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'स्वस्वामित्व' का आशय षष्ठि विभक्ति से है ।
'सन्निधान' आश्रय, आधार आदि का द्योतक है, जहाँ पर क्रिया की निष्पत्ति है। 'आमंत्रण' बोधन या अष्टमी विभक्ति की सूचक है।
तत्थ पढमा विभत्ती, णिद्देसे 'सो इमो अहं व' त्ति ।
बिइया पुण उसे 'भण कुणसु इमं व तं व' त्ति ॥३॥ तइया करणम्मि कया 'भणियं च कयं ज तेण व मए' वा । 'हंदि णमो साहाए' हवइ चउत्थी पयाणम्मि ॥ ४ ॥ 'अवणय गिण्ह य एत्तो, इउ' त्ति वा पंचमी अवायाणे । छट्ठी तस्स इमस्स वा, गयस्स वा सामिसंबंधे ॥ ५ ॥ हवइ पुण सत्तमी तं, इमम्मि आहारकालभावे य । आमंतणी भवे अट्ठमी उ, जह 'हे जुवाण' त्ति ॥ ६ ॥
सेतं अट्ठणामे । शब्दार्थ- सो उसको, करणम्मि हंदि - हो, णमो अपनय दूर करो, गह
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वह, इमो - यह, अहं मैं, कुणसु- करो, इमं - इसको, तं करण में, कया किसके द्वारा, तेण - उसके द्वारा, मए मेरे द्वारा, स्वाहा, पयाणम्मि
प्रदान करने में, अवणय
ग्रहण करो, एत्तो - यहाँ से, तस्स
अष्टनाम
नमस्कार, साहाए
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उसका, इमस्स इसका,
यथा,
हे जुवाण हे युवन् ।
गयस्स . मए हुए की या गज की, इमम्मि - इसमें, जह
भावार्थ - गाथाएँ प्रथमा विभक्ति निर्देश में होती है, जैसे- वह, यह और मैं । द्वितीया विभक्ति उपदेश में होती है, - जैसे- इसको कहो, वह करो ॥ ३ ॥
किसके द्वारा कहा गया, उसके द्वारा या मेरे
तृतीया विभक्तिकरण में होती है, जैसे द्वारा किया गया।
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चतुर्थी विभक्ति 'संप्रदान' में होती है । नमः (जिनाय), स्वाहा (अग्नेय) - इसके उदाहरण हैं ॥४ ॥ पंचमी में अपादान होती है। यहाँ से हटाओ, यहाँ से ले लो - इसके उदाहरण हैं। छठी विभक्ति स्वामित्व संबंध में होती है। जैसे- उसका, इसका, गए हुए का या हाथी का ॥ ५ ॥
. सप्तमी विभक्ति आधार, काल एवं भाव में होती है। " इसमें (इमम्मि)” इसका उदाहरण है। अष्टमी विभक्ति आमंत्रण में होती है, जैसे - हे युवन्! ॥ ६ ॥
यह अष्टनाम का स्वरूप है।
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