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अनुयोगद्वार सूत्र
सम्मिलित रूप हैं किन्तु प्राकृत पद्धति से एकाकी स्वर अथवा स्वरमिश्रित एक व्यंजन अक्षर के रूप में यहाँ लिए गए हैं। अतएव 'ही' आदि को एकाक्षरिक कहा गया है।
से किं तं अणेगक्खरिए? अणेगक्खरिए-कण्णा, वीणा, लया, माला। सेत्तं अणेगक्खरिए। भावार्थ - अनेकाक्षरिक कितने प्रकार के हैं? अनेकाक्षरिक अनेक प्रकार के कहे गए हैं। जैसे - कन्या, वीणा, माला, लता आदि। . यह अनेकाक्षरिक का स्वरूप है।
विवेचन - कन्या, वीणा आदि शब्दों में एक से अधिक या अनेक अक्षरों का योग है, इसलिए इनकी संज्ञा अनेकाक्षरिक है।
एकाक्षरिक एवं अनेकाक्षरिक के रूप में द्विविधता के कारण द्विनाम की संगति या सार्थकता है। अहवा दुणामे दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - जीवणामे य १ अजीवणामे य २।। भावार्थ - अथवा, द्विनाम दो प्रकार का बतलाया गया है - जीव नाम और अजीव नाम। से किं तं जीवणाम?
जीवणामे अणेगविहे पण्णत्ते। तंजहा - देवदत्तो, जण्णदत्तो, विण्हुदत्तो, सोमदत्तो। सेत्तं जीवणामे।
भावार्थ - जीवनाम कितने प्रकार का है? जीवनाम अनेक प्रकार का निरूपित हुआ है, जैसे - देवदत्त, यज्ञदत्त, विष्णुदत्त, सोमदत्त । यह जीवनाम का निरूपण है। से किं तं अजीवणामे?
अजीवणामे अणेगविहे पण्णत्ते। तंजहा - घडो, पडो, कडो, रहो। सेत्तं अजीवणामे।
शब्दार्थ - घडो - घट-घड़ा, पडो - पट-वस्त्र, कडो - कट-चटाई या कड़ा, रहो - रथ। भावार्थ - अजीव नाम कितने प्रकार का है? अजीव नाम अनेक प्रकार का परिज्ञापित हुआ है, जैसे - घट, पट, कट, रथ इत्यादि। यह अजीव नाम का स्वरूप है। विवेचन - जगत् जीव और अजीव दो पदार्थों का समन्वय है। चैतन्ययुक्त जीव और
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