Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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ऊपर जिन आगमों के सन्दर्भ में विवेचन किया गया है, श्वेताम्बर - परम्परा में उनकी संख्या के सम्बन्ध में ऐकमत्य नहीं है। उनकी ८४, ४५ तथा ३२ - यों तीन प्रकार की संख्याएं मानी जाती हैं। श्वेताम्बर मन्दिर - मार्गी सम्प्रदाय में ८४ और ४५ की संख्या की भिन्न-भिन्न रूप में मान्यता है । श्वेताम्बर स्थानकवासी तथा तेरापंथी जो अमूर्तिपूजक सम्प्रदाय हैं, में ३२ की संख्या स्वीकृत है, जो इस प्रकार है:
विपाक ।
११ अंग- आचार, सूत्रकृत्, स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञातृधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृद्दशा, अनुत्तरौपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण, १२ उपांग-औपपातिक, राजप्रश्रीय, जीवाजीवाभिगम, प्रज्ञापना, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, निरयावली, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका, वृष्णिदशा ।
४ छेद-व्यवहार, वृहत्कल्प, निशीथ, दशाश्रुतस्कन्ध ।
४ मूल - दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, नन्दी, अनुयोगद्वार ।
१
आवश्यक ।
कुल ३२
यों ग्यारह अंग तथा इक्कीस अंगबाह्य कुल बत्तीस होते हैं ।
चार अनुयोग
व्याख्याक्रम, विषयगत भेद आदि की दृष्टि से आर्यरक्षित सूरि ने आगमों को चार भागों में वर्गीकृत किया, जो अनुयोग कहलाते हैं । ये इस प्रकार है-
१. चरणकरणानुयोग- इसमें आत्मविकास के मूलगुण-आचार, व्रत सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम, वैयावृत्य, ब्रह्मचर्य, तप, कषाय- निग्रह आदि तथा उत्तरगुण-पिण्डविशुद्धि, समिति, भावना, प्रतिमा, इन्द्रिय - निग्रह, प्रतिलेखन, गुप्ति तथा अभिग्रह आदि का विवेचन है ।
२. धर्मकथानुयोग- इसमें दया, दान, शील, क्षमा, आर्जव, मार्दव आदि धर्म के अंगों का विवेचन है । इसके लिए विशेष रूप से आख्यानों या कथानकों का आधार लिया गया है।
३. गणितानुयोग - इसमें गणितसम्बन्धी या गणित पर आधृत वर्णन की मुख्यता है ।
४. द्रव्यानुयोग-इसमें जीव, अजीव आदि छह द्रव्यों या नौ तत्त्वों का विस्तृत व सुक्ष्म विवेचनविश्लेषण है ।
पूर्वोक्त ३२ आगमों का इन ४ अनुयोगों में इस प्रकार समावेश किया जा सकता है:
चरणकरणानपुयोग में आचारांग तथा प्रश्नव्याकरण ये दो अंगसूत्र, दशवैकालिक-यह एक मूलसूत्र, निशीथ, व्यवहार, बृहत्कल्प एवं दशाश्रुतस्कंध ये चार छेदसूत्र तथा आवश्यक यों कुल आठ सूत्र आते हैं ।
धर्मकथानुयोग में ज्ञातृधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृद्दशा, अनुत्तरौपपातिकदशा तथा विपाकये पांच अंगसुत्र, औपपातिक, राजप्रश्नीय, निरयावली, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका व वृष्णिदशा
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