत्सेधांगुल अनेक प्रकार का बतलाया गया है, जैसे -
गाथा - परमाणु, त्रसरेणु, रथरेणु, बालाग्र (बाल का अग्र भाग), लीख, नँ, जौ (यव) - ये सभी क्रमशः आठ गुणे बढ़ते जाते हैं।॥१॥
विवेचन - उत्सेध का अर्थ - उच्चता, शिखर, उन्नति, अभ्युदय या वृद्धि है। प्रस्तुत सूत्र में वह वृद्धि या बढ़ने से संबद्ध है। नरक आदि गति चतुष्ट्य के देह की ऊँचाई निर्धारित करने हेतु उत्सेधांगुल का प्रयोग किया जाता है। उस वृद्धि क्रम में सबसे सूक्ष्म ईकाई परमाणु है। आठ परमाणुओं का एक त्रसरेणु, आठ त्रसरेणुओं का एक रथरेणु होता है। यों उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है।
परमाणु स्वरूप से किं तं परमाणू?
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