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अनुयोगद्वार सूत्र
अजीवोदयनिष्पन्न के प्रकार से किं तं अजीवोदयणिप्फण्णे?
अजीवोदयणिप्फण्णे अणेगविहे पण्णत्ते। तंजहा - उरालियं वा सरीरं, उरालियसरीरपओगपरिणामियं वा दव्वं, वेउव्वियं वा सरीरं, वेउव्वियसरीरपओगपरिणामियं वा दव्वं, एवं आहारगं सरीरं तेयगं सरीरं कम्मगसरीरं च भाणियव्वं। पओगपरिणामिए वण्णे, गंधे, रसे, फासे। सेत्तं अजीवोदयणिप्फण्णे। सेत्तं उदयणिप्फण्णे। सेत्तं उदइए।
शब्दार्थ - उरालियं - औदारिक, वेउब्वियं - वैक्रिय, आहारगं - आहारक, तेयगं - तैजस्, कम्मग - कार्मण।
भावार्थ - अजीवोदयनिष्पन्न औदयिक भाव कितने प्रकार का है?
अजीवोदय निष्पन्न औदयिक भाव अनेक प्रकार का बतलाया गया है। यथा - १. औदारिक शरीर २. औदारिक शरीर के प्रयोग से परिणामित द्रव्य ३. वैक्रिय शरीर ४. वैक्रिय शरीर के प्रयोग से परिणामित द्रव्य ५-६. आहारक शरीर एवं आहारक शरीर के प्रयोग से परिणामित द्रव्य ७-८. तैजस शरीर एवं तैजस शरीर के प्रयोग से परिणामित द्रव्य ६-१०. कार्मण शरीर एवं कार्मण शरीर के प्रयोग से परिणामित द्रव्य एवं ११-१४. वर्ण, गन्ध, रस तथा स्पर्श ये अजीवोदयनिष्पन्न और औदयिक भाव हैं। यह उदयनिष्पन्न भाव का विवेचन हैं। इस प्रकार औदयिक भाव का विवेचन परिसमाप्त होता है।
औपशमिक भाव से किं तं उवसमिए? उवसमिए दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - उवसमे य १ उवसमणिप्फण्णे य २। से किं तं उवसमे? ' उवसमे मोहणिजस्स कम्मस्स उवसमेणं। सेत्तं उवसमे। शब्दार्थ - मोहणिजस्स - मोहनीय का, कम्मस्स - कर्म का। भावार्थ - औपशमिक भाव कितने प्रकार का है? औपशमिक भाव दो प्रकार का है - १. उपशम २. उपशम निष्पन्न ।
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