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अनुगम निरूपण - भाग-प्ररूपणा
भावार्थ - संग्रहनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य काल की अपेक्षा कियत् काल परिमित अस्तित्व लिए रहते हैं?
(संग्रहनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य नियमतः) सर्वकाल में रहते हैं। इसी तरह (अनानुपूर्वी एवं अवक्तव्य) इन दोनों द्रव्यों के संदर्भ में जानना चाहिए। संगहस्स आणुपुव्वीदव्वाणं कालओ केवच्चिरं अंतरं होइ? णत्थि अंतरं। एवं दोण्णि वि।
भावार्थ - संग्रहनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य काल की अपेक्षा कितना अंतर - व्यवधान लिए होते हैं?
(उनमें काल की अपेक्षा) अन्तर नहीं होता। यही तथ्य आगे के दो द्रव्यों के संदर्भ में ज्ञाप्य है। - विवेचन - इस सूत्र में प्रयुक्त 'सव्वद्धा' शब्द भाषा शास्त्रीय दृष्टि से विशेष रूप से विचारणीय है। 'धा' प्रत्यय काल या बार का सूचक है। जैसे द्विधा, त्रिधा, चतुर्धा आदि। प्राकृत में एक से लेकर सबके लिए 'वार' की अपेक्षा यह प्रत्यय प्रयुक्त रहा है। आगे चलकर संस्कृत में कुछ स्थानों में 'धा' के स्थान पर 'दा' कर दिया गया। जिसका प्रयोजन भाषा शास्त्र के अनुसार 'मुख-सुख' प्रवृत्ति है। यथा - एकधा के स्थान पर एकदा तथा सर्वधा के स्थान पर सर्वदा। यह सम्मार्जन का संस्कार है। इसी प्रवृत्ति के कारण संस्कृत का संस्कृत - संस्कार युक्त, सम्मार्जन युक्त नाम पड़ा। इससे संस्कृत की अपेक्षा प्राकृत की प्राचीनता सिद्ध होती है।
७. भाग-प्ररूपणा . संगहस्स आणुपुव्वीदव्वाइं सेसदव्वाणं कइभागे होजा? किं संखिजइभागे होजा? असंखिजइभागे होजा? संखेजेसु भागेसु होजा? असंखेजेसु भागेसु होजा? __णो संखिजइभागे होजा, णो असंखिजइभागे होजा, णो संखेजेसु भागेसु होजा, णो असंखेजेसु भागेसु होजा, णियमा तिभागे होजा। एवं दोण्णि वि। _भावार्थ - संग्रहनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य शेष द्रव्यों के कितने भाग प्रमाण होते हैं? क्या वे संख्यात भाग प्रमाण होते हैं? असंख्यात भाग प्रमाण होते हैं? संख्येय भाग (बहुवचन) प्रमाण होते हैं? असंख्येय भाग (बहुवचन) प्रमाण होते हैं?
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