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अनुयोगद्वार
अश्व, गज, वृषभ आदि में जीव की विवक्षा है, वहाँ तदाश्रित शरीर अविवक्षित है। यहाँ अश्व आदि के जीव तथा तदाश्रित शरीर इन सबकी समग्र रूप में विवक्षा है। केवल जीव या शरीर की नहीं है।
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से किं तं अकसिणखंधे ?
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अकसिणखंधे - से चेव दुपएसियाइ खंधे जाव अनंतपएसिए खंधे । सेत्तं अकसिणखंधे ।
भावार्थ - अकृत्स्न स्कन्ध किस प्रकार का है?
अकृत्स्न स्कन्ध पूर्व प्रतिपादन के अनुसार द्विप्रदेशिक स्कन्ध यावत् अनंत प्रदेशिक स्कन्ध इत्यादि के रूप में है। यह अकृत्स्न स्कन्ध का निरूपण है।
विवेचन अकृत्स्न स्कन्ध शब्द में प्रयुक्त 'अ' उपसर्ग निषेध सूचक है जो कृत्स्न या समग्र नहीं होता उसे अकृत्स्न, अपरिपूर्ण या असमग्र कहा जाता है। एक प्रदेशी, द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी आदि उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि एकप्रदेशी, द्विप्रदेशी आदि अन्यों की अपेक्षा अपरिपूर्ण है। इसी प्रकार द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी आदि की अपेक्षा असमग्र या अपरिपूर्ण है।
उसी प्रकार अन्यों को भी समझना चाहिये । द्विप्रदेशी से लेकर अनंत प्रदेशी स्कन्ध आदि को यहाँ पर अकृत्स्न स्कन्ध के रूप में कहा गया है। सर्वोत्कृष्ट अनंत प्रदेशी स्कन्ध से एक प्रदेश कम तक के सभी स्कन्धों का इसमें समावेश समझ लेना चाहिए ।
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से किं तं अगदवियखंधे ?
अगदवियखंधे - तस्स चेव देसे अवचिए तस्स चेव देसे उवचिए । सेत्तं अगदवियखंधे । सेत्तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वखंधे । सेत्तं णोआगमओ दव्वखंधे। सेत्तं दव्वखंधे ।
शब्दार्थ - अवचिए - अवचित अपचित, उवचिए - उपचित ।
भावार्थ अनेक द्रव्य स्कन्ध किस प्रकार का है?
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