Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
साधारण की सीधी पहुँच हो। अर्द्धमागधी में यह बात थी। प्राकृतभाषी क्षेत्रों के बच्चे, बूढ़े, स्त्रियाँ, शिक्षित, अशिक्षित-सभी उसे समझ सकते थे। अंग-साहित्य
गणधरों द्वारा भगवान् का उपदेश निम्नांकित बारह अंगों के रूप में संग्रथित हुआ
१. आचार, २. सूत्रकृत्, ३. स्थान, ४. समवाय, ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति, ६. ज्ञातृधर्मकथा, ७. उपासकदशा, 6. अन्तकृद्दशा, ९. अनत्तरौपपातिकदशा, १०. प्रश्नव्याकरण, ११. विपाक, १२. दृष्टिवाद।
प्राचीनकाल में शास्त्र-ज्ञान को कण्ठस्थ रखने की परम्परा थी। वेद, पिटक और आगम-ये तीनों ही कण्ठस्थ-परम्परा से चलते रहे । उस समय लोगों की स्मरणशक्ति, दैहिक संहनन, बल उत्कृष्ट
था।
आगम-संकलन : प्रथम प्रयास
भगवान् महावीर के निर्वाण के लगभग ५६० वर्ष पश्चात् तक आगम-ज्ञान की परम्परा यथावत् रूप में गतिशील रही। उसके बाद एक विघ्न हुआ। मगध में बारह वर्ष का दुष्काल पड़ा। यह चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन-काल की घटना है। जैन श्रमण इधर-उधर बिखर गये। अनेक काल-कवलित हो गये। जैन संघ को आगम-ज्ञान की सुरक्षा की चिन्ता हुई। दुर्भिक्ष समाप्त होने पर पाटलिपुत्र में आगमों को व्यवस्थित करने हेतु स्थूलभद्र के नेतृत्व में जैन साधुओं का एक सम्मेलन आयोजित हुआ। इसमें ग्यारह अंगों का संकलन किया गया। बारहवां अंग दृष्टिवाद किसी को भी स्मरण नहीं था। दृष्टिवाद के ज्ञाता केवल भद्रबाहु थे। वे उस समय नेपाल में महाप्राणध्यान की साधना में लगे हुए थे। उनसे वह ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास किया गया। दृष्टिवाद के चवदह पूर्वो में से दस पूर्व तक का अर्थ ज्ञान स्थूलभद्र प्राप्त कर सके। चार पूर्वो का केवल पाठ उन्हें प्राप्त हुआ।
आगमों के संकलन का यह पहला प्रयास था। इसे आगमों की प्रथम वाचना या पाटलिपुत्रवाचना कहा जाता हैं।
यों आगमों का संकलन तो कर लिया गया पर उन्हें सुरक्षित बनाये रखने का क्रम वही कण्ठाग्रता का ही रहा। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि वेद यहाँ व्याकरणनिष्ठ संस्कृत में निबद्ध थे, जैन आगम लोक-भाषा में निर्मित थे, जो व्याकरण के कठिन नियमों से नहीं बन्धी थी, इसलिए आने वाले समय के साथ-साथ उनमें भाषा की दृष्टि से कुछ-कुछ परिवर्तन भी स्थान पाने लगा। वेदों में ऐसा सम्भव नहीं हो सका। इसका एक कारण और था, वेदों की शब्द-रचना को यथावत् रूप में बनाये रखने के लिए उसमें पाठ के संहितापाठ, पदपाठ, क्रमपाठ, जटापाठ-ये पाँच रूप रखे गये, जिनके कारण किसी भी मन्त्र का एक भी शब्द इधर से उधर नहीं हो सकता। आगामों के साथ ऐसी बात सम्भव नहीं थी। द्वितीय प्रयास
भगवान् महावीर के निर्वाण के ८२७-८४० वर्ष के मध्य आगमों को सुव्यवस्थित करने का
[१७]