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संस्थानानुपूर्वी का विवेचन
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विशिष्ट शैली है। कोटि कोटि आदि शब्दों के द्वारा अनेक अंकों की संख्या को भी बताया जा सकता है। लौकिक व्यवहार (सरकारी कार्यों) में भी प्रमुख रूप से करोड़ तक की संख्या को ही गिनती में लिया जाता है। इसके आगे दस करोड़, सौ करोड़, हजार करोड़ इत्यादि के रूप में राशियों को बता दिया जाता है।
(११८) संस्थानानुपूर्वी का विवेचन से किं तं संठाणाणुपुव्वी?
संठाणाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता। तंजहा - पुव्वाणुंपुष्वी १ पच्छाणुपुव्वी २ अणाणुपुव्वी ३।
से किं तं पुव्वाणुपुव्वी?
पुव्वाणुपुव्वी-समचउरंसे १ णिग्गोहमंडले २ साई ३ खुजे ४ वामणे ५ हुंडे ६। सेत्तं पुव्वाणुपुव्वी।
से किं तं पच्छाणुपुव्वी? पच्छाणुपुव्वी - हुंडे ६ जाव समचउरंसे १। सेत्तं पच्छाणुपुव्वी। से किं तं अणाणुपुव्वी?
अणाणुपुव्वी - एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो। सेत्तं अणाणुपुव्वी। सेत्तं संठाणाणुपुव्वी।
शब्दार्थ - संठाणाणुपुव्वी - संस्थानानुपूर्वी। भावार्थ - संस्थानानुपूर्वी कितने प्रकार की है?
संस्थानानुपूर्वी - १. पूर्वानुपूर्वी २. पश्चानुपूर्वी एवं ३. अनानुपूर्वी के रूप में तीन प्रकार की परिज्ञापित हुई है।
पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है?
(निम्नांकित क्रम से) संस्थानों के विन्यास को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं - १. समचतुरस्रसंस्थान २. न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान ३. सादिसंस्थान ४. कुब्जसंस्थान ५. वामनसंस्थान ६. हुंडसंस्थान।
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