________________
सप्तस्वरों के लक्षण, फल
१६७
शयन - बिछौने, गीयजुत्तिण्णा - गीत युक्ति वेत्ता - संगीतकला विशारद, वजवित्त - उत्तम वृत्ति युक्त, कलाहिया - कला विशेषज्ञ, हवंति - होते हैं, कइणो - कवि, धण्णा - धन्य, अण्णे - अन्य, सत्थपारगा - शास्त्र पारगामी, सरमंता - स्वरज्ञ, सुहजीविणो - सुखपूर्वक जीने वाले, खायई - खाते, पियई - पीते हैं, देई - देते हैं, मज्झिमसरमस्सिओ - मध्यमस्वरमाश्रित, पुहवीपई - पृथ्वीपति - राजा, सूरा - शूरवीर, संगहकत्तारो - संग्रह करने वाले, अणेगगणणायगा - अनेक गणों के नायक, रेवयसरमंता - (रैवत) धैवत सुरनिपुण पुरुष, दुहजीविणो - दुःखजीवी - कष्ट पूर्वक जीने वाले, साउणिया - शाकुनिक - पक्षियों को मारने वाले, वाउरिया - जाल बिछाकर हिरण आदि को पकड़ने वाले, सोयरिया - शूअरों का आखेट करने वाले, मुट्ठिया - मौष्टिक - मुक्कों द्वारा जीव' मारने वाले, कलहकारगा - कलहकारक - झगडालू, जंघाचरा - पादचारी, लेहवाहा - पत्रवाहक, हिंडगा - भटकने वाले, भारवाहगा - भार ढोने वाले। . भावार्थ - इन सात स्वरों के तत्-तत् फलानुरूप सात स्वर लक्षण प्रतिपादित हुए हैं -
गाथाएं - जो मनुष्य षड्ज स्वर में निपुण होता है, उसे आजीविका सुलभ होती है। उसका प्रयत्न निरर्थक नहीं जाता। उसे गोधन, पुत्र, मित्र आदि का संयोग प्राप्त होता है। स्त्रियों के लिए वह प्रिय होता है॥१॥
ऋषभ स्वर में निष्णात पुरुष ऐश्वर्यशाली होता है। सेनापति पद, धन-धान्य, वस्त्र, सुगंधित पदार्थ, आभरण, स्त्री, शयनासन आदि प्राप्त करता है॥२॥
गांधार स्वरवेत्ता व्यक्ति संगीतकला विशारद एवं उत्तम आजीविका वाले होते हैं। कलाविदों में गण्य तथा कवित्व प्रतिभा युक्त एवं अन्य शास्त्रों में पारंगत होते हैं॥३॥
मध्यम स्वरभाषी सुखजीवी होते हैं। यथारुचि खाते-पीते हैं एवं बांटते हैं॥४॥
पंचम स्वरसाधक भूमिपति - राजा एवं शूरवीर होते हैं। अच्छे व्यक्तियों के संग्राहकसुयोग्य व्यक्तियों से कार्य लेने वाले एवं अनेक गणों - समुदायों के नायक होते हैं॥५॥
धैवत स्वर वाले मनुष्य दुःख जीवी - कष्ट पूर्ण जीवन जीने वाले होते हैं। वे शाकुनिक, वागुरिक, शौकरिक एवं मौष्टिक होते हैं॥६॥
निषाद स्वर वाले व्यक्ति कलहकारक पादचारी, पत्रवाहक, भटकने वाले, बोझा ढोने वाले होते हैं॥७॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org