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अनुयोगद्वार सूत्र
विशेषण अतिशयेन व्रजति, गच्छतीति व्रजति - विशिष्टता पूर्वक, अतिशय के साथ गमन का अर्थ निर्बाध रूप में भीतर से गुजर जाना है।
से णं भंते! पुक्खरसंवदृगस्स महामेहस्स मज्झमझेणं वीइवएज्जा? हंता! वीइवएजा। से णं तत्थ उदउल्ले सिया? णो इणढे समटे, णो खलु तत्थ सत्थं कमइ।
शब्दार्थ - पुक्खरसंवदृगस्स महामेहस्स - पुष्कर संवर्तक नामक महामेघ के, उदउल्लेजलाई - जल से भीग जाना, सिया - हो सकता है।
भावार्थ - हे भगवन्! क्या वह (व्यावहारिक परमाणु) पुष्कर संवर्तक महामेघ के बीचोंबीच से गुजर सकता है?
हाँ, वह गुजर सकता है। क्या वह वहाँ जल से भीग जाता है?
नहीं, ऐसा नहीं होता, क्योंकि (अप्काय रूप) शस्त्र उसे भिगोने में असमर्थ है, इस पर गति नहीं है।
विवेचन - यहाँ पुष्कर संवर्तक महामेघ का नामोल्लेख हुआ है। जैन विश्व विज्ञान (Cosmology) के अनुसार कालचक्र के अन्तर्गत उत्सर्पिणी काल के इक्कीस सहस्त्र वर्ष परिमित दुषम-दुषम नामक प्रथम आरक की समाप्ति एवं द्वितीय आरक के प्रारम्भ में सर्व प्रथम यह मेघ घनघोर वर्षा करता है।
से णं भंते! गंगाए महाणईए पडिसोयं हव्वमागच्छेजा? हंता! हव्वमागच्छेजा। से णं तत्थ विणिघायमावजेजा?
णो इणढे समढे, णो खलु तत्थ सत्थं कमइ। . शब्दार्थ - पडिसोयं - प्रतिस्रोत, हव्वमागच्छेज्या - शीघ्र आ सकता है, "विणियायमावजेजा - अवरोध कर सकता है।
भावार्थ - हे भगवन्! क्या वह (व्यावहारिक परमाणु) गंगा महानदी के प्रतिस्रोत में शीघ्र गमनागमनशील हो सकता है?
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