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अनुयोगद्वार सूत्र
पश्चानुपूर्वी से किं तं पच्छाणुपुव्वी? पच्छाणुपुल्वी - ईसिपब्भारा १५ जाव सोहम्मे १। सेत्तं पच्छाणुपुव्वी। . भावार्थ - पश्चानुपूर्वी का कैसा स्वरूप है?
१५ ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी से लेकर यावत् १ सौधर्मकल्प पर्यन्त क्षेत्रों का उल्टे क्रम से उपपादन, करना, ऊर्ध्वलोक क्षेत्र पश्चानुपूर्वी है। यह पश्चानुपूर्वी का प्रतिपादन है।
से किं तं अणाणुपुव्वी?
अणाणुपुव्वी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए पण्णरसगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो। सेत्तं अणाणुपुव्वी।
भावार्थ - अनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है?
एक से प्रारम्भ कर एकोत्तर वृद्धि द्वारा निर्मित पन्द्रह तक की श्रेणी में स्थित अंकों का परस्पर गुणन करने पर प्राप्त फलरूप राशि में से आद्य (प्रारम्भिक) और अंतिम दो भंगों को कम कर देने पर अवशिष्ट भंग ऊर्ध्वलोक क्षेत्र की अनानुपूर्वी के ज्ञापक हैं।
यह अनानुपूर्वी का वर्णन है। औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी का अन्यविध निरूपण
अहवा उवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता। तंजहा - पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुव्वी २ अणाणुपुव्वी य ३।
भावार्थ - अथवा औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की निरूपित हुई है - १. पूर्वानुपूर्वी २. पश्चानुपूर्वी ३. अनानुपूर्वी। से किं तं पुव्वाणुपुव्वी?
पुव्वाणुपुव्वी - एगपएसोगाढे, दुपएसोगाढे जाव दसपएसोगाढे जाव संखिजपएसोगाढे, असंखिजपएसोगाढे। सेत्तं पुव्वाणुपुव्वी। - भावार्थ - (औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी के प्रथम भेद) पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है?
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