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दस नाम - पाषण्डनाम (पाखण्डनाम)
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कुलणामे-उग्गे, भोगे, रायण्णे, खत्तिए, इक्खागे, णाए, कोरव्वे। सेतं कुलणामे।
शब्दार्थ - उग्गे - उग्र, भोगे - भोग, रायण्णे - राजन्य, खत्तिए - क्षत्रिय, इक्खागेइक्ष्वाकु, णाए - ज्ञात, कोरव्वे - कौरव।
भावार्थ - कुलनाम का क्या स्वरूप है?
पैतृक कुल (पैतृक वंश) से संबद्ध नाम इस प्रकार हैं - । उग्र, भोग, राजन्य, क्षत्रिय, इक्ष्वाकु, ज्ञात एवं कौरव्य - ये उन उन कुलों के आधार पर दिए गए नाम हैं।
४. पाषण्डनाम (पाखण्डनाम) से किं तं पासंडणामे?
पासंडणामे - ‘समणे य पंडुरंगे भिक्खु ★ कावालिए य तावसए परिवायगे। सेत्तं पासंडणामे।
शब्दार्थ - कावालिए - कापालिक, परिवायगे - परिव्राजक। . भावार्थ - पाषण्डनाम का क्या स्वरूप है?
पाषण्डनाम में श्रमण, पांडुरंग, भिक्षु, कापालिक, तापस एवं परिव्राजक - इनका समावेश है।
विवेचन - ‘पासण्ड' शब्द का जैनागमों में अनेक स्थानों पर वर्णन आता है। इसका संस्कृत रूप पाषण्ड' बनता है। आगे चलकर संस्कृत में इसी का रूप पाखण्ड हो गया। क्योंकि वैदिक संस्कृत में किन्हीं विशेष प्रसंगों पर 'ष' का 'ख' उच्चारण होता है। मुख - सौविध्य एवं सरलीकरण की दृष्टि से पाषण्ड का प्रयोग प्रायः लुप्त हो गया और उसके स्थान पर पाखण्ड ही रह गया।
. इसका प्रचलित अर्थ ढोंगी, पाखंडी, धूर्त होता है। प्राचीनकाल में इसका यह अर्थ नहीं था। जैनागमों में जो 'पाषण्ड' शब्द का प्रयोग आया है, वह जैनेतर संप्रदायों के अर्थ में है। वह निंदा सूचक नहीं है, निर्ग्रन्थ प्रवचन या आर्हत् दर्शन में आस्था न रखने वाले धार्मिक संप्रदायों के अर्थ में है। इसीलिए 'परपाषण्ड-प्रशंसा' तथा 'पर-पाषण्ड-संस्तव' को अतिचारों के रूप में माना गया है। ___★ बुद्ध दंसणस्सिओ।
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