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अनुयोगद्वार सूत्र
भावार्थ - नैगम एवं व्यवहारनय की अपेक्षा से आनुपूर्वी द्रव्य हैं अथवा नहीं हैं? वे नियमतः अवश्य हैं। नैगम - व्यवहारनय सम्मत अनानुपूर्वी द्रव्य हैं अथवा नहीं हैं? नियमतः - निश्चित रूप से हैं। । नैगम - व्यवहारनय सम्मत अवक्तव्य द्रव्य क्या हैं अथवा नहीं है? वे नियमतः हैं।
(८३)
२. द्रव्य प्रमाण णेगमववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाइं किं संखिजाइं? असंखिजाई? अणंताई?
णो संखिजाई, णो असंखिजाई, अणंताई। एवं अणाणुपुत्वीदव्वाई अवत्तव्वगदव्वाइंच अणंताई भाणियव्वाई।
भावार्थ - नैगम एवं व्यवहारनय की दृष्टि से आनुपूर्वी द्रव्य क्या संख्येय, असंख्येय या अनंत हैं?
वे संख्येय एवं असंख्येय नहीं हैं, अनंत हैं। इसी प्रकार अनानुपूर्वी एवं अवक्तव्य - ये दोनों द्रव्य भी अनंत के रूप में भणनीय - कथनीय हैं।
विवेचन - इस सूत्र में प्रयुक्त 'संखेज' - संख्येय शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है - 'संख्यातुं योग्यं संख्येयं' - जो गिनने योग्य होते हैं, उन्हें संख्येय कहा जाता है। 'न संख्यातुं योग्यं असंख्येयम्' - जिनकी गणना नहीं की जा सकती वे असंख्येय हैं। ये दोनों ही शब्द क्रमशः संख्यात और असंख्यात के बोधक हैं। ___इन सूत्रों में आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी एवं अवक्तव्य द्रव्यों को अनंत कहा गया है, उसका आशय यह है कि एक-एक आकाश प्रदेश में वे अनंत रूप में समा सकते हैं। उसका कारण पुद्गलों का संकोच-विस्तार रूप विशिष्ट गुण या स्वभाव है। जैसे - एक दीपक की लौ अत्यन्त छोटे स्थान को प्रकाशित करती है, उसी को एक विस्तीर्ण परिसर में रख दिया जाय तो उसे भी प्रकाशित करती है। छोटे स्थान में प्रकाश रूप में परिणत आग्नेय पुद्गलों का संकोच होता है और बड़े स्थान में उनका विस्तार होता है।
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