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अनुयोगद्वार सूत्र
अमात्य का अप्रशस्त भावोपक्रम - भद्रबाहु नामक एक राजा था। उसके अमात्य का नाम सुशील था। वह नीतिशास्त्र में अत्यन्त निपुण था। दूसरों के अभिप्राय को किसी भी तरीके से जान लेना तो उसके लिए बांये हाथ का खेल था। एक दिन राजा अपने अमात्य के साथ नगर से बाहर सैर करने के लिए घोड़े पर सवार होकर निकला। रास्ते में एक जगह घोड़े ने पेशाब किया। घोड़े ने जिस जगह पेशाब किया था, वह ज्यों का त्यों पड़ा रहा, बहुत देर तक सूखने नहीं पाया। जब राजा घूम-फिर कर वापस उसी जगह लौटा तो उसने वहाँ पेशाब ज्यों का त्यों पड़ा देखा। इस पर राजा को यह विचार स्फुरित हुआ कि यहाँ की भूमि बड़ी कठोर है। इतना समय हो जाने पर भी इस जगह पेशाब सूखा नहीं है। अगर यहाँ तालाब बना दिया जाए तो पानी चिरकाल तक टिका रह सकेगा, सूखेगा नहीं। ऐसा विचार करने के बाद राजा काफी समय तक उस भू-भाग को घूम-फिरकर देखता रहा। अन्त में, वह अपने महल में चला गया। परन्तु भद्रबाहु राजा की उक्त चेष्टा को मंत्री सुशील बहुत बारीकी से देखता रहा। उसे राजा का अभिप्राय समझते देर न लगी। मंत्री ने कुछ ही समय में पानी से लहलराता एक विशाल सरोवर वहाँ बनवा दिया। सरोवर के चारों ओर किनारे-किनारे सभी ऋतुओं के फूलों की बेलें लगवादी एवं फलदार वृक्ष भी चारों ओर लगवा दिये। समय पाकर वह सरोवर बगीचे के कारण एक रमणीय पर्यटन स्थान बन गया। एक दिन राजा फिर मंत्री के साथ सैर करने के लिए निकला। रास्ते में वृक्षों के झुंड एवं पुष्पों से लदी हुई लताओं से सुशोभित सुन्दर सरोवर को देखा तो राजा दंग रह गया। उसने सुशील मंत्री से पूछा - 'मंत्रिवर! यह पुष्पों एवं वृक्ष पंक्तियों से सुशोभित यहाँ विशाल सुरम्य सरोवर किसने बनाया है?" राजा के प्रश्न के उत्तर में मंत्री ने कहा-“महाराज! इसके निर्माता तो आप स्वयं ही हैं।" राजा ने विस्मित होकर पूछा - मैं इसका निर्माता कैसे? मुझे तो इस सरोवर का पता ही नहीं। मैंने तो इसे पहली बार देखा है। ___ राजा के ऐसा कहने पर मंत्री ने उस दिन की घटना का स्मरण कराते हुए कहा - 'महाराज! घोड़े के पेशाब को इस जगह बहुत देर तक ज्यों का त्यों पड़ा देखकर आपका मनोमन्थन इस भूमि पर तालाब बनवाने का चला था, मैंने इसे आपकी चेष्टाओं पर से जान लिया था। बाद में मैंने यहाँ तालाब खुदवाया, पेड़-पौधे लगवाए और पुष्पों से सुशोभित बेलें लगवाई। पर यह सब आपके ही मनोमन्थन का प्रसाद है।' राजा मंत्री की दूरदर्शिता, दूसरों के मनोभावों को ताड़ने की शक्ति एवं विनम्रता से बहुत प्रभावित हुआ और प्रसन्न होकर मंत्री को सधन्यवाद पुरस्कृत किया, उसके अधिकार बढ़ा दिये।
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