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षट्नाम
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२. नेपातिक - नैपातिक के मूल में निपात है। “निपतति इति निपातः, तत्संबद्धं नैपातिकं" - अर्थात् जो विशेष रूप में आगत है, प्रयुक्त है, जिनमें लिंग, वचन, कारक इत्यादि के परिणामस्वरूप कोई परिवर्तन नहीं होता। समस्त अव्यय पद निपात में आ जाते हैं।
पाणिनीय व्याकरण (लघुसिद्धान्त कौमुदी) में कहा है - सदृशं त्रिषु लिङ्गेशु, सर्वाषु च विभक्तिसु। सर्वेषु चैव वचनेषु, यत्न व्येति तदव्ययम्॥ इसमें नूनं, खलु आदि उदाहरण ज्ञातव्य है।
३. आख्यातिक - इसके मूल में आख्यात शब्द हैं, जो क्रिया का बोधक है। भाषा वाक्यों से बनती है, वाक्य शब्दों से बनते हैं। क्रियाओं के अभाव में वाक्य रचना संभव नहीं होती। परस्मैपदी, आत्मनेपदी एवं उमयपदी के रूप में तीन प्रकार की धातुओं से क्रियाएँ बनती हैं। कृदन्त आदि पद भी उनसे बनते हैं।
जैसे - धावति, रोदति, क्रियते आदि।
४. औपसर्गिक - साधारणतः बाईस (संस्कृत व्याकरण में चौबीस) उपसर्ग माने गए हैं। धातु के पूर्व में जुड़ कर ये अर्थ परिवर्तित करते हैं। कहा गया है -
उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते। प्रहाराऽऽहार संहार विहार परिहारवत्।।
बाईस उपसर्ग ये हैं - - प्र, परा, अप, सम्, अनु, अव्, निस्, निर्, दुस्, दुर्, वि, आङ्, नि, अधि, अपि, अति, सु, उत्, अभि, प्रति, परि, उप।
५. मिन - वे पद जो उपसर्ग और धातु आदि के मेल से बनते हैं। जैसे - संयत उदाहरण में 'सम्' उपसर्ग और 'यत्' धातु का योग है।
- (१२७)
षट्नाम से किं तं छण्णामे?
छण्णामे छविहे पण्णत्ते। तंजहा - उदइए १ उवसमिए रखइए ३ खओवसमिए४ पारिणामिए ५ सण्णिवाइए ६।
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