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ऊर्ध्वलोक पूर्वानुपूर्वी
अनानुपूर्वी
से किं तं अणाणुपुव्वी ?
अणाणुपुव्वी - एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए असंखेज्जगच्छगयाए सेंढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो । सेत्तं अणाणुपुव्वी ।
भावार्थ - अनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ?
एक
से प्रारम्भ कर असंख्यात पर्यन्त, श्रेणी स्थापित कर, श्रेणीगत अंकों का परस्पर गुणन करने पर जो राशि प्राप्त हो, उसमें से प्रारम्भिक और अंतिम इन दो भंगों को छोड़ कर बीच के समस्त भंग (मध्यलोक क्षेत्र ) अनानुंपूर्वी रूप हैं ।
यह अनानुपूर्वी का विवेचन है।
उड्डलोयखेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता । तंजहा - पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुव्वी २ अणाणुपुव्वी ३ ।
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भावार्थ - ऊर्ध्वलोक क्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की बतलाई गई है १. पूर्वानुपूर्वी २. पश्चानुपूर्वी एवं ३. अनानुपूर्वी ।
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ऊर्ध्वलोक पूर्वानुपूर्वी
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से किं तं पुव्वाणुपुव्वी ?
पुव्वाणुपुव्वी सोहम्मे १ ईसाणे २ सणंकुमारे ३ माहिंदे ४ बंभलोए ५ लंतए ६ महासुक्के ७ सहस्सारे ८ आणए ६ पाणए १० आरणे ११ अच्चुए १२ गेवेज्जविमाणे १३ अणुत्तरविमाणे १४ ईसिप भारा १५ । सेत्तं पुव्वाणुपुव्वी ।
भावार्थ - (ऊर्ध्वलोक) पूर्वानुपूर्वी का कैसा स्वरूप है ?
उसका स्वरूप इस प्रकार है -
१. सौधर्मकल्प २. ईशान ३. सनत्कुमार ४. माहेन्द्र ५. ब्रह्मलोक ६. लांतक ७. महाशुक्र ८. सहस्रार ६. आनत १०. प्राणत ११. आरण १२. अच्युत १३. ग्रैवेयक विमान १४. अनुत्तर विमान १५. ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी - इस क्रम से ऊर्ध्वलोक के देवक्षेत्रों का प्रतिपादन (ऊर्ध्वलोक) पूर्वानुपूर्वी है। यह पूर्वानुपूर्वी का विवेचन है।
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