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अनुयोगद्वार सूत्र
पजवणामे अणेगविहे पण्णत्ते। तंजहा - एगगुणकालए, दुगुणकालए, तिगुणकालए जाव दसगुणकालए, संखिजगुणकालए, असंखिजगुणकालए, अणंतगुणकालए। एवं णीललोहियहालिद्दसुक्किल्ला वि भाणियव्वा।
एगगुणसुरभिगंधे, दुगुणसुरभिगंधे, तिगुणसुरभिगंधे जाव अणंतगुणसुरभिगंधे। एवं दुरभिगंधो वि भाणियव्वो। ___ एगगुणतित्ते जाव अणंतगुणतित्ते। एवं कडुयकसाय-अंबिलमहुरा वि . भाणियव्वा। एगगुणकक्खडे जाव अणंतगुणकक्खडे। एवं मउयगरुयलयसीयउसिणणिद्धलुक्खा वि भाणियव्वा। सेत्तं पजवणामे।
भावार्थ - पर्यायनाम के कितने भेद हैं?
पर्यायनाम के अनेक भेद कहे हैं, जैसे - एकगुण - अंश काला, द्विगुणकाला, 'त्रिगुणकाला यावत् दसगुण काला, संख्यातगुणकाला, असंख्यातगुणकाला तथा अनंतगुणकाला।
इसी प्रकार नीले, लाल, पीले एवं श्वेत के संदर्भ में भी इसी भांति वर्णन योजनीय है। एकगुण सुरभिगंध, द्विगुण सुरभिगंध, त्रिगुण सुरभिगंध यावत् अनंतगुण सुरभिगंध हैं। इसी प्रकार दुरभिगंध (दुर्गन्ध) भी वर्णनीय है।
एकगुणतिक्त यावत् अनंतगुणतिक्त पर्यन्त हैं। इसी प्रकार कटुक, कषाय, आम्ल और मधुर के संबंध में भी ग्राह्य है।
एकगुणकर्कश यावत् अनंतगुणकर्कश हैं। इसी प्रकार मृदुक, गुरुक, लघुक, शीत, उष्ण, स्निग्ध एवं रूक्ष के संबंध में भी ज्ञातव्य है।
यह पर्याय नाम की वक्तव्यता है।
विवेचन - उपर्युक्त सूत्र में पर्याय नाम के भेदों में एक गुण, दो गुण यावत् अनन्त गुण काले आदि वर्णादि बीस बोलों को बताया गया है। यद्यपि एक गुण आदि के भेदों से रहित वर्णादि बीस बोलों को भी पर्याय नाम के भेदों में कहा जा सकता है, किन्तु ये बीस बोल तो पुद्गलों के साथ में लम्बे काल तक रह सकते हैं इसलिए इन्हें आगे गुण प्रमाण के वर्णन में गुणों के अन्तर्गत कहा गया है। एक गुण आदि अवस्थाएं अल्पकालीन होने से इन्हें ही यहाँ पर पर्याय नाम के भेदों में बताया गया है। ऐसा टीका में खुलासा किया गया है।
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