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अनुयोगद्वार सूत्र
से किं तं उदइए? उदइए दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - उदइए य १ उदयणिप्फण्णे य२। से किं तं उदइए? उदइए-अट्ठण्हं कम्मपयडीणं उदएणं। सेत्तं उदइए। से किं तं उदयणिप्फण्णे?
उदयणिप्फण्णे दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - जीवोदयणिप्फण्णे य १ अजीवोदयणिप्फण्णे य २।
शब्दार्थ - अट्ठण्हं - आठों के, कम्मपयडीणं - कर्मप्रकृतियों के। .. भावार्थ - छह नाम कितने प्रकार का है?
इसके छह भेद बतलाए गए हैं - १. औदयिक २. उपशमिक ३. क्षायिक ४. क्षायोपशमिक । ५. पारिणामिक एवं ६. सान्निपातिक।
औदयिक (भाव) कितने प्रकार का है? यह दो प्रकार का निरूपित हुआ है - १. औदयिक २. उदयनिष्पन्न।
औदयिक का क्या स्वरूप है? (ज्ञानावरणीय आदि) कर्म-प्रकृतियों के उदय से जनित भाव औदयिक है। यह औदयिक का निरूपण है।
उदयनिष्पन्न कैसा है? यह दो प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है - १. जीवोदय निष्पन्न एवं २. अजीवोदय निष्पन्न।
विवेचन - यहाँ औदयिक भाव के जीवोदयनिष्पन्न और अजीवोदयनिष्पन्न के रूप में दो भेद किए गए हैं। इनका आशय इस प्रकार है। कर्मोदय के जीव और अजीव दो माध्यम हैं। कर्मोदयजनित अवस्थाएँ, जो जीव को साक्षात् प्रभावित करती हैं अथवा कार्मिक उदय से जीव में जो-जो पर्याय निष्पन्न होते हैं, उन्हें जीवोदय निष्पन्न कहा जाता है क्योंकि उनका माध्यम जीव है। जो-जो अवस्थाएँ अजीव के माध्यम से उत्पन्न होती हैं, उन्हें अजीवोदयनिष्पन्न कहा जाता है।
जीवोदय निष्पन्न के भेद से किं तं जीवोदयणिप्फण्णे?
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