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अनुयोगद्वार सूत्र
६. अनादि सिद्धांत निष्पन्न नाम से किं तं अणाइयसिद्धतेणं?
अणाइयसिद्धतेणं-धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए, पुग्गलत्थिकाए, अद्धासमए। सेत्तं अणाइयसिद्धतेणं।
भावार्थ - अनादि सिद्धांत नाम कैसा है?
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और कालये अनादि सिद्धांत निष्पन्न नाम हैं।
यह अनादि सिद्धांत निष्पन्न नाम का स्वरूप है।
विवेचन - 'सिद्धः अन्तः यस्य सः सिद्धान्तः' - जिसका परिणाम सिद्ध, सर्वथा प्रमाणित, सुनिश्चित है, उसे सिद्धान्त कहा जाता है। अनादि का अर्थ आदि रहित है। जो शब्द जिन अर्थों में अनादिकाल से सिद्ध हैं, अनादिसिद्धांतनाम हैं। उनका वाच्य-वाचक भाव अनादिकाल से उसी रूप में सुप्रमाणित है।
गौणनाम से इस अनादिसिद्धान्तनाम में यह अन्तर है कि गौणनाम का अभिधेय तो अपने स्वरूप का परित्याग भी कर देता है। जबकि अनादि सिद्धान्त नाम न कभी बदला है, न बदलेगा। वह सदैव रहता है, इसलिए सूत्रकार ने इसका पृथक् निर्देश किया है।
७. नामनिष्पन्न नाम से किं तं णामेणं? णामेणं - पिउपियामहस्स णामेणं उण्णामिज (ए)इ। सेत्तं णामेणं। शब्दार्थ - पिउपियामहस्स - पिता और पितामह के, उण्णामिज्जइ - अनुरूप नाम युक्त। भावार्थ - नाम का क्या स्वरूप है? पिता तथा पितामह के नाम से उन्नामित - निष्पन्न नाम नामनिष्पन्न नाम है।
विवेचन - पिता या पितामह आदि विशिष्ट पूर्व पुरुषों के नाम से भी नाम निष्पन्न होते हैं। उन्हें व्याकरण में 'अपत्य वाचक' कहा गया है। अपत्य का अर्थ पुत्र-पौत्रादि संतति है। ___ जैसे - ‘दशरथस्य पुत्रः - दाशरथी' - दशरथ के पुत्र को दाशरथी कहा जाता है। ‘वशिष्ठस्य पुत्रं पुमान् वाशिष्ठः' - वशिष्ठ के पुत्र (संतति) वाशिष्ठ, जमदग्नि के वंशज
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