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से किं तं णवणामे ?
णवणामे - णवकव्वरसा पण्णत्ता । तंजहा
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गाहाओ - वीरो सिंगारो अब्भुओ य, रोद्दो य होइ बोद्धव्वो । वेलणओ बीभच्छो, हासो कलुणो पसंतो य ॥१॥
अनुयोगद्वार सूत्र
( १३० )
नव नाम
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शब्दार्थ - कव्वरसा
काव्य रस।
भावार्थ - नवनाम (नौ) किन्हें कहा जाता है?
काव्य में नौ रस नव नाम के रूप में निरूपित हुए हैं। वे इस प्रकार हैं .
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१. वीर २. श्रृंगार ३. अद्भुत ४ रौद्र ५. व्रीडनक ( लज्जा ) ६. बीभत्स ७. हास्य ८. करुण तथा C. प्रशांत ॥ १ ॥
विवेचन - रस का काव्य में सर्वाधिक महत्त्व है। आचार्य भरत ने इस संबंध में लिखा है - यथा बीजाद्भवेद् वृक्षो वृक्षात् पुष्पं फलं तथा ।
तथा मूलं रसाः सर्वे तेभ्यो भावा व्यवस्थिताः ॥
जैसे बीज से वृक्ष उत्पन्न होता है, वृक्ष के पुष्प और फल लगते हैं, उसी प्रकार रस भावों का मूल है, सभी भाव उस पर टिके हुए हैं ।
जैसे प्राणी के शरीर में आत्मा का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है, उसी प्रकार काव्य में रस का असाधारण महत्त्व है। विद्वानों ने काव्य पुरुष की कल्पना की है, उसमें शब्द और अर्थ को काव्य का शरीर बतलाया है और रस को काव्य की आत्मा कहा है। काव्यशास्त्र में रस पर बहुत ही सूक्ष्म चर्चा हुई है, उसके उद्भव, परिपाक एवं विकास आदि पक्षों पर विशद विश्लेषण किया गया है।
रसनिष्पत्ति के संबंध में कहा गया है
“तन्त्र विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रस निष्पत्ति ॥”
'नाट्य शास्त्र - ६, ३८।
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