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अनुयोगद्वार सूत्र
.. . १. कर्म नाम से किं तं कम्मणामे?
कम्मणामे - * दोसिए, सोत्तिए, कप्पासिए, भंडवेयालिए, कोलालिए। सेत्तं कम्मणामे।
शब्दार्थ - कम्मणामे - कर्मनाम, दोसिए - दौष्यिक - कपड़े का व्यापारी, सोत्तिए - सौत्रिक - सूत का व्यापारी, कप्पासिए - कार्पासिक-कपास का व्यापारी, भंडवेयालिए - भांड व्यापारिक - बर्तन या माल असबाब का व्यापारी, कोलालिए - कौलालिक - कुम्भकार या मिट्टी के बर्तनों का व्यापारी।
भावार्थ - कर्मनाम का क्या स्वरूप है? .
दौष्यिक, सौत्रिक, कार्पासिक, भांडव्यापारी तथा कौलालिक कर्मनिष्पन्न नाम हैं। यह कर्मनाम का स्वरूप है।
विवेचन - मनुष्य जो भिन्न-भिन्न व्यवसाय, व्यापार या कार्य करता है, उसके अनुसार जो नाम रखा जाता है, वह कर्मनिष्पन्न नाम है। यहाँ कर्म शब्द का प्रयोग मुख्यतः व्यवसाय के अर्थ में है। ___ यहाँ प्रयुक्त दोसिए (दौष्यिक), दूष्य से बना है। 'दूष्यते इति दूष्यम्' - जो प्रयोग में लेने से दूषित या मैला होता है, उसे दूष्य कहा जाता है। यह दूष्य शब्द की व्युत्पत्ति है। दूष्य का अर्थ यहाँ वस्त्र है। दौष्यिक शब्द दूष्य का ही तद्धित प्रत्यांत रूप है। जहाँ मुख्यतः 'इक्' प्रत्यय का प्रयोग हुआ है।
'इक' में 'क' का लोप हो जाता है तथा 'ई' बचा रहता है और आदि में वृद्धि हो जाती है। सारस्वत व्याकरण में वृद्धि के संबंध में लिखा है -
'ओरेओ वृद्धि' ॥२४॥ आ, आर्, ऐ, औ एते वृद्धि संज्ञा भवन्ति। अर्थात् आ, आर्, ऐ और औ, इन्हें वृद्धि कहा जाता है। इसका अभिप्राय यह है कि यदि आदि में 'अ' या 'आ' हो तो उसका 'आ', 'ऋ' या 'ऋ' हो तो 'आर', 'ई' या 'ई' हो तो 'ऐ' तथा 'उ' हो तो 'औ' हो जाता है।
* किन्हीं किन्हीं प्रतियों में ये तीन शब्द प्रारंभ में अधिक मिलते हैं - तणहारए, कट्टहारए, पत्तहारए।
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