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अनुयोगद्वार सूत्र
(१२०)
भावानुपूर्वी का विवेचन से किं तं भावाणुपुव्वी?
भावाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता। तंजहा - पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुव्वी २ अणाणुपुव्वी ३।
से किं तं पुव्वाणुपुव्वी?
पुव्वाणुपुव्वी-उदइए १ उवसमिए २ खाइए ३ खओवसमिए ४ पारिणामिए ५ सण्णिवाइए ६। सेत्तं पुव्वाणुपुव्वी।
से किं तं पच्छाणुपुव्वी? पच्छाणुपव्वी-सण्णिवाइए ६ जाव उदइए १। सेत्तं पच्छाणुपुव्वी। .. से किं तं अणाणुपुव्वी?
अणाणुपुव्वी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए .. अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो। सेत्तं अणाणुपुव्वी। सेत्तं भावाणुपुव्वी। सेत्तं आणुपुव्वी।
॥ आणुपुव्वी त्ति पयं समत्तं ॥ भावार्थ - भावानुपूर्वी कितने प्रकार की है? विवेचन - भावानुपूर्वी तीन प्रकार की है - १. पूर्वानुपूर्वी २. पश्चानुपूर्वी तथा ३. अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है? ।
१. औदयिक २. औपशमिक ३. क्षायिक ४. क्षायोपशमिक ५. पारिणामिक एवं ६. सान्निपातिकइस क्रम से भावों का व्यवस्थापन पूर्वानुपूर्वी है। यह पूर्वानुपूर्वी का वर्णन है।
पश्चानुपूर्वी का कैसा स्वरूप है?
सान्निपातिक भाव से लेकर यावत् औदयिक भाव तक भावों को विपरीत क्रम से स्थापित करना, पश्चानुपूर्वी है। यह पश्चानुपूर्वी का वर्णन है।'
अनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है?
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