________________
१०८
अनुयोगद्वार सूत्र
समवतार निरूपण से किं तं समोयारे? समोयारे-णेगमववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाइं कहिं समोयरंति? किं आणुपुव्वीदव्वेहिं समोयरंति? अणाणुपुव्वीदव्वेहि समोयरंति? अवत्तव्वयदव्वेहिं समोयरंति ? ____ आणुपुव्वीदव्वाई आणुपुव्वीदव्वेहिं समोयरंति, णो अणाणुपुव्वीदव्वेहिं समोयरंति, णो अवत्तव्वयदव्वेहिं समोयरंति। एवं तिण्णि वि सट्ठाणे सट्ठाणे समोयरंति। सेत्तं समोयारे।
शब्दार्थ - तिण्णि - तीनों, वि - भी, सट्ठाणे - स्वस्थान में।
भावार्थ - समवतार का क्या स्वरूप है? नैगम व्यवहार सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य कहाँ समवतरित होते हैं? क्या वे आनुपूर्वी द्रव्यों में समवतरित होते हैं? अनानुपूर्वी द्रव्यों में समवतरित होते हैं? अवक्तव्य द्रव्यों में समवतरित होते हैं?
आनुपूर्वी द्रव्य (मात्र) आनुपूर्वी द्रव्यों में (ही) समवतरित होते हैं। वे अनानुपूर्वी द्रव्यों में एवं अवक्तव्य द्रव्यों में समवतरित नहीं होते हैं।
इस प्रकार तीनों ही स्व-स्व स्थानों में समवतरित होते हैं। यह ‘समोयार' (समवतार) का स्वरूप है।
अनुगम का निरूपण से किं तं अणुगमे? अणुगमे णवविहे पण्णत्ते। तंजहा - गाहा - संतपयपरूवणया, दव्वपमाणं च खित्त फुसणा य।
कालो य अंतरं भाग, भावे अप्पाबहुंचेव॥१॥ भावार्थ - अनुगम कितने प्रकार का है? अनुगम नौ प्रकार का कहा गया है, जो निम्नांकित गाथा से स्पष्ट है -
गाथा - १. सत्पदप्ररूपणता २. द्रव्यप्रमाण ३. क्षेत्र ४. स्पर्शना ५. काल ६. अंतर ७. भाग ८. भाव एवं 6. अल्प बहुत्व।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org