Book Title: Samdhikavya Samucchaya
Author(s): R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SAMDHIKAVYA-SAMUCCAYA L. D. SERIES 72 GENERAL EDITORS રામા DALSUKH MALVANIA NAGIN J. SHAH * भारतीय संस्कृति EDITED BY R. M. SHAH RESEARCH OFFICER L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDAPAD 9 L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD-9 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SANDHIKĀVYA-SAMUCCAYA EDITED BY L. D. SERIES 72 GENERAL EDITORS DALSUKH MALVANIA NAGIN J. SHAH R. M. SHAH RESEARCH OFFICER L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD-9 L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD 9, YG Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DES र लाल भाई बना भारतीय (संस्कृति अहमदाबाद संधिकाव्य-समुच्चय संपादक र. म. शाह प्रकाशक लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर अहमदाबाद ९ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Printed by (i) Text pp. 1-56 Shivlal Jesalpura Swati Printing Press Rajaji's Street, Shahpur Ahmedabad-380001. (ii) Text pp. 57-136, Bhumika pp. 1-16 Mahanth Tribhuvandas Shastri Shree Ramanand Printing Press Kankaria Road, Ahmedabad-380022. Published by Nagin J. Shah L. D. Institute of Indology Ahmedabad-380009. FIRST EDITION January 1980 "Printed with the financial assistance of the Government of Gujarat" Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रधान संपादकीय डॉ. र. म. शाहे संपादित करेलां ई.स.नी १३मी थी १५मी सदीना गाळामां रचायेला वीश संधिकाव्योनो समुच्चय 'सधिकाव्य-समुच्चय' नामे प्रकाशित करतां आनंद थाय छे. आ संधिकाव्यो संशोधित पाठ साथे सौप्रथम ज प्रकाशित थाय छे. काव्यरसिको अने भाषाशास्त्रीओने उपयोगी सामग्री आ संधिकाव्योमांथी उपलब्ध थशे. आ संधिकाव्यो भाषानी दृष्टि अपभ्रंश अने प्राचीन गुजराती वच्चेनी कडी समान छे. बीजा प्राचीन गुजराती काव्यप्रकारो करतां आ काव्यप्रकारमा अपभ्रंशनी असर विशेष छे. सांस्कृतिक सामग्रीना अभ्यासनी दृष्टिले पण आ काव्योनु महत्त्व छे. डॉ. शाहे अभ्यासपूर्ण भूमिकामां संधिकाव्यन स्वरूप, तेनो उद्भव अने विकास, संचित संधिकाव्योन विषयवस्तु अने मूलस्रोत, तेमनुं कर्तृत्व अने रचनासमय, छंदोविधान अने प्रतिपरिचय -आ बघानी समुचित माहिती आपी छे. वळा, अंते तेमणे भाषानी दृष्टिले महत्त्व धरावता शब्दोनी सचि आपीने ग्रंथने वधु उपयोगी बनाव्यो छे. आ बधा माटे डॉ. र. म. शाह अभिनंदनने पात्र छे. जूनी गुजराती साहित्यकृतिओमा प्रकाशनमा सहकार आपवा बदल गुजरात राज्यना भाषानियामकश्री हसितभाई बुच अने नायब भाषानियामक श्री ई. शि. जोषीपुरानो हुँ अंतःकरणपूर्वक आभार मार्नु छु. आ प्रथना प्रकाशनमा आर्थिक सहाय करवा बदल गुजरात सरकारनो हुँ आभारी छु'. ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद : ३८० ००९ १ जान्युआरी १९८० नगीन शाह अध्यक्ष Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका प्रास्ताविक, संधिकाव्य : स्वरूप, उद्भव अने विकास, विषय-वस्तु अने मूल स्रोत, कर्तृत्व अने रचना - समय, छंदोविधान, प्रति-परिचय, उपसंहार. मूळ पाठ (१) रिसह - पारणय- संधि ( २ ) वीरजिण - पारणय- संधि (३) गयसुउमाल - संधि (४) सालिभद्द - संघि (५) अवंतिसुकुमाल - संधि (६) मयणरेहा - संधि (७) अणाहि - संधि (८) जीवाणुस - संधि ( ९ ) नमयासुंदरि - संधि (१०) चउरंग - भावण - संधि (११) आणंद - सावय- संधि (१२) अंतरंग - संधि (१३) केसी - गोयम-संधि (१४) भावणा - संधि (१५) सील-संधि (१६) उवहाण - संधि (१७) हेमतिलयसूरि - संधि (१८) तव - संधि (१९) अणाहि - महरिसि - संधि (२०) उवएस - संधि शब्दकोष शुद्धिपत्र अनुक्रम १ - १४ १-१२० १-८ ९-१९ २०-२९ २८-३६ ३७-४२ ४३-४७ ४८-५० ५१-५२ ५३-५८ ५९-६४ ६५-७१ ७२-८२ ८३-८९ ९०-९५ ९६-९८ ९९-१०० १०१-१०४ १०५-१०९ ११०-११७ ११८-१२० १२१-१३२ १३३-१३६. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका प्रास्ताविक ईसुनी १३मी थी १५मी शताब्दी सुधोना त्रणसो वर्षना गाळामां प्राचीन गुर्जर भाषामां रचायेला 'संधि' नामे ओळखातां वीश काव्यो संशोधित पाठ साथे संगृहीत करी अहीं प्रथम वार प्रगट करतां आनंद थाय छे. गुजरातमा ईसुनी बीनी सहस्त्राब्दीना प्रारंभथी ज भाषामा प्रादेशिक वलणो देखा देवा लाग्या हता. जो के शिष्टमान्य साहित्य-भावा तरीके अपभ्रंशनु स्थान हेमचंद्राचार्यना समय सुधी अविचळ हतु, छतां तेमां य प्रादेशिक लाक्षणिकताओ स्पष्टपणे जणाती हती. भोजे गुर्जरोने पोतानो आभ्रंश प्रिय होवान का छे, ते पण आवा गुर्जर लाक्षणिकता ओवाळा अपभ्रंशने माटे ज दशमीथी बारमी शताब्दी सुधीना आ अपभ्रंशनी गणी गांठी रचनाओ ज आपणने प्राप्य छे-धाहिलनु पउमसिरिचरिय, साधारणनी विलासवई-कहा, हरिभद्रन नेमिनाहचरिय अने केटलीक प्राकृत कृतिओमानों अपभ्रंश अंश वगेरे. ____ हेमचंद्राचार्यनी पछी तो प्रादेशिक तत्त्वोथी भरपूर भाषानुं ढगलाबंध साहित्य मळवा लागे छे. रास, चोपाई, फागु, वीवाहलु, कक्क, चर्चरी वगेरे जेवा नवा काव्य-प्रकारोमां रचायेलो सेंकडो कृतिओनी जैन भंडारोमांथी थयेली उपलब्धि अने छेल्ला पचासेक वर्षमा आवी अनेक कृतिओना थयेला प्रकाशनोथी उपरोक्त हकीकत सिद्ध थाय छे.१ आ प्रादेशिक तत्त्वोथी भरेली भाषा ते प्राचीन गुर्जर भाषा. लगभग १२ मी शताब्दीना अंतथी मळती संधि श्री पण आ प्राचीन गुर्जर भाषानी रचनाओ छे. जो के तेनुं बाह्य स्वरूप सीधु अपभ्रंशमाथी ऊतरी आव्युं होई रासादि अन्य काव्योनी तुलनाए तेमां अपभ्रंशनी अप्पर विशेष छे.. त्रणसो वर्षना गाळामां रचायेल आ संधिकाव्योमां प्राचीन गुर्जर भाषाना तत्कालीन सीमाप्रदेश एटले के हालना गुजरात, पश्चिम राजस्थान अने माळवाना भाषा, इतिहास अने संस्कृतिना अभ्यास माटे महत्त्वपूर्ण सामग्री सचवाई छे. संधिकाव्य : स्वरूप, उद्भव अने विकास जेम संस्कृत महाकाव्य सर्गोमां अने प्राकृत महाकाव्य आश्वासोमां विभक्त थाय छे, तेम अपभ्रंश महाकाव्य 'संधि' नामक भागोमां विभक्त थाय छे. अपभ्रंशनु उपलब्ध साहित्य जोवाथी ए वातनी तरत ज प्रतीति थाय छे के अधिकतर अपभ्रंश महाकाव्यो ‘संधिवद्ध' के 'संधिबंध' छे. बे-चारथी लई सोथी पण अधिक सुधीनी संधिओमां रचायेला चरित-काव्यो. कथा-काव्यो अने पुराण महापुराणो अपभ्रंशनी ज विशेषता छे. आ 'संधिबंध' ना संधिनुं विभाजन पार्छ 'कडक' मां थाय छे. प्रारंभमां संधिबंध काव्योमां आ कडवक आठ पंक्तिओ के कडीओनु रहेतु अने संधिना आरंभमां तथा प्रत्येक १. जुओः गुजराती साहित्यनो इतिहास, गु. सा. परिषद, भा-१, विभाग-२. २-प्राचीन गुजराती अने अपभ्रंश वच्चेना संबंध तथा प्रा. गु. नी लाक्षणिकताओ व. माटे जुओ-गुजराती साहित्यनो इतिहास भा-१ (प्रकरण-२ अने ४, ले. ह. चू. भायाणी) ३. 'पद्य प्रायः संस्कृत-प्राकृतापभ्रंश-ग्राम्यभाषा-निबद्ध-भिन्नान्त्य-वृत्त-सर्गाऽऽश्वास-संध्यवस्कंध-बंध सत्संधिशब्दार्थ-वैचित्र्योपेतं महाकाव्यम् ॥' -काव्यानुशासन ८.६ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय कडवकना अंतमां 'ध्रुवक' के 'घत्ता' नामे आळखाती एक एक कडी रहेती.' जो के उपलब्ध संधिबंध काव्योमां कडवकनी कडीओनी संख्या नियत होय तेम जगातुं नथी. ते आठथी मांडी वीश-पचीस सुधीनी पण जोवा मळे छे. कडवकनी पंक्तिओ अंत्यानुप्रासवाळी अने मात्रामेळ छंद जेवा के पद्धडिआ, वदनक, पारणक इत्यादिमांथी कोई एकमां रचवामां आवती. संधिनी आरंभनी कडी तथा दरेक कडवकने अंते आवती कडी-घत्ता-नो छंद कडवकना छंदथी जुदो रहेतो. आ 'संधिबंध' महाकाव्यन लघु स्वरूप आपणुं संधिकाव्य छे. संधिकाव्यन बाह्य स्वरूप 'संधिबंध'ना एक संधि जेवु छे.-ध्रुवक एटले संधिनी शरूआतनी एकाद कडी, पछी प्रासबद्ध पंक्तियुगलोवाळां कडवको अने दरेक कडवकना अंतमां घत्ता. कडवकोनी संख्या क्वचित एकाद -बे परंतु मोटा भागे पांचथी पंदर सुधी अने दरेक कडवकनी अंदर आठथी मांडी चालीस सुधीनी प्रासबद्ध पंक्तिओ. केटलांक संधिकाव्योमा अंतमां कर्तानु नाम के परिचय आपती * लघु प्रशस्ति. आ थयुं संधि-काव्यनु बाह्य कलेवर. प्राकृत कथा के काव्यमां कोई विशिष्ट प्रसंगर्नु वर्णन करवु होय, कोई विशिष्ट व्यक्तिर्नु नाचें चरित्र मूकवु होय के रसपरिवर्तन करवू होय त्यारे अपभ्रंश भाषा प्रयोजवानी एक रूढि दशमी शताब्दी पछीना जैन लेखकोमा जणाई आवे छे. धनेश्वरसूरिनु सुरसुदरिचरित (रचना ई. स. १०३८), वर्धमानसूरि-कृत आदिनाथचरित अने मनोरमाकथा रचना ई. स. १०८४), देवचंद्रसूरि-रचित मूलशुद्धिप्रकरण-टोका(ई. स. १०८९)अने शांतिनाथचरित (ई. स. ११०४), आम्रदेवसूरिकृत आख्यानकमणिकोश-वृत्ति (ई. स. ११३४, सोमप्रभसूरिकृत कुमारपालप्रतिबोध (ई. स. ११८४) अने सुमतिनाथचरित वगेरे अनेक प्राकृत कृतओमा अपभ्रंशना छूटक अंशो छे. आमां देवचंद्रसूरिरचित मूलशुद्धिप्रकरण वृत्ति (ई. स. १०८९) मां सर्व प्रथम ज एक संधिकाव्य मळे छे. सुलसाख्यान के सुलसाचरित नामक आ काव्य १७ कडवकर्नु बनेलुं छे. मळ ग्रंथथी अलग एकला आ संधिनी प्रतिओ पण मळे छे. तेथी ए प्रसिद्ध पण हशे एम मानी शकाय छे. कर्ताए तेने 'संघि' तरीके पण ओळखावेल छे. आम अत्यार सधी प्राप्त थतां संधिकाव्योमा आ आद्य छे. आ पछी आम्रदेवसूरि-विरचित आख्यानकमणि-कोशवत्ति १. 'संध्यादौ कडवकान्ते च ध्रुवं स्यादिति ध्रुवा ध्रुवकं घत्ता वा ॥ कडवा-पमूहात्मकः सन्धिस्त स्यादौ । चतभिः पद्धडिकाद्यश्छन्दोभिः कड़वकम् । तस्पान्ते ध्रुव' निश्चित स्यादिति ध्रवा ध्रुवक घत्ता चेति संज्ञान्तरम् ॥' -छन्दोऽनुशासन (सटीक) ६.१ २. स्वयंभूकृत पउमचरिय, पुष्पदन्तकृत महापुराण,जसहरचरियाणायकुमारचरिय, साधारण-कत विलासवई-कहा इत्यादि ग्रंथो जोतां आ वात स्पष्ट थाय छे. ३. काव्यनो अंत आम छे. एह संधि पुरिसत्थ-पसत्थिय देवचंदसृरीहिं समस्थिय । इय बहुगुणभूसिउ, जिणसुपसंसिउ, सुलसचरिउ धम्मत्थियहं । निसुणंत-पदंतह, भत्तिपसत्तह, देउ मोक्खु मोक्ख त्थयहं ।। सुलसाख्यान, मूलशुद्विप्रकरणवृत्ति, पृ. ५६. (सपा. अ. मो. भोजक, अमदावाद १९७१) Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका जेमा सो उपरांत प्राकृत आख्यानो संग्रहाया छे-मां पण बे संधि काव्यो मळे छे (१) सोमप्रभाख्यान अने (२) चारुदत्ताख्यान. आ उपरांत हजी अप्रगट प्राकृत माहित्यमा संधिकान्यो होवानो घणो संभव छे. आम अगियारमो शताब्दीना अंतभागमा ज संधिकाव्यो. रचावानी शरूआत थई गयेली. उपरोक्त त्रणे संधिओनी भाषा शिष्टमान्य अपभ्रंश छे. आ पछी छेक सो वर्षना गाळा पछी रत्नप्रभसूरि-कृत उपदेशमालावृत्ति (ई. स. ११८२) मां संधिकाव्यो मळे छे. अहीं आवतां भाषा-स्वरूपमां वधु ने वधु प्रादेशिक वलणो नजरे पडे छे. बीजु, संधिकाव्यनी स्वतंत्र रचनाओ पण मळवा लागे छे, तेम ज तेनो विषय पण आख्यायिका के चरित्रनो ज न रहेता व्यापक बनवा लागे छे. अहों ग्रंथस्थ संधि भोना विषयवस्तु तरफ नजर नाखवाथी आ हकीकत स्पष्ट थाय छे, उपदेशप्रधान होवा छतां आकर्षक घटना-विधान, सरळ भाषा अने प्रवाही छंदोरचनाने कारणे सधिकाग्यो भाववाही ऊर्मिलाच्यो बनो शयां छे. संधिकाव्यनों आ प्रवाह छेक अदारमी सदीना अंत मुधो चाले छे' ए स्वाभाविक छे के पंदरमी सदी पछ.नी संधिोनी भाषा वधु ने वधु अर्वाचीन थती जाय छे. विषय-वस्तु अने मूळ-स्रोत १. ऋषभ-पारणक-संधि : आ संधिनो विषय प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेवना जीवन-प्रसंगनो छे. प्रथम दीर्घ तपश्चर्याने अंते भगवानने पौत्र श्रेयांसकुपारे इक्षुरसथी करावेल पारणानो प्रसंग केन्द्रमा राखी भगवानमा गृहस्थ-जीवन, तपश्चर्या अने मुनि-जीवन-टूकु वर्णन कविए कर्यु छे. आवश्य आ प्रसंग सौ प्रथम उल्लेखायो छे.. २. वीरजिन-पारणक-संधि : आमां चरम तो कर भगवान महावीर स्वामीने चन्दनवालाए करावेल पारणानो विषय केन्द्रमा छे. पिताना राज्यनो नाश अने मृत्यु, मातार्नु अपहरण अने अवसान, पोतानी बेहाल दशा-आवी अवस्थामां राजकुमारी चन्दनबाला भगवान महावीरने भावपूर्वक पारणु करावी महापुन्यनु उपार्जन करे छे। ____ 'अंतकृत्दशा' मां चन्दनबालानी कथा मूळस्वरूपमा मळे छे. ३. गजसुकुमाल-संधि : देवकीना पुत्र अने कृष्णना नाना भाई गजसुकुमालनी प्रेरक कथा आ संघिमां छे. कमारावस्थामा ज वैराग्यरंग लागतां भगवान नेमिनाथ पासे दीक्षा लई, ते ज दिवसे एक रात्रिनी प्रतिमा (एक प्रकारर्नु निश्चल ध्यान) धारण करी गजसुकुपाल उग्र परीसह समभावपूर्वक सहन करी अंतकृत् केवली थई निर्वाण पामे छे. आ कथा 'अन्तकृत्दशा सूत्र'मां त्रीजा वर्गमां आवे छे. १. जुओ-अपभ्रंश भाषा के संधिकाव्य और उनकी परम्परा : अगरचंद नाहटा ('राजस्थानी' वर्ष १, पृ. ५५-६४) २. अहीं तथा पछीना आगमग्रन्थोना संदर्भो Prakrit Proper Names, Parts 1-2 IL D. Series-28 and 37) ना आधारे आपवामां आव्या छे. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय ४. शालिभद्र संधि: एक दरिद्र कामवाळीनो पुत्र पोताना माटे महामुश्केलीथी माताए रांधेल खीर साधुने वहोरावी, अतिशय पुण्य प्राप्त करी, मरीने गोभद्र सार्थवाहना पुत्र शालिभद्र रूपे जन्मे छे. जेना वैभवनी वात सांभळी राज अणिक पण चकित थई जाय छे, तेवो शालिभद्र पोते य स्वतंत्र नथी एम जाणतां ज बधो वैभव त्यजी साधु बनी जाय छे. एनी सुंदर कथा आ संधिमां छे. 'स्थानांग सूत्र' नी अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिमां आ कथानक प्रथम वार मळे छे. ५. अवंतिसुकुमाल संधि : महावैभवशाळी सार्थवाह-पुत्र अवंतिसुकुमालने आर्य सुहस्तिसूरिना प्राताध्यायगानथी मातिस्मरण थाय छे अने ते मातानी अनिच्छा छतां वैभव छोडी दीक्षा ले छे. अने ते ज दिवसे उग्र तपश्चर्या करी, शीयाळे शरीर फोली खावा छतां ध्यानमा अडग रही, केवळज्ञान अने निर्वाण साथे ज पामे छे. 'आवश्यकचूर्णि' मां आ कथानक प्रथम वार आवे छे. ६. मदनरेखा संधि : 'उत्तराध्ययन सूत्र' ना नवमा 'नमि-प्रव्रज्या' नामक अध्ययनमां आवता नमि राजर्षिनी कथा नेमिचन्द्रसूरिकृत 'सुखबोधा' नामक टीकामां विस्तारथी आपवामां आवेल छे. प्रस्तुत संधिनी कथावस्तु ए ज छे. नमि राजर्षिनी माता मदनरेखा जैम सतीओमां प्रसिद्ध छे. बारमी शताब्दीमां बयेल प्रा. जिनभद्रसुरिए संस्कृतमा 'मदनरेखा-आख्यायिका' नामे विस्तृत रचना आ कथानक लईने करेल छे. ७. अनाथि संधि: मनुष्य गमे तेटली भौतिक समृद्धि धरावतो होय पण एना पोताना ज जन्म, जरा अने मृत्युना विषयमा ए परतत्र छ, निःसहाय छे ए दर्शावती अनाथि मुनिनी कथा 'उत्तराध्ययन सत्र'-गत वीशमां 'महानिर्गथाय अध्ययन' मां आवे छे. आ संधिमां तेम ज १९ मी संधिमां आ कथानकने काव्यरूप अपायु छे. ८. जीवानुशास्ति संधि : संधिना नाम प्रमाणे आमां जीवोने अनुशास्ति एटले के शीखामण आपवामां आवी छे. जीव केवी केवी गतिमां जईने, केटलां दुःखोने अंते मनुष्य-भवमां आवे छे अने त्यां विषयरसमां लुब्ध थई देव-गुरु-धर्मने भूली जाय छ-ए दर्शावी कवि जीवने उपदेश आपे छे अने जिन भगवानने अनुसरवा कहे छे. ९. नर्मदासुंदरी संधि : जैन धार्मिक साहित्यमां सती नर्मदासुंदरीनी कथा पण प्रसिद्ध छे. 'आवश्यक-सूत्र' नी नियुक्तिमां नर्मदासुन्दरीन नाम मळे छे. तेनी पल्लवित थयेल कथा आ.देवचन्द्रसूरि-कृत मूलशुद्धिप्रकरण-वृत्ति (ई. स, १०८९) मां सौ प्रथम मळे छे. ई. स. ११३० मा महेन्द्रसरि नामक आचार्य प्राकृत भाषाबद्ध विस्तृत नर्मदासुन्दरीकथा रची छे. अहीं ए ज वस्तु संधिरूपे मळे छे. Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका १०. चतुरंग-भावना-संधि : उत्तगध्ययन सूत्रना तृतीय अध्ययन- नाम चतुरंगीय अध्ययन छे. तेमां जीवोने दुर्लभ एवी चार वस्तुओ गणावी छे-मनुष्यत्व, धर्मश्रवण, धर्मश्रद्धा अने संयमनी शक्ति. 'उत्ताध्ययन' नी प्रसिद्ध टोका 'सुख वोधा' मां आ चारे दुर्लभ वस्तुनी सदृष्टांत चर्चा मळे छे. ए ज वस्तु अहीं संधिरूपे रजू थई छे. ११. आनंद-श्रावक-संधि : सप्तम अंग 'उपासकइशा' ना प्रथम अध्ययनमा आवतुं आनंद उपासकनु जीवनचरित्र आ संधिनो विषय छे. आनंद भगवान महावीरना जीवनकाळमां थयेला तेमना अनुयायी मुख्य श्रावकोमांनो एक हतो. श्रावकनी अगियार प्रतिमा पाळी तेणे महान अवधिज्ञान मेळव्यु हतु ते कथा आ संधिनो विषय छे. १२. अंतरंग संधि : आ एक रूपकात्मक काव्य छे, अंतरंग शत्र मोहरूपी राजाने पराजित करी जिनेन्द्र भगवंते भव्य जीवोने केवी रीते बचाव्या तेनुं वर्णन नाट्यात्मक रीते आमां करवामां आव्यु छे. आ रचना मौलिक जणाय छे. प्राचीन गुर्जर भाषामां रूपककाव्य तरीके मळती जूज रचनाओमा आथी आ महत्वपूर्ण छे, १३. केशी-गौतम संधि : _ 'उत्तराध्ययनसूत्र' ना २३ मा 'केशोगौतमीय' अध्ययनमा २३ मा तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथना एक गणधर केशी अने भगवान महावीरना प्रथम शिव्य गौतम गणधरना मिलननी बात छे. ते प्रसंगे भ. पाश्वनाथ अने भ. महावीरना अमुक सिद्धांतोमा देखाती भिन्नता विशे केशी गणधरने थयेल शंकाओनु गौतम निवारण करे छे. आ बे वच्चेना संवादने कविए कुशलतापूर्वक आ संधिमां गुथी लीधो छे. १४. भावना संधि : वैराग्यने उपकारक एवी १२ भावनाओ जैन धार्मिक साहित्यमा जाणीती छे. छेक 'आचाशंगसत्र' ना द्वितीय श्रुतस्कंधमां १२ भावनाओ वर्णवाई छे अहीं एने केन्द्रमा राखी सामान्य मनुष्ये जीवनमां शुं करवु जोईए एनो उपदेश आपवामां आवेल छे. अहीं आपेला मनुष्यजन्मनी दुर्लभता अंगेना दश दृष्टांतो हरिभद्रसूरि-रचित उपदेशपदमां आवे छे. १५. शीलसंधि : शील एटले के चारित्र्यनो महिमा अहों गावामां आध्यो छे. भगवान महावीर प्रणीत पांच महाव्रतमा चोथु ब्रह्मचर्य व्रत छे. तेना पालनथी थता अपूर्व लाभ अने भगथी थतां नुकशाननां अनेक दृष्टांतो आपी कविए शीलपालननो उपदेश आप्यो छे. १६ उपधान संधि : आमा जैन-धर्म-प्रसिद्ध उपधान -नामक तपश्चर्यानु माहात्म्य जगावी, तेना अनुष्ठाननी विधि विगते आपवामां आवी छे.. १७ हेमतिलकसूरि संधि : ईस्वी चौदमी सदीना प्रारंभकाळे थई गयेला हेपतिलकसूरि नामक आचार्यना जीवनप्रसंगोने रजू करती आ संधि तेमना ज कोई शिष्य के प्रशिष्ये रची होवानो संभव छे. अने Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय तेथी ऐतिहासिक महत्त्व धरावे छे. हेमतिलकसूरि वडगच्छना आचार्य वज्रसेनसुरिना पट्टशिष्य हता. तेमना मुनि-जीवनना अगत्यना बनावोनी सालवारी संधिमां आ प्रमाणे छे-दीक्षा सं. १३५३ (ई.स.१२९७),वाचनाचार्य-पदवी सं. १३७० (ई.स.१३१४), आचार्यपद सं.१३७४ (ई. स.१३१८) अने स्वर्गवास सं.१४१२ ( ई. स १३५६) १८. तप संधि : आमां जैन धर्म प्रणीत बार प्रकारना तपनु माहात्म्य दर्शावी तप करवानो उपदेश करवामां आव्यो छे. जीभनी लोलुाताथी थतां दुःखोंनुवर्णन करी कवि मनुष्योने तेनाथी वारे छे. तप करी जन्म सफळ करनार तपस्वीओना दृष्टांतो आपी कवि तपनो महिमा करे छे. १९ अनाथि-महर्षि संधि : ____ आ संधिनु कथावस्तु ७ मी अनाथि संधे प्रमाणे ज छे, अहीं एने अनेकविध वर्णनोथी पल्लवित करवामां आयु छे, २० उपदेश संधि : संधिना नाम प्रमाणे आमां सीधो सरळ उपदेश ज आपवामां आवेल छे. प्रथम श्रावकना बार व्रत पाळवानो अनुरोध करी पछ. कवि सामान्य सदाचरणना विविध नियमो पाळबानो उपदेश करे छे. कर्तृत्व अने रचना-समय संधि १-५ प्रथम पांच संधिना रचयिता आ. रत्नप्रभसूरे छे. आचार्य वादिदेवसूरिना शिष्य आ. समभसरि १३मा शतकना एक प्रखर जैन दार्शनिक अने कवि हता. एमणे संस्कृत, प्राकृत. अपभ्रंश आदि विविध भाषाओमा विपुल साहित्यसर्जन कयु छे. वादिदेवसूरि-रचित न्यायग्रन्थ 'प्रमाणनयतत्त्वालोक'नी 'रत्नाकरावतारिका' नामक प्रसिद्ध टीका "आ. रत्नप्रभसूरिनी महत्वपूर्ण कृति छे.' आ ५००० श्लोक प्रमाण संस्कृत गद्य रचना तेमनी दार्शनिक तथा कवि बन्ने तरीकेनी योग्यता पुरवार करवा समर्थ छे. 'मतपरीक्षापचाशत' एमनो बीजो दार्शनिक ग्रंथ गणाय छे, परन्तु ते हजु सुधी उपलब्ध थयो नथी. _ 'नेमिनाथचरित्र' अने 'पार्श्वनाथचरित्र' ए बे एमना रचेला महाकाव्यो छे. जेमा क्रमे २२मा अने २३मा तीर्थ करना जीवनचरित्र वर्णवायेल छे 'नेमिनाथचरित्र' ए १३६०० श्लोक प्रमाण प्राकृत भाषाबद्ध रचना छे. तेनी र वना स. १२३३ (ई.स.१९७०) मां थई छे. अत्र संगृहीत संधि काव्यो जेमांथी लीधा छे ते 'दोघट्टी वृत्ति' नामक प्रसिद्ध टीका, रत्नप्रभसूरिए धर्मदास गणिनी 'उपदेशमाला' नी विशेष वृत्ति रूपे रचेली छे. १११५० श्लोक प्रमाण आ वृत्ति संस्कृत गद्यमां छे. तेमां प्राकृत कथाओ उपरांत अपभ्रश पद्यांशो पण घणा के आ दोघट्टी वृत्तिनी रचना सं. १२३८ (ई. स. ११८२)मा तेमणे भरूचमां आवेल अश्वावबोध तीर्थमां रहीने करी छे.२ १. रत्नाकरावतारिका, ख. १-३ संपा. दलसुखभाई माल वणिया, अमदावाद, १९६५-६९. २. अदेशमाला-दोघट्टी वृत्ति, सपा. आ. हेमसागरसूरि, मुंबई,१९५८. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका संधि ६-१० संधि ६ थीं १० ना रचयिता जिनप्रभसूरि आगमिकं गच्छना आचार्य हता. तेमना गुरु नाम देवभद्रसूरि हतुं.' आ देवभद्रसूरिए सं. १२५० ( ई. स. १९९४) मां अंचलगच्छनो त्याग करी नवो आगमिक या त्रिस्तुतिक नामे ओळखातो गच्छ स्थाप्यो हतो. आ जिनप्रभसूरए प्राकृत, अपभ्रंश, अने प्राचीन गुर्जरभाषामा घणी नानी नानी कृतिओ रची होवानुं जणाय छे. तेओनी कर्मभूमि गुजरात होय तेम लागे छे तेमणे केटलीक कृतिओ शत्रुंजय गिरि पर रहीने रची होवानी नोंध छे. पांच संधि उपरांत तेमनी नीचेनी सूचि मुजबनी कृतिओ उपलब्ध छे ज्ञानप्रकाशकुलक, चतुर्विधभावनाकुलक, युगादिजिनकुलक, सुभाषितकुलक, धर्माधर्मविचार कुलक, आत्मसंबोधकुलक, गौतमचरित्र कुलक, भवियचरिउ, भक्षियकुडु बचरिउ, मल्लिचरिउ, वइरसोमिचरिउ, जंबुचरिउ, सुकोशलचरिउ, महावीरचरिउ, छप्पनदिक्कुमारीजन्माभिषेक, पार्श्वनाथजन्माभिषेक, जिन जन्ममह, जिनस्तुति, नेमिनाथ जन्माभिषेक, नेमिनाथ रास, चाचरिस्तुति, गुरुस्तुतिचा चरि, अंतरंगविवाह, मोहराजविजयोक्ति, सर्व - चैत्यपरिपाटी-स्वाध्याय वगेरे. पांच संधिमांधी १. मयणरेहा संधि अने २ नमयासुंदरि संधि-ए बेनो रचना - समय संधिना अंते कविऐ जणावेल छे, क्रमे स. १२९७ ( ई. स. १२४१ ) अने स. १३२८ (इ. स. १२७२). बाकीनी संधिओ पण आ गाळानी ज होवा संभव छे. कविनो कवनकाळ आम घणो विशाळ जणाय छे.* संधि - ११ आ संधिना कर्ता विनयचन्द्रसूरि ईस्त्रीसननी तेरमी सदीमां थई गया. तेमना गुरुनु नाम रत्नसिंहसूरि हतुं . विनयचन्द्रसूरि बहुभाषाविद् विद्वान कवि हता. तेमणे १. मुनिसुव्रतस्वामिचरित २. पर्युषण कल्पनिरुक्त (र. सं. १३२५) ३. दिपालिका कल्प (२. सं. १३४५) ए त्रण संस्कृत ग्रंथो उपरांत प्राचीन गुजरातीमां पण केटलीक लघु कृतिओ रची हती. जेमां उवएसमाल कहाण - छप्पय अने २, नेमिनाथचउपई बन्ने प्रकाशित थयेल छे." तदुपरांत एक 'बाबत रास' नामक रचना पण एमना नामे मळे छे. ६ 'काव्यशिक्षा' कार विनयचन्द्रथी प्रस्तुत कवि जुदा छे. जो के तेओ समकालीन हता. विनय चन्द्रसूरिनो समय सं. १२८५ थी १३४५ (ई. स.१२२९ थी १२८९) मनाय छे." 'आनन्द संधि' नी रचना आम ई. स. १२८९ पूर्वेनी छे. B १. पत्तनस्थप्राच्यजैनभाण्डागारीयग्रंथसूची, भा. १, गा० ओ० सीरीझ - ७६, १९३७. २. पट्टावली - समुच्चय भा-२, संपा. दर्शनविजयजी, अमदावाद, १९५०, पृ. १६२. ३. जैन गुर्जर कविओ, मो० द० देशाई, भा-१, पृ. ७९. ४. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, मो. द. देशाई, पेरा० ६०७. ५. प्राचीन गुर्जर काव्य-संग्रह, संपा. ची. डा. दलाल, वडोदरा, १९२०, पृ. ८ थी २६ ६. तेरमा चौदमा शतकना त्रण प्राचीन गुजराती काव्यो, संपा. डो. ह. चू. भायाणी, मुंबई, १९५५, पृ.१३. ७. जैन परम्परानो इतिहास, त्रिपुटि मुनि, भा. २, पृ. ३०८ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -८ संधिकाव्य-समुच्चय संधि-१२ १२मी अंतरंगसंधिना कर्ता रत्नप्रभगणि छे. प्रथम पांच संधिना कर्ता रत्नप्रभसूरिथी आ कर्ता भिन्न छे. कविना गुरुनु नाम धर्मप्रभसूरि छे. संधिनी ताडपत्रीय प्रतिमां प्रशस्ति आम छे ॥ से-त् १३९२ वर्षे आषाढ शुदि गुरौ ॥ ग्रंथाग्रे श्लोक २०६॥ श्री धर्मप्रभसूरिरत्नप्रभकृतिरियम् ।। । 'धर्मप्रभसूर' पछी 'शिष्य' शब्द छूटी गयो जणाय छे. प्रतिनु लेखन वर्ष सं. १३९२ (ई. स. १३३६) छे. आथी संधिनी रचना ते पूर्वे होवान निश्चित थाय छे. संधि-१३ १३ मी केशी-गौतम-संधिना कर्ता अज्ञान छे. आ संधिनी जूनामां जूनी प्रति सं. १४८६ (ई. स. १४३०)नी मळे छे. ते परथी रचना-समय ई. स. १४३० पूर्वे निश्चित छे. संधि-१४ १४मो भावनासंधिना कर्तानु नाम जयदेव मुनि छे. तेओ पोताने शिवदेवसूरिना प्रथम शिष्य तरीके ओळखावे छे, जयदेव नामक एक करतां वधु जैन मुनिओना उल्लेख मळे छे, पण तेमां कोई शिवदेवसूरि-शिष्य जयदेवनो उल्लेख मळ्यो नथी. . संधिनी प्राप्य जूनी हस्तप्रतिनो लेखन संवत १४७३ (ई. स. १४१७) छे. तेथी रचना. ते पूर्वेनी होवान निश्चित छे. संधि १५-१६ ___ आ बन्ने संधिना कर्ता एक ज छे. तेओए बन्ने संधिमा मात्र पोताना गुरु जयशेखरसूरिनु नाय आपेल छे. श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिरना हस्तप्रतीना सुचिपत्रमा नं. ७३०७ पर प्रस्तुत शीलसंधिनी प्रति नोंधायेल छे, तेमां कर्तानु नाम वजसेनसूरि आपेल छे. ज्यारे 'जैन ग्रंथावलि' मां आ ज शीलसंधिना कर्ता तरीके 'जयशेखरसूरि-शिष्य ईश्वर गणि' नाम आप्यूछे, आ बन्ने नामो शंकास्पद छे. शीलसंधिनी जुनी हस्तप्रति स. १४८६ (ई. स. १४३०)नी उपलब्ध छे. तेथी रचना. काळ ते पूर्वे निश्चित थाय छे. संधि-१७ १७ मी हेमतिलकसूरि-संधिना कर्ता अज्ञात छे. संधिमां ज हेमतिलकसरिना स्वर्गवासन वर्ष सं. १४१२ (ई. स. १३५६) नोंधायेल छे. ते पछीना पचासेक वर्षना गाळामा संधिनी रचना थई होवानु मानी शकाय. संधि-१८ १८ मी तपसंधिना कर्ताए पोताने चंद्रगच्छना सोमसुदरसूरिना शिष्य विशालराजसुरिना शिष्य तरीके ओळखावेल छे. चंद्रगच्छ (पाछळथी तपागच्छ)ना ५०मा पट्टधर सोमसुंदरसूरिनो समय सं. १४३०-१४९९ (ई. स. १३७४-१४४३) छे. तेमना शिष्य विशालराजसूरिनो समय अनुमाने सं. १४५० पछी मूकी शकाय. आथी तेमना शिष्य तपसधिकार सं. १५०० नी आसपास आवे. वळी संधिनी हस्तपतमां सं. १५०५ आपेल छे. जेने रचना-वर्ष मानी शकाय. Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका संधि - १९ १९ मी अनाथि महर्षि संधिना कर्ता अज्ञात छे. हस्तप्रतना आधारे रचना ई. स. १४३० पूर्वेनी निश्चित गणाय. संधि - २० २० मी उपदेश संघिना कर्तानु नाम हेमसार छे. ते सिवाय कोई माहिती मळती नथी. छंदोविधान पहेलां जोयु ते संधिकाव्योमां संधिबंध महाकाव्योमां प्रचलित मात्रामेळ छंदो ज वपराचा छे. केटलीक संधिओमां एक मात्र हस्तप्रत ज मळवाने कारणे शुद्ध पाठ मळता न होवाथी छंदमां पण शुद्धि जणाती नथी. धत्ता अने ध्रुवकना छंद : अहीं प्रस्तुत बधां ज संधिकाव्योना कडवकाना अंते आवतां घत्तामां एक ज छंद षट्पदी वपरायो छे. १०+८+१३=३१ मात्रा ( अंत uuu) तथा १-२, ४-५ अने ३-६ पदना अंते प्रास- ए लक्षणो षट्पदीना छे. संधिओनी आद्य कडी एटले के ध्रुवक संधि ३, ४, अने ५ सिवायनी संघिओमां छे तेमां संधि १०, ११, १२, १३, १४, १५, १६, १९ अने २० ना ध्रुवकनो छंद उपरोक्त षट्पदी ज छे. संधि ६, ७, ८, अने ९ मां आधकडी प्राकृत गाथा छे अने तेनी पछी ब्रीजी कडी षट्पदीमां छे. संधि १, २ तथा १७ मां ध्रुवकनो छंद बदनक छे. ( वदनकनुं लक्षण नीचे कडवकना छंदमां आपेल छे). संधि ३१ मात्रा बे पंक्ति भुवक रूपे छे. १८ मां ३१ कवकना छंद : asaकोमा ३ छंद वपरायां छे. (१) पद्धडी - मोटा भागना संधिकाव्योमां कड़वकना छंद तरीके पद्धडी छंद वपरायेल छे, तेनुं लक्षण छे -४+४+४+४ = १६ मात्रा (अंत्य ज गण जरुरी, बीजे ज गण विकल्पे अने अन्यत्र निषिद्ध ), नीचेनां कुल ७८ कडवकोमां ते वपरायेल छे– संधि १. कड० ३, १०, १३, १४; सं. २. क० ३, ९, १० ११, क० २, ३, ४, ५, ६, ७, ९, १०, १२; सं. ४ - क० ३, ४, ९, क. १, २, ७, ९, ११, स. ६ . १-५ ( बधां); सं. ७. क. ९-क्र. १, ४; सं. १०- क. १-५ ( बधां); सं. ११ क. १ थी क. १–६, ८- ९; सं. १४. क. १, ३, ५, सौं. १५ (बधां); सं. १८ क. १, ३, सं. १९ क. १, २, ५, ९, छंद वदनक छे. तेनुं लक्षण छे - ६+४+४+२= ) नीचेना कुल ६३ कडवकोमां वदनक छे - (२) वदनक - बीजा नंबरे वपरायेल १६ मात्रा (अंत्य ४ मात्रा -u uअथवा १२; सं. ३. १५; सं. ५(बधां); सं. १०, १-२ ९ ( बधां); सं. १२, क. १, ३; सं. १६क. १-४ १० से २० क. १-३ (चधां) सं. १ क. १, २, ४, ५, ६ ९, ११, १२, १५; सं. २ क. १, सं. ३ क. १, ८, ११, १३, १४, सं. ४ कड. १, २, ७, ८, १३, ८, १०; सं. ९ क. ३; सं. १३ क. १-१४ ( बधां) सं. १७ क. क. ६ २, ४ ८, १३ - १८; १४; सं. ५ क. ३, ४, १-८ (बधां) ; सं. १९ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय (३) मदनावतार - uuuuuxx गण = २० मात्रानो मदनावतार छंद नीचेना कुल २३ कडव कोमां वपरायेल छे १.० सं. २ क. १९,२०; सं. ४ क. ५, ६, ११, १२; सं. ५ क. ५, ६, सं. ८ क. १, १४ क. २, ४, ६, सं. १५ क. २, ४; सं. १८ ८, ११. प्रति- परिचय सं. ९ क. २; सं. १२ क. ७; सं. क. २, ४; सं. १९ क. ३, ४, ७, संधि १-५ P. प्रथम पांच संधि धर्मदासगणिनी उपदेशमाला पर रत्नप्रभगणिए रचेली 'दोघट्टी' नामथी प्रसिद्ध प्राकृत टीकानी अंदर आवेल छे. आचार्य हेमसागरसुरिए संपादित करेल प्रस्तुत सटीक उपदेशमाला मुंबईथी १९४८मां आनंद-हेम जैन ग्रंथमालामां प्रकाशित थई छे. तेमां ABCD चार हस्तप्रतो वनराई छे. जेमांथो A हस्तप्रत शांतिनाथ ताडपत्रीय ग्रंथ भंडार, खंभातनी लेखन - संवत १३९४ नी छे. अहीं मुख्यत्वे तेनो पाठ अनुसरवामां आवेल छे. तेनी संज्ञा अही P. आपेल छे. L. ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिरनी, कागळती प्रति नं. २६१६५, अनुमाने १७मा सैकाम लखायेली, माप - २६ ११ से. मी. ना २१३ पत्रो (पत्र १ लुं खूटे छे), सुवाच्य अने प्रायः शुद्ध. आ प्रतिनी संज्ञा L छे. तेमां पांचे संधिना स्थळो नीचे मुजब छे (१) ऋषभ पारणक संधि (२) वीर - जिन पारणक पत्र १८ पत्र - १६ अ थी ८ ब ब थी, २१ ब १०१ ब थी १०४ अ ११३ अ थी ११६ अ पत्र पत्र पत्र ११६ अ थी ११८ अ (३) गजसुकुमाल (४) शालिभद्र (५) अवंतिसुकुमाल , "> 32 B. सद्गत आ. श्री. जिनविजयजीए उपदेशमालावृत्तिनां संधि-काव्योनी एक नकल करावेली ते माननीय श्री भायाणी साहेब द्वारा मने मळी. केटलाक पाठ माटे में तेनो उपयोग करेल छे. तेनी संज्ञा B छे. ७२ ३ " संधि ६-८ संधि ६,७ अने ८ त्रणे खेतरवसही पाटक जैन ज्ञान भंडार, पाटणनी एक मात्र ताडपत्रीय प्रति परथी संपादित करेल छे. तेनो नंबर १२ (नवो नं. ६) छे. ३५x५ से. मी. मापना २६४ पत्रोमा पत्र १६७ अ थी १७३ व सुधीमां मयणरेहा संधि, १७३ ब थी १७६ ब सुमां अनाथिसंधि अने १७६ च थी १७९ अ सुषमां जीवानुसडिसंधि लखायेल छे. आखी प्रतिमां नानी मोटी ५४ प्राकृत अपभ्रंश प्राचीनगुर्जर रचनाओ छे, तेमांथी लगभग त्रीशेक तो संधिकार आगमिक जिनप्रभसूरिनी कृतिओ छे. संधि ९ संघवी पाटक भंडार, वाटणनी नं. ३११ नी ताडपत्रीय प्रतमां पत्र ९९ ब थी १०६ अ सुधीमांनमयासुर संधि लखायेल छे ते प्रतिनी माइक्रोफिल्म ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिरमां नं. (८) नी छे. तेना परी प्रस्तुत संधिनु संपादन करायेल छे. Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका संधि-१० श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान मंदिर, पाटणन नं. ३२०२ नी कागळनी एक मात्र प्रत्ति परथी आ संधि संपादित करेल छे. अनुमाने १६ मो सदीनी, २५.५४१०.५ से. मी. मापना १५ पत्रोनी प्रतिमां नीचे मुजबनी रचनाओ लखायेल छे(१) चतुरंग संधि पत्र- १अ-३ (२) भावना संधि पत्र ३ब-६अ. (३) अपूर्ण प्राकृत स्तोत्र पत्र ६ अ-ब (पत्र ७-८ खूटे छे) (४) प्राकृत श्रीकवच, अपूर्ण पत्र ९ अ-१० ब (५) अंतरंग संघि पत्र १० ब-१५ अ (जुओ संधि नं. १२) (६) अपूर्ण प्राकृत स्तुति पत्र १५ अ-१५ ब आ संधिनी एक ताडपत्रीय प्रति शांतिनाथ ताडपत्रीय ज्ञान भंडार, खंभातमा छे. ते अनुमाने वि. सं. १३५० पूर्वनी छे. परन्तु ते प्रति मेळववी मुश्केल होई उपरोक्त कागळनी प्रति परथी संपादन करवामां आवेल छे. संधि-११ A. ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिरना पुण्यविजयजो संग्रहनो नं. १२८६ नी कागळनी प्रति. पत्रो-७९थी १००, माय-२७.५४११.५ से. मी., लेखन संवत-१४८६ (ई.स. १४३०)प्रति खंडित होवा छतां तेमां चार संधिओ होवाने कारणे अने प्राचीन होवाने कारणे महत्त्वपूर्ण छे. तेमां नीचे मुजब कृतिओ छे (१) आर्द्रकुमार विवाहलऊ - अपूर्ण पत्र-७९ सुधी (२) अजितशांति नमस्कार पत्र ७९-८० (३) शीलसंधि पत्र ८०-८१ (४) आनंद संधि पत्र ८१-८३ (५) केशीगौतम संधि पत्र ८४-८५ (६) अज्ञातकृत अनाथि संधि पत्र ८५-८७ (७) पुष्पमाला प्रकरण पत्र ८७-१०० (८) प्रश्नोत्तर-रत्नमालिका पत्र १००-अपूर्ण B. हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान मन्दिर, पाटणनी कागळनी प्रति, नं. ९०३२, लेखन-समय अनुमाने १६ मी शताब्दी. २५.५४११ से.मी. ना मापना ७ पत्रोमां नीचे मुजब कृतिमो छ(१) केसी-गोयम संधि पत्र १ अ-२ ब (२) अनाथि अध्ययन पत्र २ ब-४ अ (३) उपदेश संधि पत्र ४ अ-४ ब (४) आनंद संधि पत्र ४ ब-७ अ संधि-१२ A. तपगच्छ भंडार, पाटण नी ताडपत्रीय प्रति नं.१६ मा पत्र- १ थी १२ पर 'आ संधि लखायेल छे. ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरमा तेनी माइक्रोफिल्म नकल छे, जेनो नं.हे. यो पत्र भी २२ घर आ जनि न. १. Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ संधिकाव्य-समुच्चय पा० १७७ (२) छे. तेना परथी आ संधि संपादित करेल छे. प्रतिनु लेखन वर्ष सं. १३९२ (ई.स. १३३६) छे. B. हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिर, पाटणनी कागळनी प्रति नं. ३२०२ परथी पाठांतरो लील छे. आ प्रतिना परिचय माटे जुओ संधि १० नो प्रति परिचय. संधि - १३ A. ला. द. विद्यामंदिर, पुण्यविजय संग्रहनी प्रति नं. १२८६ परिचय माटे जुआ संधि नं. ११. B. ला द. विद्यामंदिर, पुण्यविजय संग्रहनी प्रति नं. १८३५, २६४३.११ से. मी. मापना २ पत्रोमा एक आ संघ ज लखेल छे. लेखन - समय अनुमाने १७ मी सदी. अंतमां 'श्रा. सोभी - पठनार्थमलेखि श्री उदयनं देसूरि-शिष्येण' ए वाक्यथी प्रत धरावनार अने लखावनारनी माहिती आपी छे. संधि - १४ A ला. द. विद्यामन्दिर, पुण्यविजय संग्रहनी कागळनी प्रति नं. २८४१. पत्र - ४ थी ४६. संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश अने प्राचीन गुजरातीनी ५१ लघु वृतिओ आ गुटकामां छे. पत्रांक २३ पर लेखन संवत १४७३ ( ई. स. १४१७) लखेल छे. पत्र ४३-४४ उपर भावना संधि अने पत्र ४२-४३ पर शील संधि लखायेल छे. B. ला. द. विद्यामंदिर, पुण्यविजय संग्रहनी कागळनी प्रति नं. ३६९७, पत्र- ३, २६×११. ३ से. मी. मापनां, अनुमाने १६ मा शतकमां महिशानक (महेसाणा ) मां लखायेल आ प्रतिमां एक आ संधि न छे. संधि - १५ A. ला. द. विद्यामंदिर, पुण्यविजय संग्रहनी प्रति नं. १२८६. [जुओ संघ - ११ ना प्रतिपरिचयमां. B. उपरोक्त संग्रहनी नं.-२८४१ नी प्रति जुओ संधि- १४ ना प्रति-परिचयमां. संधि - १६-१७ आनी नकल श्री अगरचंदनी नाहटाए, बिकानेरना अभय जैन ग्रंथालयनी प्रतिओ परथी करेली: प्रति-परिचय नोंवेल नथी. संधि- १८ A. श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर, पाटणनी कागळनी प्रति नं. ९०३४ २६११ से. मी. मापना २ पत्रमां एक ज संधि लखायेल छे. अंत आ प्रमाणे छे. ॥ इति तपः संधिः समाप्ताः ॥ छ ॥ स . १५०५ वर्षे ॥ ॥ श्री तपस्स ंधि लिखिता देवकुले श्री तपापक्षे कृतमस्ति ।। आ उपरथी जणाय छे के वि.सं. १५०५ (ई.स. १४४९) लेखन संवत के. B. उपरोक्त ज्ञानमंदिरनी ज कामळनी प्रति, नं. ९०३५. २६×११ सें. मी. मापना २ पत्रोमा आ संधि ज छे. आनो लेखन समय अनुमाने १६ मी शताब्दो गणाय. Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका ___ला. द. विद्यामंदिरना पुण्यविजयजी संग्रहनी नं. १२८६नी एक मात्र प्रति उपरथी आ संधिनु संपादन करेल छे. परिचय माटे जुभो सधि ११नी प्रति-A. साधि-२० A. हेमचंद्राचार्य जैन ज्ञान मदिरनी प्रति नं. ९०३२. जुओ संधि ११ नी प्रति B. B. ए ज ज्ञानमंदिग्नी कागळनो प्रति नं.९०३३. २६४११ से. मो. मापना २ पत्रो पर १ शील संधि अने २ उपदेश संघि लखायेल छे. आ पहेलां केटलांक संधिकाग्यो जुदा जुदा समये जुदा जुदा सामयिक-ग्रंथादिमां प्रसिद्ध थयेल छ-मुनि श्री जिनविजयजीए प्राकृत 'नर्मदासुन्दरिकथा' ना परिशिष्टमां 'नर्मदासुदरिसंधि', बेचरदासजी दोशीए संस्कृत 'मदनरेखा-आख्यायिका' ना परिशिष्ट मां 'मदनरेखासंधि', प्रा. मधुसूदन मोदीए 'भावना संधि', मुनि रमणीकविजयजीए 'आनंदसंधि' अने डा० हरिवल्लभ भायाणी तथा श्री अगरचंद नाहटाए 'प्राचीन-गुर्जर-काव्य-संचय'- मां 'केशीगौतम संवि', 'शोलसंधि' अने 'नर्मदासुंदरि संधि संपादित करी प्रकाशित करेल छे. वळी भीअगरचंद नाहटाए वर्षों पूर्व 'राजस्थानी' नामक सामयिकमा संधिकान्योनो परिचय आपतो लेख लखेल तथा डा० भायाणीए पोताना लेखादिक संग्रहोमां एक करतां वधु वार संधिकाव्यो वि परिचयात्मक नोंध लखेल छे. आ बधी सामग्रीनो उपयोग करवा बदल हुँ उपरोक्त विद्वानों नो आभारी छु संधिकाव्यो अंगे उपर जणाच्या प्रमाणेनुं कार्य थयु होवा छतां अर्धा उपरांतनी संधिओनी हज सुधी संशोधनात्मक आवृत्तिभो थई न हती, तेम ज प्रकाशित थयेल केटलीक संधि ओनी वधु जूनी अने सारी हस्तप्रतो हवे सुलभ थई हती, आथी उपलब्ध बधी ज संधिओ संशोधित आवृत्ति अने शब्दकोश साथे प्रसिद्ध थाय तो ते अपभ्रंश अने प्राचीन गुर्जर भाषाना अध्ययन-संशोधनमा एक महत्त्वपूर्ण सामग्री बनी रहे एवा ख्यालयी आ नम्र प्रयास में कर्यो छे. छ वर्ष पहेला अमदाबादमां भरायेल प्राकृत सेमिनार माटे में संधिो विशे परिचयात्मक लेख लखेलते समये मने प्रगट अप्रगट संधिो जोई अवानी तक मळी. त्यार बाद में प्रणेक मैत्रिओ संपादित पण करी. दरमियानमां मारी पासेनी आ सामग्री अने तैयारी जोईने मु० श्री भायाणी साहेबे आ बधी संधिओ समुच्चयरूपे प्रगट करवा प्रेरणा आपी. अने ए रीते आ समुच्चयन कार्य साकार थयु. श्रीभायाणी साहेबना अमूल्य सलाहसूचनो अने सतत मार्गदर्शन विना आ ग्रंथ तैयार करवानुकाये मारे माटे मुश्केल हतु. तेमना प्रत्ये मारी कृतज्ञता व्यक्त करु छ. ला. द. ग्रंथमाळामां आ ग्रंथ प्रकाशित करवा बदल तथा वारंवार ताकीद करो प्रकाशन झडपी कराववा बदल ग्रंथमाळाना सामान्य संपादको पू. श्री दलसुखभाई मालवणियाजी तथा मु. श्री. नतीनभाई शाइनो हूँ अत्यंत आभारी छु' अधा संधि तथा हेमतिलकसर-संधिती नकलो जाणीता विद्वान श्री अगरचंदजी नाहटाए पोतानी पासेनी प्रतोमांथी में लख्य केनरत Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ज करी मोकड़ी ते बदल तेमनो पण ज्ञानमंदिरना ट्रस्टीगणनो पण पोताना बदल अत्रे आभार मानु . १६ मार्च १९७९. संधिकान्य-समुच्चय हार्दिक आभार मानुं . पाटणना श्री हेमचन्द्राचार्य संग्रहनी हस्तप्रतो सद्भावपूर्वक उपयोग माटे आपवा - र. म. शाह Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिका व्य-समुच्च य १. रिसह-पारण-संधि [कर्ता : रत्नप्रभसरि रचनासमय : ई. स. १९८२ ] [ध्रुवक ] जं किर पाव-पंकु पक्खालइ __ भवियह मोक्ख-सोक्खु दिक्खालइ संधिबंध-संबंध-रवन्न चरिउ तं रिसह-जिणिदह वन्नउं [१] दाहिण-भरहखंड-चूडामणि साव-सुवन्न नाइ सोयामणि अस्थि अउज्झ नामि सुपसिद्धी नयरि पउर-धण-धन्न-समिद्धी पढम-राय-कारणि काराविय मणि-कंचणिहिं सक्कि संपाइय सिहर-चारु-चेइयहर-चंगी सयल-विलासि-लोय-नव-रंगी' सरल-पियाल-वणुज्जल-बाडी' जिव जहिं तेव तरुणि' परिवाडी गय-वाहण हय-साहण हिंडहिं ईसर-लोय तहा वि ज मंडहिं ।३ घत्ता जिण-मंदिर-उब्भड धुव्विर-धयवड रणझणंत-किकिणि-रविण जा गव-निरंतर हसइ गुणुत्तर सक्क-नयरि निय-विह विण° ॥१ [२] 1°कुलगर-नाहि-पुत्तु तं पालइ रिसह-नरिंदु सुरिंदु व लालइ 11पढमु जु नय-निहि पढमु पयावइ जण-ववहारु पहिल्लउ दावइ घरिणी घणुज्जल-पेम-गहिल्ली12 तासु सुमंगल-नामि पहिल्ली अवर वि आसि सुनदं सु-राणी सयलंतेउर-मज्झि पहाणी 1. L कंकु 2. L मोक्खु सुक्खु 3. L सोवन्न 4. L यउज्झ 5. L चेईहरि चंगी 6. L विलास लोयण नव० 7. L० ज्जय वाडी 8. P जहिं तरुणि तब परि० 9. Lवेहविण 10. P कुलारु 11. P पढमुज्जनय० 12. L प्रेम गहि. 13. L मज्झ २ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमु सुमंगल - देविहि दुद्धरु बाहुबलिउ' बाहुबलि सुनंदहि राणी पुणु पसवेइ सुमंगल अट्ठाणवई पवर तणुब्भव दस- दुगुणा लक्खह तेसट्ठि ति अग्गल पालिवि पुग्वह पुणु कय- मंगल [ ३ ] स-सुवन्न- दंड वर -छत्त- पंति पुणु मारु सुणिज्जइ सारिवट्टि अवलोयहि मुणिवर परहं दारु वर-तरुणि-जगह मज्झ - प्पएसि उग्गाहहिं निवइन बिउण- दाणि छलु आणहि नो पुणु लोभिताहं इय नीइ पयट्टहिं दंड-भूय अथ अस्थि- तित्थु कोइ तिणि दाण - मणोर विहल होइ संधिकाव्य-समुच्चय बंभी - जुयलि जाउ भरहे सरु सुंदरि जुयलि जाउ जस-कंदहि सील - समुज्जल कय-जय-मंगल अउणापन्न- जुयल अपुणुब्भव घत्ता जहि केवल बज्झइ मत्त दंति निवडंति पास जूयार-हट्टि निसुणिज्जइ वेसहं केस - भारु दारिद्द - मुद्द दीसे " देसि दिनहु करहिं काणि संतु वि अवजाणहि घणि जणाहं हक्कार-मक्कार- धिक्कार-रूव B रिसहु महा- महिनाहु तियासी लोगंतिय- देवहिं विन्नत्तउ .11 घत्ता इय जणु तोसेविणु रज्जु करेविणु सिरि- नाहि-तणुब्भवु गय-भव-संभवु कुमर-वासु लीला - लडहु रज्ज - लच्छि पालेइ पहु पुव्व-लक्ख - तेसट्ठि पहु संजम - रज्जु महेइ 10 लहु [ ४ ] अच्छिवि पुव्व - लक्ख घरवासी दाणु देइ वारिसिउ निरुत्तउ 5 ।३ ४ ॥२ 1१ १२ ३ ॥४ ॥३ 1. P बाहुबलि 2. P वइ जणेइ तणु० 3. L लखह 4. L छत्त वर दंड 5. L सारवडि 6. L अवलोहि P अह लोयहिं मुणि पर 7. L दीसइ न 8. P संभु 9. L धणु आणहि 10. P महेलइ 11. L देविहि १ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिसह पारण- संधि एक्कहं कडय-किरिड-कचोला मरगय-मोतिय- माणिक - हीरा' गय-हय-गंधसार-घणसारहिं वियरइ अन्नहं पडिपट्टोला. पउमराय अप्पर अवरीरा के वि करेइ कत्थु सुसारहिं कसु वि कणय- कलहोय वि देइ इय मग्गण-जण सम्माणेइ 3 कच्छ - महाकच्छाइ नरिंदिहिं परिवज्जिय सावज्ज समुज्जलु चित्तह बहुलट्ठमि बत्तीस सुरदिहिं 5 कसिण कुडिल कोमल कुंतल तउ वज्जसारु चउ-मुट्ठि करेइ अंसत्थलि घोलंत ति' सामिहि' दिन्न दिक्ख-मंगलि नं मँगल कच्छाइहिं विदिक्ख पवन्नी 8 1 छट्ठ-तवुत्तमि रिसहनाहु सिद्धत्थ- वणि विहियादिहिं सेविउ संजमु लेइ खणि * विहरहिं जिण अणुमग्गिति लग्गा निव कुमार नमि-विनमि जिणिदह पोइणि-पन्न - पुडलिहिं छंटहि सहुं च सहसिहि कय- आनंदिहिं पहु चल्लिउ चितेवि त मंगल घत्ता 1. P हारा 6. P सामाहिं 11. L. जं धत्ता 3 अन्नह दिणि' आवइ महिम करावइ ममि विनमि-कुमारह वियर सारह [ ६ ] निरसणु झाणि मोणि पहु हिंडइ जणि वणि काउसग्गु थिरु कप्पइ [५] उप्पाडर पहु सिरह निरुतउ पंचम हरि - विन्नत्तु धरे सहहिं सिरोरुह सिवगइ-गामिहिं कंचण - कलसुप्पर नीलुप्पल जिण अणुमाणि न उण जिणि - दिन्नी' छण- चंदह जिव 11 रिक्ख- समग्गा असि कर करहिं सेव सच्छंदह 12 पुप्फ-पयरु पहु- पुरउ पयट्टहिं फणिवर जिण अग्गइ सुपरि । खयर-रज्जु वेयड्ढधरि २ |३ ४ ॥४ । १ ।२ | ३ ४ ।१ निय-विहारि महि - मंडल मंडई मणिमउ थोर-थंभु जिव दिप्पइ 1 * 2. L ० सारिहिं 3. P ० कच्छाहि 4. La 5. L वउ 7. P ज 8. P. पन्न 9. P दिन्न 10. L विहरिहिं 12. P पुप्फयरु पहु-पुरओ 14. L दप्पइ 13. P दिइ 114 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय को वि भिक्ख भिक्खयर न जाणइ अज्ज वि जणु तिणि भिक्ख न आणइ छुहिउ पिवासिउ घरि घरि हिंडइ जंगमु कप्परुक्खु महि मंडइ कि विनर तरल-तिक्ख-तुक्खारिहिं सामि निमंतहिं तिहुयण-सारिहिं कणय-कडय-कडिसुत्त-किरीडिहिं अवरि पवर-कप्पूरिहिं बीडिहिं तार-तरलतर-तिक्ख-कडक्खिहिं हरिस-परावस जा खलु पेक्खहिं अवरि ताउ ढोयहिं निय-कन्ना तइयहिं जेहिं दिछु ते धन्ना सामि सव्वु तमकप्पु "विगप्पिवि झत्ति नियत्तइ किंपि अजंपिवि कच्छ-पमुक्ख भिक्ख अलहंतय छुह-बाहिय हुय तावस ते गय ५ पत्ता जिणु निरसणु हिडइ तहिं समइ जि वंदहिं दुरियइं खंडइ मंडइ महियलु निय-पइहिं ते चिरु नंदहिं संपूरिज्जहिं संपइहिं ॥६ [७] । ।२ उन्हालइ दीहरतर वासर अग्गि-फुलिंग-तुरल तरणिहिं कर तिव्वु तवइ तवु जगि वक्खाणिउ तह वि न सामिउ पारइ पाणिउ वरिस-कालि घणु वरिसइ वाइं जण-सरीर थरहरहिं खराइं निप्पकंपु निम्मलउ निरुत्तउ झाणु झाइ जिणनाहु तिगुत्तउ सीयालइ सीयलउ समीरणु वाइ तुसार-सारु सोसिय-वणु अइ-दीहर-रयणीसु निरंतर अविचल-चित्तु झाइ परमेसरु विहरिवि पुर-पट्टण-गिरि-गामिहिं निरसण-पाणु अडवि-आरामिहिं वच्छर-छेहिं जिणिंदु तिगुत्तउ गयपुर-पट्टण-बारि पहुत्तउ पत्ता जं जणिहिं रवन्नं धण-धन्न-समिद्धं तरुवर-छन्नं धवलहरिहिं अइ-धवल किउ भुवण-पसिद्धं महि-महिलहिं तिलउ व्व ठिउ ॥७ 2. P विगप्पहि. 3. P पमुख 4. P मंडलि 5. P संपूरिज्जइ 1. P केवि 6. P त्ति Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिसह-पारण-संधि [८] तं सोमजसु महाजसु पालइ निय-कुलु गुण-गउरवि उज्जालइ तसु सेयंसु आसि जुवराउ पुत्तु 'पवित्त-कित्ति जसवाउ सुरगिरि सुमिणइ सामु सु पिक्खइ अमिय-कलसि सित्तउ सई लक्खइ । अइ अइयारि तेण सो सोभिउ विज्जुल-चक्कवालु नं थंभिउ किरण-जालु रवि-बिंबह पडियं कटरि सहइ पुणु कुमरिहिं जडियं । सिटिठ विसिटिठु' दिलृ एयारिसु सुमिणउ सोमजसिं सुणि जारिसु समरंगणि जुज्झंतह वीरह कुमरि दिन्नु साहिज्जु सुधीरह तिणि पर-पक्खु परो वि पराइउ भुवणि जेण सो चेव विराइउ घत्ता पसरह ते अक्खहि मिलिया एक्कहिं निय-सुमिणई परिसा-पुरउ परमत्थु न बुज्झहिं नरवइ पुच्छहिं सो कहेइ फल कुमरुदउ ॥८ [९] अह सेयंसु गवक्खि निसन्नउ रिसह-जिणेसरु पेक्खइ धन्नउ गयपुर-पुर-पोलिहिं पविसंतउ मुत्तिमंतु न धम्मु उविंतउ पुलइवि तं सउन्न-उत्तंसु' सुमरइ पुत्व-जाइ सेयंसु आसि विदेह-वासि हउं सारहि वइरनाह -पुहवीसहि सारहि वइरसेण-तित्थंकर-पासि वइरनाहु गच्छाहि वु आसि अहमवि साहु साहु संजायउ अह सव्वत्थ-विमाणि परायउ चविय कुमारु जाउ संपइ हउ वइरसेण-तित्थंकरु सुमर तारिसु वेस-विसेसु वहंतउ रिसहु वि तित्थ-नाहु पहु पत्तउ ।४ घत्ता निरसणु निम्मच्छरु विहरिउ वच्छरु विहराविउ केणावि न हु जइ मज्झ घरंगणि जग-चिंतामणि एइ त विहरावेमि पहु ॥९ 1. L कित्तिसार 2. P विसिट्ठि 3. L सोहिज्जु 4. L अक्खइ 5. P गिण धम्म 6. L उचिंतउ 7. L सू 8. L नाहु 9. L चविउ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय [१०] चितंतह एरिसु बारि पत्तु सेयंसह सामिउ जग'-पवित्तु तो हरिसि' माइ न कुमार अंगि नो घरि न बारि न हु दुग्गि दंगि ।१ चितइ सुतु? हउं अज्जु जाउ हउं अज्जु तिलोक्कहं एक्कु राउ मइ पत्तु खार-संसार-पारु उग्घाडिउ निरु निव्वुइ-दुवारु २ मइ भग्ग अणंगह आण गाढ उप्पाडिय काल-कराल-दाढ मई दिन्नु नरय-कूयह पिहाणु उक्खणिउ त सासय-सुह-निहाणु ३ पडिलाहउं अज्जु जएक्क-नाहु लहु होमि हियय-निव्वुइ-सणाहु मह अप्पसु रे वर-भूरि-भक्ख घय-खीरि-खंड-खज्जूर-दक्ख घत्ता इत्थंतरि पत्तउ कलस-निहित्तउ महुरु सुसीयलु खोय-रसु ढोयणिउ त लेविणु करिहि करेविणु कुमरुप्पाडइ हरिस-वसु ॥१० [११] पाणि-पियामहु पाणि पसारइ अविवर-पवरंजलि वित्थारइ सिरि-सेयंसु कुमारु पलोयइ तहिं बहु नव-रस-कुंभ वि रोयइ १ सहइ सधार जेव गिरिहंतउ गंग-पवाहु कुंडि पवडंतउ दीसइ रस-विसेसु सोहंतउ न उण तिलोयनाह-मुहि जंतउ ।२ जिणु अच्छिद्द-पाणि तेणंजलि. बिंदु वि पडइ नेव धरणीयलि तसु सिह जाइ जाव रवि-मंडलु पासि पलुट्टइ बिंदु वि नो खलु ।३ घत्ता सेयंसि सुहावउ जिणु जिव सम्मउ समइ पत्त नब-खोय-रसु जग-गुरु पाराविउ तणु निव्वाविउ वित्थारिउ तिय-लोइ जसु ॥११ [१२] पत्तु पत्त सव्वुत्तमु सामिउ चित्तु पवित्तु भत्ति उन्नामिउ वित्तु खोय-रसु अवसरि आविउ तिहिं मेलावउ पुन्निहिं पाविउ १ 1. P जगि 2. L हरिसु 3. P पाणपिया. 4. L पलोट्टइ 5. P जिण मइसम्मउ 6. L तहिं मेलाविउ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिसह-पारण-संधि जं गोवाल-बालि' रिसि दिन्नउ तासु वि तारिसु फल संपन्नउ जं पुणु दिज्जइ जिण-पहु पत्तह कासु सत्ति फलु तासु कहतह २ पत्त-दाणु दोगच्चु विहंडइ भुवण -लच्छि आणइ बलिमड्डइ .. भोग अभंगुर भवि मुंजावइ भवु" भजिवि सुहु सिद्धिहिं दावइ ।३ एक्कु जि पत्त-दाणु परिदिज्जइ किं चिंतामणि-पाहणि' किज्जइ इह-पर-लोग-दाणु तं साहइ चिंतामणि पुणु टगमग चाहइ ।४ घत्ता मणि-रयण -सुवन्निहिं गुड्डी' उच्छल्लिय अरु पणवन्निहिं दुंदुहि वज्जिय पुप्फिहिं पयरु पवंचियउ जयइ सुदाणु पघोसियउ ॥१२ उप्पाइय देविहिं पंच-दिव्व घरि कुमरहिं कुसल-महानिहि व्व। 11जुवराई अउरु नरराइं सारु आरद्धउ वद्धावण-पयारु पहिरेवि चीर नव-रंग-रक्त पविसति तरुणि गहियक्खवत्त सीमंति ताहं कुंकुम-थबक्क फल-बीडां दिज्जहिं कय-चमक्क वज्जति तूर अइ-तारतारु नच्चंति नारि अइ-फार-चारु विजयावलि पयडहिं भूरि भट्ट अरु उदउ उदउ जोगियह थट्ट ।३ तह पाउल-लीला वइस-लीलु गाएवि कुमारह सच्चु सील वद्धारिवि चंदणु भालवट्टि निय-रंगि पयट्टिहिं चारु नट्टि ४ घत्ता नव-पल्लव-सोभिय तोरण उब्भिय गयउरि घर घर बारि जणि वर-दाणई दिज्जइ मग्ग छड्डिज्जई झयझवाल ज्ञलहलहिं खणि ॥१३ [१४] परमेसरु पारिवि गउ विहारि पुरि नयरि देसि दुह-दुरिय-हारि आवेवि कुमरु पयडिय-पमोय ते पुच्छहिं तावस सयल लोय । 1. L बालइ 2. P कहतइ 3. P विहडइ 4. P भुवणि 5. L बलिमंडइ 6. L भउ 7. L पाहणु 8. P रयणि 9. P पणवन्नहिं 10. P गुडी 11. P जुवराई 12. L गाइएवि 13. Lजिणि 14. P दिज्जहिं 15. Lछडिज्जहिं Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय पारण-विहाणु पई किंव कुमार जाणियउ जिणह कय-सुकय-सार सेयंसु पयासइ पुत्व-भवु जिंव जाइ-सरणि जाणियउं सव्वु २ पुंडरिगिणि-नयरिहिं रिसह-जिउ सिरि-वइर-नामु संसार-भीउ जिण-पासि आसि सूरि प्पहाणु तित्थयर-कम्म-करणेक्क-ताणु ।३ हउं सारहि तिणि सहं गहिय-दिक्खु सिक्खिय-दुपक्ख-अक्खंड-सिक्खु मई जाणिउ मुणिहिं अकप्पु कप्पु तुब्भ वि कहेमि तं जण अणप्पु ।४ घत्ता जाणिवि सेयंसह पासि सुवंसह जणु अखंड-भिक्खाए विहि तो जिणवर-सीसहं चरण-गुणीसहं भिक्ख पयट्टइ सोक्ख -निहि ॥१४ १ ।२ विहरिवि वरिस-सहसु छउमत्थउ केवलि जायउ जाउ कयत्थउ बहुलेक्कारसि फग्गुण-मासह पुरिमतालि जिणु असि विलासह समवसरणु सक्केहिं कराविउ तहिं जि' चउव्विहु संघु सुठाविउ भरहह पंच-पुत्त-सय दिक्खिय तह नत्तुय सय-सत्त सुसिक्खिय जे वि' हुया वण-तावस हुंता ते सव्वे वि साहु संवुत्ता चउरासी गणहरह मुहाणइ भरह-पुत्तु पुंडरिउ महा-मइ 'चउरासी जइ सहस-जगुत्तम तिन्नि लक्ख साहुणी सुसंजम भरहु पहिल्लउ सावगु सुप्परि गोमुहु नक्खु देवि चक्केसरि कमि कमि अट्ठाणवइ बाहुबलि सामि-पुत्त संजाया केवलि सामिहि पुव्व-लक्खु पज्जाऊ ते चउरासी पुणु सव्वाऊ घत्ता दस-सहसिहि साहुहु सह महबाहुहु अट्ठावइ विच्छिन्न-रिणु माहाऽइम-तेरसि निस्सम-सुह-रसि गउ निव्वाणि जुगाइ-जिणु ॥१५ 1. P जिवु 2. L चइरनाहु 3. L सुक्ख 4. P जायइ 6. L ति 7. L साहु चउरासी य सहस 8. P महाइम. ॥ इति श्री ऋषभ-पारणक-संधिः समाप्तः ॥ 5. P जिव 9. अंत : PL Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ कर्ता : रत्नप्रभसूरि 1 तिसलादेवि - कुक्खि' -कलहंसह छिन्न- सुवन्न- सुवन्न- सरीरह २. वीरजिण - पारणय- संधि दाहिण - भरह - खंडि संजायउ ग- तार- पायार- विराइउ जहिं जिण-मंदिर-मंडवि सोहहिं नगर-निरक्खणक उतिगि पती तं पसिद्धु सिद्धत्थह नंद उब्भड भड- वारणु चारह डि-पहाण [ १ ] वत्तियकुंडु गामु विक्खायउ आसि नयरु न परेहि पराइउ मणि-पुतलिय - पंति मणु खोहहिं अणिमिस अच्छर नं* तुरंती नामि नंदिवद्धणु जस- बद्धणु अगणिय-गुण-गण-सिद्धि पसिद्धउ घण-कण -कंचण कोडि समिद्धउ 1. L कुक्षि 2. L भणिउ 6. P सिठि 7 L रागु 11. B पुव्वु २ तासु सहोयरु आसि कणिट्ठउ सुरगिरि सुर-असुरिहिं कय-मज्जणु तेण" नंदिवद्धणु आपुच्छिउ जं माया-पियरिहिं पहवं तिहिं रचना- समय : ई. स. ११८२] [ ध्रुवक ] खत्तिय - नायवंस-अवयंसह पारण-संधि भणउं जिण-वीरह घत्ता अनय-निवारण अइबल राणउ [ २ ] वद्धमाणु नामिण गुण-जिट्ठउ जण-संजणिय-कम्म-सम्मज्जणु नियमु० पुन्नु मह संपइ निच्छिउ नाहं समणु होमि जीवंतिहि 11 जस-रंजिय-नीसेस सुरु पालइ कुंडग्गाम- पुरु ॥१९ 3. L गामि 4. L न तरंती 5. L नदवद्वणु 8. P. जेट्ठउ 9 L तेणि 10. P निममु ६ ८ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय पढमु माइ पर-लोइ पराई पुणु संपइ ताउ वि जस-वाई भाय करेहि चित्तु ता सज्जउं अणुजाणहि पव्वज्ज पव्वज्जउं ६ वीरह वयणु सुणिवि एयारिसु वज्ज-घाउ सिरि निवडइ जारिसु बाह-नीर-नीरंध'-कयच्छउ भणइ नंदिवद्धणु कय-निच्छउ घत्ता पंचत्तहं पत्तउ हउँ परिचत्तउ ताई भाय कित्तिय दियह संपइ पइ मुक्कउ जण घरि थक्कउ ता हियडउं* फुट्टिसइ मह ।।९ [३] विलवंतु नंदिवद्धणु निएइ पुणु मणु न सामि कोमलु करेइ मन्नाविउ वंसवरेहिं ताव पडिखाविउ वच्छर दोन्नि जाव २ तो ताहं वयणि जुग-दीह-बाहु घर-वासि वसइ पहु भाव-साहु कय-बभु अदंभु असंग-सोगु परिहरिय-सव्व-सावज्ज-जोगु उवसरिय झत्ति लोगतिएहिं 'वय-समउ सामि' पिन्नत्तु तेहिं वियरइ अणच्छु वच्छरिउ दाणु पसराउ जाव सिर-उवरि भाणु मोत्तिय-'मरगय-माणिक्क-अंक मणि-कंकण-कणय-किरीड-चक्क हय-गय-रह-पडि-कप्पड-पडप्प मगण-जणाहिं दिज्जई अणप्प घत्ता इय तीसहिं वासिहिं बिहिं उववामिहिं चंदप्पह-"सीयाए गउ अवरण्हह गिण्हइ वइ तारुन्नइ मम्गाइम-दसमीहिं बउ ॥९ [४] तहिं खणि मणपज्जाउ जिणिदह उप्पन्नउ पय-पणय-सुरिंदह विहरिवि नाइसड-वण-हुतउ कुल्लग-सन्निवेसि पहु पत्तउ गोवुवसम्गि निसिहिं संताविउ 11बल-बंभणि पायसु पाराविउ19 सहइ दुवालस-वास सुदूसह सामि उग्ग-उवसग्ग-परीसह 1. P अणुजाणह 2. L पव्वज्जहिं 3. L नीयंध 4. L हियड 5. P पडिक्खाविउ 6. P विन्नत्तउ 7. Lमराय 8. P कंचण कंकण किरीड 9. P सीबीयाए 10. L तउ 11 L बहल 12. L पराविउ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीरजिण-पारणय-संधि ६ कहिं वि कराल-ताल-उत्ताला भेसहिं भीसण-तणु वेयाला कहिं वि सुमत्त-दति दतगल 'ढुक्कहिं चुक्क चित्त कोवग्गल कत्थ वि खर-नहरंकुर-दुद्धर केसरि केसर-भासुर-खंधर कत्थ इ फुड-फुलिंग-फारप्फण कुडिल-कराल-काल-फणि उव्वण घत्ता जिंव मेरु महीहरु सिहर-निरंतरु न हु वायहि कंपावियइ उवसन्ग-परीसहि अइसय-दुसहि वीरु' तेव किं चालियइ ॥९ वरिसि दुवालसि महि-विहरंतउ दुसह-परीसह-अहियासंतउ उग्गुवसग्ग-वग्गि अपमत्तउ सामिसालु कोसंबिहि पत्तउ नवउ नियमु तहिं लेइ जिणेसरु एयारिसु तिहुयण-परमेसरु । राय-कन्न निरु असरिस-वेसिहि रोयंती "सिरि मुंडिय-केसिहि गुत्ति निहित्त नियाणिय-नीसहि निगड-निजंतिय 'तिहिं उववासिहि' सुप्प-कोणि कुम्मास करेविणु घर-बरु पय अंतरि' देविणु भिक्ख-कालि टलियइ जइ जत्थइ तो पारइ पहु अन्नह नेच्छइ10 पइदिणु पविसइ सामिउ भिक्खह दुसह-परीसह सहइ तितिक्खह खंड-खीरि-खज्जूर-करबय विहरावहिं कि वि मंडी मंडय अवर दिति वर-लडडुय लेविणु पहु न लेइ पुणु जाइ वलेविणु ८ १० पत्ता पइदिणु हिंडतह दुरिय दलंतह चउमास अइच्छिय - भिक्ख न इच्छिय अहियासंतह भुक्ख-तिस तणु होई12 सामिहि सुकिस ॥११ आसि सयाणिउ राउ रणुद्धरु समइ तम्मि कोसंबिहि बंधुरु हुती तासु मिगावइ राणी चेडा-रायह धूय पहागी २ 1. L मां आ चरण नथी. 2. P धीरु 3. P अहियासितउ 4. P उग्गुवसन्गि वग्गु 5. P सामि विसालु 6. P सिर मुंडिय 7. L तहि 8. P उववासिहि 9. P अंतर 10: L नोच्छइ 11. L विहरावइ 12. हुई Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य समुच्चय सिरि-तिसलादेविहि भत्तिज्जी सामिहिं माउल-भइणि मणोज्जी जाणित तीए पुरीहिं वसंतउ आभिग्गहिउ घरिहिं विहरंतउ निरसणु सामि तेण दुह-तत्ती तज्जइ रहसि राउ रोयती' सामिहि नियमु कोइ न हु नज्जइ घरि घरि जाइवि झति नियत्तइ ता पिय तुज्झ रज्जि किं किज्जइ कि विन्नाणि जाणि साहिज्जइ । नाव न सामि अभिग्गहु जाणिउ आलु ताव तुहु राउ सयाणिउ घत्ता ॥९ इय वयणु सुणेविणु नरवइ दुम्मणु हक्कारावइ जइ 'सुजम वंदिवि ते पुच्छइ साहु सुनिच्छइ परम-तवस्सिहिं जे नियम [७] दव्व-खित्त-कालिहिं अरु भावि कहिय अभिग्गह तेहि स-माविं राइ कहाविय तो पुर-नारिहिं जिणु विहरावउ विविह-पयारिहिं का वि नारि मंगल गायती मोयग देइ नियंगु नियंती कंस-पत्ति कुम्मास वहती अवर विमुक्क-केस' रोयंती का वि हु पाइहि दावणि दाविय वियरइ वासिउ भावण भाविय अवर करण-चारी-संचारिहिं नच्चिरि' खीरि देइ सहुँ वारिहिं आसवारु' कुंतगि करेविणु मंडा को वि देइ पणमेविणु तह वि न सामिउ पाणि पसारइ वलिवि जाइ निय-नियमु न हारइ ६ ८ धत्ता तउ देवि सयाणिउ सेट्ठि सवाणिउ सत्थवाहु सन्वो वि जणु अइ दुक्खावडियउ चिंता चडियउ अच्छइ निच्चु ससोग-मणु ॥९ [८] इओ यराउ सयाणिउ धाडिहिं धाविउ नावासइ निसि चपहि10 आविउ नियय-सेन्नि जग्गहु घोसावइ लुटहिं लोय जासु जं भावइ . २ 1. P भतिज्जी 2. Lरेयंती 3. L तुह 4. P सुसंजम 5. L देव-खेत्त 6. L कोमास 7. P.नच्चिर खीर 8. L असवार 8. L सपाणिउ 9. Pचडियउ 10. Lचंपई Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कि अगि दहिवाहणु नट्ठउ पाविय पाइकि धारिणि राणी कोसंविहि सो पुरिसु उवेई धारिणी सील-कलकु कलती पाइकु पच्छत्तावु करंतउ महुर-महुर-वयणिहि संभासइ अणुणित सारिहिं पणवीहिहिं हिंड भुवणह वि पियारी कि कत्थइ कोसिउ वीरजिण पारणय- संधि जा तीए सार-सोहग्ग-गेह ता चित्ति सक्किय चितवेइ 1. L कंसु सो कोसु सु 4. P पर 5. L घणावर 6. 9. P तावइ हरि करि कंसु कोसु सउ टूट्ठउ अनु तसु वसुमइ धूय सियाणी मह पाणप्पिय होसु भणेई हियडउ फुट्टिवि पर - भवि पत्ती मरिसइ एह इ एउ मुणंतउ जिव गय-सोग बाल सा भासइ विवि-याहि सिरि तिणु अड्डइ [९] अह तत्थ घणावहिं दिट्ठ सेट्ठि सा नाइ कुसुम-सर-चाव- लट्ठि सुकुमार गोर पत्तल सुदेह नं चलिर " सुवन्न - सुवन्न - रेह * पेक्खिवि सिटिठ तं तत्थ पत्तु जिव धूयहि तिव घारइ ममतु उल्लविय - मोल्लि सा लइय तेण न पेल्लिउ तसु पुन्नोदण निय - भवणि नीय सा सेट्ठि बाल घण- कुडिल-काल- सुपलंब-बाल पुत्ति व्व तेण अप्पिय पियाए मूलाए निच्चु निखच्चियाए निय - गुणिहि तीए नीसेस - लोउ फुडु विहिउ फुरिय-फार-प्पमोउ हिम-सीयलाए भुवण-पसिद्धु तिणि चंदण त्ति नवु नामु लछु घत्ता सा जय - सारी होइ तोसिउ [१०] पत्ता ६ कोहि सो पत्तु नरु जिव पावइ पर - दव्व भरु ॥१९ मूला निएइ नव- रूव-रेह निय-भज्ज एह नणु धणु करेइ ८ १३ मूलाए न सुहाइ मणि जइ " तवेइ अंबरि तरणि ॥९ मट्ठउ 2 P पच्छुतावु 3 P उड्डुइ L. उदुइ L सवत्त सुवन्न 7. L पक्खेव सेट्ठि 8. P पुन्नोदयऍण Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - संधिकाव्य-समुच्चय ४ जइ हूय एह किर सेट्ठि-घरणि ता इंतु मणोरह मज्झ मरणि जो खीरि-खंड-खज्जूर खाइ खल-भक्खणि तासु किं चित्तु जाइ जइ छिंदउं बाली एहू वाहिं तो होइ अवसु मह मण-समाहि सा कुणइ तासु अवमाणणाउ अक्कोसण-तज्जण-तालणाउ सा सहइ सव्वु जिव जच्च-भिच्चु आराहइ निय-जणणि व्व निच्चु पुण एरिसु तं पइ तासु झाणु विस कुंभु जेंव कय-विस-पिहाणु घता अह अन्नह सौ दिणि अइ ऊसुगु मणि उस्सूरह धणु आवियउ दासीयणु पुच्छइ को वि न अच्छइ निय-कज्जिहिं को कहि वि गउ ॥९ ता चंदण चल्लिय नीरु लेवि - निय ताय पाय धोएमि बे वि पुण पुण वि तेण वारिज्जमाण पक्खालइ पय विणएक्क-ताण समभरि लुलंतु कुंतल-कलाउ कद्दमि पडंतु 'अंबोडयाउ सई धरिउ धणावहि लील-लट्ठि पय धोय जाव बालाए कट्ठि मज्जारि जेंव कोमइ निलुक्क धण-भज्ज सव्वु' तं नियइ चुक्क चंडक्किय चितइ एउ दिट्ठ ता मज्झ कज्जु निच्छ्इ 'विण? ६ ता जाव जाइ घर-बारि एहु निय पुति कतु सकलकु देहु ता सिट्ठि पियारइ केसपासि निय रोसु सहावउ बोड दासि धत्ता न्हाविउ हक्कारइ सिरु मुंडावइ पाएहिं नियलई "निक्खिवइ चारगि पइसारइ कबिहि मारइ वारि वारि तालं दियइ ॥९ [१२] तो तीए चेडि-चेडाइ-वगु निठुर-गिराहिं भासिउ समग्गु जो सेठ्ठि कहेसइ एहु अत्थु सो मारिसु कारिसु अह अणत्यु 1. P. विणएण एक्कताण 2. L अम्मोययाउ 3. P कैणइ 4. L ता 5.-L. चंडिकिकउ 6. L मज्झि 7. P. विणिटटु 8. P मां आ चरण नथी.. L. निय रोसु सहायउ छोड दासि 9. P निक्खिइ 10. मां 'वारि वारि' पाठ नथी. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धीरजिण-पारणय-संधि अह एइ सिट्ठि न हु नियइ बाल गुण-रयण-माल सिय-जस-विसाल हु रमण-केलि-नीसह-सरीर सुहि सुत्ति होसइ मज्झि धीर । न हु नियइ दुइज्जइ दिणि वि जाव उक्कंठ-विसंठुलु सेट्ठि ताव . जणु परियणु पुच्छइ आयरेण न हु कहइ कोइ मूला-भएण चितेवि सवा(या)णी सहिय-पासि निरु रमइ कहिं विसा गुणह रासि अह कह वि पत्तु वासरु चउत्थु तो जाउ सेटिठ कोविण विहत्थु - ८ पत्ता आबालहिं 'बालहिं मूला-दुच्चिट्ठिउ . "तउ गुणमालहिं कहइ जह-ट्ठिउ थेर-दासि धीरिम धरिवि मरणु जाव अंगीक रिवि ॥९ १३] तो मणि दुक्खिउ धणु 'अइयारिं हणिउ किं मोग्गर-गाढ-पहारि अइ-वेगि गउ चारग-बार । ताल अप्फालेइ कुठारि निय-कर-कमलि कउलु वहती ढुलहुलु बाल दिट्ट रोयंती ति-दिवस-निरसण भुक्खहि भुल्ली करि-उम्मूलिय-कमलिणि-तुल्ली छुहिय-बाल तउ भोयणु चाहइ •मूला-थवियउं कि पि न पावइ दिटठ कह वि कुम्मास ति लेविणु अप्पिय सुप्पह कोणि 'करेषिणु धणु गउ नियलउग्घाडण-कारणि कारुहु कस्सइ सइ हक्कारणि चंदण ते कुम्मास पलोयइ पिइय-हरु सुमरेविणु रोयइ पत्ता न हु तारिसु विज्जइ अतिहि जं दिज्जइ तिहि उववासहं पारणइ जइ तह वि अवत्थहिं पावउ दुत्थहिं तो पारावउं को वि जइ ॥९ [१४].. एत्थतरि तित्थेसरु पत्तउ चंदण-पुन्निहिं पेल्लिज्जंतउ तरणि तिव्व-तव-तेय-विराइउ कचणु चित्तभाणु नं ताविउ 1. P बालाहि 2. L तो 3. P मरणि 4. L अइयारइ 5. L कुठारई 6. L बाल सा तइ घणु चाहइ 7. L धरेविणु 8. L जु Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ जंगमु कप्परुक्खु किं आयउ कुसुमबाणु किं दिक्ख समिद्धउ सा परमेसरु पेक्खिवि चितइ कटरे मह पुन्नह परिवाडी उटि पिकखवि पहु घरि आउ भइ सबाह- पवाह " सुभासहि पहु एउ सुविणु निय-पाणि पसारइ संधिकाव्य समुच्चय मरगय- माणिक्कहि समलकिय-भूसण पारगामि-पारणय- महूसवि बाहि देव-दुंदुहि आनंदिय रयण-कणय' ० - ककण-मणि-हारा घरि घरि तोरण वदुरखालिहिं पुरं सुदा सुदाणुग्धोसिंहिं" सिरि सिररुह - भरु बालह जाउ नियल विलीण विलीणा रीसहि पहिरिय पंच-रंग पडि कप्पड सुरगिरि अवरु एत्थु किं जायउ विहरइ अहव धम्मु तणु-बद्धउ अरि रि अतिहि मई पाविउ संपइ पूरी अतिहि-तणी राहाडी उबर बाहिरि मेल्लइ पाउ पारहि पहु 'तुहुं इय कुम्मासहि नियम सरेविणु अंजलि धारह 1. आरूढउ सिंधुर खंधरा हिं देवि मिगावइ 1 सहुं संपत्तउ 16 घत्ता मोतिय-चउक्किहि अवगय-दूसण [१५] सपरिवार संपत्तइ वासवि बरिस हि कुसुम - समूह' - सुगंधिय वरिसहि तखणि ते वसुधारा किज्जहिं चेलुक्वेव ' " झयालिहि नच्चिर सूर - समूह जणु " तोसिहि सरल तरलु नं मोर-कलाउ मणिमय- नेउर पाइर्हि दीसहि पट्ट हीर नवरंग महुब्भड 15 घत्ता दव्वाईहि महग्घविउ सा वहिरावर सुप्पि किउ ॥९ [ १६ ] राउ सयाणिउ नीइ - अमूढउ रायत्थाण - जणो वि पहुत्तउ ४ 14 ८ ४ ६ पउमराय - विदुम- दलिहि पहिरिय अंगिहि उज्जलिहि ॥९ ८ २ 1. L2 P सो 3. L पेक्खवि 4. L अंबरि 5. L मिल्हइ 6. L सभासहि 7. L तुह 8. L विहरावद 9. L समूहि 10. I. कणय-मणि- मोत्तिय-द्वारा 11. P कवालिहिं 12. P " ग्घोसहि 13. L जिग 14. P तोसहिं 15. L राग Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीरजिण-पारणय-संधि तहि अन्ने वि पत्त तंबोलिय- सालिय-हालिय-नालिय-मालिय जोहारेविणु विहुणिय माऊ चंदण-बाल सिराहइ राऊ . सुदरि सुदरु जम्मु 'तुहारउ नामुविकत्तणु तुह गुणकारउ तुह परि तियसिहि जसु सलहिज्जइ जग-धवलहरु जेण धवलिज्जइ पइ पाराविउ वीर-जिणेसरु अन्नहि कसु वि न एत्तिउ गुणभरु किं मायंगह घरि करि बज्झइ रंकह कामधेणु किं दुज्झइ पत्ता एवहिं पई खालिउ महिलह टालिउ थी-कलकु न संघडइ चंदणह महा-मइ देवि मिगाव इय भणेवि पाइहिं पडइ ।।९ [१७ } निवु चसुहारहिं सत्तण लग्गउ तउ सक्केण निरक्खिउ थक्कउ धणु जसु कासु वि चंदण अप्पइ लहइ सु एत्थु न अन्नु पहुप्पई २ ताउ धणावहु सो धण-सामिउ तेण तीए तसु चेच पणामिउ नरनाहेण वि तसु अणुजाणिउ घर-अभिंतरि सेट्ठि पराणिउ संपुलु नामि महल्लउ आसि आविउ देवि-मिगावइ-पासि चदणबाल तत्थ सो पेक्खिवि पाय-पडिउ रोयइ ओलक्खिवि कहइ मियावइ भणिउ सु तक्खणि एह राय-दहिवाहण-नदणि वसुमइ ति निरु धारिणि-जाई जाणिउं चंपा-भगि इहाई घत्ता तो देवि नियंती भणइ "रुयंती ___ भाइणिज्जि तुह होसि महु वच्छे आलिंगसु मई निव्वावसु इय आलिंगइ सा सुबहु ॥९ [१८] कय-जोहारु 'राउ सुरराई भणिउ निसुणि मह सासणु काई बाल नेहि निय-गेहि नरेसर पालहि केवि मास सुह-निन्भर २ __ 1. L तहारउ 2. P तसु 3. L निरक्किउ 4. L लेइ 5. P निरधारिणी 6. L रोयंती 7. P रायड Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ संधिकाव्य समुच्चय वीरह नाणि जाइ उक्कोसइ सिस्सिणि पढम-पवत्तिणि होसइ करिहिं चडाविउ चंदण तक्खणि नीय नरेसरि निय-मदिरि खणि गयउ सक्कु धवलहरि धरेविणु चंदण देव-दूस वर देविणु कन्नतेउर-मज्झि रमंती अच्छइ जिण-केवल पडिखंती गामागर-नगरिहिं विहरंतउ जंभिय-गामि सामि संपत्तउ । उजुवालिय-नइ-तीरि जु' सालु तसु तलि ठिउ तव-छट्ठ-विसालु पत्ता अह वरिसि दुवालसि गयइ अणालसि छहिं मासिहिं पक्खन्गलिहिं सिय दसमि विसाहह तिहुयण-नाहह नाणु जाउ झामियकलिहिं ॥९ [१९] मिलिय बत्तीस तियसेस चलियासणा महिम नाणस्स तस्सावहति क्खणा अह समवसरणु किरणावली-राइय' रयण-तवणिज्ज-रुप्पेहिं उप्पाइयं तत्थ तित्थेसु सोहंत-सीहासणो खणु समासीण होऊण चउराणणो पत्तु तत्तो वि पावाइ पावण-गुणो तत्थ तित्थं समत्थे चउहा जिणो ठाविया ताव एक्कारसुब्भड-गुणा गणहरा गोयमाई तहा नव गणा तियस-नाहेण तत्थाणिया चंदणा दिक्खिया "मयहरी ठाविया सामिणा ६ पुण वि विहरइ महिं नाहु मंडतओ भविय-कमलाई भाणु व्व भासंतओ खाइयं दंसण सेणिओ पाविओ तित्थ नामं महत्थं समस्थाविओ ८ घत्ता सिद्धत्थह नंदणु भव-निक्कंदणु केसरि-लंछण-लछियउ 'चउदह जइ सहसह सामिउ सुजसह देउ देउ मह वंछियउ ॥९ [२०] पाडिफद्धि' पसिद्धि च सद्धि तए देव कुव्वतु गोसालु गजिउ जए मज्झिमं पत्तु पावापुरि अप्पणो जाणिऊण च निव्वाणु निस्सम-गुणो २ चरमु निस्समु समोसरणु सुविराइयं 18सुकसालाए पावाए आपूरिय तीस वासाई तुममासि गिह-वासिरो वारसद्धं च छउमत्थवत्थाधरो 1. I पवित्तिणि 2. P खाणी 3. L मिणु केवलि 4. L तीर जि सालू 5. L छ। 6. L नाहस्स 7. P मालियं 8. Lमहयरी 9. L मां आ पक्तिनो पाठ ज नथी (चउदह ...बंछियउ सुधी) 10. L पाडिपद्धिं 11. L सिद्धिं 12. L गुव्वतु 13 L सुक्कसालाए Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीसऊणाई ताई तए धारिय सामि सव्वाउ बाहत्तरी ते नियं जक्खु पच्चक्खु कय-रक्खु तुह सासणे सम्मदिट्ठीण साहेज्ज - कज्जे रया सिरि- तिसला-नंदणु कचियमावरसहि वीरजिण पारणय- संधि तित्थु सुपसत्थु सव्वत्थ वित्थारिय सत- हत्थ-प्पमाणेण निव्वाहियं ' आसि मायंगु नामेण गय-दूसणे देवा तुज्झ तित्थम्मि सिद्धाइया ८ घत्ता कणयच्छवि-तणु साइहिं गोसहि 1. L निव्वाइयं 2. L पज्जकासणि अंतः P. L इति चंदनबाल-पारण-संधि || १९ ६ 2 पज्जका सण - संठियउ एक्को च्चिय निव्वाणि गउ ॥९ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. गयसुउमाल-सधि रचना-समय : ई. स. १९८२) [कर्ता : रत्नप्रभसूरि आसि नयरि बारवइ पसिद्धिय साव-सुवन्न सुवन्न-समिद्धिय जा जोयण बारह दीहत्तणि सक्कि कराविय नव-पिहुलत्तणि २ जहिं धण-कणय-कोडि सज्जिज्जहिं दाणि मणोरह जणह न पुज्जहिं भेरि-सद्द-निदारिय-रोगिहि धन्नंतरि मन्नियइ न लोगिर्हि करइ तत्थु(? रज्जु) 'राणि-वरण-सारउ नारायणु नारीहिं पियारउ चाव-चाय-चारहडि-अचुक्कउ कुनय-कुसंग-कलकिहि मुक्कउ जसु निरु निवसइ नेमि भडारउ माणसि हंसु जेम्व जयसारउ खायग-सम्म-दिट्ठि-सुविसिट्ठउ नेमि जिणेसरि* जो उवइट्ठउ सच्चहा अवरु रुप्पिणी राणी सयलंतेउर-मज्झि पहाणी विहरंतउ सिरि-नेमि-जिणेसरु तहिं कयाइ "पत्तउ परमेसरु पत्ता कुलसेल-जिणंतह गिरि-उज्जिंतह लक्खारामि समोसरणु तक्खणि तियसिदिदि किउ सच्छंदिहिं भव-भयत्त-" जंतुहं सरणु ॥११ [२] किय देव-देवि देसण सुचंग नर-अमर-असुर-राएक्क-रंग खणि मुणिहिं जाय विहरणह वार अणुसरहिं साहु-जण घर-दुवार अह देवइ-देविहिं दुन्नि पुत्त विहरंत भवण"-अंगणि पहुत्त "बिहु ताह अणीयजसो ति पढमु महसेणु बिइज्जउ पोढ-पसमु "ते साहु-सीह पिक्खेवि बे वि निय-अंगि माइ देवइ न देवि । सा देइ सिंह-केसर रसाल नव-लड्डुय गडडुय जिंव विसाल ६ विहरावि जाव देवइ बइट्ठ जइ-जुयल अन्न तावहिं पविट्ठ मुणि अजियसेणु गुणगण-समग्गु अरु निहयसेणु अणुमग्ग-लग्गु ८ 1. L गणि 2. L भराडउ 3. L जेव 4. L णेसर 5. P पत्तु 6. P जंतुह 7. P बिहि 8. L नहसेणु 9. P तो Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गयसुउमाल-संधि विहरावइ देवइ देवि ते वि खणमेत्ति तइज्जउ तत्थ पत्त अग्गेसरु मुणिवरु देवसेणु विहराविय ते वि हु मोयगेहिं वियसंत-चित्त मोयगिहिं बे1 वि संघाडउ सुमुणिहि अप्पमत्तु अणुपह-पय? पुणु सत्तुसेणु । निय-भाव-भत्ति अइ-कोउगेहि घत्ता ते वि हु विहराविवि चिरु निज्झाइवि चितइ चित्ति' चमक्कियइ किं एहु भराडउ मुणि संघाडउ वार वार घरि एइ हइ ॥१३ [३] पय पणमिवि पुच्छइ मुणिकुमार ते देवइ तो वर-भत्ति-सार किं तुम्ह साहु दिसि-मोहु एहु जं वार वार मह घरि उवेहु । अह लहह न कत्थइ एत्थु थामि धण-धन्न-समिद्धइ भिक्ख सामि अतरिय चित्ति अहवा वि अम्हि अवरि' वि मुणेमि ते चेव तुम्हि अह पभणहिं साहु महाणुभावि परमत्थु कहहुं सुणि एक्क-भावि भद्दिलपुरि अच्छइ नाग-सिहि तसु सुलस भज्ज पइ-पेम्म-सिट्ठि जिण-धम्मि रम्मि अणुराय-रत्त ते दो वि देव-गुरु-पाय-भत्त सुय अम्हि ताहं सुसरिक्ख-रूव जण छा वि पुन्न-कारुन्न-कूव पडिबुद्ध धम्म-देसण सुणेवि महि विहरहुं नेमिहिं दिक्ख लेवि ता जाणउ तिहिं संघाडएहिं परिवाडि पत्त ते तुज्झ गेहि घत्ता इय सा निसुणंती हरिसु वहंती रोमंचंचिय-काय-लय मुणि दो वि ति वंदइ सुहु अहिणंदइ चितइ तक्खणि तोस-गय ॥११ [४] हउं जाव नियउं ए साहु-सीह हरि-तुल्ल-रूव रज्जह निरीह ताव सई हसइ वियसेइ' चित्तु नं अमिय-वारि नयणिहिं निहित्तु २ 1. L देवि 2. L चित 3. L ते 4. P लहइ 5. P अवरे वि मुणामि 6. P तो 7. P संघडएहिं 8. P पत्ता 9. P मुह 10. P विहसेइ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय कय-सत्त-रूवु किर कन्हु एसु सिविच्छ-सुलंछिय-वच्छदेसु हउं बाल-कालि अइमुत्ति वुत्त जीवंत जगुत्तम अट्ठ पुत्त ता होहि महारा अंग-जाय ते छा वि साहु निरु कन्ह-भाय हय-विहि-विलासि केणावि पत्त तहिं सुलस-नाग-मंदिरि सुगत्त पसरुट्ठिय जाइवि जिण-रागासि सो 'पुच्छिउमिच्छइ नाण-रासि निय-पाणि-परिट्ठिय-कंकणेण किर कांई करेवउं दप्पणेण रवि-उग्गमि देवइ पत्त देवि जिण-नाह-पासि रहि आरुहेवि पणमित्तु पुरटिठय सा सुनाणु बोलावइ अवसरि भुवण-भाणु घत्ता ससुरासुर-परिसहिं देवइ आमंतिवि धम्मुक्करिसहिं गुरु अणुचितिवि तसु टगमग-जोयंतियहि सामि पयंपइ दय-उदहि ॥११ पई धम्मसीलि* चितिउ "जु चित्ति तं सच्चु चेव न हु का वि भंति ते पुत्त तुज्झ हरिणेगमेसि संचारिय अवसरि सुलस-रेसि मय-वच्छहि ताहि छ अंग-जाय तुह अप्पिय कंसह मारणाय निय-तणय-विओग-विवाग-गम्मु तुह फलिउ एउ किउ सइ जु कम्मु ४ पइं पुव्व-भवंतरि रयण-रत्त अवह रिय सवक्किहिं आसि सत्त तहिं ठावि मुक्क वर-काचखड सुसरिक्ख-रूव' कारिवि अखंड विलवंतियाए तसु ताह मज्झि पई एक्कु तमप्पिउ सुगुण-मज्झि । इय सत्त-रयण-चोरिक्क-तणउ पई पत्तउ फलु मण-दुक्खु घणउ ज खणिण पुणऽप्पिउ रयणु एगु तिणि हरि जणेइ तुह सुहु अणेगु इय सुणिवि देवि देवइ निरुत्तु महु-महुरु नेमि-जिणनाह-वृत्तु जिण-दंसिय बंदइ ते सुसाहु उरुरुहिहिं झरतिहिं पय-पवाहु . घत्ता अह सा ते वंदइ मुणि अभिणंदइ धन्न पुन्न जगि तुम्हि पर अरु मज्झ विसारी बहु-गुण धारि 1°कुक्खि सलक्खण पुत्त1 धर ॥१२ 1. P पुच्छिसुमिच्छइ 2. P देवए 3. L धम्मु करेसहिं 4. L धम्मशील 5. P जं 6. L अवर वि सु० 7. P रुवाकारि अखंड 8. P उररु० 9. L तुम्ह 10. L कुक्षि सलक्षण 11. P पुत्त Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जं मोक्ख - सोक्ख साहण-समत्थु हरि-भूवइ भुंजइ भारहद्धू हउ जगि कयत्थ एक्क जि निरुत्त निय - गिह पहुत्त झूरत होइ करयल - निहित्त निम्मल कवोल 2. गयसुउमाल-संधि [ ६ ] छहि सज्जिउ संजमु सुप्पसत्थु जस-तोसिय-गण-गंधव्व- सिद्धु ज सत्तर्हि इय पुत्तेहि जुत जं पालिउ न हु निय- बाउ कोइ अइ-तरल-सरल-नीसास- लोल हरि दिठ देवि सोयधयार किं कुणसि माइ एत्तिउ असुक्खु कु वि सिद्ध मज्झि न मणोरहाण ८ तिहुअणि वि इट्टु किं तुह कहेहि निय " जणणिहि फेडउं दुक्खु जेम्व 'दुलदुलदुलंत - नयणंसु- धार तिणिपुच्छिय पणमिवि चित्त दुक्खु तुह लंघिय केणइ किंतु आण मह देव अंब आसु देहि आमि अब अविलबमेव अह भुवण - महासइ जं पुण नो पालिउ धत्ता देवइ भाइ एक्कु वि लालिउ [७] अवरे वि पढम सुलसाए सच्छ भुक्खियहं जेवं वर-खीरि-थाल अरु साव सलक्खण सोक्खकारि निय - अंकि बालु पालिउ पिरंतु निय बाल जि पेक्खहिं सुपसन्न किय' कोइल जिव निय डिंभ दूरि जह पालउ बालु सलोल - वाणि एगति निसन्नउ दाणवारि अट्टम - तवेण उवविट्टु विट्टु तु पालिउ ताव जसोय वच्छ अह हरिय तुम्हि सत्त वि सुबाल अइ धन्न पुन्न ता चेव नारि सयमेव जाहि पर पज्झरंतु हरि हरिणि गावि वानरि वि धन्न हउं दइवि सुदूमिय दुक्ख भूरि ता तह करेसु सारंगपाणि ओमिति भणेविणु बंभयारि पत्थरिवि दब्भ-सत्थरउ सुदु मणि धरिवि पुव्व-संगइय' देउ 10 आकंपिय आवइ भाइ एउ २३ ४ अवरु दुक्ख लेसो विन हु स- सिसु खुडुक्कर तं जि महु ।।११ ६ १० २ १० 1. L जइ 2. P दुलहुलदुलंत 3 P तिण 4. P एत्तिअसुक्खु 5. P सिट्टु मणि 6. P जणणि फे० 7. L जिय 8. L सलोग-वाणि 9 P संगइउ 10 P आकंपइ ६ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय घत्ता कहि केण निमित्तिण कन्ह पयत्तिण । अह कन्हि वि वासिउ' कज्जु पयासिउ पई हउ सुमरिउ रत्ति-दिणु देवइ देवउ पुत्त-रिणु ॥११ [८] भणइ देउ हरि होसइ बालउ देवइ-देविहिं सव्व-गुणालउ पुणु जोव्वण-भरि नेमि-जिणेसहं पासि दिक्ख लेसइ सिय-लेसहं इय भणेवि सुरु गउ सुरवासह हरि वि पत्तु निय-रज्ज-विलासह अवसरि सुविणउ देवइ देक्खइ मुहि मयगलु पविसंतउ लक्खइ समइ बालु सुकुमाल सुलक्खणु देवइ-देविहिं जाउ वियक्खणु बद्धावणउं काराविउ केसवि निय-अणुजाय-भाय-जम्मूसवि घर-दुवार-सोहहिं 'सुविसालहिं उब्भिय-तोरण-वंदुरवालहिं वर-नवरंग-रत्त'-पट्टसुय विसहि सुवासिणि अक्खवत्त-जुय ठावि ठावि सुय-माइय" गिज्जहिं चट्टहिं' चोट्टहिं चोप्पड दिज्जहिं पाउल मंगल राउलि वच्चहिं फिरि फिरि वार-विलासिणि नच्चहिं १० घत्ता घण-तूराडंबरि अइसय-सुंदरि वित्तउ वद्धावणय-रसु अह सुमिणायत्तउ नामु निरुत्तउ दिन्नउ गयसुकुमालु तसु" ॥११ [९] सुरगिरि-सिरग्गि जिव कप्परुक्षु तिव वड्ढइ बालु विसाल-सुक्खु खेलावइ देवइ खेल्लणेहिं बोल्लावइ लल्लुर-वयणुलेहिं परिसीलिय-अविकल-कल-कलाउ संपत्त° पुन्न-तारुन्न-भाउ परिणेइ कुमरु अइसय-सुरूय मा-उवरोहि दुमयराय-धूय अणुरूवु पभावइ तासु नामु निय-हत्थि भल्लि जा करइ कामु तह सोम-सम्म दिय-अंग-जाय सोमाभिहाण विहियाणुराय खत्तिय-कलत्त-संभव सुवन्न परिणीय तेण अवरा वि कन्न अह तम्मि चेव ‘समयम्मि सामि विहरंतु पत्तु पुर-नगर-गामि 1. L भासिउ 2. P सुविणं 3. L सलक्खणु 4. P सुविलासहिं 5. P घट्टसुय 6. L माइए 7. L वह चोहिहिं 8. L तहिं 9. Lखेलावइ 10. L संपुन्न Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गयसुउमाल-संधि ठिउ रिट्ठनेमि सेविउ सुरेसि बारवइ-नयरि रेवय-पएसि सकलतु पत्तु वंदणहं रेसि सुकुमाल-कुमरु निस्सम-सुहेसि ___पत्ता देसण निमुणेविणु चित्ति धरेविणु संसारहि 'सुविरत्त-मणु घरवासु विसज्जइ दिक्ख पवज्जइ जिणहं पासि परिचत्त-रणु ॥११ पव्वज्ज पवज्जहिं दो वि भज्ज सह सोम-पभावइ भुय'-अवज्ज सुकुमाल-साहु अइ-चंग-अंगु जाणियइ जाउ किर मुणि अणंगु विन्नवइ नमेविणु नेमि-नाहु जोडिय-करग्गु सुकुमाल-साहु जइ उवदिसहु सहि उवसग्गु निसि करउं मसाणि तं काउसग्गु ४ अणुजाणिउ गय-मुणि गउ मसाणि उस्सग्गु करिवि ठिउ मोण-झाणि न चलेइ सुरेहिं वि सुद्धभाउ सुर-सेलु जेंव निवकंप-काउ अह कह वि *दुजाइ सु सोम-सम्मु तहिं ठावि पहुत्तउ कूर-कम्मु अवलोइवि गयसुकुमाल-साहु चितेइ तिव्व-कोवग्गिदाहु परिणिवि अणेण मह धूय धुत्ति पासंडु लियाविय रम्म-मुत्ति तसु तणी वट्ट हा हा हयासि लहु लइय विडंबिय सुगुणरासि १० पत्ता ता एहु स लीहइ अवसरि ईहइ वइरिङ साहउं अप्पणउ इय सीसे चियानलु जालइ अग्गलु कूर-कम्मु सो निग्घिणउ ॥११ [११] जिंव जिव सिरु दुज्जाइ सु जालइ तिव तिव सुमुणि खमा-रसु ढालइ जिंव जिंव सिरु दहेइ वइसानरु तिव तिव होइ कम्मु छारुक्करु मणि मुणिवरु वर-भावण भावइ खणि खणि सुक्क-झाणु संभावइ एहु देहु जइ उज्झइ डज्झउ मह जिउ कम्म-कलंकिहि सुज्झउ ४ दढ-तिल-जंतुप्पाइय-पीलण खंदग-सीस सहाविय वेयण चरण-चवेड देवि विद्दारिउ वग्घि सु साहु सुकोसलु मारिउ । 1. L सुचरित्तु 2. L चुय 3. L देव दिसहु 4. L हुजाइ 5. L सुहगुरासि 6. L सहाइय Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य समुच्चय महुर-नरिंदि दंड-अणगारिहिं सिरु छिन्नलं तरवारि-पहारिहिं तह वि ति अप्पमत्त निय-सत्तहिं कह वि न चित्ति चुक्क सतत्तहिं जइ वि तिव्व तणि वेयण ढुक्कइ तह' वि मुणिंदु न झाणह चुक्कइ जं किर एहु मह कारणि बंभणु अहह होइ दुग्गइ-दुक्खिंधणु घत्ता इय भावण-जुत्तह तसु गुणवंतह मुणिहिं देह-चाएण सहुं केवल संजायउ . मोक्खु वि आयउ सुर करंति निव्वाण-महु ॥११ [१२] अह उग्गउ पुव्व-गिरिदि भाणु गय-मुणिहि जेब तं' दिव्व-नाणु हरि हरिसिउ देवइ-देवि-जुत्तु संचलिउ भाय-वंदण-निमित्तु अंतरपहि पेक्खइ फट्ट-चीरु अइ-चिरतर-जर-जज्जर-सरीरु सिरि करिवि इट्ट दूरह वहंतु निय-ताय-हेउ देउलु करंतु सयमेव देवि साहेज्जु तासु निप्पाइउ हरि तं सुहकलासु जाइवि नमेवि सिरि-नेमिनाहु पुच्छइ कहिं अच्छइ नवउ साहु पभणइ जिणिंदु गोविंद तेण परमप्पउ पाविउ खम-गुणेण वउ लेवि देवि निसि काउसग्गु स सहिंसु अग्गि-उग्गोवसग्गु जह इह उविति तइं रायमग्गि साहिज्जु दियह दिन्नउ निसगि तह तासु सीसि जालंति जलणु दिन्नउ 'दुजम्मि तं सिद्धिकरणु पत्ता पुच्छिउ दामोदर बहु-दुह-निब्भरि किं करि मई सो जाणिवउं जंपइ जायव जिणु पई पिक्खेविण जासु सीसु फुड फुट्टिवउं ॥११ [१३] परमेसरु पणमेवि जणद्दणु पिउवणि पत्तउ कय-अक्कंदणु गयसुकुमाल-काउ गय-जीविउ पेक्खइ पुहविहिं पडिउ पलीविउ व्हाण-विलेवण-पूय पयावइ तसु सयमेव ससोगु करावइ 1. P तह वि एउ मज्झु. मणि खुडुक्कइ । 2. P तं जेव 3. P नेमनाहु 4. P इय 5. L सोहिज्ज 6. L निसग्गु 7. L. डजम्मि 8. L किव किर सइ 9. L तं जिणु Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गयसुउमाल-संधि अगर-गंधसारिहिं सक्कारइ जणणि-मुक्क-पोक्कार निवारइ सोगावेगु माइ मा किज्जउ पर परमत्थु महत्थु मुणिज्जउ धन्नु पुन्नु वन्नियइ सया मुणि अमरिहिं गयसुकुमालु महा-मुणि जसु निमित्त तवु तिव्वु तविज्जइ नीरसु नीरु निरन्नह पिज्जइ पुव्व-कोडि-संजमि पाविज्जइ जं सिव-सुहु सं पत्तु महा-जइ इय संबोहिवि माइ चडावइ रहवरि हरि नयरिहि जा आवइ ताव तासु तं पिविखवि विप्पहि सिरु फुट्टउं सयखंड दुरप्पहि घत्ता जायव-चूडामणि जाणिउ सो मणि विप्पु दड्ढ गय-साहु सिरु तउ काल-बलदिहिं डिडिम-सदिहिं कड्ढाविउ नयरीहिं निरु ॥११ [१४] उत्तम अनइ निसम्गि न ढुक्कहिं मज्झिम अन्नि निवारिय थक्कहिं अहमह अनउ निरंभइ राजलु अन्नहं होइ लोगु अइ-आउलु गयसुकुमाल-महामुणि-मारणि उत्तमंगि चिय अग्गिहि जालणि अस्थि सु कोइ नेव जायव-जणि जो न जाउ अइ-दुक्खिउ तक्खणि तिणि वेरन्गि लग्गि अइ-अग्गलि विणु वसुदेवि एक्कि जस-उज्जलि नव दसार पव्वज्ज पवज्जहिं परिवारिय पाएण स-भज्जहिं सामि-माइ सिवदेवि महासइ सव्व-विरइ-संजमु उरलासइ सत्त पुत्त अवरि वि वसुदेवहिं तहिं अवसरि वर-संजमु सेवहिं जउकुमार दुव्वार वि दिक्खिय जिण-सगासि जइ-सिक्ख सुलक्खिय कन्हि स-कन्न सव्वि दिक्खाविय न हु कय-नियमि का वि' परिणाविय १० घत्ता इय गयसुकुमालिहि चरिउ अबालहि अइ-साहस-निव्वाह-वरु जो पढइ भत्ति-भरि गुणइ महुर-सरि जाइ दूरि तसु दुरिय-भरु ॥११ ___1. P म 2. L निरुत्तह 3. P द? 4. L बलिद्दिहिं 5. L संयम 6. L मां आ चरण नथी. 7. L काउ अंतः P. L. || इति गजसुकुमाल संधि : ॥ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ कर्ता : रत्नप्रभरि सालिगामु नामेण पसिद्धउ धन्ना नामि का वि विहवंगण तसु अहेसि संगमु इगु अंगउ माइ कयाइ तेणं रोए विणु तं पेक्खिवि सा रोयण लग्गी मिलिय सइज्झी पुच्छहिं कारणु बहिणि न जाणइ बेट्टउ काई अप्पिय तहिं ताई तो पायसु परिवेसिव सा थालि विसालइ तसु घर-बारि तवस्सि तिगुत्तउ ४. सालिभद-संधि तउचित संगमु जउ साहु महा-तउ उट्ठइ थालु विसालु सु लेविणु खीर देवि सो चित तित्तउ' कटरि करि अवसरु संजायउ बपुरि बपुर मुणि- सीह-पसाऊ माइ पुण वि परिवीसह पायसु स्यणि अजीरमाणि जेमणि तिणि पत्त- दाणि तिणि आउ निबद्धउ काम-पम- अग्लु रचना- समय : ई. स. ११८२ ] [१] आसि गामु धण-धन्न - समिद्धउ तहिं कम्मयरी आसि अकिंचन लोयहं वच्छरु य चारंतउ मग्गिय खीरि करग्गि धरेविणु प्रिय सुमरेविणु नीधाण चंगी कहियई तीए करिति निवारणु मह कहि तंदुल दुद्ध-घयाई रद्धउ सिद्धउ तीए महारसु पायसु पुत्त पत्र परालइ मासखमण-पारणइ पहुत्तउ धत्ता गुण-गण-संगमु अवसरि आगउ [ २ ] मुणि पडिगाहइ गुण चिंतेविणु नं सव्वंगु " सुहारसि सित्तउ भरिउ थालु खीरिहि मुणि आयउ मह दितह खंडियउ न भाऊ जिमइ जाव सो धाइ महायसु वासिय- वमणि मरेइ तहिं दिणि नर-भवि उब्भड भोग-समिद्धउ जयइ सुपत्त- दाणु जय-मंगलु 1. L तंतउ 2 P सुहरसि 3. L जाइ सो धाइ 4 P जइइ ४ ६ ८ १० कटरि पुन्न परिवाडि महु विहराव वर-खीरि सहुं ॥ ११ २ ४ ६ ८ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अह रायगहि आसि पसिद्धउ दाण- सील-सोहम्ग- समग्गल इय सा गुण-सारी जं होइ न चंगउ * पत्तइ तारुन्नइ सोहा-समग्गल 16 सा सालिखेत्तु सुमिइ कयाइ सुमिणत्थु समत्थइ सत्थवाहु ते दिवस मास तो जाय तासु डोहलउ सालिखे त्तोव भोगि अह जाउ बालु वर-लग्गि लग्गि गोभद्दि भद्दु पारछु भवणि गहियक्खवत्त अइहव उविंति अइ-तारतारु वज्जति तूर पत्थावि पठिउ नामु भद्दु पइवासरु चड्ढइ पोढ-सुक्खु घत्ता पियह पियारी एक्कु वि अगउ सालिभद्द-संधि सत्थवाहु गोभहु समिद्धउ भद्दा भज्ज तासु जस-उज्जल समविहव- इब्भ-बत्तीस - कन्न सह भुंजइ ताहिं सु भूरि भोग आराहिवि रम्मु जिगिंद-धम्भु गोभद्दु विमाणिउ देउ जाउ पडिबंध - बद्धु आवेइ गेहि सुर-निम्मिय नव नव खज्ज -पेज्ज 1. P समग्गलु 2. P भज्जु ० खित्तेव • 7. L आरोगिसोगि 8. नयण मणुन्नइ सोहइ सो खल A [ ३ ] 4 पिक्खेवि दुक्ख-पर-पारि जाइ तुह ' होसइ पुत्तु पलब- बाहु गउ संगम गब्भि गुणेवक - वासु सा माणइ अंगि अरोगसोगि जह सहस- किरणु उदयग्ग-मग्गि जम्मूसवु पुत्तह चित्ति पवणि... भड भट्ट चट्ट जय जय भणति दिज्जति चीर कप्पूर पूर सुमिणानुसार तसु सालिभहु जिव नदण - काणणि कप्परुक्खु घत्ता पुणु दुक्खिय अच्चंत मणि पुज्जिज्जति वि देव-गणि ।। ११ [ ४ ] परिणाविउ इब्भि सुवन्न वन्न सुचमक्किय जेहिं समग्ग लोग कइया वि अलकिउ कालधम्मु निय - नाणि नियइ निय-अंगजाउ निय - सुयह सन्वु पूरइ सिहि अमिओवम अप्पइ भक्ख भोज २९ 3. P. उज्जलु 4 L तुहु 5. L ते 6. L P तार तरुन्नइ 9 L अलंकिय १० मयण-रूव-रेहा-निषसु सुरकुमारु महि-गउ अबसु ॥११ ६ १० ४ ६ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय पइवासरु कप्पड नेत्तवट्ट पडिपट्ट हीरपट्ट उय-पट्ट मणि-कणय-कडय-कुंडल-कीरीड निसि ठवइ सालि खट्टहिं सनीड ८ सुरभोग सु मुंजइ सह-पियाहिं सुर-लोइ जेव सुरु अच्छराहिं महमहइ अगर-कप्पूर-वासु रवि-कर 'वि न लग्गहिं अगि तासु १० कइया वि रयण-कंबल सुतार तहिं आणिय वणिजारइहिं सार बहु-लक्ख-मोल्ल सुमहग्घ भणिउ निव-सेणिगि ताहं न को वि किणिउ १२ घत्ता राउजु मिल्लेविणु भद्दा-घरि आविय कंबल लेविणु ते मणि भाविय ते विलक्ख निग्गय वणिय भणिय-भोलिल सव्वइ किणिय ॥१३ चेल्लणाए निवो तो इमं जंपिओ किं न एगो वि मे कंबलो अप्पिओ एग-जोगे पि मोल्लं न ते पुज्जए कज्ज-सज्ज न जं तेण किं किज्जए २ सेणिएण पुणो सायरं वाणिया एह मे देह एगो ति ते भाणिया भणहिं निव नत्थि एगो वि सव्वे गया सत्थवाहीए मैदाए अंगीकया तो नरिंदेण भद्दा वि सदाविया आह नरनाह सव्वे वि खंडीकया सालिभद्दस्स तन्मारियाणं तहा' पाय-पुंछणकए हुति निच्चं जहा सेणिओ तं सुणेऊण सोहण-जसो चिंतए कय-चमक्केण चित्तेण सो। केरिसो सालिभद्दो भवे सो वणी कामदेवोवमो एरिसो जो धणी ८ पेक्खियव्वो सुही सव्वहा सो मए महि-गओ सुर-कुमारो व्व जो सोहए तो भणावेइ भद्द मही-वासवो सालिभद्दो इहोवेउ नयणूसवो घत्ता तो भद्दा अक्खिउ . सामिउ परि भावउ . अइसव-सुक्खिउ मह घरि आवउ सालिभदु आवेइ किंव जोहारइ निरुपाय जिंव ॥११ पेसिए' तीए पुरिसम्मि सम्माणिए राइणा एय-अट्ठम्मि अणुजाणिए सत्थवाहीए सव्वत्थ बद्धा तया चीण-चीरप्पवंचेहिं चंदोदया 1. P वि लग्गहिं 2. P निवु 3. P जंपिउ 4. P एगु 5. P कंबलु अप्पिउ 6. P एगु 7. P तह 8. P ता 9. L पेसिओ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सालिभद्द संघि हार हीरंक-माणिक्क-चक्कंकिआ तेसिमंतेसु लंबूसगा संचिया धवलिया भवण-भित्ती सुचित्तकिया दिन्न सुपसत्थ कत्थूरिया-हत्थया ४ चग-नवरंग-रंगावली सज्जिया तदुवरिं रइय रयणावली-सत्थिया मल्लिया-मालई-माल उम्मालिया रंभ-खभावली उब्भडा उब्भिया पइ-दुवारं पि निप्पट्ट-पट्टकिया सार-साहार-कंदल-दलालंकिया राउलाओ नियं जाव गेह तओ . रायमग्गो समागो वि चंगो कओ ८ नेत्तवहिं पट्टउय-पट्टेहिं सो छाइओ छडिय-घुसिणंबुणा सव्वसो तो महीनाहु सव्वेहि सह चल्लिओ चेल्लणाईहिं हरिसेण संपेल्लिओ १० पत्ता अह हस्थिहिं चरियउ जण-संघडियउ सेणिउ अंतेउर-सचिवु पेरणिय-निरंतर पाउल-परिगरु सालिभद्द-घरि पत्तु निवु ।।११ सालिभद्द-जणणीए जणुत्तमु - सेणियराउ तिविक्कम-विक्कमु सरसु सिणिद्ध सुसिद्ध सलोणउ भुंजाविउ किर किंपि न खूणउ २ तयणंतर तंबोल अखंडिहिं । तीए दिन्नु नव-नागर-खंडिहिं मरगय-मोत्तिय-माणिक-हीरिहिं ढोइउ ढोयणीउ वर-चीरिहिं अह" पभणेइ नरिंदु न दीसइ सालिभद्दु सद्देसु महासइ अच्छउ अहब सोक्खि सई उट्ठहुँ कहिं कहिं अच्छइ' जाइवि भेट्टहु ६ तो सा पासि पहुत्ती पुत्तहि चडिय गिहोवरि भूमिहि सत्तहि भणइ गिहागउ सेणिउ अच्छा एहि वच्छ तलभूमिहिं निच्छइ ८ भणइ सालि सेणिउ जं' कियाणउं माइ मोल्लु तसु किंपि न जाणउं तुहु जि लेसि' सुमहग्घु महग्घउ करउं किमाविउ हेट्टइं सिघउं १० भणइ भद्द सेणिउ न कियाणउं किंतु तुज्झ पहु मगहा-राणउ ता उत्तरिवि वच्छ जोहारहि टलइ न सज्जणु जण-ववहारहि १२ घत्ता सो एउ निसामिउ अम्ह वि सामिउ अवरु कोइ इय दुम्मणउ घर-तलि आवेविणु वरु ढोएविणु ढोयणीउ पाइहिं पणउ ॥१३ 1. L सस्थिया 2. P दलालीकया 3. L सेविउ 4. P सिणिटूटु सुणिटूट 5. L कूणउ 6. L आ 7. L अच्छहिं 8. P ज 9. L लेसु 10. L जोहारिहि 11. L छलइ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय [८} स्यणाभरण भूरि वियरेविणु महुरालावि भावि बोल्लावइ मलिय माल मालइहि मिलायइ चलवलंतु सो पिक्खिवि ताव हि अह धारागिरि-मंदिरि पत्तहिं 'मुद्दा-रयणु जलंतरि पडियउ भद्दा-भणिय-चेडि संचारइ बहु-रयणाभरणंतरि' तं ठिउ कारणु चत्ताभरणहं पुच्छइ नितु वहु नव-नव भूसण अड्डहिं सेणिगु निय-उच्छंगि करेविणु पुणु तणु-फासु तासु दुक्खावइ २ जिव तिव तणु तसु तक्खणि जायइ. भणइ स पुत्तु जाउ निय-ठावहि ४ मज्जण-केलि-विलासु करतहिं जोयंतह वि न तसु करि चडियउ ६ वावि-नीरु ठाणंतरि धारइ अंगारु व नरवरि ओलक्खिउ नरवइ ताहं भद्द आइक्खउ पहिरिय पुण इह वाविहि छड्डहिं १० घत्ता तो चित्ति चमक्किउ निवु पुवक्किउं - चिंतइ भद्दा-सुय-तणउं भद्दा आपुच्छइ मंदिरि गच्छइ । पालइ रज्जु पवित्त-नउ ।।११ [९] अह सालिभदु चिंतेइ तत्तु हा हा हयासु हउं अइ-पमत्तु निय-तरुण-रमणि-रमणेक्क-लुद्ध निय-जीविउ निप्फलु नेमि मुद्धु २ किउ सुकिउ कि पि मई पुव्व-जम्मि तिणि तियस-भोग उवलद्ध धम्मि पुणु खूणु एउ एत्तिउ मुणामि ज मह वि अन्नु सपन्नु सामि ४ इह पुत्व-भवज्जिय-पुन्न-पाव पवियंभहिं लंभिय" भूरि भाव ता धम्मु करेवळ मई समग्गु अपवग्गहि, सग्गहिं सरल-मगु अह धम्मघोस-गुरु विहरमाणु तहिं पत्तु "अमिय-निज्झर-समाणु सेणिउ असेस-सेणा-सणाहु जाइवि नमेइ तो मुणिहि नाहु अह सालिभद्दु. संपत्तु तत्थु मुणिनाह-वयणु निसुणइ महत्थु नव-नव-भवंत-संवेग-वेगु पक्खालइ माणस मलु अणेगु १० 1. भद्दा 2 L ठियउ 3. L तरुणि 4. L संपत्तु 5. L लब्भिय 6. L अचिंतिउज्झर 7. P मुणिह Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सालिभद्द-संघि गुरु कहइ सालि 'पुच्छउ स-भाउ जिण-संजमि होइ' न पेस-भाउ घत्ता वेरग्ग-निरग्गल आगय मंगलु भावण भाविय सुद्धमइ पव्वज्ज-समज्जणि कय-निच्छउ मणि माइ घरागउ विन्नवइ ॥१२ [१०] मई माइ निसामिउ समण-धम्मु सिरि-सूरि-पासि अच्चंत-रम्मु तो भगुर- भोग-विरत्त-चित्त मई मेल्हि चरउ निच्चल चरित्त २ अह भणइ माइ मुच्छाए हिं इय असणि-तुल्ल मा उल्लवेहि मण-नयण-जीव-जीविय-समाण मह तुह विणु झत्ति पलाहि पाण पर-पेम्म-परावस पेक्खि बहुय "टलवलिवि मरेसहिं सव्वि बहुय तुहं सरस-कमल-कोमल-सरीरु तउ करिवि न सक्किसि नणु अधीरु ६ वय-निच्छउ पिच्छिवि तासु माइ अइ नीससेवि एरिसु भणाइ कम-कमिण मेल्हि तूलीउ ताव खर-फरुस तणू-लय होइ जाव निय नियवि माइ-मोहंधयार । झरहर-झरंत बहु बाह-धार । पडिवज्जइ जं जणणीए वुतु सो साव-सलक्खणु एक्कु पुत्तु तहिं समइ सामि पुन्नेहिं तासु सिरि-वीरु पत्तु केवल"-विलासु घत्ता अह सालि-सहोयरि अइ-तुच्छोयरि सत्थवाह-धन्नय -घरणि अब्भंगु करती अरु रोयंती आपुच्छिय तिणि तह जि खणि ॥१२ [११] केण अवमाणिया रुयसि पाणप्पिए नावमाणं कुणइ को वि मे तइं पिए सालिभद्दो उ दिक्खाकए सज्जए जेणमेगेग-तूलिं दिणे वज्जए २ ताव धन्नेण धन्नेण सा वुच्चए हेल्लि'' काऊरिसो कायरो सो जए । एक्क-हेलाइ नेहं न जो कट्टए तस्स को नाम नाम पि उग्घट्टए ४ भारिया भासए जइ सि सूरो खरो ता न किं होसि अज्जेव तं जइवरो भणइ सो एत्तियं चिय पडिक्खंतओ पिक्खियन्वोऽहुणा वयमहं लिंतओ ६ 1. P पुच्छउँ 2. P होह 3. L मेल्ह 4. L तलवलिवि 5. L वउ 6. L मेल्ह 7. P केवलि 8. L धन्ना 9. L तं 10. L हेलि Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य समुच्चय आह' सा दस-गुणं पुण वि रोयतिया नाइ वज्जाहया विरह-सतत्तिया एरिसो सामि हासो मए हा कओ छ तए लेवि सो चेव सच्चीकओ ८ अहह मा नाह खलु खिवसु खार खए दूसहो दोहि विरहो अहो मह जए एस पाणेस जइ नाम तुह निच्छओ पव्वइस्स तओ हं पि किं पच्छओ १० जच्च-अच्चाहिं चेहरे अचए कुणइ सारं च *साहारणे संचए नर-सहस-वाहि-सीयाए आरोहए दितु दीणाइ-दाणाणि सो सोहए १२ समवसरणम्मि वीरस्स पत्तो तओ दिक्खिओ देवदेवेण सकलत्तओ घत्ता इय सामिहिं दिक्खिउ तियसह सक्खिउ सालिभद्दि सो जाणियउ तो अइ चिंताविउ भणइ हियाविउ ह तिणि अग्गल होडियउ ।।१५ [१२] सालिभद्दो वि संवाहमव्वाहयं । कुणइ जिणबिंब-सघाइ-पूयाइयं . नव-नहुल्लिहण-हाणाइणा सोभिओ सुरहि-हरिचदण -द्दव-समालभिओ २ कडय-कुडल-किरिडाइ-सिंगारिओ सेय-निप्पट्ट पहुँसुयावारिओ रयण-कलहोय-सीया-समासीणओ असम-सिव-सोक्ख-लक्खम्मि सलीणओ ४ तार-तूरारवाडंबरेणं तओ सामिणो समवसरणम्मि सपत्तओ तेण निय-पउम-हत्थेण जा दिक्खिओ अमय-सित्तो'व्व ता जाउ सो सुक्खिओ ६ सालिभद्दो य धन्नो य दोवि हु मुणी पढिय-एक्कारसंगा असंगा गुणी' भुवणदीवेण देवेण सद्धिं सया पुहवि विहरंति सह चेव सच्चे स्या ८ रस-परिच्चाय-मासोववासे ठिया दो-ति-चउ-पंच-मासोववासप्पिया पसम-सज्झाय-सज्झाण-सद्धाविही कट्ठऽणुट्ठाण-निट्ठाह निट्ठानिही १० सुसिय-रस-रुहिर-वस-मंस-मज्जामया जाय ते सुक्क-कीकस-सिरा-चम्मया पत्ता अह वीर-जिणेसरि सहुँ परमेसरि विहरमाण आणंदभरि पत्ता परिवाडिहिं कम्मह धाडिहिं तहिं जि रायगिह-11नगर-वरि ॥१२ 1. L अहंसा 2. L खलु 3. P तुह नाम जइ 4. L साहणनासंचए 5. L भवणह. 6. Lदठ व 7. L तित्तो 8. L सुसिक्खिओ 9. P मुणी 10. P परिवारिहि 11. P वर-नगरि Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सालिभद्द संधि मासखवण-पारणइ पहुत्ता ताव सालि जपिउ परमेसरि गोचरिय घरि घरि विहरता सा पुण सुय-दसण-उत्कंठिय तुरिय तुरिय ते सव्वि पहुच्चहिं वलिय जाव पहु-पासि ति आवहिं पसरिय-पीइ-राय-रोमचिय भरिय एग-थाली उप्पाडइ जइवर सव्व-सुद्धि परिभावहिं जाइ सालि तो पुच्छइ सामिउ पहु पभणेइ जीए दहि दिन्नउ [१३] जाव जाहिं विहरणह तिगुत्ता माउ-हत्थि तुहु विहरिसि सुहकरि २ दो वि ति भद्द-घरंगणि पत्ता बहु-परिवारिय वदण चल्लिय न ति अंगणि उब्मा ओलक्खहिं पहि महियारी दिटठा तावहिं पुणु पुणु पणमिय' वाह-पवंचिय झरिय-उरोरुह दहि विहरावइ ८ हिउ गुण-सहिउ दहिउ पडिगाहहि हउ न अज्जु माइहिं विहराविउ १० गय-भव-माइ तुज्झ सा निच्छउ - घत्ता तो तसु ईहंतह मिणु पणमंतह जाइ जाईसरण-मइ अह सा कम्मारी निय-महतारी वच्छवाल अप्पउं मुणइ ।।१२ [१४] सालिभद्दि जा तक्खणि लक्खिउ निय-भवु पुव्वु तिक्ख-दुक्खंकि उ अवचिय-मेय-मस-मज्जा लहु जाणिउ-निय-सरीरु अइ-नीसहु ता दहि पारिवि माइ जु दिन्नउ । अणसणु सु कुणइ अरु मुणि धन्नउ वीर-जिणिदि बेवि अणुमन्निय तक्खणि पिउणि पत्त गुगन्निय पाओवगम-समाहिं थिरावहिं पर परमत्थि तित्थु मणु ठावहिं एत्थतरि पहु-पासि पहुत्ती सत्थवाही वहुयाहिं समिती देव-देउ वंदेविणु पुच्छइ सालिभदु सामिय कर्हि अच्छइ नाहु कहेइ गेहि गउ हुँतउ तुज्झ धन्नि धन्नई सहु संतउ खणु गेहंगणि थक्कु निरुब्भउ पुणु परियाणिउ पई न हु निब्भउ पुव्व-जम्म-जणणी-विहराविउ __ पहि महियारी दहि पाराविउ १० गउ मसाणि खामेविसु नीसरि गुरु-गिरि-कंदराहिं जिंव केसरि 1. L गोरचरिय 2. L पणमइ 3. P. महतारी 4. L सालिसाहु 5. L मुणीसरि Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ अणसणु आराहइ ता सोगि सुसल्लिय इय ते खीणाउय अह तम्मि विमुक्कइ संधिकाव्य-समुच्चय तहि ठावि सुविसाल-भाउ 3 तो नमिवि रुयइ सहुं बहुय सत्थि भवणगणि पत्तु वि तुहुं न नाउ महियारी स तु कयत्थ माय कहिं हंस - तूलि - पल्लंकि सयणु कहिं कुसुम-कमल- कप्पूर-गंध कहिं तरुणि-तरंगिउ गीय-सहु सुह - पालिय- लालिय- अंगि तेव तुहु धन्नु धन्नु धन्नय सुपुन्नु' इय माइ करिवि करुण-प्पलाव पुणु मुणि ति दो वि सुर - सेल-सिंगु उवसग्ग-वग्ग-संसग्ग-मग्गि घत्ता परभवु साहइ सातहि चल्लिय [१५] भद्दाए दिट्टु तदवत्थ- काउ महु सम न अन्न अकयत्थ अस्थि २ विहराविउ नमिवि न अबल-काउ विहराविउ पहि दहि जीए जाय कहि कक्कर-कंटय-टंकि पडणु कहि कुहिय-निबिड - मडय - प्पबंध * कहिं सिव-समूह-फेक्कार-सहु इय दुक्खु सहसि तुहु वच्छ केव ८ मरणति वि मुक्कु न सालि सुन्नु घरि गय पसि गुरु- दुक्ख- दाब १० जिव सुथिर धरहिं सिय-झाण-रंगु न हु लहय ल्हसहि लेसु वि निसग्गि १२ e घत्ता जाया अब्भुय नर-भवि ढुक्क पाओवगम-समाहि-ठिउ नियइ जेंव तरुवरु पडिउ ।। १२ अंत P. L ॥ इति शालिभद्र - महर्षि -संधि : ॥ ४ 1. Lता 2. L सत्थु 3. L हंसत्तलु 4. P . पगंध 5 L गीउ भद्दु 6. L सहिसु 7. Pय पुन्नु ६ दो वि देव सव्वट्ठि वर सिज्झिस्सहिं निरु एत्थु धर ॥ १३ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ कर्ता : रत्नप्रभसूरि इह अस्थि नयरि नामिण अवंति तह ताण पुरउ सुपयट्ट नट्ट कणकण-कण किंकिणि सहि जा हसइ सव्वि पुर-पायडेहि वर-कय-झलक्किर- कुंभ-वार अणुरत्त-चित्त जा हाव-भाव घरि बार हट्टि जहि सेउ संति गउरवियहिं निय निय-मग्गि लग्ग जहि सिप्प महानइ' तिहुयण विक्खाई ५. अवंतिसुकुमाल - संधि सिरि- अज्ज - सुहत्थि सुहत्थि तित्थु अविचलिय- चारु- दस- पुव्य-धारि जीवंतसामि पडिमाए पायसंघाडउ पेसिउ पुरिहिं सामि सामंत-मंति-सत्थाह- गेहि सत्थाहि अस्थि भद्दाऽभिहाण जं अज्ज - सुहत्थिहि उवगरेइ उवगरिय गरुय घर घंघसाल तस पाण- बीयपसु-पंडगाइ धत्ता अणुदिणु पवई सच्चिय खाई रचना - समय : ई. स. ११८२ ] [ १ ] जहिं तुंग चंग चेंइय सहति चच्चर चउक्क चउहट्ट हट्ट मरु-लहरि - पहल्लिर - पल्लवेहि तह तज्जइ सज्जिय-धयवडेहि पसरत-नेत - दिप्पंत - तार कुणइ व्व नियंती बहु-पयाच सूरिहिं पहावि पहवइ न मंति परिय- पहाव दंसण समग्ग तुंग-तार- पायार-तलि लोइय- तित्थु पसत्थु कलि ॥ ९ [२] पत्तउ पवित्तु जंगमु जु तित्थु विहरंतु अणिस्सिय सुह-विहारि पंकय-पणाम-सेवा-सुहाय वर वसहि जाहि जोयहि सुठामि सो मग्गइ सूरिहिं वसहि देहि गिह दाविय तीए महप्पमाण तं लेहु तुम्हि इय बज्जरेइ ज - जुयलिहि ताहि महा-विसाल परिचत गुरु सा कहिय जाइ 1. L महासइ 2. L तलु 3. L जि 4 L सावि 5 L सुठावि ४ ४ ६ ८ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय घत्ता तउ तेण सुसारिण सहु परिवारिण अज्ज-सुहत्थि सुहत्थि-गइ भद्दा-घरि आवहि अणुजाणावहि वसहिं सुसवुड सुद्धमइ ॥१० [३] सत्थवाहि भद्दाहि तणुब्भवु तासु' आसि उल्लासि मणोभबु तरुण-रमणि-मण-मोहणु अंगिहिं सार तार-तारुन्न तरंगिहि कज्जल-कालु अराल सुकोमल तसु सोहम्म-महा-सरि-सेवल केस सीस-सरसीरुहि सुदर सोहहिं न भमरालि निरंतर सुह-मयक-मडलि गंडस्थल सहहि नाइ फालिह-दप्पण-तल सुरगिरि-सिल-विसालु वच्छत्थलु रइवइ-सारिखट्ट न निम्मलु लंकिल्लउं* उरकडिहिं विसालउ जिव दंभोलि-दडु सोवालउ पाणि-पाय-पायङ-पावहिं तसु नव-वियसत-सोण-पंकय-कसु . ८ पत्ता बत्तीसइ मज्जहिं रइसुह-सज्जहिं सो कीलइ जिव देउ दिवि सत्तम-भूमी-तलि हिमगिरि-निम्मलि 'सवि इंदिय मोक्कल करिवि ॥९ [४] सिरि-सुहत्थि मुणिनाहु कयाइ वि जामिणि-जामि पढमि परिभाविवि नलिणीगुम्म-विमाणह केरउ आगमु गुणइ गुणग्गल धीरउ सो महु-महुर वाणि निसुणतउ । किन्नरु किंकरतु तसु पत्तउ तुबुरु सो वि स-कंठहि रुटूठउ" कुकुनस-झणि निसुणतउ तुट्ठउ ४ तं अवंतिसुकुमाल सुणेविणु सत्तम-भूमिभागु मिल्लेविणु आउ छटठ-भूमिहिं आणदिउ जाउ सुणतउ सवणेगिदिउ जिव जिंव झुणि सवणेहिं पइस्सइ तिव तिव तसु हियडउ' अइ वियसइ जिंव जिंव आगमत्थु परिभावइ तिव तिव उत्तरितु तलि आवइ ८ घत्ता जायउ जाईसरु सुमरइ सुदरु नलिगीगुम्म-विमाण-सुहु नर-भोग-विरत्तउ जाउ निरुत्तउ तं जाणइ सउ गुत्ति दुहु ।।९ 1. P तीसु 2. L सारंग-तरंगिहि 3. P सरसिरुह 4 B लंकिल्लउ 5. L विमाणिहि 6. L रुद्धउ 7. P. L. 'डउं तणु विय' पिरतउ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतिसुकुमाल-संधि ' स लहु पहु-पाय-पासम्मि पत्तो तओ पणमिउं पंजली पुच्छए अग्गओ पयडमेव सरूवं परूवक्त्या नलिणिगुम्माउ तुब्भे वि कि पत्तया २ भणइ सूरी विमाणुत्तमाओ तओ मणुय-जन्मम्मि नेमम्मि अहमागओ तह वि जाईसरो सरसि त जारिस मुणउ अहयं पि -सुत्ताउ त तारिसं ४ तहिमहं गंतुमच्चतमुक्कठिओ पहु-पहेण किणा जामि जंपसु इओ गम्मए तम्मि थामम्मि सम्म महा- सत्त-सिक्खाए दिक्खाए न हु अन्नहा ६ देह दिक्ख च सिक्ख च सपइ महं सामि जह जामि काऊण तें अवितहं सत्थवाहीएऽणुन्ना मणुन्ना महं नस्थि तो वच्छ दिच्छामि त तुह कहं ८ काल खेवक्खमो नाह नाह तो पब्वइस्सामि सयमेव इय निच्छओ इय निच्छउ जाणिवि तो दिक्खा दिन्नी गुणु परियाणिवि तेण' पवन्नी होउ सयं मा गहिय-वओ जइ जायउ साहस-निलओ ॥१० वच्छ पत्तं पवित्त चरितं तए पालियव्वं चिरं कालमेयं जए सग्ग-अपवम्ग-संसम्ग-ससाहणं ___ होइ किज्जतमेवं इम सोहणं । नमिय नव-साहुणा वुत्तमुत्ताणये सामि साहेमि अज्जेव अप्पाणथं नलिणिगुम्मे विमाणम्मि भोगसुगो सपय पढिओ मुक्कमणुयाउग्ने अह रिसि गुरु-समासाउ सो निग्गओ बोरि-कथारि-कंटी-कुडंगं गो छिन्न-साहि व्व साहीण-साहस-रसो निवडिओ तत्थ वित्थरिय-सुत्थिय-जसो ६ रुहिर-गधेण पायाण पत्ता सिवा पिल्लगेहि अणेगेहि सद्धि सिवा खाइ पाएहि सा एगओ तं रिसिं अन्नओ पेलगाई पुणो तं निसिं ८ पढम-जामम्मि जा जाणु सो खद्धओ दुइय-जामम्मि जा ऊरुगाणग्गओ तइय-जामे वि जा नाहि ता भक्खिओ पुत्तु पचत्तमेत्थंतरे थिर- हिओ १० पत्ता भावण भावितउ प ड सहंतउ कुप्पइ कासु वि नो उवरि नव-पुन्निहि पुन्नउ खणि उप्पन्नउ नलिणिगुम्मि विमाण-वरि ।।११ 1. L होइ 2. L तो न 3. P जायवु 4. P पायाहिं 5. L घणो Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय विहिओवऔगु जा नियइ नाणि निसि अद्ध-खद्ध 'सूया-सियालि कत्थूरी-कुकुम-कुसुम-कमलआवेविणु नियय-सरीर-उवार जा तरल-सुतिक्ख-कडक्ख-लक्ख थिर-थोर-थणत्थल-वित्थराहिं वर-पारियाय-मंजरि-जुएहिं पंचप्पयार खभोग भोग ता निय-सरीरु पेक्खइ मसाणि कथारि-कुडगहि अतरालि २ संवलिय वारि वरिसेइ विमल पुणु तहिं जि जाइ निय ठावि पवरि ४ वियसिय-सिरीस-सुकुमार दक्ख तहिं रमइ ताहिं सह अच्छराहिं ६ हरियंदण-घुसिण-विलेवणेहिं उवभुंजइ भूरि अरोग-सोग घत्ता इय तासु सुचित्तहि नंदीसरि जंतर्हि विसयासत्तहिं महिम करतहिं नलिणीगम्मि विमाणि तहि वरिस असंख अइक्कमहिं ॥९ २ वासभवणि अह नयण-विसालिहिं जामिणि-जामि वि नाब न आवइ घर-अभिंतरि जोइउ जावहि कहहिं सव्वि सासुयहि रुयंतिय सत्थवाहि सयमेव निरिक्खइ मिलिउ सु महिल-सत्थु ता रोयइ सूरि सुहस्थिं ताव हक्कारिय रति-वित्तु वुत्तंतु सु वुत्तउ ४ जोयहिं मग्गु भज्ज सुकुमालिहिं ताव 'ताहं मणु जोयण धावइ दिटु न हियइ धसक्किय तावहिं न नियहुं नाहु माइ जोयंतिय घरि बाहिरि आरामि न पेक्खइ परियणु सयणु सुयणु सउ सोयइ सत्थवाहि रोयंत निवारिय सत्थवाहिं तो जंपिउ जुत्तउ ६ पत्ता सयमेव विरत्तउ . लिंगु लियंतउ करिवि लोउ सयमेव सिरि जइ तुब्भिहिं दिक्खउ किमजुत्तउ किउ इय गहि किज्जइ काइं किरि ।।९ 1. L भसुया 2. P ताहं गणु जो. 3. P धसक्किउ 4. L कहिहिं 5. L परियणु सुयशु सयउ नउ सोयउ। 6. B ग्रहिं Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवंतिसुकुमाल-संधि [९]] पुणु भणसु सामि सा कत्थ अस्थि वंदामि वीरु' जिव मत्त हत्थि गुरु दिन्नु "दिव्व-पुवोवओगु परिकहइ किं पि निक्कंप-जोगु तो सत्थवाहि बहु-सत्थ-सहिय नव-साहु-पाय-पूयाए चलिय जोएइ जाव ति मसाण-देस गुरु-सोग-वेग-वढिय-किलेस ता स-सुव भसुय सो अद्ध-खद्ध कथारि-कुडं मज्झि लद्ध अह रुयइ तार-पोक्कार-फार । परिवार जुत्त बहु-बाह-धार हा वच्छ वच्छ-वच्छल छइल्ल पई कियउ किमेरिसु गुणि पहिल्ल हउ जेव पडिय एरिसि अणस्थि संसारि नारि तिव अन्न नस्थि हा हियय-सच्छ सुचरित्त-सूर मह पाडियऽवट्ट कयंत कूर मई सव्वहा वि वहुयाहिं अहव किउ अविणउ कोइ न तुज्झु कहव १० पत्ता इय गुण समरेविणु चिरु रोएविणु पुज्जइ पुज्जिय-पुव्वु पुणु कालागुरु-चंदणि तित्थु जि सा वणि सक्कारावइ साहु-तणु ॥११ सत्थवाहि वहुयाहिं समन्निय सिप्प-महानइ-तीरि पवन्निय नयण-नीरु नीरंधु निरग्गलु जिव तिव तासु देइ अंजलि-जलु २ सुय-विओग-सोगग्गि-पलित्तिय स-घरि खलंत पडती पत्तिय गुरु-अक्कंद-सद्द-सम्मद्दिण भवणु भरंति व भणिय सुहत्थिण ४ धम्मसीलि सीलेसि किमग्गलु सोग-वेगु सविवेग अमंगलु मुयउ कोइ किं जीवइ सोगिण अरु तणु-पीड पवज्जइ रोगिण धम्मु रम्मु भव-वाहि-महोसहु तह 'सुमंतु सोगाइ-कुदोसहु बि-हर-दिक्खधम्मि तुह जायउ नलिणि-विमाणि देउ सो जायउ ८ घत्ता इय एज सुणंती भवहि विरत्ती ___ सत्थवाहि सुपसत्थ-मइ वहुयाहिं समन्निय घरि निव्वन्निय दिक्ख लेइ अचिरेण सइ ।।९ 1. L धीरु 2. L दिन्नु तत्थ पुब्यो० 3. L केमेरिसु गुण ५० 4 L पुत्तु 5. P तीरु 6. P पलत्तिय 7. L समत्थु Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ કર संधिकाव्य-समुच्चय [११] २ ४ वहुयाहं एग गुरु-हार आसि निय-अवसरि जायउ तासु तणउ पइवासरु वड्ढइ सो सुवाल निसुणिवि कयाइ निय-ताय-चरिउ तहिं वण-पएसि निय-ताय-मुत्ति जिण-वेसिण पाओवगमि ठाइ तसु उप्परि देउलु चंग-सिंगु नेवज्ज-पुज्ज-पेच्छण-छणाइ न स दिक्खिय थक्किय गेहवासि जिंव हीरउ रोहण-खाणि-तणउ जिव वण-निगुंजि सहयार'-सालु अइ चित्ति चमक्किउ हरिस-भरिउ सु करावइ ठावइ सुह-मुहुत्ति सहुँ चेल्लुगेहिं सिव जेव खाइ स-जणेर-नेहिं कारइ सु तुंगु तहिं सव्वु करावइ निच्चु जाइ ६ ८ घत्ता कालक्कमि जायउ महकालु कहिज्ज सो विक्खायउ अज्ज वि विज्जइ तित्थु तित्थु लोयह तणउ मुणि-सियालि-रूवग-जूयउ ॥९ 1. P .र-रसालु 2. L चेल्लिगेहिं 3. L लोय अंत: P. L. ॥ इत्यवंतिसुकुमाल-संधिः ।। Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ कर्ता : जिनप्रभसूरि निरुवम-नाण-निहाणो दुग्गइ-दार-पिहाणो जिण धम्मो सुमरवि जिण सासणु सुह-निहि सासणु भणिसु संखेविहिं तमविक्रखेविहि भो भविय सुणउ भरहद्ध - खिति मणिरह भिहाणु तहिं अस्थि राउ तसु भज्ज महासइ मयणरेह चदजसु नामि तहं सुउ पवित्तु सा चंद- सुमिण सूइउ सुगब्भु जिण-पूअण - आगम-सवण इच्छ इत्थतरि मणिरहि मयणरेह सा भणइ नरीसर तुह न जुचु तसु हूउ पाविट्ठह दुट्ठ-भाउ उज्जाण-ठीउ भज्जा समेउ हाहावु उठिउ तहिं महंतु समाइ - गुणिहिं सम्मत्तु देइ खामाविय सयल वि जीव-जाइ सो उ पंचम देव - लोइ मणरेहए एउ जाणिउ अवी- कयली-हरि ६. मयण रेहा - संधि तउ अंग- पखालणि सरखरम्भि विज्जाहरि घरिया तक्खणेण रचना - समय : ई. स. १२४१] ध्रुवक पसम- पहाणो विवेय- संनिहाणो as सुह- कम्मो ॥ सिरि-नमि - महरिस मणि धरिउ मयणरेह - महासइ - चरिउ || [ १ ] जं वित्तु सुदंसणपुरि पवित्ति जुवराउ लहुउ जुगबाहु भाउ वर - रूव-सीलि जगि लद्ध-रेह अन्नाय - अविहि-वल्ली - लवित्तु पुण धरइ पवर- पुन्निहिं पगब्भु सा पूरिय पइणा बहु-विहिच्छ भोगत्थिण पत्थिय भव- अणेह एयारि वुत्तुं पाव-पत्तु जं मारउं लहु जुगबाहु भाउ असिणा हउ निग्विणि वर - विवेउ अह मयणरेण बोहेइ कंतु सो देस-विरइ भावेण लेइ परमिट्ठ- सरतह आउ जाइ इंदह सामाणिउ बंभ- लोइ घत्ता मणु समि आणिउ पसरियकरि-हरि [२] गहिया जल-करिहिं करेण तम्मि वेयदि नीय गिहिणी मणेण २ ४ ६ १० १२ तसु ठाणह नीहरइ लहु पसवइ सुपुन्नेहिं सहु ।। १५ १४ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ मधिकाव्य-समुच्चय तउ भणियउ खयरु महासईइ मह पुत्तु उप-नु महाडबीइ सो तन्ह-छुहाए पाण-चाउ मा कुणउ तमाणह काणणाउ ४ महिलाहिव पउमरहेण नीउ निय-भवणि वधारइ सुउ भणीउ पन्नत्ति-विज्ज मह कहिउ एउ ना सुयणु म काहिसि चित्त-खेउ ६ अनु सुणि वेयड्ढे खयर-राउ मणिचूडु सुसेविय-वीयराउ निय-पुत्तु पइट्ठिउ नियय-रज्जि सो अप्पणि लग्गउ परम-कज्जि ८ सो भयवं पच्छिम-वासरम्मि पत्तउ नंदीसर-तिथि रम्मि तसु सुउ हुं मणिपह-नामधेउ ता मई पइ मन्नसु तुहु अखेउ १० तो भणइ महासइ गुणकरम्मि वंदावि देव नदीसरम्मि तउ तिणि संतोसिहिं तत्थ नीय वंदइ चेईहर सुय-विणीय १२ ता वदिय दोहि वि सुगुरुराउ गुरु-देसणि नट्ठउ दुट्ठ-भाउ तो नमइ खयरु भइणी भणित्तु त खमह महासइ मइ जु वुत्तु . १४ पत्ता अह तत्थ महास हूयह संसइ पुच्छइ निय-पुत्तह चरिउ तीसे मणु तोसइ मुणिपहु भासइ . सुणि निय-मणु निच्चलु धरिउ ॥१५ पुक्खलवइ-विजय विदेहवासि चक्कीसर अमियजसस्स पुत्तु तो दुन्नि वि चुलसी-पुव्व-लक्ख चारण-मुणि-गाहिय दुविह-सिक्ख । तो अच्चुय-इंद समाण देव तउ चविओ धायइखंड-खित्ति हरिसेण हरिहि सुय परममाण अनु सागरदत्तु ति बे वि दक्ख विज्जू-निवाय तइए दिणम्मि सत्तरस अयराउय तत्थ ठीय तहं पढमु चविउ मिहिलापुरीइ जयसेण-राय-वणमाल-पुत्तु मणितोरण-पुरु वेयड्ढि आसि पुप्फसिहो रयणसिहो य वुत्त काऊण रज्जु भव-तरण-दक्ख कय-संजम सोलस-पुत्व-लक्ख उप्पन्ना पुन्निहिं निरवलेब जिणराय-पाय-पंकय-पवित्ति इगु सागरदेव भिहाणु ताण दढ-सुव्वय जिणवर-दिन्न-दिक्ख महसुक्कि उप्पन्ना सुह-निहिम्मि सुर-सुक्खु अणोवमु अणुहवीय मल्ली-नमि-जम्मि सुहंकरीइ उप्पन्नउ पउमरहु त्ति वुत्तु १० Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयणरेहा-संधि १४ तसु देवि पुप्फमालाभिहाण सो हुउ कमेण य पवर-राउ विवरीय-सिक्ख-तुरएण हरिउ पिक्खेविणु तुह सुउ अइ-सुचंगु अंतेउरीण गुण-गण-पहाण बीओ वि चविउ तुह पुत्तु जाउ सो राउ फिरइ अङवीइ तुरिउ नेयइ निय-नयरिं हरिसियंगु घत्ता इय कय-वद्धावणु तोसिय-पुरजणु नमिय नराहिव सयल जसु निरुवम-गुण-गामू नमि किय नामू वद्धइ वद्धिय-विमल-जसु ॥१७ [४] . इत्थंतरि सम्गह वर-विमाणु तमु मज्झि देउ इंदह समाणु अवयरिउ विमल-गुण-गणह गेह ति-पयाहिणि पणमिय मयणरेह २ अह पच्छा वदइ मुणिवरिंदु तउ चित्ति चमक्किउ खेयरिंदु सदेहावणयणु तियसि किउ . निय-चरिउ कहिउ अक्खेवणीउ तउ तोसिउ भावइ खयरराउ बपु वपु रि अहो धम्मह पभाउ जीवहं ताव चिय होइ दुक्खु जावह न लद्ध जिण-धम्म-लक्खु धम्मगुरु भणिय तियसेण वुत्त किमहं करेमि आगम-निउत्त तउ एउ मयणरेहाइ वुत्तु मिहिलापुरीइ मह दंसि पुत्तु तहिं वदिय विहिणा तित्थसार अनु गुरुणी पणमिय सोवयार तद्देसण-सवणिहिं गय-सिणेह पव्वज्ज पव्वज्जइ मयणरेह कय-सुव्वय-नामा तवु तवेइ सो सुरु सकप्पि सुहु अणुहवेइ अह पिउणा नमि परिणावियाउ अट्ठोत्तरु सहसु सुबालियाउ अह रम्ना जाणि विभव असारु निय-पइ पइठाविउ नमि-कुमारू अप्पणि वउ पालिउ निरइयारु केवल-सिरि-सोहिउ सिद्ध-सारु अह नमी नराहिवु इउ पयंडु तसु हत्थि-रयणु आलाण-वंडु पाडेविणु बहु पडिकार-वरंगु गुरु-वेगि सुदसणपुरि विलग्गु १६ सुचंदजसि नराहिवि तउ नमि तसु कारणि घत्ता बहुविहि वाहिवि बहु-परिवारि णि वसि किउ निसंकि उ धरिउ जाइउ पुर रोहइ तुरिउ ॥१७ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ संधिकाव्य समुश्चय [५] तउ मयणरेह गुरुणी-मईइ निय-भाय-समप्पिय-सयल-रज्जु नमि दो वि रज्ज पालइ नएण तसु अन्नयाइ छम्मास दाहु अंतेउरीउ चंदणु घसंति इक्विक्कु धरिउ तासु वि मुयति । पुहईसर देवी अवणियाई जइ कह वि एह रोगाउ मुक्कु नरवइ इमाइ चिताइ सुत्तु कन्नाडि-कडक्खिहिं नेय खुद्ध लाडी-लडहत्तिहिं नेव भिन्नु निय-पुत्तु पइट्ठिउ नियय-रज्जि अह चित्ति चमक्किउ सक्कु एइ नमि निम्ममत्तु सयणाइएसु पई निज्जिय दुज्जय भड कसाय को तिहुयणि तुह समु समण-सीह ति-पयाहिणाहिं नमिऊण सक्कु रायरिसि बिहप्फइ जिम सुवक्कु गंगा-पवाहु जिंव सुमण इ? अप्पप्पणकतिहिं जुअ अणेय तं पहु पहाइ परिवड्ढमाणु विहरंतु पत्तु पुरि खिइपइट्ठि करकंडु-दुमुह-नग्गइ-पसिद्ध . आवस्सगाइ-गंथिहिं जु वुत्तु । पडिबोहिय दो वि महासईइ चंदजसु राउ साहइ स-कज्जु वद्धइ धणेण नायागएण निय-देहि हूउ विज्जहं अगाहु वलयज्झुणि सवणा पीडयंति निवु पुच्छइ किं न हु झणहणंति ६ इह दूहवंति बहु मेलियाई ता हं गहेसु संजमु अचुक्कु मेरुम्मि सुविण-वियणा-विउत्त चोडीणं चाडुयहिं न रुद्ध गउडी-गीयाईदिं न य निसन्नु अप्पणि पहु' लग्गउ मुक्ख-कज्जि १२ दिय-रूवि निउण पुच्छा करेइ पच्चक्ख हूउ थुणई सुरेसु पइ सामि महिय विसय-पिसाय पत्तेय-बुद्ध-पह लद्ध-लीह १६ सोहम्मि जाइ मुणिगुण-अमुक्कु पुण जगगुरु वक्कत्थ मणमुक्कु परिवंकउ जडमउ नेव दि? गोवइसंगिई पुण विगय-तेय २० हूअउ पुण अणुवम-गुण-निहाणु पत्तेयबुद्ध तहिं हूअ गोट्ठि २२ चउरो वि एग-समएण सिद्ध तह इत्थ कहिउ भव्वह निरुत्तु २४ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयणरेहा-संधि घत्ता इय वयमिय कडविहिं जिणपहऽणुसरंतह विरइउ भाविहिं गुणत-सुणतहं मयणरेह-नमिरिसि-चरिउ निहणउ भवियहं तमु तुरिउ॥२५ मज्झे महासईणं पढमा रेहा उ मयणरेहाए जीसे सील-सुवन्नं निन्नु(व्व)डियं वसण-कसबट्टे ॥२६ एसा महासईए संधी संधीव संजम-निवस्स जं नमि-निवरिसिणा सह सक्करा खीर-संजोगो ॥२७ बारह सत्ताणउए वरिसे, आसोअ-सुद्ध-छट्ठीए सिरि-संघ-पत्थणाए, एयं लिहियं सुआभिहियं ॥२८ अंत: इति मयणरेहासंधि समाप्ता ॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७. अणाहि-संधि [ कर्ता : जिनप्रभसूरि रचनासमय : ई. स. १२२५ थी १२७५ वच्चे] ध्रुवक जस्मज्जवि माहप्पा, परमप्पा पाणिणो लहुं हुंति तं तित्थं सुपसत्थ, जयइ जए वीर-जिणपहुणो ॥१ विसएहि विनाडिउ, कसाय-जगडिउ, हा अमाहु तिहुयणु भमइ जो अप्पं जाणइ, सम-सुहु माणइ, अप्पारामि सु अभिरमइ ।।२ रायगिहि नयरि सेणीउ राउ सो अन्न-दिवसि उज्जाणि पत्तु वपु रूवु वन्नु लावन्न-पुन्नु नरराय अहं बहुविह अणाहु तं अप्पणो वि नरवइ अणाहु किं मई न हु जाणइ नरवरिंदु गय-हय-रह-जोह-सपाहु रज्जु मुणि भणइ पुण वि जगु सउ अणाहु कोसंबीनयरीइ जं जि वित्तु, तहिं अत्थि पिया मह सुह-विहारु पढमे वयम्मि मह रोग रोग पिय-माइ-भाय-भइणी य सयण मह रोग-पीड इक्कु वि न लेइ । जो इक्कु वि रोग निराकरेइ न हु केणइ फेडिय पीड मज्झ सुकलत्त-पुत-परियण-सुमित्त छुह-तन्ह-पराभव-दुह-विचित्ति देविंद-विंद-वंदिय-जिणिद गुरुभत्ति-निवेसिय-वीयराउ मुणि पिक्खिवि पणमइ नमिय-गत्तु २ किं मुणि नवजुव्वणि सरसि रन्नु मुणि भोग, माणि हउ तुज्झ नाहु ४ अन्नेसि होसि किम भणइ साहु । जं एरिसु पभणइ मुणिवरिंदु संपज्जइ मण-वछीउ कज्जु असहाइउ भमडइ भवु अगाहु तं सुणि मगहाहिव एग-चित्तु सुकलत्त-पुत्त-सुहि-सयण-सारु उप्पन्ना विज्जह मुक्क जोग विलवई विविहाइ दीण-वयण पुण पासि बइठ्ठउ रुणझुगेइ मह जणउ तस्स धणु भूरि देइ १४ इय वेअण सव्वहं हुअ असज्झ न हु मंत-तंत तसु विढत्त चित्त १६ हा हा अणाह संसार-गुत्ति पय मुत्तु नाहु न हबइ नरिंद १८ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविहाहि-वाहि-विनडियह मरणु धण-सयण-रूव-जोवण-सणाहु धम्मह विणु होइ न कोइ सरणु इय मुणउं नराहिव में अणाहु - २० घत्ता एवं मई जाणिउ, मणु समि आणिउ, संग-विमुक्कु विवेअ-जुउ । पडिवज्जिउ संजमु, नो-इंदिय-दमु तउ अप्प-परह वि नाहु रहउ ॥२१ [२] अणाहया अवर वि जाण राय जह भणेइ जिणाहिव वीयराय पव्वज्ज पवज्जिय जेण वज्ज। तव-चरण-करण न हवंति सज्ज मोहंधयार-निउरंब-छूढ जड-जोगि भवाडवि-मग्ग-मृढ दुह-बंध-बद्ध तिहुअणु भमंति न हु रोग-दोसवसि वीसमंति तिहिं दंडिहिं दंडिय अप्पु जाहं । तिहिं सरिलहिं सल्लिय सुहु न ताहं ति-विराहणाहिं बोहिं हणंति तिग्गारव-गुरु भवु उवचिणंति ६ किं कुणइ नाणु तवु झाणु दाणु जे लिति अणेसणु भत्तपाणु अह कोय-कडाइय वसहिं वत्थ तह होइ तह च्चिय भव अवत्थ ८ जे आगम-सत्थ-निउत्त सत्थ तस्सऽन्नह करणि अणत्थ सत्थ जे सुत्त-बज्झ-देसण कुणंति अप्पं पि अप्पु न हु ते मुणंति १० वहु-पाव-पवंचिहिं वंचियाण किं कुणइ ताण जिणनाह-आण अइ वल्लह वरि मुंचंति पाण न कहिंचि पवज्जइं जिणह आण १२ जे विसय-कसाय-पमाय-पत्त न हु मोह-महन्नव-पार-पत्त अप्पाभिप्पायहिं संचरंति अप्पणमवि परमवि कुगई निति १४ अणाहया ताहं वि दिक्खियाण सया वि सुगुरूहिं असिक्खियाण जे माइठाणऽणुट्ठाण ठंति वीरिय-आयारि न उज्जमंति । मोह-निव-नडिय अणाह हुंति मगहाहिव ते सवि कुगई जंति एवं अणाह जिय सव्व-लोइ सिरि-जिणवरिंद-आणा-विओइ । जं जिणवरिंद-आणा पहाण सम्गापवग्ग-गइ सुह-निहाण इय मुणिय नराहिव भव-अवाय सिरि-वीयराय अणुसरसु पाय २० Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय अह विहसिउ सेणिउ नरवरिंदु तं सव्वु सच्चु जइ कहइ मुणिंदु ति-पयाहिण वंदिउ भाव-जुत्तु संतेउरु निवु निय-ठाण पत्तु २२ मुणि निरइयार-चारित्तजुत्तु विहरेइ महीयलि सारसत्तु इय भवह भावु जाणिउ निरुत्तु भो भविय कुणउ अप्पं पवित्तु २४ - घत्ता एवं संखेविहिं विहि-विक्खेविहिं मुणि-सेणिअ उल्लाव-जुउ संबंधु सुअक्खिउ जं किंचि वि लक्खिउ महनिगंथज्झयण-सुउ ॥२५ चारु-चउ-सरण-गमणो दाणाइ-सुधम्म-पत्त-पाहेओ । सीलंगरहारूढो जिणपह-पहिओ सया सुहिओ ॥२६ अंतः ।। अनाथि-संधि समत्ता ॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८. जीवाणुसट्ठि-संधि रचना-समय ई. स. १२२५ थी १२७५ बच्चे ] [कर्ता : जिनप्रभसरि ध्रुवक जस्स पभावेणऽज्जवि तव-सिरि-समलंकिया जिया हुंति । सो निच्चं पि अणग्यो संघो भट्टारगो जयइ ॥१॥ मोहारिहिं जगडिय विसयहिं विनडिय तिक्ख-दुक्ख-खंडियह चिरु संसार-विरत्तहं, पसमिय-चित्तहं सत्तहं देमिऽणुसट्ठि निरु ॥२ अणाइ-तिग्गोअ-जंतूण मज्जंगओ एगतणुऽणतजंतूहिं सहसंगओ समग्ग-उववाय-विणिवाय-ऊसासओ समग्ग-आहार-नीहार-नीसासओ २ तयणु ववहार-रासम्मि जिउ आविओ तम्मि रे जीव निच्चं पि नच्चाविओ मुत्त पत्तेय-तरु-काय कम्मि हिरिओ पुढवि अपु तेउ वाउऽणंतकाए ठिओ ४ अवि य नीराइ-सत्थेहिं संताविओ दुट्ठ-कम्मट्ठ-गंठीहिं संदाविओ जीव खुड्डाग-मरणेण हा निठ्ठिओ अहह एगंत-भवियव्वया-हिटिठो ६ सुहुम-कायाउ तउ बायरे चडिडओ तिक्ख-दुक्खेहिं लक्खेहि जिउ खंडिओ तत्थ अवसप्पिणुसप्पिणऽस्संखया चउसु काएसु उस्सग्गओ अक्खया ८ कवणु तं दुक्खु जं जीव न हु पावियं कम्म-परिणाम-भव-भाव-संभावियं बेइदि-तेइंदि-चउरिंदि-विगलिंदिए काल संखेज्जओ कायठिइ निदिए १० भाव सव्वे वि सुह-असुह मुह वियसिया सव्व जीवेहिं हाऽणतया फरिसिया नस्थि तं ठाणु लोए न जहिं हिंडिओ राग-दोसाइ-सुहडेहिं हा दंडिओ १२ नरय-तिरियम्मि मणुअम्मि किह आणिओ जणणि-जणयाइ-सयणेहिं संदाणिओ इंदियग्गाम अभिराम मन्नंतओ भीम-भव-रन्नि भमडंतु न य संतओ १४ चरिउ विवरिउ जीवस्स इह दीसए जेण सुह तन्न दुहु जेण तं गवेसए नाण-निहि निय-गिहे मुत्त बहि भमडए तत्थ जिउ जाइ दुहु जत्थ सिरि निवडए १६ जेसु ठाणेसु जिउ णंतसुहु पावए मुत्त तं ठाणु अप्पं दढं दावए जेण सम्मेण कम्मारि लहु लुटए मुत्त तं मूढ हा विसय-विसु घुटए १८ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय कह वि मणुआइ-सामग्गिय पत्तओ तह वि विसयामिसे गाढ अणुरत्तओ लक्ख-चुलसीइ जोणीइ पुण भामिओ मोहराएण रे जीव अस्सासिओ २० पुग्गलाणं परावत्तयाऽणंया हिंडिया जीव न हु कह वि उवसंतया देव-गुरु-धम्मु न कयाइ उबलद्धओ तेण एओ जीवु कम्मेहिं संरुद्धओ २२ सुक्खु पच्चक्खु दुक्खं पि मेरूवमं अहह अद्दिट्ठ पुण मन्नए तिणसमं विरस संसार-दुच्चिट्ठियं हिट्ठयं बपु रि जीवाण भव-भमणु हा निट्ठियं २४ कह वि पई पत्त सामग्गियं मग्गियं हेव रे जीव तं कुणसु सुहमग्गिय चारगागार-संसार-सुहमुज्झिउं जुत्त ते सुहय पियमप्यियं उज्झिउं २६ सयल-लच्छीइ लद्धाइ किं आगये अह सकम्मेहिं दुत्थेण किं ते गयं राग-दोसे व ते दोवि जिय मिलिहउं जत्तु संतोस-निव-पासि तुह मल्हिउं २८ जत्थ सुपसत्थ निग्गंथ-मत्थय-मणी जयइ जंबू-गणी भुवण-चिंतामणी । एवमन्ने वि सिरि-थूलभद्दाइणो एय सिरि-बयरमुणि-सामि सुयनाणिणो ३० घत्ता इय विविह-पयारिहिं विहि-अणुसारिहिं भाविहिं जिणपहमणुसरहु सुत्तेण य पवरिहि आणा-सुतरिहिं भवियण भव-सायरु तरहु ।।३१ अंत :- ॥ जीवाणुसट्ठि-सधि समत्ता ॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९. नमयासुंदरि-संधि [कर्ता: जिनप्रभसूरि रचना-समय : ई. स. १२७२] ध्रुवक अज्ज वि जस्स पहावो वियलिय-पावोय अखलिय-पयावो । तं वद्धमाण-तित्थं नंदउ भव-जलहि-बोहित्थं ।।१ पणमिवि पणइंदह वीर-जिणिदह । चरण-कमल सिव-लच्छि -कुलु । सिरि-नमया-सुंदरि गुण-जल-सुरसरि किंपि थुणिवि लिउं जम्म-फलु ॥२ [१] सिरि-वद्धमाण-पुरु अस्थि नयरु तहि संपइ नरवइ धम्म-पवरु तहिं वसइ सु-सावगु उसहसेणु अणुदिणु जसु मणि जिणनाह-बयणु २ तब्भज्ज-वीरमइ-कुक्खि जाय । दो पवर पुत्त तह इक्क धूअ सहदेव-वीरदासाभिहाण " रिसिदत्त पुत्ति गुण-गण-पहाण न हु देइ सिठि मिच्छत्तिआण रिसिदत्त इब्भ-पुत्ताइयाण अह कूववंद-नयरागएण परिणिअ कवड-वर-सावएण वणिउत्त-रुद्ददत्ताभिहेण तहि पत्त चत्त-धम्मा कमेण अम्मा-पिईहि परिवज्जिआइ हुउ पुत्तु महेसरदत्तु ताइ पुरि वद्धमाणि सहदेव-घरणि सुंदरि नमया-नइ-न्हाण-करणि उपन्नु मणो[२] हु पिअयमेण गंतूण तत्थ पूरिउ कमेण । गन्माणुभावि तहि 'रहिउ चित्तु सह-देविहिं नमयापुरु स-वित्तु ताह' कारिउ जिण-चेइउ पवित्तु मिच्छत्त-राय-जयपत्तु पत्तु . १२ अह नमयासुंदरि सुंदरीइ धूआ पसूअ गुण-सुंदरीइ लावन्न-रूव-निरुपम-कलाहिं तहि वद्धइ नमया निम्मलाहि १४ 'पिअ-माइ-पमुहु सयलु वि कुटुंबु आणाविउ तहिं पुरि निविलम्बु उच्छाहिउ रिसिदत्ताइ पुत्तु ववसाइ महेसरदत्तु पत्तु १६ अशुद्ध मूल-पाठः 1. मिच्छत्तीआण 2. उपन्नु 3. पूरीउ 4. रहीउ 5. चेईउ 6. सुंदरीअ 7. पीअ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ आवज्जिउ' गुणिहिं सु-सावयत्तु नमया परिणीअ महेसरेण रिसिदत्त तीइ कय एग-चित्त आदिउ सयलु वि नयर- लोगु ओलोअणि अह निअ + - मुहु पमत्त तंबोल - पिक्क तिणि मुत्रक जाव मुणि जंपइ ' कुणइ जि मुणिवराण इअ सुणिवि झत्ति उवरिम खणाउ सा नमिवि भणइ ' तुम्हि खम - निहाण सावस अणुग्गहु मह करेह मुणि भणइ ' भावि पिययम - विओगु मई जाणिउ नाणिण कहिउ तुज्झ इअ मुणिपहु-वयणिहिं पिअयम आसासिअ 1 2 संधिकाव्य-समुच्चय 10 पडिवज्जिउ " रंजिउ ताहं चित्तु तउ कूववंदि पहुतउ महेण जिणनाह धम्मि सासुरय-जुत्त नम्मय - गुणेहिं तह सयण - वग्गु दप्पणि पिक्खिवि वक्खित्त-चित्त अह जंतह मुणि- सिरि पडिअ ताव २२ आसायण होइ विओगु ताण ' उत्तरिवि साहु खामइ पमाउ पहणंत धुणंतह दय-पहाण अवराहु एक्कु मुणिवर ! खमेह निअ - निबड- पु० - कम्मिण अभंगु नहु सावु एहु मा वच्छि ! मुज्झ घत्ता 13 अमिअ-समाणिहिं सीलि पसंसिअ ' [ २ ] अन्नया रुहद तंगओ चल्लए पोअ - वणिजेण वच्चंतु मुकलावए केह विन हुठाइ सह चलइ नमया - सई सुणिवि सर-लक्खणं कहइ पइ- अग्गए पिंग केसो अ बत्तीस - वरिसो इमो इय सुणिवि पिअयमो 'चितए 'दुद्दमा इत्तियं कालमेसा मए जाणिआ कुल - कलंकस्स हेउ ति मारेमि वा अलि-कुवि अप्प - पूरिअ मणो जा गओ उत्तरिउ तत्थ पाणीअ-इंधण-कए 1. आवज्जीउ 2 वज्जीउ 3 8. नीअ 9. ईअ 10. अमीअ 14. पीयअमो " १८ २० २४ २६ २८ अप्पदुक्ख 11 संवेग - जुय करइ धम्मु निम्मल - चरिय ॥२९ २ जवण-दीवम्मि बहु- दव्व-अज्जण कए सयण वग्गं तहिं नम्मयं ठावए जा चलइ पवहणं कोइ ता गायई नम्मया ' गाइ जो पुरिसु सो नज्जए ४ पिहुल-वच्छत्थलो सामलो सक्कमो ' जा इमं मुणइ सा नूणमसई इमा ६ साविआ सील- विमल त्ति सम्माणिआ तिक्ख-सत्थेण जलहिम्मि घल्लेमि वा ' ८ रक्खस-दीव सहस त्ति ता आगओ नम्मया - सहिउ सो दीवु अवलोअए १० °चित्तु 4. नीअं 5. पडीअ 6. ईअ 7. पीययमत्रीओगु 11. दुःख 12. आसासीअ 13. पस सीअ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तहिं परिस्संत सरवरह पालि गया सो विछड्डण मणो भणइ 'विस्सम पिए' सुत्तयं नम्मयं मुत्तु निठुरु मणे पुट्ट परिवारि सो कहइ रोअंतओ एअ-ठाणाउ चालेह लहु पवहणं इअ सुणिवि तेहि भीएहिं संचारिअं तत्थ विकणविपणिअं" सलाभो गओ रक्खसोवद्दवं नम्मयाए दुहं जग्गए नम्म्या जाव इत्थंतरे विलवए 'नाह हा कंत तं कहिं गओ वीससिअ ' घाय-महदाव-पज्जालणं पुव्व - जम्मे मए कि कयं दुक्कयं पंच उववास काऊण अह त्रितए C चलइ जइ मेरु उग्गमइ पच्छिम वी धीरविअ चित्तमह कुणइ सा पारणं लिप्पमउ बिंबु ठावेवि गुह - अंतरे रक्खसु द्दीवु मिल्हेवि जइ गम्मए इय विचितेवि चिंधं जलहि-तीरए बब्बरे कूलि पोएण वच्चंतओ नम्मयं पिच्छिउं पुच्छए वइअरं " संबोहिवि जुतिहिं पवहणि आरोविउ नमयासुंदरि-संधि वीरदासु तहिं कूलि नरेसरि हरिण - वेसा तहिं निवसेई पेम-पउत्तिहिं सीलि पमोइउ 1. पयं 2 पीए 3. सूअर 4. 8. धीरवीअ 9. वईअरं 10 पमोईउ निद्द - हेउं परं 'पुच्छए नम्मया तरु-तले सुअइ" जा ता सणियमुट्ठए १२ झत्ति संपत्तु माया निही पवहणे 6 भक्खिआ * रक्खसेणं पिआ हा हओ १४ जा कुणइ रक्खसो तुम्ह न हु भक्खण ' पवहणं जवण-दीवम्मि तं पत्तय १६ निअ-पुरं कहइ अम्मा-पिऊणं तओ पुण व परिणाविओ भुंजए सो सुहं १८ पिच्छए नेव तहिं पिअयमं " परिसरे अ-सरणं मं विमुतण अइ- निद्दओ २० सुगुरु- आसायणा देव धण-भक्खणं अकय- अवराह जं जाइ पिउ मिल्हिउं २२ सरिवि मुणि-वयणु इय अप्पयं बोहए टलइ नहु पुग्व-कय-कम्मु पुण कहमवी १ २४ छट्ठ-दिणि फलिहिं कय-देवगुरु- सुमरणं " थुइ पूएइ मणु ठवइ झाणंतरे २६ भरह - वित्तम्मि जिण - दिक्ख गिन्हिज्जए भग्ग - पोअत्त-संसूअगं उब्भए fat furana पिउ-बंधु तहिं आगओ. कहइ रोअंत सा वित्तु जं दुत्तरं ३० २८ प्रत्ता ० वीरदासु तद् - दुह- दुहिउ बब्बरि 11 गउ नम्मय - सहिउ ॥ ३१ [ ३ पूइउ 12 नमया ठावइ मंदिर वीर - पास दासी पेसेई ५५ भक्खीआ 5. पणीअं 6. पीअयमं 7. वीससीअं 11. बब्बरि 12. पूईउ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ संधिकाव्य-समुञ्चय प्रवहण प्रति दीणार-सहस्सू निव-पसाइं सा लहइ अवस्सू दासि भणइ ‘तुम्हि सामिणि वंछइ' वीरु 'सील-निहि तहिं नहि गच्छइ ४ तेत्तिउ धणु पेसइ तसु हस्थिहि हरिणि भणइ 'अम्ह काजु न अस्थिहिं वीरदासु एती कल(?) आणि ' भणिति-भंगि तिणि आणिउ प्राणि ६ खोभिउ हाव-भाव विन्नाणिहि न चलिउ जिम सुर-गिरि बहु-पवणिहिं वीरु स-दार-तुळु तिणि जाणिउ कवडिहिं हरिणी सो वक्खाणिउ ८ वेसं दासि भणइ एगंते 'नारि ज दिट्ठा सिट्ठि-गिहंते भयणि* सुआ वा निरुवम-रूवा सा जइ वेस तु हुई वसि देवा' १० इअ मंतिवि तिणि मुद्दा-रयणू। मग्गिउ अप्पिउ सिटिठ-पहाणू पडिछंदा-दसणमिसि पेसिअ मुद्दा नमया(य) दंसिअ दासिअ १२ 'तेडइ तुम्हि एवड-अहिनाणिहिं वीरदासु आवउ अम्ह भुवणिहिं' नाम-मुद्द पिक्खिवि चितिवि बहु सह दासिहिं नमया आविअ लहु १४ हरिणी-गिह-पच्छलि भूमी-हरि पुव-सिक्ख तिणि घल्लिअ निटुरि मुद्दा दासिहि अप्पिअ वीरह नमया दोसु देइ दुक्कम्मह १६ उठ्ठिउ सिटिठ जाइ निय-मंदिरि ता नहु पिच्छइ नमया-सुदरि घरि बाहिरि पुरि न ल]हइ सुद्धि भरुयच्छि गउ कय-बुद्धि स-रिद्धि १८ कढिय भूमि-गिहाउ महासइ । जाणिउ वीरु गयउ अह दंसह सयल-रिद्धि 'एअह तई सामिणि करउं होसि जइ वेसा भामिणि २० सग्गु एहु ता [मिल्हि असग्गहु' हरिणि-वयणु निसुणिवि नमया लहु वज्ज-हय व्व भणेइ महासइ 'मह जीवंतिअ' सीजु न नस्सइ २२ सीलु सयल-दुक्ख-क्खय-कारणु सीलु सिद्धि-सुर-लच्छिहि कम्मणु नरय-नयर-गोपुरु वेसत्तणु उत्तम-निदिअ तसु किं वन्नणु' २४ तं निसुणिवि तज्जइ निब्भच्छइ हरिणी कणइर-कंबिहि कुट्टइ जइ जल-निहि मज्जाया मिल्हइ तह वि न नम्मय सीलह चल्लइ २६ जाइ धरणि-तलु जइ पायालह तुहिउ पडइ गयणु जइ मूलह तिमिरु तरणि जइ ससि विसु वरिसइ तह वि न नम्मय -सीलु विणस्सइ २८ ____1 सीलु° 2. तत्तिउ 3. वस 4. सूआ 5. पडच्छंद। 6. वीरुदासु 7. जीवंती 8. निंदीअ 9. नमय Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इय' अ-चलती बहुद्दा ताडइ कुण सई परमिलिहि मरणं जाणिउ सुद्धि नरिदु निवेसइ वितइ 'मज्झ सील नहु भंजइ वेसा - गिह- निग्गमु सुंदरु मणि आरोहिवि पह तडि उग्घडियह कदमि तणु लिंगण- मिसिनिअ - हिअ समयणिहिं (1) पत्तई किर फाडइ लेखइ धूलि भुअंग-त्तासणि सार मुणिवि निवु गुणिआ पेसइ पाहण-लंखणि ते वित्तामइ इय गहिली जागिय निव-पमुहिहिं लोइहिं नया सुंदर-संधि सदि मुट्ठि पुण सत्त न पाडइ तसु पभावि हुइ हरिणी-मरणं तसु पदि नमया कारणि मन्नइ इंदु वि' अह निवु तर्हि हक्कारइ जाणिवि निव - पेसिअ सुक्खा सणि जंती पडइ मृज्झि सा स्खालह गहिअ सील- रक्खणि सन्नाहिअ वत्थमिसिण सा पमुइअ हिभडइ नैच्च गायइ सती- सिरोमणि मित्तह जिणदेवह कहs भरुअच्छह गच्छइ निय-पुरम्मि दिट्ठा 'नच्चंती विगल-रूव सा भणइ 'कहिसु वण- चे अम्मि' सो बुद्धि देइ सा घरइ चित्ति घय-वणि कुणइ निव-पासि राव 'ए करइ उवदवु घणउ देसि नरनाह - वयणु मन्नेवि नियलि भरुयछि वंदाविवि देव नीअ रोअंत कहइ तंतु सयल नमया - पुरिअ दस- पुव्व-धारि वंदइ सहदेषु कुटुंब - कलिउ घत्ता 8 ५७ ३० ३२ ३४ # ३६ कलिय "बुद्धि पाणिअ सोल-सकल डिभिहिं मुक्क अमोहिहि भमइ थुगइ जिणु अक्खलिय ॥ ३९ ३८ [४] नम्मय वइअरु त विवइ भारु जिणदेव पत्तु अह कूलि तम्भि जिणदेवि पुठु 'तरं किं सरूव' अन्नोन्न कहिउ वइअरु वणम्मि अह घय- घड फोडइ गहिलिभ त्ति जिणदेवह कइइ नरिंदु ताव पवहणि आरोहिवि लइ विदेसि ' बंधिवि चडावि पवइणि विसालि जिणदेवि नमय पिअ-हरि विणीअ पियरिहिं पुरि उच्छवु विहिउ अतुल १० सिरि- अज्ज - सुहत्थि संपत्त सूरि निसुणेवि धम्मु नमयाइ सहिउ ६ १२ 1. ईय 2. ० मिसिणि 3. पमुई 4 बुद्धि० 5. अमोहिंहिं 6. ० वईअरु 7. नच्चंति 8. ई अरु ८ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ rt वीरदासु पुच्छइ मुणिंदु पुव्विल्ल जम्मि जं दुक्ख जुत्त ert कहइ मुणीसरु 'नम्म्याइ " अहिठायग देवय आसि एह पडिमा पडिवन्नह मुणिवरस्स " एए नइ - न्हाणह निंदग" त्ति पच्छाणुकूल थी- रूव-पमुह अक्खुडि स्वमावइ सावि साहु सा देवि चविवि सहदेव - धूअ पडिकू लिहि तसु हुउ पह-विओगु इय निअ भवु निसुणिवि भव-विरत्त इक्कार संग घर - गणहरेण फुड अवहि-नाण- जु* सह मुणिदि कउ तीइ महेसरु निव्त्रियप्पु ' जाणिज्जइ सत्थ- पमाणि सव्वु मई दुट्ठि निकिट्ठि सु-सील चत्त नम्मयमुवलक्खिवि चरणु लेइ आराहिवि अणमणु सग्गि जंति कल्लाणह कुलहर अन्मत्थणि संघह संधिकाव्य-समुच्चय 'किं नम्म्याइ किउ कम्म-बिंदु' पइ-चत्त जिअंती कह विपत्त' एयाइ विंझगिरि-निग्गयाइ पुव्विल्ल जम्मि मिच्छत्त-गेह एगस्स नई- तडि निसि ठिअस्स पढमं पडिक्लसग्ग-गत्ति कय खोभ हेउ देवीइ दुसह मुणि कहि धम्मितसुं बोहि-लाहु २० हुउ नमया-सुंदरि गुणिहिं गरुय अणुकूलि सील - खोहण-पभोगु' चारित्त लेइ नम्मय पवित्त सा ठेविय महत्तर-पदि कमेण विहरंत पत्त पुरि कूववंदि सर-लक्खणेण निंदेइ अप्पु तउ नमया जाणिउ पुरिस-रूवु कंता तसु पावह दिक्ख जुत्त' रिसिदत्त-सहि सो तवु तवेइ तिन्निवि अणुत्र सुहु अणुवंति ३० घन्ता * 3 सरि वि सील जुन्हा जीसे सुकयामएण तिअ-लोअ सिंचाइ बीईंदु-कलत्र नम्मया जयइ म कलंका ॥३२ तेरस-सय अडवांसे वरिसे सिरि-जण पहु-पसाएण एसा संधी विडिया जिनिंद-वयणाणुसारेणं ॥ ३३ १४ १६ १८ २२ २४ होअउ जय-कर नमयासुंदरि - संधि वर रइअ' अणग्घह पढत- सुणतह उदय-कर ॥ ३१ २६ २८ ० 1. बिंदु 2. नम्माई 3. गति 4. जून 5. कूविचंदि 6. अणुसणु 7. रईअ 8 सिरिया अंतः श्री नर्मदा सुंदरी महासती संधि समाप्ता ॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०. चउरंग-भावण-संधि [कर्ताः जिनप्रभ सरि (?) रचना-समय : ई. स. १३०० पूर्व ] ध्रुवक सिरि-वीर-जिणेसर नमिय-सुरेसर पाय-जुयल पणमेवि जिय चउरंगिय भावण सिव-मुह-कारण अणुदिणु भाविसु एरिसिय ॥१ [१] संसार-रन्नि जीवा भमांत सामग्गि य दुल्लह माणुसत्ति दिट्ठतिहिं चुल्लगमा[इ]एहि सिद्धंत-भणिय भाव-सुइएहिं' जह चक्कि-गेहि भोयणु दियस्प्त मुंजेवि भरहि वारउ न तस्स मह दिव्व-भावि सो कह वि हुज्ज तह वि हु न अधमु नर-भव लहिग्ज १ वर-दिन्नई पासई चाणगस्स । न पडंति तत्थ भन्नह नरस्स पुन्नेण होइ एरिसु कयावि नर-जम्मु न लब्भइ निय-सहावि सिद्धत्थ-पत्थु भरहस्स धन्नु मो.स 3 नारि कारिउं विभिन्नु पारेइ कह वि सा कम्म-जोइ नवि हीण-धम्मु पुणु मणुय होइ थंभह सयं सिउं इक्क दाँउ थेर-निव-पुत्तु जइ जिणइ राउ पावइ सु रज्ज जइ सुह-तिसीउ तह होइ नरत्तणु पुणु ल्हसोउ १० बहु-मूल्ल-रयण वाणिय-सुएहिं विक्किय वणिय देसागएहि पुण मेलिऊण जइ इंति गेहि उत्पत्ति होइ नवि मणुय-देहि १२ रज्जट्ठ सुमिणि पिक्स्वइ मयंकु पविसंतु वयणि किं पुण वि रंकु एवं पि हुज्ज सुकयाणुभावि माणुस्स-जम्मु न लहइ तहावि १४ चक्कऽट्ठ-उवरि पुत्तलिय-अक्खि न हु विज्झइ तह विणु नर णिदक्खि विधेइ कोइ अह एग-चित्तु नर-बुदि न पावइ सुकय-रितु सेवाल-छाहिय जोयण-लक्खि दहि कुम्मु तुट्ट-विवरस्स लक्खि तं छिड्ड लहइ जइ पुणु भमंतु नवि लब्भइ पुणवि माणुसत्त जुग-समिल दो वि पुवावरम्मि खित्ता भमंति सायर जलम्मि "जुग-विवरि समिल पविसइ कयावि उप्पज्जइ जोउ न मणुय-भावि जह रयण-थंभु चुन्निउ सुरेण मेरूवरि नलिय हुम्मिउ मुहेण तब्भाव-करण तह पुग्गलाण न हु मणुय-भावु पावा उलाण __ अशुद्ध मूल पाठ : 1 भवंति 2 सुइमेहिं 3. ०च्छाहिय 4. कम्मु 5. ग Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० इय दसहिं नियंसणि माणुसत्तु लद्धम्मि तम्मि सुकुलम्मि जम्मु तत्थ वि य दुलड्डु पंविदियत्त निव्वणु सर्ररु पडिपुन्न आउ इय गुणह परंपर कारणि िवराडिय संधिकाव्य-समुच्चय 2 5 इय दुलहइ लइ माणुसत्ति जणवइ अणञ्ज जहि बहुय अतिथ संग-जवण - 'लउस - बब्बरय-डुड्ड' अरबाग होण-खस - कासियाइ दुम्मिल्ल-दमिल - भिल्लंघ- भमर केकइय- कुंव- मालव- रुया य गय-कन्ना खर-मुह तुरग वयण अन्ने विमिच्छ बहु-पाव रुद्द जोव-वह-रत्त मंसासियाण सुमिणे वि कन्नि धम्मक्राण अह कह वि कम्मि खाओवसम्मि तत्थ वि पमत्तु तारुन्न-वे से तसु सल्लइ बहु उरि काम-कील पुरि चच्चरि देउलि पयइ-रत वच्छायण-लीलावइ कहाहिं - अब्भासह गाइ-दोहा-मुहाई अद्धच्छ-निरखण चाडुयाई घत्ता लद्धिय सुंदर मोहि भमाडिय पुन्नेहिं जीव पई कह विपत्त जहिं मुणियइ जिणवर - भणिय- घम्मु २४ रोगेहिं विवज्जिर देह पत्त पुन्नेण होइ तह धम्म-भाउ उज्ज करि जिय धम्मु लहु लद्धिय हारि म कोडि तुहुं ॥२७ [२] नवि बुद्धि होइ जोवाण तत्ति जहिं धम्म-सन्न कावि हुन अत्थि पक्कणिय - कए सुररोह (?) -गुड्ड रोमय - पुलिंद - पारस - किलाइ बुक्कस- चिलाय कुलखाइ सबर कुंचा य चीण तह चंचुया' य मिंढग - मुद्दा य आरत- नयण निग्विण पयंड साहसिय खुद्द कित्तिय भणामि तहऽगारियाण न पवेसइ सहुं समइ ताहं उपज जिउ जणि आरिअम्मि उम्मतु भमइ विसयाहं रेसि पर-दार-रत्तु न गणेइ सीलु तसु नयण वयण अवलोइयंतु सिंगार - रसिय ते तसु मुहाहिं कामग्गितेय-संधुवणाई वोयारइ पर जण - वल्लहाई २६ २ ६ छ-हु दास - विशसि गमइ कालु अह वल्लह माणुस - विरहु ह इ नहु मुणइ एहु सह इंदियालु ता दिवस स्यणि झुग्इ विओइ 1. लउस्स 2. बचरईहुड्ड 3. एक्क• 4. कासिवाइ 5. भगर 6. सधर 7. चंचुया ८ १० १२ १४ १६ १८ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउरंग-भावण-संधि छुह-तण्ह-विवज्जिय निद-हीण दिण जंति 'निरत्था तासु दंण धेर(?विरह)ग्गि-पत्तु जोव्वण-विमुक्कु जिम मककडु तिणि स्वणि ड'ल चुक्कु विउसेहिं ठाविउ कह वि मग्गि मा सोगु करहि तुहुं धम्मि लम्गि मिच्छत्त-छहउ' पर तित्थियाण उवविसइ पासि सो लिगियाण निसुणेइ लोइउ मिच्छ-नाणु भावेइ हियइ तं सो अयाणु रामायणाइ संगाम-सस्थ संसार-हे उ ते पुण निरस्थ अप्पत्थु भत्तु जह आउरस्स अहियं कु-सत्थु निपुणतयस्स पुज्विं पि य नरय-कसाय-अग्गि। __उरि जलइ निच्चु भभइ य कुमग्गि पज्जलइ कुसस्थिहिं दीविउ य जह वड्ढइ तरु जलि सिंचिउ य कारेइ सुणेइ पसुमेह-जन्न गिह-भूमि-लोह-रुप्पय-सुवन्न धम्मत्थु देइ जत्ताहलाई गिन्हेइ हिडु कन्नाहलाई घत्ता इय कु-समय-बोहिउ मिच्छ-विमोहिउ मन्नइ जिउ न हु निण-वयणु संसारि भमंतउ दुक्ख सहतउ पावइ पुणु बहु जर-मरणु ॥३१ ४ मह कह वि सुगुरु चारित्त-जुत्तु गामागराई विहरंतु पत्तु तसु पासि न गच्छइ सो इमेहिं सुय-साहिय तेरह कारणेहिं बहु-मालस-विनडिउ अकय-पुन्नु निचिंतउ चिट्ठइ घरि निसन्नु सुगुरूण मूलि जाएवि धम्मु न सुणेइ कह वि जिण-भणि रम्मु मोहेण विमोहिउ सो वराउ रक्खंतु ठाइ धण-अंगणाउ गुरु-मति न सुणइ जिणिंद-वयणु जिणि जिउ लहेइ सम्मत्त-रयणु जंपेइ नईण अवन्नवाउ मन्नेइ मूढु ते जण-सहाउ हउं इक्कु वियक्खणु मणुय-लोइ जिण-वयण-समागमु तिणि न होइ माणेण न जाइ जईण पासि जह दंसणि नासइ पाव-रासि सिद्धत-वयणु न सुणइऽभिमाणि तसु थड्ढ होइ पारत्त-हाणि कोहेण वि चिट्ठइ धगधगंतु कइया वि न दीसइ सो पसंतु साइ न तस्स उवएसु दिति आऊ-दलाई एमेव मंति 1. नरत्था 2. छईउ 3. अप्पत्तु 4. कुसत्तु . Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ मज्जेण मत्त विसयाण विगहा कसाय हारेइ जम्मु 'हायत्तु भविस्सइ भत्त-पाणु मुनिवरह अति सम्वन्न-धम्मु नरयम्मि जाइ जो करइ कोहु तिरियत्त होइ कवडत्तणेण धण-सयण-सोगि जगडीउ कहावि सिद्धत - सुणण को अम्ह कालु पावाण वि एउ महल्ल- पाउ आवरिउ जेण हिउ अहिउ अत्थु वित्त कुटुंबह करइ विट्ठ कज्जाण अंत तसु सुण्ण-वार नर-कुक्कुड-मक्कड-महिस-संड संधिकाव्य-समुच्चय -नाएण विवित्त-चित्त रमणीय रमतह रमणसील जिग-भासिउ न सुणइ तिजग-सारु असइ दुर्लभ रिण - सासणम्मि कारण पमाय मिल्देवि झत्ति तव दाण सील तिन्नि विपयार साइ सहियै घम्माणुठाणु सुइ-सुद्धइ नर-भवि निय - देहहि पाइय सो संजमु सतरह - मेय वृत्त मह गिन्दि महन्वय गुरु-अंति इय जीव गहिय सम्बन्नु दिक्ख तव - जोग-किरिय अज्झाहि सुत्त निदा- पमाय सोयइ निचितु गुरु-जण - सगासि न सुणेइ धम्मु किविणत्तणि जोइ न सो अवाणु न सुइ ग इ तसु आलि नम्मु जयंति साहु तर माणु लोहु न सुणेइ जिणागमु तसु भएण मेलण उवाय चित तहा वि सुगुरुहिं वृत्त इय भणइ बालु जं जीव होई अन्नाण-भाउ न मुणेइ तस्स परिणमइ सत्त मूढउ न देइ परलोय - दिट्ठि सातसु न होइ सिद्धंत-सार (?) "जुज्झता पेक्खइ ते पयंड जिण वर्याणिहिं देइच मणु निरुत्त दिण जंति अहव कीडाइ लीण दुत्तरु तरेइ जिणि भवु अपारु लद्धम्मि जव पई माणुसम्मि वायाइ गमिति तुहु धम्म-तत्ति साइ रहिय ते पुण असार जे कुणहिं ति पावहिं परम-ठाणु घत्ता लद्धइ कमवि कम्म निकाइय [ 8 ] संजमि वरिउ करह पुणु छिंदह जिम जिय इक्क-मणि ॥ ३३ कुण सव्व-विरइ सामइय-जुत्त संसारु जेहिं जोवा तरंति आसेवण - गहणा-सिक्ख भिक्ख भावेसु अत्थु तह एग-चित्तु 5. सुरु 1. दायत 2. कुज्झता 3. सहीय 4 ज १४ १६ १८ २० २२ २४ २६ २८ ३० ३२ ४ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गीयत्थु अप्पु एवं करेवि आवस कराहि तुह एग-चित्त वज्जेसु ति दंड ति-गारवाइ पालेहि महन्वय निरइयार भय सत्त वज्जि अट्ठ य मया य ते पंच समिद्दि य तिन्नि गुत्ति दसविह स्वमाइ तुह समण धम्मि अहिया सुवसग्ग- परीसहाई माणपमाण उवगरण - जुत्त नसु होइ नाण- दंसण-चरित्तु सत्तरस भेउ संजमु करउ विहरेहि वसुह तुहं मासकपि आराहिउ गुरुजण-पायजुयल परियाउ चरणु पालिउ विसालु संलिहिउ देहु संलेहणॉइ तणु- सुद्धि करिवि मल-रेयणेण सिद्धंत - भणिय- आराहणाहिं एरिस - विहाणि जइ तणु चएसि इय पंच महत्वय तो पालि अणुव्वय मिच्छत्तु वज्जि बहु- दोस- कूल संकाइ दोस तं रहिय होइ अरहंतु देउ गुरु साहु-भत्ति खम्मत एहु जिण भणिउ सारु पाणिवह थूल - विरहं करेसि दुविहं पि थूल परिहरि अदत्तु 1. गीयत्त 2. अदषु रंग भावण-संधि गुरु-पाय- कमलु भमरो व सेवि दो राग-दोस परिहहि सत्तु सन्नाई चउग्विह चउकसाय रक्खाहि जीव छच्च प्पयार आयारहिं अट्ठ पवयणह माय रक्खाहि जीव नव बंभ-गुत्ति उमहि भावि बारस तवम्मि तिरि- मणुय - विहिय मलकन्नगाई बायाल- दोस-रहियं च भत्तु तिहिं तिन्नि जीव अप्पर पवित् अट्ठार सहस्स सीलंगु धरउ मम्मत्त - रहिउ थेराण कप्पि पडिबोहिउ पुहविहिं भविय-कमल निय मुणिउ जीव तई आउ काल १८ छम्मासिय-चउ-छट्ठट्ठमाइ गीयत्थ भणिव निजामएण आहारु चउन्विहु पच्चक्खाहिं तइए भवम्मि ता सिवु लहेसि धत्ता जइ विहु सव्वय तिन्नि गुणव्वय ६३ [५] गिहि-धम्मु करहि सम्मत्त मूल सम्मत्त - रयणु पुणु दुलहु लोइ कीरइ य ईय जीवाइ तत्ति जीवा तरंति जिणि भवु अपारु कन्नाइ अलिय मा तुहुं चबेसि पर-रमणिहिं वालहि नियय-चित्तु ६ ८ १० १२ १४ न तरिसि धरिडं जीव तुहुं सिक्खा - वय - चउहुँ पिसउं ॥ २३ १६ २० २२ ४ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय परिगह-विरइउ पुणु निसिहि भत्त जिणि भुत्तइं विणसहिं बहुय सत्त करि दिसि-पमाणु भोगोवभोग- संखा-कएण न हु हुँति रोग ८ परिहरहि चउव्विहऽणत्थदंड बंधति जीव जिणि कम्मु चंडु सामाइ उ गिहत्थहं पवर-धम्मु अइयार-रहिउ करि एहु रम्मु दिणि दिसि-पमाणु करि पोसहं च पव्वेसु य पुन्न चउन्विहं च पारणइ मुणीण य भत्त-पाणु सुविसुद्ध देह भुंजह सुजाणु कारावहि जीव जिणिंद-वयणु (भवणु) जिण बिब-पइट्ठा प्य ण्हवणु आगम-विहीय तह पुत्थयाई सिद्धत-सार सुप[स]स्थयाई जिण-जम्म-दिक्ख-निव्वाण-भूमि वंदेसु तित्थ सउं परियणम्मि वर-गंध-धूव-पुष्फक्खएण जिण-ण्हवण-प्य करि आयरेण पूएसु संघु निय-गेहि पत्तु वत्थन्न-दाण-वर-भत्ति-जुत्त अणुकंप-दाणु किर दुत्थियाण दीगंध-पंगु-जण-जुंगियाण इय विहिणा पालउ सावगत्तु संलिहउ देह मरणम्मि पत्त उद्धरिय सल्लु सुगुरूण पासि खामेसु सव्वु तुहं जीव-रासि अहिगरण अठारह पाव-ठाण वोसिरसु जोव रुहट्ट-शाण संथार-दिक्ख मुणिवरह अंति गिन्हह व गेह-अणसण-पवित्ति अणुमोय सुकड दुकडाण गरिह तिय-लोय-नाह झाएह अरिह मरणाइयार मा धरिसि चित्ति चउसरण-गमणु नवकार अंति २४ भाराहणाइ एरिसिय जुत्तु नवकार सरंतउ पाण चत्त उप्पज्जइ सावउ देव-लोइ तइय-भवि सत्त भवि मोक्खु होइ २६ घत्ता इय लद्ध सुरंग तइं चउरंग जीव म हारिसि एहु वर कम्मट्ठ-पणासणु ___ भव-दुह-नासणु जायइ न हु पुणु देह-धरु ॥२७ 1. संकाकरण 2. जंगियाणं अंत:॥छ। चउरंग-संधि सम्मत्ता ॥छ।। . Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११. आणंद-सावय संधि [कर्ता : विनयचन्द्रसूरि रचना समय : ई. स. १३०० पूर्व ] ध्रुवक सिरि-वीर-जिणिदह पणय-सुरिंदह पणमवि गोयम गुणनिहिहि' आणंद सुसावय धम्म-पभाक्य भणिसु संघि गमविहिहि ॥१ [१] सत्तमय-उवासगदसह मंगि सिरि-वीर भणिय कायव-भंगि' इय पूछह पणमवि जंबु-सामि इम अक्खइ गणहरु सुहम-सामि २ इह मगहदेसि वाणिज्ज-गामि नरनाहु मासि जियसत्तु नामि गाहावइ निवसइ तहि सुतंतु आणंदु नामि सिवनंद-कंतु कुल्लागु नामि तसु तडि निवासु चेइउ अस्थि तहिं दुइपलासु सिरि-इंदभूइ-पभिइहिं समाणु । तहिं समवसरिउ सिरि-वद्धमाणु वंदणह जाइ जियसत्तु राउ आणंदु वि सावउ सुद्ध-भाउ जिण-देसण निसुणवि इक्क-शाणु आणंदु लेइ परिगह-पमाणु वज्जेमि थूल-जीवाण हिंस अलियं पि थूल चोरिय निसंस सिवनंदा विणु मुझ नियम नारि दस दस य सहस गोकुल चियारि १० तह निधिहि कलंतरि वव्वहारि । मुझ कणय-कोडि हउ चारि चारि हय सगड याण पण-पण-सयाई चत्तारि वहति य पवहणाई १२ जिट्ठीमह'-दंतण मह सुसाउ अभंगि तिल्लु सय-सहस-पाउ तह सुरहिगंध-उव्वट्टणं च बल-कुंभिहिं अट्टहिं मज्जणं च लहणई गंध-कासाइयाई भाभरणिहि मुद्दिय-कन्नियाई तोरुक्क-अगरु-धूवेहिं ध्व मालइय-पउम कुसुमह सरूव कप्पूर-अगरु-कुंकुम-विलेउ वर-खोम-जुयलु पहिरण-समेउ खीरामलं च फल कलम-सालि मुग-मास कलायह तिन्नि दालि १८ घेउरय खग्जि पिय कट्ठपेय घिउ सरय-समय गाविहिं समेय पल्लंकि मंडुकि य वंजणाई नेहंबदालि वलि तिम्मणाई २० 1. A .हिहिं 2. B कायस्थभंगि 3. A पुच्छिउ 4. A इय 5. B नहिहिं 6. B सगल 7. B जिट्ठीमुह 8. B लूहणय 9. B विल तिमणाइ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ संधिकाव्य-समुच्चय तंबोल पंच-सोगंधियाण अवझाणु पमाय विहिंसयाण' आगास-नीरु इय भोग-माण वज्जेमि* पाव-बुद्धिहि पयाण पत्ता इय नियमई लेविणु वीर नमेविणु सिवनंदह जाइवि' कहए सिवनंद वि रम्मू जिण-वर-धम्मू सामि-पासि पणमवि लियए ॥२३ [२] अह गोयम पुच्छह पहु नमे किं लेसिइ व्रतु आणंदु एउ तउ अक्खइ सामि वि जाव-जोवु इह करिसइ सावय-धम्म-दीवु अह'होसइ सुर-वेमाणि रम्मि सोहम्म-कप्पि अरुणप्पम्मि तहिं चारि पलिय पालेवि आउ एगावयारु तउ सिद्धि-ठाउ आणंदु वि चउदस-बच्छराई पाछेवि दुवालस-गिहि-वयाई चिंतेइ पुव्वरत्तावरत्ति मायत्ति" मण्झ बहु-जणह तत्ति ता जिण-पणीय धम्मे सयाइ मा खलणु होउ'' कह वि हु पमाइ इय चिंतिय सिरि-कुल्लाग-गामि पोसाल करावइ सुद्ध-ठामि असणाई चउबिहु उक्खडेउ जीमावइ सयल वि नयर-लोउ तउ जिट्ठ-पुत्ति आरोवि भारु आणंदु जाइ पोसह अगार" पत्ता तत्थ ट्रिउ माणवि देविहिं दाणवि अक्खोहिय मणु जिण-पहइ सलेहण-जुत्तिय छ-वरिस-उत्तिय सावय-पडिमा सो वहइ ॥११ [३] इकु मासु देव-प्या ति-संझ सम्मत्त-पडिम अइयार-वंश दो मास सुद्ध-बारस-वएहिं वय-पडिमा पालइ" नियय-गेहि सामाइय गिन्हइ वार दुन्नि पुव्वुत्त किरिय सउं मास तिन्नि चउ-पव-तिहिहि करि उप्पवास सो पोसहु पालइ च्यारि मास चउ-पब्वि चहुट्टइ निरुवसग्गु सो पंचमास लिइ काउसग्गु छम्मास बंभचेरं घरेइ सच्चित्तु सत्त मासा न लेइ 1. A सदाण 2. A वज्जेवि 3. A जायवि कहइ 4. B पूछ। 5. A नमेवि 6...A तउं 7. B इह 8. A तह 9. A पालेइ 10. A आयत्थ 11. B होइ 12. A अगारि 13. A दुइय 14. A दिई Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आणंद-सावय-संधि आरंभु विवण्जइ अट्ठ मास अन्न वि न करावह नव वि मास जं उदिसीउ तसु रेसि रद्ध दस मास न जोमइ तमवि सुद्ध एगारस मासा समणभूउ 'लिइ ओघउ मुहपति करह लोउ मह समणोपासग भिक्स देउ । निय-गोउलि विहरइ सो अखेउ एगारस पडिमा इम वहेउ संलेहण करिविणु दुविह-मेड तव-चरणि अद्वि-चम्मावसेसु निसि सुत्त तणह संथारएसु चितेइ धम्म-जागरिय रत्ति __ ना अज्ज वि अच्छइ देह-सत्ति जयवंतु धम्म-आयरिउ जाम अणसणु करेसु हउं इत्थ ताम घत्ता सिद्धतह जुत्तिहिं सत्तहिं खित्तिहिं वित्त-बीउ वावेवि घणु अट्ठाहिय कारिय संघ हकारिय' देव-प्य-वंदण-करणु ॥१५ सुगुरूण वास सीसिहिं गहेउ सुमरेवि पंच-परमेट्ठि देउ उस्सग्ग-पुव्व सो सोहि लेइ सम्मत्तमाइ वय उच्चरेह ता उत्तमदिठ सो ठाइ ठाणु वोसिरइ अठारस पाव-ठाणु चत्तारि सरण मंगल उतिम्म' अरहंत सिद्ध साहू य धम्म हिंसा अलीय' अणदिन्न दाणु मेहुण परिंग्गह कोह माणु माया य लोभ पिज्जं च दोस कलहो वि अभक्खाणं सरोस भरईरई य पेसुन्न-जुत्तु "परिवाय माय-मोसं मिच्छत्त ए तिविह तिविह मण-वयण-काय कय-कारणाणुमह" पच्चखाय अरहंत सिद्ध साहू य सक्खि देवाण सक्खि अप्पाण सविस्व जं रयण-करंडग-भूउ एहु . वोसिरसु" चरम-ऊसासि देहु. उवसग्ग" देव-माणुस-पसूण जे हुंति सहिसु ते सवि अणूण आहार-उवहि दुञ्चिन्न-कम्म ते वोसिरामि सवि जाव-जम्मु १२ पत्ता आहारु चउव्विहु चइविणु सो वि हु गुरु-मुहेण गहियाण सणु छज्जीव स्वमावइ भावण भावइ तण-संथारि"निसन्न-तणु ॥१३ 1. A लिउ उघउ मुहती 2. A सित्तह 3. A कारिउ 4. A करिउ 5. A लेउ 6. A माण 7. B सुरम्म 8. A साहू सुधम्म 9. A आलीउ 10. B परवाय' 11. A पचखाइ 12. A वोसिरउ 13. A दिव्व 14. A .थार पंवन तण : Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬. सिल मट्टी लवणइ पुढविक्राउ * विज्जुक्क अगणि मुह तेउकाउ पत्तेय सहारण वणसईउ किमि पुयर अलस बेईंदिया य चउरिदिय डंस मसा य मच्छि पंचिदिय जलयर णेगमेय सस सप्प हरिण सूयर अरन्नि नारइय सत्त- नरएसु संत वैमाणिय जोइस वंतरा य भव - मज्झ भमंतह मई अभव्वि आसाइय कहवि हु तित्थनाहु साहुणि य सावय सावियाउ' तह पाण-भुय जिय सव्व काल ते तिविह तिविह स्वामेमि पुज उहि दप्पिि ते सवि हउं स्वामउ कालाइ अट्ठ नाणाइयार अइयार अट्ठ चारितचारि पंचाइयार संलेहणाइ वह बंध - मुह जं विहिय हिंस नं थोब वि चोरिय कसु वत्थु ''मेलिउ परिगहु पाव-मूलु जं पनरस कम्मादाण चत्त जं अट्ट रुद झाईउ झाणु संधिकाव्य-समुच्चय दूमिह 7. B सावयाण 11. A अइ प° 12. A मीलिउ [] घत्ता तह संकपिि हउं ति स्वमावउं [६] महि ओस करय हिम आउकायु तलियंट फुक्क धम वा उकाउ' एगिंदिय स्वामउं सवि स्वमीउ जू मंकुण कीड तिइंदिया य 8 खजूरय भमर य तिड विंछि चिड लावय तित्तिर खचर जे य पसु महिस- पमुह "थलयर जि अन्नि जे मणुव-वित्ति माणुस वसंत दस भेय भवणवासी सुरा य जे दूमिय स्वामउं हउं ति सव्वि केवलिय सिद्ध आयरिय साहु चारित्त-नाण- दंसण- गुणा उ आसाइय जे मई गुण-विसाल ते वि हु स्वमंतु अवराहु मज्झ 1. Bo काय 2 A चड 3. B खयर 4. A जलयर 8. B गुणाण 9. A सत्तकाल ४ ८ १० १२ मई जि विराहिय कह वि जिय निंदउं हिव जे दुकिय किय ॥१५ १४ संकाइ अट्ठ दंसणइयार तवि बार तिन्नि वीरियइयारि 11 जे विहिय कहवि मई इह पमाइ जं जंपिय वयण अलिय- मिस्स जं सेवि मेहुण अप्पसत्थु जं हिंडिउ दिसि जिम तत्त- गोलु बावीस अभक्खई जं च भुत्त जं किछु पाव उवएस दाणु ८ 5. B भमंतर 6. B 10. A संकपिहिं कप्पिहि 8 ६ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आणंद-सावय-संधि नं अप्पिय' ऊखल-लंगलाई जं मज्जू य वयरई कयाई सामाइ जं किउ साइयारु जं खंडिउ देसवगास-चारु जं पन्व-दिवसि पोसहु न किद्ध जं संविभागु अतिथिहिं न दिद्ध तं निंदउँ गरिहउ तिविह तिविहु मिच्छक्कड्ड पुणु पुणु होउ सु बहु १२ घत्ता हिंडंतह भवि भवि आसंसारु वि खंडिउ जं च विराहियउ तसु होउ' समुभडु मिच्छा दुक्कड्डु गुरु-समक्खु तं गरिहियउ ॥१३ जं गोय-नट्ट-पिक्खणय-सार। कय देव-प्य अट्ठ-प्पयार जं सेविउ गुरुजण भत्ति-पुव्वु किउ वंदण-पडिक्कमणाइ सन्धु २ विहि-पुव्वु विहिय जं तित्थ-जत्त आराहिय सत्तिहि सत्त खित्त । जं भत्तिहिं दिन्नउ मुणिहिं दाणु जं पालिउ सीलु वि गुण-निहाणु जं बार-भेउ तव-चरणु चरिउ, जं भाविय भावण झाणु धरिउ जं पढिउ गुणिउ सिद्धत-तत्त आराहिउ दंसणु मनु चरित्तु ६ जं धम्म-कज्जि उवयरिउ एहु मम संतिउ धणु मणु वयणु देहु इह-जम्मि अन्न-जम्मह पवंचि अणुमोइउ जं किउ सुकय किंचि ८ पत्ता निय-कुल-नह-चंदू इय आणंदू अणुमोएविणु सुकिय सवि सुह-झाणह कारणि भवह निवारणि भावण भावइ बारस वि ॥९ [८] भावण भावंतह सुद्ध-भावि खणि खणि मुच्चंतह पुन्व-पावि संथारि निसन्नह मह-पमाणु उप्पन्नु तासु अह ओहि-नाणु २ इत्थंतरि विहरंतु नयर-गामि तहिं समवसरिउ सिरि-वीर-सामि गोयरचरि गोयमु तहिं फिरंतु "कुइ पूछइ पिक्खवि जणु मिलंतु ४ सो कहइ इत्थ मणसणि पवन्नु आणंदु उवासउ11 अत्थि धन्नु तं सुणिवि जाइ तहिं इंदभृइ तसु सुक्ख-तवह "पुच्छइ सरुइ ६ 1. A अप्पिउ 2. B जुयइ 3. B °इय किद्धउ सा 4. B जं न खडिउ 5. B गरि6. A हिडतइ 7. Bहउ8. B किउ 9. B समोसरिंउ I0. B कोड I1. B वि साबउ 12. A पुच्छा सरवु Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय तं नमवि सो वि विहसंत-दिट्ठि इय भणइ नाह इहऽणब्भ-वुट्टि अवधारिउ अप्पणि' तुम्हि पाउ मह उवरि किदु गरुयउ पसाउ ता भंजउ संसउ अपरिमाणु गेहीण होइ किं अवहि-नाणु होइ त्ति भणिउ सिरि-गोयमेण आणंदु पयंपइ सुणह तेण हडं पिक्खउं जोयण पणसयाइ पुवावर-दाहिण-जलहि माइ हिमवंतु जाम उत्तर-दिसम्म अह पढम नरय उवरि सुहम्मि । अह जंपइ गोयमु गुण-निहाणु मालोइ पडिक्कमि एह ठाणु । जं अवहिनाणु गेहीण होइ ए-दूरिहिं पिक्स्वइ न उण कोइ जंपेइ सुसावउ सच्चि अट्टि मिच्छुक्कडु दिज्जइ किं व जुट्ठि जइ जुइ ता पडिकमणु तुम्ह अह सच्चि तु आइसु देहु अम्ह इय निसुणवि गोयमु निरभिमाणु तं जाइवि पुच्छइ बद्धमाणु कहि नाह अम्ह बिहु जणह माहि' को सच्चवाई को मिच्छवाइ आणंदु सच्चवाई सु साहु तुहुं मिच्छवाइ इम भणइ नाहु तं सुणवि झत्ति जाएवि तेण आणंदु स्खमामिउ',गोयमेण मह चइउ देह अणसणिण वीणु सिरि-वद्धमाण-पय-सरणि लोणु सुमरंतु पंच-परमिट्ठि-मंतु सोहम्मि पत्तु सिवनंद-कंतु अरुणप्पमम्मि उववाय-सिज्ज अंतोमुहुत्ति 1°चउ उत्तरिज्ज बत्तीस-वरिस जारिस जुवाणु उप्पन्नु सत्त-कर-देह-माणु पत्ता तहिं11 जय जय नंदय जय जय भद्दय अजिउ जिणसु जिउ पालसु य अम्ह अज्ज अणाहह तुम्मि हुय नाहह इय देवंगण-वयण सुय ॥२५ उप्पन्नु पिक्वि वेमाणि देउ पडिहारि विनत्तउ पढ़मु एउ अम्ह पुन्नि जाय तुम्हि इत्थ ठाइं ता वंदहु13 मासय-चेइयाई सुरु उदिउ तउ1तिणि दिन्न बाहु पूण्इ नमसइ तित्थनाहु 1 तिहिं वच्चइ पुच्छइ मत्थ-नीइ संचरइ15 देव-ववहारु जीह ___I. A अप्पणु 2. A . हि माहि 3. A अह 4. A नरई 5. A कचि 6. BG7. A माइ 8. A तुह 9. B खामिउ 10. A विचि 11. B तह 12. B बंदउ 13. A विण दिन बा 14. A तह वाचइ पुत्थय सग्गनीइ 15. B संवरइ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आणंद-सावय-संधि नंदणवणि तिणि' सउं देउ जाइ तिहिं विलसह फुल्लिय वणह राइ संताण कप्पदुम पारिजाय मंदार पवर हरिचंदणा य तहिं वावि रयण-सोमाण-पंति कीलाहर पिक्खइ विउल-कंति इत्थंतरि आवई अच्छराउ पय-रणझणंत-वर-नेउराउ । तहिं साहिलास-देवंगणाहिं कंदप्प-दप्प- थिर-जुव्वणाहि उवगृहिय विविह-नेहेण गादु सो विलसह रइ-सागरवगादु 'भणमिस-नयणु मण-कज्ज-सिद्धि अमिलाय-मल्लु 1 अक्खुडिय-रिद्धि नितु नह-गीय-''पेखण-विणोइ कालं गमेइ सो सग्ग-लोइ सिरि-रयणसेहर-सुगुरूवएसि सिरि-विणयचंद तसु सीस लेखि अज्झयणु पढमु इह सत्तमंगि उद्धरिउ-संधि-बंधेण रंगि पत्ता जं इह हीणाहिउ किंचि वि साहिउ तं सुयदेवी मह खमउ15 1 इह जु पढइ जु गुणइ वाचइ निसुणइ मुत्ति-नियंबिणि सो रमउ ॥१५ 1. A तिण सो 2. A वणसई 3. B सोवाण 4. B केलीहर 5. A आवहि 6. B चिर० 7. B उवयरिव पवरनहेण गाढ 8 B अणमेस 9. B अमलाय 10. A अखुडिय 11. A पिक्खण-विणोय 12. B णाहिउ 13. B मज्झ खमउं 14. B जं पढत गुणतह श्रवणि सुणतह मुत्तिरमणि तं वरउ वर ॥ अंत: A॥ इति श्री महावीरपर्युपासकस्य श्रीमदानंदाभिधान प्रथमोपकास(पासक)स्य संधिः समाप्ता ||BI इति श्री वर्धमान-जिन-प्रथमोपासकस्य आनंद-सुश्रावकस्य संधिः समाप्तः ॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२. अंतरंग-संधि [कर्ता : रत्नप्रभ गणि रचना-समय : ई. स. १३०० पूर्व] ध्रुवक पणमवि दुइ-खंडण दरिय-विहंडण जग-मंडण जिण सिद्धि-द्रिय सुणि कन्न.रमायणु गुण-गण-भायणु अंतरंग मुणि संधि जिय ॥१ [१] इह अस्थि गामु भववास-नामु बहु-जीव-ठामु विसयाभिरामु दीसति जत्थ मणदिट्ठ छह बहु-रोग-सोग-दुइ-जोग-गेह बहु-पाव-ठाणु जहि हट्ट-उलि अइ भीम सीम जहिं कुगइ-पोली भन्नाण-रुवु जहिं गढु अहंगु । घण-कम्म-पयडि कविसीस-तुंगु जहिं दाण-साल गुरु नव-नियाण किरियाणग तेरस किरिय-ठाण जहिं घोर जम्म-जर-मरण-रूव मच्चंत-पंक-मल-सजल-कूव जहि आहि-वाहि अइ-दोह सेर अणवस्य जीव जहिं करई फेर जहिं इंदिय निंदिय दुट्ठ चोर छलिऊण लोगु विनडंति घोर भइ-कुर-कम्मि जहिं हम्ममाण विलवंति जीव असरण अताण जहिं सव्वउ वि घण अप्ति व वाडि जहिं पडइ अचिंतिय जमह धाडि तहिं मोह-नरेसर करइ रज्ज तिय-लोय दंड करणम्मि सज्ज 'नेरइय तिरिय अनु मणुय देव चउरो वि वन्न जसु करइ सेव १२ निम्लज्ज भज्ज तसु हुय पवित्ति न कयावि सीलु जसु फुरइ चित्ति उप्पन्नु पुत्तु तसु नामि पावु गय-सुकय भावु दुज्जण-सहावु संजाय तासु घृया कुबुद्धि जसु दंसणि नासइ मण-विमुद्धि तसु मिच्छदिदिठ वट्टइ अमच्चु वाजरइ जो न सुमिणे वि सच्चु १६ तसु पुज्ज पुरोहिउ कुगुरु जाणि जो पावु करावइ ठाणि ठाणि तसु पिसुण दुन्नि चर राग-दोस जसु सेवग वट्टई सयल दोम १८ पत्ता इय जण-मण-कंपणु पुहविहिं खंपणु जग-झंपणु परिवार-जुउ दुज्जण-अग्गेसरु मोह-नरेसर कुणइ रज्ज इग-उत्ति ठिउ ॥१९ 1. B सुणि 2. B नरइय 3. A परोहिउ 4. अंत A. B इति प्रथमोधिकारः॥ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतरंग-संधि [२] मह तत्थ भविय-अभविय-भिहाण सहवुढिय-कीलिय वय-समाण निवसति दुन्नि मित्ता पहाण निय-कन्न दिन्न राएण ताण ते हठ-तुट्ठ ठिय तासु संगि संचिंति पाव-भरु विविह-मंगि नचंति मत्त इव विसय-रंगि मच्चंति अहिय दुज्जण-पसंगि सेवंति वसण सत्त वि हसंत हिंसंति जीव विरसंत संत घण-कूड-कवड बुल्लइ असंत हिंडं त सयल तिहुयणु मुसंत मन्नंति तत्तु मेहुन्न-सन्न । कुव्वंति मुच्छ बहुविह अहन्न' काऊण पावु पुण गहगहंति पर-वसणु दिक्वि तह कहकहंति बहु-रोस-भरिय-तणु थरहरंति न य गम्मु अगम्मु वि परिहरंति न य किच्चु अकिच्चु वि संभरंति न य राउल-वाइय-मउ धरंति ते पुन्न-सुन्न घण-पाव-पुन्न किल मुत्तिवंत रक्खस उइन्न जाणेवि 'राइ अन्नाय-सत्त नरयाइ-गुत्ति-मज्झम्मि खित्त नियगाण वि जाणिउ गुरु अनाउ वह-बंध-पमुह कारेइ राउ मंगुट्ठ वि अप्पणु सप्प-द? छिंदिज्जइ किं न हु सडिउ दुटु ते सहई तत्थ वेयण अपार कइया वि कोवि नवि करइ सार सा भज्ज वि तेपिं कुबुद्धि नामि खणमवि न हु मिल्हइ नियय-सामि एगति हकारिउ नियय-मित्तु जंपेइ अन्न-दिणि भविय मित्तु 'सुहकम्म-नाम-नेमित्तिएण इम वत्त कहिय मह मित्तगेण' पत्ता तं वयणु सुणेविणु कन्नु' घरेविणु 'मुहकम्म-सुजाणिण नाण-पमाणिण अभविउ पुच्छइ हरिस-जुउ किसिय वत्त सहि कहिय तुय' ॥१९' अह भणइ भविउ 'इय भणिउ मित्ति “वहु तुम्ह एस विसकन्नग त्ति पाविठ्ठ दुछ लक्खण-विमुक्क तुम्हि एह संगि निय सुक्ख चुक्क० २ ता "छह छड्डहु रंड एह जिम छुट्टहु तक्ख'ण गुत्ति-गेह" मई भणिउ मित्त रमणी-विहीण न वहंति गेह कहमवि गिहीण .. 1. A विरसं रसत 2. B तनु 3. B अन्न 4. B राइअअन्नाइ 5. B अभाड 6. B कया वि 7. B कन्न 8. B सहिय तुय 9. अंत: A B इति द्वितीयोधिकारः। 10. B. चक्ख 11. B. छड्डहु दुहु रमणि एह Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय पुण भणिउ तेण 'लक्खण-सुजाणि “वहु एग अत्थि गुण-रयण-खाणि" मई पुच्छिउ "सहि सा कवण देसि वर-रमणि-सिरोमणि छइ सुवेसि" ६ सो भणइ "मत्थि संजमभिहाणु वर-नयरु सयल [ल]च्छी-निहाणु पुढवाइ-मेय-रक्षण-समिद्ध जहिं सत्तर पाडय जग-पसिद्ध सीलंग सहस निम्मल अढार जहिं धवल-गेह दीसई सुसार चुलसी य जत्थ आसण चहुट्ट तह विविह अभिग्गह विउल-हट्ट नहिं सुगइ-पोलि तह समिह-रच्छ निवसंति साहुजण जहिं अतुच्छ जहिं सुमण-मणोहर चरण-मेय आराम-रम्म सोहई अणेय जहिं भावणा य जण-हरिय-चित्त नच्चंति रंगि नच्चिणि सुपत्त आवस्सयाइं पासाय सिद्ध जइ-पडिम-सयं वर-वावि-सुद्ध सुद्धावएस जहिं दाण-साल वर-दाण-सोल-तव सर विसाल गंभोरयाइ-गुण-समिय-दाह नहिं अगड उदय-संजुम अणा(१गा)ह१६ जहिं तिन्नि-गुत्ति पायार चारु जहिं सुद्ध-झाणु जग्गइ तलारु जहिं उग्गमाई दोसा असेस चंडाल 3 व्व न लहइं पवेस १८ जहिं राग-दोस-विसयाई ते ण छुटुंति दंडि मरणंतिएण इंदिय जहिं तिहुमण-छलण-तुट्ठ धुत्तारउ व्व दंडियई दुटु २० तहि करइ [ ज सिरि-त्रीयराउ वयरी नण-मत्थइ देवि पाउ गुणवंत-कंत तसु हुय नि अत्ति मणि जासु अणोवम कंत-भत्ति २२ तमु पुत्त इगु वर साहु-धम्मु तह अवरु सुसावग-धम्मु रम्मु तसु हुआ सुबुद्धि-नामेण पुत्ति जगि भमइ अणग्गल जासु कित्ति २४ ससु सम्मदिट्ठि अइ निउणु मंति चउरा वि बुद्धि जसु मणि वसंति तसु रज्जि संति गणहर पहाण सामाइ-भेय-सपमाण-जाण अइसय गुण-सेवग भत्त तासु न कया वि जासु पर-राय-तासु जा वरउ सस्स सा तुम्हि कन्न ता तुम्ह मिल्हि नो अवर धन्न" २८ घत्ता इय पर-उवयारगि कुमई-निवारगि एह वत्त तिणि मू कहिय तो इउ पुरु मुंचवि निय-वहु वंचवि अणुसरोअई जिणराय-पय' ॥२९० 1 B रवण्णु 2. A. शिरोमणि 3 'सुद्धोवएस......संजुअ अणाह' सुधीनो पाठ B. "मां नथो. 4. A विसयाय 5 B कुमय 6 अंतः A तृतीयोधिकारः॥ B. इति अभव्यं प्रति भव्य-मित्र-उपदेशदानो नाम तृतीयोधिकारः॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतरंग-संधि [४] तं सुणिय वयणु अभविउ भणेइ 'ए वत्त न उत्तम तुह मुणेइ मुहु अग्गलि किं हुभ तुह' न लज्ज असमंजसु पयांतह अणज्ज महवा न हु दूसणु तुज्झ एउ सुह-कम्म-पिसुणि पाडिउ विमेउ पिसुणह अनु सप्पह एगु ढालु पर-छिदु लहिअ पवेसिइ कालु दो-नय ग-उवरि खलु तइउ नित्तु पिसुणह विहिं निम्मिउ किंपि गुत्तु *जिणि पिवह पर-दोस वि असंत नो विज्जमाण अप्पर्ण अणंत दुग्जण अनु कंटय भणिय सस्थि दो चेव उवाया तइउ नस्थि कइ किज्जइ खल्लइ मुहह भंगु अहवा परिहरियइ दूरि संगु८ विस-वयण विसम-गइ पिसुण दीह दोजीहह समहिअ लहइ लोह लग्गेइ कन्नि अवराणमेव पाणेहिं विमुच्चई अवर चेव दुज्जण-जण वायस-तुल्ल-सिट्ठि पर-मंस-तुट्ठि कय-वंक-दिट्टि पामेति ताव न हु सुहु अणिट्ठ जा कुंथई न हु पर-तंति-विट्ठ १२ अह-निम्मले वि रयणम्मि खुद्द मणियारउ व्व कि वि कर इं छिंद तं चेव अवर सज्जण-सहाव प्रति गुणेहिं महागुभाव वर-नयण-वयण सरला सुवेस । घण-माय पिसुण-जण अहव(?)वेस ता चेव हरइं पर-मणु अबुज्झु जा चेव न लभइ ताण मज्झु मिल्हेवि करहु जिम खीर-रुक्ख कंटालए पु मुहु विवइ मुक्त परमन्नु पुर-ट्ठिउ मिल्हि साणु मुहु पल्लइ विट्ठहं जिम अयाणु, १८ मुंचेवि नइ-ट्ठिय-दिट्ठि(?)वारि जिम रासहु न्हाइ मलिण-छारि तिम मिल्हवि गुण जण-जणिय-तोस पयति दोस दुजण सरोस २० नइ जंति घल्लि[3] किअउ ग्रि कढि[ण]त्तणु तह वि हु घरइ भूरि । उत्तरइ नेहु तह तसु उबाइ नो सहजु(?णु) कहवि मिल्हणउं जाइ २३ सइ गंथि वेदि गप-पुराणि जं अस्थि निसिद्ध अणेग-ठाणि निय-सामि-भज्ज-देसाण चाउ सो अम्ह करावइ पयड-पावु २४ निय-सामि-दोहवंचण-करस्स नरए वि ठाणु नत्थि हु नरस्ससयलाण सुद्धि हुइ पावगाण न य पायछित्त पहु-वंचगाण , २२ __ 1. B नज्ज 2. B जिण 3. B अप्पणु 4 B खड्ड 5 B भज्जा 6 B एवगाण 7 B एहु Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ बसु वसिउ छत्त छायाहे हिट्टि जहिं चेव रोसु तर्हि चेव तोसु तह न विसकन्न निय-भज्ज एह जसु संगमि अप्पणि कामभोग जइ आवय आवइ दिव्य-जोगि बइ रज्ज चुक्कु नलु जूय रमेवि तह जम्मु लहइ जहिं कुक्कुरो वि जहिं वसइ सयणु परियणु असेसु वरि मरण वि सुंदरु निय-निवेसि ते राम- कन्ह बलवंत भाय संधिकाव्य- समुच्चय जं जंपिउ तई मुअ अभिनिवेसि तं सव्वु जेण जसु असमु लोइ सुह-कम्म- मितु सज्जणु सुकित्ति चितामणि निम्मलु जो अमुल्लु गुण लहई गुणत्तणु खगुण पासि नइ - अमय - तुल-जल विविह-भेय किं किन्नइ तेण वि सामिएण किं कज्जु तेण भण कंचणेण गय-नायह राय तणइ गामि बरि कालु गमिज्जइ रन्नि सुत्त परिहरिय रज्जु निय- मायरा य मह दुल्लहु अवि लंका हिवत्तु टुस्स विदिनइ तसु न पिट्ठि जलु जत्य तत्य पंकु वि असोसु २८ जा कामिणीसु पात्रेइ रेह चिरु लग लहउँ लहिसु असोग ३० ता कवणु दोसु परिर्याणि स-सोगि ता किं सु दोसु दमयंति देवि तं ठाणु न छड्डड्इ तिरिउ सो वि मिल्हियइ कीम सो नियय-देसु रज्जं पि नेव पुणु अवर-देसि निय - देस भट्ट निहणं गया य' ३२ घत्ता इय कोविहिं जुत्तह अभविय मित्तह वयणंतरि पभणइ भविउ 'अभविय निय-वयणहं सुह-वण-दहणहं सुणि उत्तरु कमि कमि सहिउ ॥ ३७ [4] ३४ ३६ असमंजसु किल पयडीकरेसि सुह- कम्म पाइण पयडु होइ तई दुजणि दुज्जणु गणिउ चित्ति आभीरं सु मन्नई काय तुल्लु ते चेव दोस निग्गुण-निवासि जलरासिहिं संगमि हुईं अपेय दुह लब्भइ जेण निसेविएण जिणि कन्न- छेउ हुइ परिहिएण स्वणमविन हु वसियइ पाव-ठामि वरि सुन्न साल न हु चोर जुत्त भत्तिर्हि सेवंतई राम - पाय जस-सहिउ विभीणि किं न पत्त ४ ६ ८ १० 1. B. रज्जबहु 2 अंत: - A चतुर्थोधिकारः ॥ B. ॥ इति सकोप - अभव्य-उपदेशवचन - रूपो नाम चतुर्थोधिकारः ॥ छ ॥। 3. B पसायण 4 B आभीरि 5. B ठाण १२ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतरंग-संधि ७७ बहिं होइ वसंतह मण-किलेसु उज्झियइ झत्ति मल इव सु देसु एसु अ सदेसु इ उ पुण विदेसु उत्तम-मणि न वसइ एहु रेसु १४ वसुदेव-कुमरि मिल्हिय-स-देसि भण कित्तिय परिणिय कुडिल-केसि निय-ठाण-भट्ठ किम कुसुममाल निव-सीसु न पावइ गुण-विसाल १६ सरि सुक्कइ सुचरण वर वयंस उड्डेवि पत्त पर-तीरि हंस तहिं चेव मरणु हुय मच्छयाण "ए हेउ देसु अचयंतयाण' १८ जं भणिउ तुम्हि वहु न विस-कन्न तं जुत्तु जेण एसा अकन्न जे करइ संगु एहह अपुन्न तेसिं पि हु मत्थइ नत्थि कन्न २० ता मिल्हवि मोह कुराउ हेव सहि किज्जइ अप्पणि जिणह सेव जह लन्मइ चडणउं गय-वरम्मि ता चडइ कवणु पंडिउ खरम्मि' २२ इत्थंतरि जंपिउ अभविएण गुरु-रोस-रत्त-लोअण-जुएण 'पभणंतु सदूसणु निय-कुडुबु तुह मिल्हि अवरु इह नत्थि डंबु २४ तं नस्थियवाइउँ विहिउ तेण जण-णीइ विडंबसि वय-बलेण सा पुण भईव-सुकुमाल-काय न सहइ घण-कक्कस-'तक्क-घाय २६ थंभो वि पुरिसु पुरिसो वि थंभु वाई-जण थप्पई पयड-दभु अणयारो वि आयार-सुटु आयारु वि पोसई इयरु दु? २८ जिम भद्द अभद्द वि भणय विद्धि जिम वंकु वि मंगलु कूर-दिट्ठि तिम तुम वि नाम-मित्तेण भव्वु पुग चिट्ठिउ सयलु वि तुह अभवु' ३० मह चिंतइ भविउ विसन्न-चित्तु 'विणु कुड्डु न लग्गइ कहवि चित्त इय दुलिय गलइ उवएस-खरु जिम भरिय-कुंभ-उपरिहिं नीरु ३२ मूढम्म दिन्नु उवएस-दाणु बहु-लह-हेउ हुइ विस-समाणु जिम कुंबिय-सप्पह दुद्ध-पाणु केवल विस-वुड्ढिहिं हुइ नियाणु ३४ अणुचिउ विवाउ सह-मूढएण जिम कट्ठ-चडणु सह-कोढिएण उज्झेविणु तेण वितंडवाय हिव अणुसरडं जिण-राय-पाय' ३६ पत्ता इय मणि चिंतेविणु मूनु करेविणु जा चल्लइ सो जिण-दिसहिं ता भणइ विच्छाइम अग्गलि थाइय कुमइ लित"इव घण-मिसिहिं ॥३७" 1. B देउ 2. A अचयंताण 3. B. वाईउ 4. B. तकघाय 5. B. विभार सद्ध 6. B. भददु 7. B. केहवि 8. B. वितुंडवाय 9. B. मण 10. A वयण. 11 अंत: A. पंचमोधिकार : ॥ B. || इति अभव्यं प्रति भव्य-उत्तर-प्रदानो नाम पंचमोऽधिकार :॥ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८. संधिकाव्य-समुच्चय 'मई विलबमाण मिल्हवि अणाह कहिं वच्चसि भण 'तं पाणनाह' 'म म करि असउणु रे रे कुभदि इणि अप्पणि रासह-तुल्ल-सद्दि' २ 'मई किद्धउ सामी कवणु दोसु जिणि फुरिउ तुम्ह एवडु पओसु' 'तुह दूसण गणियई कित्तियाई जिम घण-तिल-बट्टिहिं कालयाई' ४ 'सवि दोस खमावउ पडिय पाइ पाणेसर रुदउ पुणु म जाई' 'मागइ करि लग्गीई तई विगुत्तु हिव होइसु न हु एगि निगड-जुत्तु' ६ 'ह आविसु सरिसी करण-विट्ठि वसणे वि न छडिसु तुम्ह पिट्टि' 'तई ताविउ मह मणु हियइ लग्गि हिव पिढि म जालिसि पयड-अग्गि' ८. 'खणमवि न हु जीविसु तुह विहीण जल-हीण जेम जलहीण मीण' । 'तिणि दिवसि फलिय मह सयल पुन्न संभलिसु जत्थ ह तइं विवन्न' १० 'मइं कियउ कवणु अवराहु नाह तुम्हि भणउ जेण इत्तिय विदाह' . 'तई दुट्ठि विगोइउ बहु-विसाउ ह जिम धुलहडिय तणउ राउ' १२. 'विय-सयण-सक्खि परिणिय ज इस्थि तसु छड्डणु कहिउ कवणि सत्थि' 'छड्डीयइ नारि संजुय कलंकि पिउवणह घडी जिम मणि असंकि १४ 'परिहरिय सीय लोआवसद्दि घण-पच्छयावु कि उ रामभद्दि' . 'सा भासि अदूसण दिन्धि सुद्ध तउं पुण बहु-दूसण अइ-कुमुद्ध' - १६ 'हउं निक्कलंक मणि सुद्ध देव जं भणसि दिव्वु' तं करउं हेव' 'त उ सुद्धि होइ तुह दुट्ठ नारि जइ पविसइ झाणानल-मझारि' - १८ 'किं मुअउ मोहु महु ताउ तेउ जिणि मुज्झ कराविसि दिव्वु एउ'.. 'जीवंत 31°वे सो मुयउ जाणि जसु कुलि उत्पन्नी तउं कुनाणि' २० 'बह एहु वयणु सुणिसिइ सु मोहु तउ करिसिइ तुह पाणहं विछोहु' 'जाएवि लवसु निय-पियर-पासि इह पुणु पुणु म लविसि दु'दासि' २२ 'निच्छई परिवटि उ"तुह सहाउ तिणि मन्नउं भाविउ नियडु आउ' 'आउ ति-लाहु पणिउ सुमम्मि सो मज्झ नियड हिव तुह वयम्मि' २४ 'निदइ अनु निम्ममु महमु लोह तुह सरिसउ दिदउ मई न कोई' . 'इह मे डे म मंडिपि रंडि' चंडि तुह होप्तिइ नासा-कन्न-खंडि' 1.-B. तुं 2 B. छडिसु 3. A. धूलहडीय 4 B. कहि ५. B. असंखि 6. B. दिवि 7.B. दिव 8 A. तन्तु करा. 9. B. दिवु 10. B. विस्सासुय जाणि 1 B. सि टूट्ठ I2. B. .बढिउ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतरंग-संधि 'कुल-गनणकर जाएसु तेम इह दु न आविसि वलिय जेम' 'मरि रासह-मुहि नीसरि अवेहु हिव होसिइ आवागमण-छेहु' २८ घत्ता इय सोगिहिं दुत्थिय बहु गल-हस्थिय संपत्तउ जिण-पुरि भविउ । पडिहारि-विवेगिहिं जिण-निवु वेगिहिं भिट्टाविउ संथुणइ तउ ॥२९' 'दसहिं दिलैंत-जोएहिं तं सामिउ देव सुह-कम्म उवएसि मइं पामिउ सरणपत्ताण सत्ताण ताणण-परो तुज्झ विणु नत्थि भुवणम्मि जिणवर परो २ पयड-दोहेण मोहेण संताविमओ नासिविणु तुज्झ सरणम्मि हउँ आविओ देव ताएसु पाएसु पडियं नणं कुणः पहु मोह-भड-दप्पभर-भंजणं ४ नाह निन्नाहु मोहेण हंउ लद्धओ निविड-घण-कम्म-बंधेण अह बद्धमओ जति घल्लेवि तिल-रासि जिम पिल्लिओ निरय-नामम्मि मह गुत्तिहरि घल्लिओ ६ संति जहिं विउल अइ-धीर-अंधारया सत्त धम्माइ संतत्त वक्खारया । तउ य अइ-उन्ह-रस-भरिय-कुंभीसु हं खिविउ विलवतु तहिं हिट्ठ-मुहु अइ' दहं । तिक्स्वतर-सुलिया-उवरि आरोविओ मंस-भक्स्वीहिं पक्खीहिं रोविओ चुन्न जिम कठिण-सिल-घट्टि हउं वट्टि मओ दीण-मुहु वच्छ जिम कप्पणी-कट्टिो १० छुहिउ पभणंतु निय-मंसु खायाविओ नीरु मग्गंतु निय-रुहिरु पीयाविओ . सहिउ जं दुक्खु मई सामि तहिं ठाणए तं च सव्वन्नु तउं सयलमवि जाणए १२ खिविउ अह तिरिय-गइ-नामि कारालए जत्थ वह-बंध-दुह कोवि न हु टालए .. पिद्वि-खंधेहिं जहिं भार-भर-वहणयं तिन्ह-छुह-ताव-सीयाइ-दुइ-सहणयं १४ अह कुदेवत्त-रूवम्मि गुत्तोहरे खित्तु तहिं पत्तु अवमाणु पय-पय-भरे कढिण-वर्यणेडिं सुर-वग्गि हां हक्किओ भणवि चंडालु निय-नयर बाहिरि किमओ १६ गुत्तिहरि खिविउ कुनरत्त-गइ-नामए जत्थ न कयावि जिउ किमवि सुहु पामए:तत्थ सोवाग-तेणाइ-जाईसु हुं फेरिओ तेण मोहेण विनडिओ बहुं १८ 'कुटू-जर-खास-घण-सोस-कट्ठोसरा कन्न-नह-मूल-वण वायवा ओभरा एवमाइउ वाही उ बहु-जाइया तत्थ दुढेण तिणि मज्झु उप्पाइया २० 1 अंत:-A. षष्ठोधिकारः ॥ B. इति कुबुद्धि-भव्यजीव-विवादो नाम षष्टोधिकारः ॥ हं 3. B. तहं 4. B. अनइ 5. B. दुट्ट 6. B. मास कहोरया . Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० नहस सत्थे वि ने नियाणु वन्निज्जए तेण केणावि रोगेण हउं पीडिओ एह समु अवरु इह रोगु न सुणिज्जए देसु उवएस अवणेसु रोगं इमं भणइ जिणु 'सुमइ - नामं तु सुह-संभवं • जासु संगेण रोगस्स जणओ वि सो " इह अनु विज उवइट्टु मन्निउ तयं सयल-सयणेहिं किउ वर - विवाहसो संधिकाव्य-समुच्चय 8 अह तेण अनाणिण कुमइ - पमाणिण बहु सुमइ-पसंगहिं भविणु रंगिि मह कुमइ नाइ निय-ताय- मूलि 'हउं भविय छिड्डिय गुण- पभूय तसु वयणि रोस घमघमिउ मोहु इत्थीजणु सयल - विरोह-कंदु तिय लोयह कंटग जग - विखाय महिला जण - कारणि ते विट्ठ 'अरि कवणु सु भणियइ वोयराउ अरि नत्थि कोवि किं सुहडु मज्झु पीसंतु दंतु पिक्खेवि मोहु 'मह' नौवमाणि तु कवणु सत् माणेण सहिउ जंपेइ माणु बाहुबलि भिउ मई पमत्त मायाविय माया वि पभणेइ साहम्मिउ एse मल्लि-मामि विविह-विज्जेहिं जसु नामु न मुञ्जिए तुझ सरणम्मि संपत्तु दुह-मीडिओ २२ विज्जु अणवज्जु न य तुझ समु विज्जए मा विलंबे विरए पहु उवकर्म' २४ भविय परिणेसु त मज्झ अंगुब्भवं भवए मोहु नवि सप्पु निम निव्विसो' २६ परिणए भविउ सुमहं तु गुणवंतयं हुअउ पुरि सयलि तहिं घवल - मंगल- रखो २८ घत्ता जिम जिम पुग्विहिं पावु कियं करइ सव्वु विवरीउ तयं ॥ २९ [4] रोयंत भणइ जिम हुय तिसूलि तिण वीयराय व वरिय धूय' हु सय-सहा जण माहि खोहु इणि कारणि पभणइ जिणवरिंदु बलवंत वि रावण-पमुह-राय तह इह पर लोइय- सुक्ख-भट्ठ म हुई हुउ जो वंयराउ जो कई अंतु तसु करिवि जुज्झु' उट्ठे व जंपइ कोह- जो हु जिणि वित्तु नरगि मई बंभदत्तु' 'संभलि मूं सामी व पमाणु वरिसंतु जाव तिम उड्ढ-गत्तु' 'सो कवणु अस्थि जो मई जिणेइ महिलत्तण आणि मई स-ठामि' १४ ४ ६ ८ १० 1. B. म 2. B इ... अभु 3. B. कुमए 4. अंत: A. सप्तमोधिकारः ॥ B. ॥ इति भव्यजीवकृत वीतराग स्तव - सुबुद्धि - पाणिग्रह्णो नाम सप्तमोऽधिकारः ॥ 5 B नियव वरीय 6 B. हुउ १२ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घत्ता अंतरंग-संधि लोहेण वि जंपिउ कपिऊण 'मह सुणह परक्कमु करवि मूण । मई नासिउ कोणि उ चंड राउ मउं कवण मत्त पुण ए वराउ' १६ . कंदप्पु भणइ पयडंत दप्पु 'नीसत्त तुम्हि सवि करउ चुप्पु हउं इणिसु ते उ जिम गरुडु सप्पु 'मउं अग्गलि संधइ कवणु कप्पु' १८ इंदिय पभणई 'करि सामि कम्म(ज्ज) होहामु अणिदिय अम्हि अज्म(न)' मग्गंति हत्थ जोडिवि पमाय 'अम्हे पहु लेसिउं पहिल घाय' २० जंपति विसय भय-भंति-चत्त 'तिणि मिलियई कहिसु सव्वि वत्त' नव नोकसाय बुल्लई सताण 'सकसाय अम्हि तसु हरउं पाण' २२ उवसग्ग-परीसह कहण लग्ग 'रणखित्ति न केण वि अम्हि भग्ग' इय सुणिवि सुहड रिवु हणण-सक्क मोहेण वजाविय गमण-ढकक २४ अट्ठ वि मय-मयगल गुडिय मत्त कुमणोरह-रह बहु-वेगि जुत्त पक्वरिय आस मण-वेग-तुल्ल संनद्ध-बद्ध हुअ सुहड-मल्ल संचलिउ मोहु निय-बलि समग्गु छाइउ रएण आयास मग्गु निय-विसय-संधि जाएवि सिन्नि __ आवास दिन्न बहु-मग्ग-खिन्नि २८ सिरि-जिणवर-रायह मुक-विसायह सेण वि अभिमुह संचलिय रण-समउ पडिक्खई सत्थ निरिक्खई सीमा-संधिई दल रहिय ॥३० . [९] जिण-मूलि पत्तु अह मिच्छ-मंति पभणइ 'हउं पेसिउ नीइवंति तुह पासि संधि-करणट्ठि मोहि तुह कवणु कज्ज कंधई विरोहि २ दिणि दिणि मह निंदसि जं सगन्वु तं खमिउ अम्हि पुण अप्पि भव्वु' इणि अवसरि पभणिउ सम्म-मंति 'तुह सामि कडक्खिउ खलु कयंति ४ सो नोइवमिउ तई भणिउ जुत्तु जिण-पासि पडिउ तह तुम वि मत्तु खमवंत तुम्हि जिणि हीण-सत्त बहुवम नामं तु असज्ज पत्त ६ जिणु अप्पइ न हु निय-सरण-पत्तु तं करउ तुम्हि जं तुम्ह जुत्तु' मह कहिउ तेण तं मोह-अग्गि उत्पडिय वेगि फुड सुहड-वरिंग ८ अह खवग-सेणि-रणतूर-भार जिण-सत्ति-अणाहय-सह-फार भरि अंबर वज्जिय अइ-गभीर तिणि कंपिय सयल वि मोह वीर १० जा वज्जि तहिं संगाम तूरु ता मिलिय दुन्ह-वाहिणीइ पुरु तहिं 'झिल्लई रंगि कसाय धीर घण-रोस-ताव-संकुल-सरीर । ___ 1. B चुन्नु 2. B मूळ 3. अंतः A. इति अष्टमोधिकारः ॥ B. इति मोहसेनाजिनसेना-चलनो नाम अष्टमोऽधिकारः ॥4. B. वग्गि 5. B. वजिउ 6. B जिल्लई Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ संधिकाव्य-समुच्चय निविउ कोह तहिं उवसमेण गय-पाणु माणु किउ मद्दवेण जैस-सेस माय किय अज्जवेण संतोसि लोहु निहणिउ जवेण संवेग-सुहडि नासिय पमाय . तसु मरणि पलाइउ नो-कसाय कंदप्पु हणि उ सीलेण वेगि हय राग-दोस तक्वणि विवेगि वेरगि समिय तहिं सुनीइ-लग्गि अवसेस सुहड जिम नीरि अग्गि निय-सिन्न-विणासणि फुरिय-कोहु रणि चडिउ 'जिणग्गलि भणइ मोहु १८ 'इह वट्टमाणि मह सज्जि रज्जि तई छत्तु उठाइउ कवण कज्जि स्वय-कारणु तुह उदउ वि एउ° पंखागमु कीडिय अंत-हेउ' २० जिणि भणिउ 'नासि मिल्हिवि' पएसु हुइ रंक-रोसु खलु पाण-सोसु । मइं हणिउ तुझ मण-नामु ताउ हिव फेडिसु जगि तुह मोह ठाउ' इणि वयणि कुविउ निवु मोह-मल्लु झुझण-संलग्गउ ति-जग-सल्लु जिणि झाण-खग्गि गय-उत्तमंगु किउ वेगि लहइ सो कुमई-संगु २४ तसु सोगि सहोयर अवर सत्त अइ-दुट्ठ-कम्म पाणेहिं चत्त तं पिक्खि कुबुद्धि वि भोय-चित्त नासेविणु अभविय-सरणि पत्त तक्खणि जिणु केवलि विमल-नाणु । शलहलिउ जेम घण-मुक्कु भाणु जय-जय-रव-संजय कुसुम-वुट्ठि किय तसुवरि सुरवर-वग्गि तुट्ठि २८ जय-तंबग वज्जिय जिणिय-घाय" संजम-पुरि उब्भिय जय-पडाय जिणु मग्गिउ भवियणि भट्टि झत्ति 'भवि भवि 19मइ देज सुपइ पत्ति' ३० जिणि रज्जि ठविउ निय-पढम-पुत्तु अवरो वि हु "जुव-निव-पइ निउत्तु अप्पणि जो पत्तउ सिद्धि-ठामि । सो संघह मंगल दिसउ सामि ३२ इय अंतरंग-सुवियार-संधि । चिंतंतु न बज्झइ कम्म-बंधि सुह-शाणह चित्तह करइ संधि तिणि कारणि भणीयइ एह संधि ३४ पत्ता अहि-अंतह कारणु विस-उत्तारणु जंगुलि-मंतह "पढणु जिम कय-सिव-सुह-संधिहि एह सु-संधिहि चिंतणु जाणउ भविय तिम" ॥ ३५ __ 1. B. तिहिं 2 B. जंस 3. A. समीइ 4. B. सत्ति ५. B जणग्गलि 6. A. एहु 7 B. एउसु 8. B. राउ 9. B. कुविय 10. B.कुगइ 11. B. घाण 12 B. मइउं दे जेम मपत्ति 13. B. हुव 14 B गहणु 15 अंत : A इति अंतरंग संधिः समाप्तः ॥ इति नवमोऽधिकारः ॥छ। संवत १३९२ वर्षे आषाढ शुदि गुरी छ।। ग्रंथाग्रे लोक २०६ श्री धर्मप्रभसूरि-रत्नप्रभकृतिरियं ॥छ।। B. ॥ इति मोहसेना-पराजयः जिनसेना-विजयो नाम नवमोधिकारः॥ इति अतरंग-संधि समाप्ता ॥ कृतिरिय पं. रत्नप्रभगणीनां ॥छ।। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कर्ता : अज्ञात अस्थि पसिद्ध सुद्ध-सिद्धंते केसी - गोयम-धम्म- विचारू १३. केसी - गोयम-संधि रचना - समय : ई. स. १४०० पूर्व, लेखन - समय : ई. स. १४१७] ध्रुवक 8 आस पास - जिण भवण- पसिद्धउ 7 के सिकुमार समणु मुणि- जुत्तउ अनु सिरि-वीरह सीस पहाणू 'बहु- परिवार वसुह - विहरंतर नयरि बिहू पखि मुणि विहरंता जावि गुरु वय वेस - विसेसू कहिउ जु उत्तरशयणि महंते संधि-बंधि सु "कहिज्जइ सारू 10 तो नाण- पमाणी कारण जाणी वय - जिट्ठ गणेवी लाभु मुणेवी [१] घत्ता गोयमु सीस- संघ-संजुत्तउ कुस - तिण आसण आदरि देई दो-वि मुणिंद पसम - रसि भरिया ससि-रवि-सरिस तेय सोहहिं बि-पख मिलिया पिखेविणु लोया 'बिहुँ पखि होस्य " वादु' इसउं भणि तो मुणि संसय-भंजण- रेसी 'महाभाग गोयम गुण - रासे 12 तास सीस चहु नाणि समिद्धउ सावस्थी तिदुगवणि पत्तउ सु- केवल गोयम' जग - भाण् तहि पुरि कुट्ठग-वणि संपत्त उ पिक्खि परूप्पर मणि संभंता अक्खई निय-निय गुरुहं असे सू [ २ ] सीसहं संसय हरण कए केसि - पासि गोयमु वयए " ॥ १ केसी पिक्खेविणु आवंतउ विण करी गोयमु बइसेई निय - निय - मुणि- मंडल परिवरिया निम्मल-नाण- गुणिहिं जगु मोहहिं कोहलि आवहिं सपमोया गण-गंधव्व मिलिय गयणंगणि कर जोडेविणु पभणइ केसी 1 हउं काईं पूछउं तुम्ह-पासे 1 B गोअम 2 A कहिजइ सारु 3 साथ 6 B जग 7 B बिहु पक्खवीर 10 A हिमगणेवी 11 B वयइ 12 B होसिइ 13 B हुं कांई B भुवणि पसीधउ 4 B बहु० 5 B वसुहि 8 A गुरह 9 B पहाणी २ ४ ॥७ ४ ६ ८ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय पत्ता 'तो गोयम वुच्चइ 'जं तुहु रुच्चइ तं पुच्छेह भदंत लहु' तं निसुणि महेसी “पभणइ केसी विणय-धम्म पयडंत बहु ॥९ [३] चारि महावय पासि पयासिय ते इ जि पंच वीर-जिणि भासिय काजु तु एकु मुक्ख साहेवउं किणि कारणि बिहुं 'मागि वहेवउं' २ 'रिसह-कालि जिय रिजु-जड हूंता मज्झिम पुण ऋजु-पन्न महंता संपइ ते वंकुड-जड गणियइ तिणि कारणि बिहुँ परि वय भणियइ ४ ऋजु-जड धम्म 'दुहेलउ लक्खहिं वंकुड-जड दुख-लविस्वहिं रक्खहिं मज्झिम-कालि' जीव रिजु-पन्ना "सुखि लक्वहिं मुखि रक्स्वहिं धन्ना' ६ 'साहु साहु गोयभ तुह पन्ना एह भंति मह चित्तह छिन्ना 'अन्न वि एक अस्थि संदेहू तं पि हु गोयम "माझु कहेहू' ८ घत्ता तो गोयम वुच्चइ 'जं तुह रुच्चइ तं पुच्छेह भदंत लहु' तं निसुणि महेसी पभणइ केसी विणय-धम्म पयत बहु 'एकु ''जहिच्छा-वेसु 1 वहिज्जइ अवर पमाणोपेतु हिज्जा चरण चरंतह नस्थि विसेसू किणि कारणि किउ बिहुं परि वेसू' २ *निह तणउं मन निच्चल होई तिह" मनि वेस-विसेसु न कोई जे चल-चित्त कया-वि चलंते ते वि हु वेस-विसेसि वलंते ४ निश्चल-मन भरहेसर-राओ। विणु मुणि-वेसह केवलि जाओ पसनचंद जो" झाणह चलियउ वेस विसेसु देखि सो18 वलियउ' ६ 'साहु साहु गोयम तुह पन्ना एह भंति मह चित्तह छिन्ना अन्न वि एक अत्थि संदेह तं पि हु गोयम माझु कहेहू' ८ घत्ता तो गोयम वुच्चइ 'जं तुहु रुच्चइ तं पुग्छेह भदंत लहु' तं निसुणी महेसी पमणइ केसी विणय-धम्म पयडंत बहु ॥९ 1B तं 2 B पूछइ 3 A च्यारि महव्वय 4 B मानि 5 B दोहेलइ लक्खइ 6A दुक्ख रक्खहि लक्खहि । 7A जिउ रुजु 8 B सुख रक्खिहिं 9 A अनु 10 B मज्झ 11 B. जहिइच्छा I2. A. वहीजइ 13. A. कहीजइ 14. A. जीह 15. A. तीह 16. A. केवलु 17. A.जउ 13. A. जो Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'गोयम सत्तु- सेणि धावंती सग्गि मच्चि पायालि वदीती 'एकि पांच पांच दस पाडिय केसि कहइ 'रिपु किसा कहीजई' 'जे कसाय इंदिय - रिउ भणियई जं मण - "विणु बहु बंध न लागई 'साहु साहु गोयम तुह अन्न वि एक अस्थि संदेहू पन्ना तो गोयम वु वइ तं निसुण मसी 'पास - बंधि " बांधिउ इह - लोगो सो तई पास बंध किम छिंदि उ 'पास - बंध मई मूलह तोडिउ 'पासु किसर' केसी इम भासइ 'मोह-पास पसरत सिणेहू मोहबद्ध " जाणंतर मूझइ 'साहु साहु गोयम तुह पन्ना अन्न वि एक अस्थि संदेहू तो गोयम बुच्चइ तं निणि महेसी केसी - गोयम-संधि [4] दीस "तुम्ह भी आवंती सात एकलडइ किम जीती ' दस जिणि सेस - सत्तु निद्ध । डिय तो गोयम-गुरि ते पयडीजई "इक मनि जीतइ ते सवि जिणियई जिम बिहु भाई सुनियइ आगई' ६ एह भंति मह चित्तह छिन्ना तंपि हु गोयम माझु कहेहू' ८ घत्ता 'जं तुहु रुच्चइ पणइ केसो 'देहुब्भव विस- वेलि महंती विसमय-फल-दल- कंदल-मूली [६] तं पुच्छे भदंत लहु ' विजय- धम्म पयडंत बहु घत्ता 'जं तुहु रुच्चइ पभणइ केसी [ ७ ] वर - वेरग्ग- स्वग्गि छिंदेहू . 6 बंभदत्त जिम क्रिम-इन 10 बूझइ ' एह भंति मह चित्तह छिन्ना तंपि हु गोयम माझु कहेहू' दौसइ जं तु आपण 13 आपइ जु विछोडिउ' *" तर गोयम गुरु तं जि पयासइ ४ दीण निहीण स- सोगो 2 दीसइ मन " आनंदिउ २ तं पुच्छे भदंत लहु' विणय - धम्म पयडंत बहु ॥९ तिहुयण-तरु छाए "विहतो सात गोयम 1. A. सेणि 2. B. तुज्झ 3 A विदीती 4. B. पांचे 5. 7. A. भाइय 8. A. वधउ यहु 9. B. हीण 10. B छेदिउ 11 13. Bजि 14. B. तु 15. B जाणंत न मू० 16. B सूझइ A. केम 19. B. उम्मूलीय ८५ किम 19 ऊमूली' २ ४ ॥९ B. इकि 6. A. विहु B तुम्ह 12 B मनि 17. A विरहती 18. ८ २ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ 'मईं विस- वेलि- मूल स्वणि सोहिउं 'वेलि किसी' इम पूछइ केसी 'भव तण्हा विस- वेल्लि भणीजइ जं जगि विसय पिवासा नडिया 'साहु साहु गोयम तुह पन्ना अन्न व एक अस्थि संदेहू तो गोयम वुच्चइ तं निणि महेसी तो गोयम वुच्चइ तं निसुणि महेसी संधिकाव्य-समुच्चय 'जाल - कराल जलइ जा अग्गी सा तई गोयम किम उल्हाविय 'सा मई" मेह- नीरि निव्वाविय भइ केसि ' के पावग पाणी' 'कोव जलणु जिण' - नलहर - 'वाणी कवि जलंतु स्वगु 'अहि थाई 'साहु साहु गोयम तुह पन्ना अन्न वि एक अस्थि संदेहू 10 घत्ता 'जं तुहु रुच्चाइ पभणइ केसी [<] "त हउ तसु विस- वाइ न मोहिउ' " तर गोयम-गुरु कहइ सुहेसी विसय मुल संवेगि खणीजइ दो-वि सुवन्नकार भवि पडिया' एह भंति मह चित्तह छिन्ना पहु गोयम माझ्झु कहेहू' घत्ता 'जं तुह रुच्चाइ पभणइ केसी [ ९ ] दूद्दमु दुट्ठ तुरंगम मच्छइ गोयम 12 तेणि तुरंगमि 15 चडियउ 'मई सु तुरंगम दमि वसि कीधउ 'आसु" किसउ' केसी पूछेई ६ तं पुच्छेद्द भदंत लहु' विणय-धम्म पयडंत बहु ॥९ माग मेल्हि उमागि जु गच्छ तुहु कहि केम उमागि न पडियउ' २ तउ हउं तीणि उमागि न लीघउ ' 1 " तर तसु गोयम ऊतर देई 14 ४ 1. B. तुहुं तिणि विसमाइ 2. B. तो गुरु गोअम कह० 3. B. तर 4. A. केम 5 A. मह 6. B. जिअ 7. A. ठाणी 8 B. जाणेवउ 9. B. णमाई 10. A. अछइ 11. B. उम्मग्गिं जि 12. B. तीणि 13. B. चडिउ, तुं कहि किम उम्मग्गि न पडिउ 14, B. हुं तीणि उम्मग्गि 15. B. किसु 16. B. तुतिम गोअम संतावर देहंतरि लग्गी 8 जं तुह तणु दीसइ अण-ताविय' २ उ तिमिह तणु न हु संतात्रिय' गोयमु : कहइ अमियमइ वाणी 8 जावि सुय सीयलु पाणी नागदत्तु उवसमि सिवि जाई' ६ एह भंति मह चित्तह छिन्ना तंपि हु गोयम माझु कहेहू' ८ तं पुच्छे भदंत लहु' विणय - धम्म पयत बहु ॥ ९ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केसी-गोयम-संधि ८७ 'चंचल चित्त' तुरंगम जाणउ सोइ जु एकु दमी वसि माणउ रामि दमी मनु तिम वसि कीधउ जिम सीतेंद्रि उमागि न लीघउ' ६ 'साहु साहु गोयम तुह पन्ना एह भंति मह चित्तह छिन्ना अन्न वि एक अस्थि संदेह तं पि हु गोयम माझु कहेह' ८ पत्ता तो गोयम वुच्चइ 'जं तुह रुच्चइ तं पुच्छेह भदंत लहु' तं निसुणि महेसी पभणइ केसी विणय-धम्म पयडंत बहु ॥९ [१०] दोसहि माग अणेग अतुल्ला जेहिं जीव "भवि भमडइं 'भुल्ला नय निय मागु भल उ सवि बोलहिं गोयम किम तुहु तेहिं न डोउहि २ 'माग-कुमाग संवे10 हजाणउं 11मेल्हि कुमाग सुमाग वखाण 'मागु किस' केसी इम जंपइ तं सुणि गोयम एम पयंपइ ४ 'मागु सु जो जिणवरिहिं कहीजइ अवर कुमागु न तेहिं गमीजइ 1"सुलसाइ मनु मागि जु15 लाग अंबङ-वयणि सु14किमइ न भागउ'६ 'साहु साहु गोयम तुह पन्ना एह भंति मह चित्तह छिन्ना अन्न वि एक अस्थि संदेहू तं पि हु गोयम माझु कहेहू' ८ पत्ता तो गोयमु वुच्चइ 'जं तुहु रुच्चइ तं पुच्छेह भदंत लहु' तं निसुणि महेसी पभणइ केसी विणय-धम्म पयांत बहु ॥९ [११] 'जे नर नारिहि नीरि निम नहिं लोभ-वेलि कल्लोलि हणिज्जहिं तीह जु होइ सरण गइ ताणू गोयम कोइ अछइ सो ठाणूं' २ 'अंतर-दीवु पवरु छइ एगो 15जित्थु न पहवइ सो जल-वेगो' केसि कहइ 'जलदीव ति कईसा' गोयम पभणइ10 पयड ति अइसा ४ 'भव-सायर-जल पातक-कम्मू अंतर-दीव-सरीखउ धम्मू 1 दिढपहारि कि उ पाप पयंडू धम्म-पभावि 1 कियउ सय-खंडू' ६ 1. A. चित्ति 2.A आण्यउ 3. B दमी जिम शिव वसि 4 B. तिम सीतिदिअ 5. B. जेह 6. B भव भमडिहिं 7. A भूला 8. A बोलइ9. A डोलह 10 Bह 11. B. मेल्लि 12. A सुलसाहइ 13 B ज 14 B तु 15. B जत्थ 16. B पयंड ति जइसा 17. B दड. 18 B. थयउ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय 'साहु साहु गोयम तुह पन्ना एह भंति मह चित्तह छिन्ना अन्न वि एक अस्थि संदेहू तं पि हु गोयम माझु कहेहू' ८ घत्ता तो गोयम वुच्चइ 'जं तुहु रुच्चइ तं पुच्छेह भदंत लहु' तं निमुणि महेसी पभगइ केसी विणय-धम्म पयर्डत बहु ॥९ [१२] 'बेडुलडी बहुविह पूरिज्जइ "इक तरइ इक जलइ निमज्जइ सा बेडी कहि किम जाणोजइ जणि सायरु निच्छई लंघोजई' 'जा निच्छिद्द निरि न भरीजइ तिण बेडो जल-ससि तरीजई' पूछइ केसी तरीय-विसेसू बोलइ गोयम 'कह असेसु अकय-दुकय-जल-संगह-देह भव-जल-तरण-तरी-समु एहू आसवि भवु संवरि सिवु थाए । कंडरीक-पुंडरिकह न्याए' 'साहु साहु गोयम तुह पन्ना एह भंति मह चित्तह छिन्ना अन्न वि एक अस्थि संदेहू तं पि हु गोयम माझु कहेह' ८ पत्ता तो गोयम वुच्चइ 'जं तुहु रुच्चइ तं पुच्छेह भदंत लहु' तं निसुणि महेसी पभणइ केसी विणय-धम्म पयर्डत बहु [१३] 'अंधयार घण घोर भयंकर । गोयम पूरि रहिउ' भवणंतर "अच्छइ कोइ जु तिमिर हरेसि महि-मंडलि उज्जोम करेसि' 'ऊगिउ अबइ एकु जगि भाणू सो करिसिइ उज्जोय पहाणू" केसी भाणु मुणेवा चाहइ . तक्खणि गोयम गुरु तं "साहइ ४ 'वद्धमाण-जिण निम्मल-नाणू उदयवंतु जाणेवउ भाणू मह मणि मिच्छा-तिमिरु फुरंतउ वीर-तरणि अवहरिउ तुरंत ।' 'साहु साहु गोयम तुह पन्ना एह भंति मह चित्तह छिन्ना अन्न वि एक अस्थि संदेहू तं पि हु गोयम माझु कहेह' 1. A. पूरिज्जहिं 2 A एक तिरह 3 B. निमज्जहिं 4. B सइ 5. B सवि स० 6 B घणु 7 A ह्यउ भुव० 8. A अछइ कुइ जु तिमिर हरेस्यइ9. A करिस्यइ 10 B. भासइ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केसी-गोयम-संधि पत्ता तो गोयम वुच्चइ 'जं तुहु रुच्चइ तं पुन्छेह भदंत लहु' तं निसुणि महेसी पभणइ केसी विणय-धम्म पयत बहु ॥९ [१४] 'जम्मण-मरण-रोगि जगु पीडिउ दीसइ दुखि निरंतर भीडिउ गोयम अच्छइ कोइ पएसो 'जित्थु नही जर-मरण-पवेसो' 'ठाणु एगु छइ उत्तम लोए जहिं जर-मरण-पवेस न होए' केसी जंपइ “किसउं सु ठाणं' गोयम वासु करइ वक्खाणूं 'सिद्धि-सिलोवरि अस्थि पहाण मुक्खु एक अजरामर-ठाणूं साचइ जम्मण-मरणि जु बीहइ सिवकुमार जिम सो "सिवु ईहइ' 'साहु साहु गोयम तुह पन्ना सयल भंति मह चित्तह छिन्ना' इम भणि कय-किइ--कम्म-विसेसू केसि लियइ गोयम-वय-वेसू पत्ता इम करवि विचारू संनम-सारू पालेविणु जे मुक्खि गय ते गोयम-केसी चित्ति निवेसी शायहु भवियाणंदमय 1. B जत्थ 2 B. किइसउं ठाणउं 3. B मरण जि 4. B सुह 5. B. संजमभारू 6. अन्तः A. । इति श्री केसीगोतमसंधि समाप्तः ॥६॥ B. ॥१०॥ इति श्री केसीगोअम संधिः संपूर्ण । श्रा० सोभी-पठनार्थमलेखि श्री उदयनंदि सूरि-शिष्येण ॥द०॥ १२ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४. भावणा-संधि [कर्ता : जयदेव मुनि रचना-समय :ई. स. १४००पूर्व, लेखन-समय : ई. स. १४१३] ध्रुवक पणमवि गुण-सायर भुवण-दिवायर जिण चवीस-इ इक्क-मणि अप्पं पडिबोहइ मोह निरोहइ कोइ भव-भावणवसिण ॥१ [१] रे जीव निसुणि चंचल-सहाव मिल्हे विगु सयल वि बज्झ भाव नवभेय-परिग्गहु विविह-जालु संसारि 'अत्थि सहु इंदियालु २ पिय-पुत्त-मित्त-घर-घरणि-जाय इह-ले इय सवि वि सुह-सहाय । नवि अत्थि कोइ तुह सरण मुक्ख ईक्कल्ल सहिसि तिरि-नरय-दुक्ख ४ अच्छउ ता दूरि णिय-वर(१)-गेह निय-देह वि नवि अप्पणउं एह इणि कारणि मन करि 'मुढ पावु ससि-निव जिम होसिइ पच्छयावु ६ मन रच्चि रमणि-रमणीय-देहि वस-मंस-रुहिर-मच-मुत्त-गेहि दढ-देवि-रत्त मालव-नरिंदु गय-रज्जम्पाणु हुअ पुहइचंदु ८ इक्केण वि आसवि पुरिस सत्तु अहि पडइ झत्ति सिढिलेवि गत्तु पंचासव-सत्तउ जु जि होइ तसु का गइ त्ति नवि मुणइ कोइ १० पंचिंदिय-विसय-पसंग-रेसि मण-वयण-काय नवि संवरेसि तं वाहसि कत्तिय गल-पएसि जं अट्ठ-कम्म नवि निज्जरेसि १२ अह सत्त नरय तिरि मेरु पंच अस्संख दोव-सायर-पवंच बारह नव सग्ग पणुत्तराणि इह लोगह वित्थर निउण जाणि १४ चउविह-कसाय-विस-हरण-मंत जिण-वयण सुणहिं जे पुन्नवंत घण-पुलइयंग मणि सद्दहति सिव-लच्छि-वच्छि ते हार हुति १६ वर-हरि करि-रह-भड-सज्ज रज्ज पाविज्जइ भवि भवि भूरि भज्ज न वि' लब्भइ दुल्हु पुण पवित्तु अरिहंत-देव-गुरु-साहु-तत्तु १८ घत्ता इय बारह भावण सवण-सुहावण भणवि एव जीवह सरिसु दुल्लहु मणु पत्तणु धम्म-पवत्तणु दस-दिट्ठतिहिं वज्जरिम् ॥१९ 1. A इत्थ सउ 2 B सव्व 3. B एकल्लु सहसि 4. B जीव पात्र 5. B पुरिस सत्त 6. A मणुअलोइ 7. B दुल्लइ लब्भह 8. B भावेण वि जीव० Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावणा-संधि [२] 'इह अणायम्मि संसरि तमणाइओ आसि गोलेसु कम्मेहिं मुच्छाइओ ता अणंताओ कालाओ पावढिओ तं निगोयाउ भवियत्रया-कढिओ २ पुढवि-कायाइ छक्काय-कायट्ठिमो गंत-कालं च पुण मरवि तत्थ-द्विओ तो अकामेण निज्जरिय-कम्मतमोतं ति कहकहवि उत्पन्न माणुस्सओ ४ चुल्लगाईय दिळंत-दस-दुल्लहे जीव संपत्त' मणुयत्तणे वल्लहे जं [जि] जिण-धम्मि सामग्गि मुक्खंकरी स जि तुह जाइ सग्गोवरे मंजरी ६ पुणवि रे जीव सामग्गि एवंविहा अन्न-जम्मम्मि मन्नामि तुह दुल्लहा ता पमाएण सा कोस विह लिज्जए मणुय-भव-तरह धम्म-प्फलं लिज्जए ८ दहइ गोसोस-सिरिखंड छार-क्कए छगल-गहणट्ठमेरावणं विक्कए कप्पतरु तोडि एरंडु सो वावए जु ग्जि विसएहिं मणुयत्तणं हारए १० सुमिण-पत्तम्मि रज्नम्मि सो मुच्छए सलिल-संकंत-ससि गिन्हि वंछए अबिय-खित्तेसु धन्नाइ सो कंखए । जु ज्जि धम्मेण विणु सुक्खमाविक्खए १२ किं तुमंधो सि किं वा वि धत्तूरिओ अहव किं सन्निवाएण आऊरिओ समय-समु धम्मु जं विस व अवमन्नसे विसय-विस-विसम अमयं व बहु मन्नसे १४ "ति ज्जि तुह नाण-विन्नाण-गुण-डंबरा जलण-जालासु निवडतु जिय निब्भरा पगइ-वामेसु कामेसु जं रच्चसे तेहिं पुण पुण वि नरयानले पच्चसे १६ असुर-सुर-रमणि-भोगेहिं जं न तुट्ठओ मणुय-विसएहिं कि होसि जिय पुट्टो इत्थ अत्थम्मि निण-भणिय सिद्धंतओ मुणई इंगालदाहस्त दिटुंतओ १८ घत्ता जिम तुह मणु रिद्धिहिं विलय-समिद्धिहिं तिम जइ धम्मि वि होइ जिय ता सिव-उक्कंठिय करयलि' संठेय सुर-नर-पुह अणुसंगि हुय ॥१९ [३] सो धन्नउ धन्नउ सालिभदु कयउन्नउ अन्नु वि थूलभदु ते सरह भरह-वगराइ-राय खयरिंद-नरिंदिहिं नमिय-पाय "अप्पेण वि कारण1 झत्ति जेहिं वेरगाऊरिय-माणसेहिं छडेविणु घर-पुर-रमणि-सत्थ वय गिन्हिवि साहिय परम-अत्थ 1 B अह 2. A संपत्ति 3. A. तज्जि 4. A. निव्वाण 5. A. जेहिं 6. A. ठिउ 7. B. ०यल 8. B. संग 9. A. अप्पण 10. A. कत्ति Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधिकाव्य-समुच्चय तं पुण पिय-परिभव-ताडिओ सि दालिद्द-रोग-सय-पीडिओ सि 'जं लग्गसि घट्ठिल ?) कुक्कुर व जं अच्छसि गड्डा-सूयर व्व। कि लोहिंघडिय[3] हियउं तुज्य ज मुणियह नवि तुह तणउं गुज्झ जं पत्तइ पिअ-मरणाइ-दुविख नवि फुटइ नवि लट्टेइ मुक्खि पंचासवि अज्जिय पई जि दुक्ख अणुहवसि ताई तं चेव तिक्व जिणि जीवि करंबउ खद्ध एव सहिसिइ सु विलंब सययमेव जं अन्न-जम्मि करुणं रुयंत पई मारिय निग्घिण जंतु हंत तं रोग-सोग-दुह-विहुर-देहि अक्कालि' वि वच्चसि मच्चु-गेहि जं कूड-कवड पयडिवि असार पर वंचिवि किउ दवावहार तिणि तुज्झ इत्थ जड सडिय जीह अनुहय दलिदिय-मज्झि लोह नब-जुव्वण-मयण-परावसेण परदार विडंबिय तं जि जेण तं जायउ कुहिण गलिय-गतु सोहग्ग-रूव-लावन्न-चत्तु घर-दार-परिग्गह-वावडेण पई धम्म चत्त धण-लंपडेण हिव 11नरय पडतह तुज्झ मूढ को देसिइ हत्थालंबु गूढ पत्ता आरंम करेविणु जीव 1 Bहणेविणु विविह वाहि किम सहिसि जिय सलसलतां संपह हियडउं कंपइ वंका पडिसिइं डंभ तुह ॥१९ 1 अप्प-रोगेहिं कि होसि जिय कायरो जेण तुह पासि निय-माय-पिय-भायरो किं न संभरसि निग्गोय-पुढवाइयं दुक्खमणुभूय-पुव्वं तए णाइयं समगमाहार-नीहार-कय-वेयणो जुगवमूसाप्त-15नीसास-निच्चेयणो तं निगोएसु भन्नुन्न-भव16-भीडिओ आसि रे जीव सिय-ताव-परिपीडिमो ४ अह-मूलो य सत्तावरी गज्जरो गंत-काएसु तं विहिउ सय जज्जरो किसल गिरि-कंद नव-वत्थुलो सूरणो 1"तिल्लि तलिमो सि कढिओ सि किउ पूरणो 1. B नो वगिसि 2. B. लोहिं पडिउहियं तुरुज 3 B न वि मुणियई तुह तण गुब्भु 4 B नवि लहेइ 5 Boवइ.6Aविहुरु-देहु 7. B. अक्काल 8. B. पयडवि 9. B तइं 10. A. णेण 11. B निरय 12. A पडता 13 B. वहेविण 14. B इत्थ रो० 15. B निस्सास 16. A भर-भी० 17. A तल्लि ति. Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावणा-संधि तो समुप्पन्न पत्तेय-तरु-संगओ मूल-फल-चिंट-दल-बोय-पुप्फंगओ जा कुहाडिहि नो वढिओ उड्ढओ ताव हिम-जलण-जालावली-दड्ढओ ८ पुढविकायम्मि पीलिय फलिहोवलो लवण-मणि-रयण-हरियाल तह हिंगुलो । कुसय-कुद्दाल-हल-चंचु-चय-चुन्निओ सवरसत्थेहि टंकेहिं तं छिन्निओ १० नीरु नीरेण तिक्खेण खारेण वा कडु-कसाएण अंबिलिय-महुरेण वा सिसिरु उन्हेण उन्हों व सिसिरेण वा पवणु पवणेण निहणिज्ज ख(?ज,लणेण वा १२ जलण सलिलेण अन्नेण वा खिज्जए इय सवरसत्थ-सत्थेहिं निय भिज्जए। इत्थ उत्पन्न अन्नाणि तं' ताडिओ रागले सेण किं मुयसि आरा डिओ १४ कह वि बेइंदि-तेइंदि-चउरिदिओ तं जि जाओ सि अस्सन्नि पंचिंदिओ तत्थ सीय-ताव-छुइ-जलण-संताविओ णेगहा जिव पंचत्तणं पाविओ १६ असण-पाणम्मि स्वाइम्मि तह साइमे तं जि दलिओ सि तलिओ सि उग्गाहिमे थेव-दुक्खेहिं मन होसि जिय कायरो "तासु को बिंदु जो पियइ किर सायरो १८ . घत्ता घण-कम्मिहि छ इय" पाणि अणाइय तह य काल-मिच्छत्ति पुण जगि नत्थि “स ठाउं जीवह काउं जहिं न हुअ जम्मण-मरण ॥१९ अह हुय पारद्विय पुहइशालु मच्छउ अनु मच्छिउ गुत्तिवालु अहि-वग्घ-सीह-चित्तय विचित्त मारेवि जंतु तं "नरय पत्त पनरह' परहम्मिय तत्थ हुति ते18 धाईय दिसि दिसि किलिकिलंत 1 घडियाला कढिय तेहिं तेम । नाडेर-मज्झि खुडहडिय जेम और किस खडिय जेम ४ ते पिडिय तक्खणि मिलिय खंड पास्य जिमि नारय हुयपिंड रूर-ताव-दाव-दहणेण दोण लूणिय जिम पिंडिय1 तावि लीण ६ असिपत्ति महणि आसंण जावसो विद्ध उ पहरण-नियरि ताव जा सरइ जंतु 34वेयरणि-सिंधु ता वेलुय-भुग्गउ गलि उ मुद्घ ८ 1. A पीयलिय 2. A. हय-चंचू-चयलुनिओ 3. A. उन्हे 4. A खलि. 5 B. भज्जए 6. A अंनाणु 7. B तुं 8. A लेसेहिं 9. A पंचत्तयं १०. B तस्स को विह जो. 11. B छाईउ 12. B. अणाईउ I3. B बह य कालि 14. A तराठाउं 15. A वाह 16. B निरय 17. B परमाहम्मिय 18 A ता 19. A. घलियाला कढिउ 20. B. हूय य 21. A ताव लीणु 22. A आंसीलु 23. A ता 24. A वेरयणि 25. B ताव वेलूय Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ संधिकाव्य-समुच्चय अह ढंकिहिं भुत्तउ' तडफडंत जंतेहिं निपीलिउ कडयांत रहि जुत्तउ तट्टा तडयडंत . वजानलि पक्कउ कढकढंत कत्थइ घण-मुगरि मारिओ सि खर-सिंबलि-सूली-विधिओ सि . कत्थइ निय-मंसं खाइओ सि अन्नस्थ य तउयं पाइओ सि १२ तह खडो खंडिवि खंड-खंड दिसिपालह बलि किउ तं जि भुंड इय क(कि) त्तय कहिज्जई निरय-दुक्ख जं जीव सहिय पई मुक्ख तिक्ख १४ वह-वाहण बंधण-तज्जणाई छुः- उन्ह-तिन्ह-डहणकणाई। आरंकुप्त-क(?कु)सलय-ताडणाई सहि याई जीव तिरिएसु ताई १६ मणुएसु वि दोहर रोग सोग 'दालिद पराभव "पिय-विमोग धणहरण मरण चारय-निरोह "पई सहिय परुषसि 1°विविह 11दोह १८ घत्ता परभव पेसत्तणि सुर-दासत्तणि देवत्तणि पत्तई सहिय ता जिणवर-धम्मु करहि सुरम्मु जिमि नवि पाविहिं दुक्ख 15 जिय ॥१९ धम्म न करेसि चिंतेसि सुह मुत्तिए 14चणय विक्केसि वंछेसि वर-मुत्तिए जं जि वाविज्जए 15 तं जि खलु लुज्जए' भुज्जए जं जि उग्गार तसु किज्जए २ पुव-कय-कम्म-दोसेण बाहो-गणो ता न धीरेण देयं 1 विसाए मणो सुणि सणंकुमर-चक्कवइ-अहियासिया वरिस-सय-सत्त 19वाहिय निन्नासिया४ सुव सिरि-वोरजिण-सहिय उवसग्गए कोस तुइ मूढ उम्मग्गि मणु लग्गए सुहह-चरिएण सुणिरण इह कायरो होइ खलु जेण सोंडीर-गुण-सायरो ६ सुद्ध-झाणेण लहु लद्ध-सिद्धालओ तह य सुमरिज्जए सुगयसुकुमालो जस्त सिरि जलिय-जलणेण चिर-रूढयं अट्ठ-घण-कम्म-कतारमवि दड्ढयं ८ झाणमट्ट च रुदं च ता वज्जए. जेण जोगेसु मण-सुद्धि सलहिज्जए इत्थ पुंडरिय मरुदेवि भर हे सरो पसनचंदो य दिटुंत "सुमणोहरो १० 1. B भुग्गउ 2. A. वकुयं 3. B खंड वि 4. B तउं 5. B दुक्ख 6. B वह 7. B. दारिद्द 8. B. विप्पओय 9 B. तइं 10. A. विहिय 11. B दोस 12 A पावह 13. A हय 14. B चिणय 15, A वाहिज्जए 16. B लिज्जए 17. B देओ 18. B विरिस 19. B वाहिउ 20. B जोगेण 21. B सुमणोरहो Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावणा-संधि जा न रोगेहिं सोगेहिं वाहिज्जसे जा न जर-मरण-रक्खेहिं भक्खिज्जसे ताव मुणि-धम्म धरि अहव गेहि-त्रए घरि पलितम्मि खणि सकइ को कूवए १२ जाव कर-चरण-नयणेहिं तं सज्जो ताव जिय होसु आवस्तए उज्जओ वुड्ढ-भावम्मि पुण मलसि निय हत्थए तुट्टि गुणि जेम धाणुक्क रण-मत्थए ११ छड्डि घर-घरणि-सुय-' भइणि-भत्तिज्जए देहि दाणांणि जड धम्मु संचिज्जए एहिं सव्वेहिं नवि जमह रक्खिजए' इत्थ दिटुंत नंदो वि निसुणिज्जए १६ सरह जिण-सिद्ध-मुणि-धम्म-चउ-सरणयं जेण नवि होइ मोहा उ पुण मरणयं सुहड एगो वि सरणागयं रकबए किं पुणो बहुयरे जीव12 रिउणो जए १८ दुकय निंदेसु करि सुकय-अणुमोयणं सयल जीवेसु मित्ती य सुणि चोयणं जेण भुत्तूण सुर-सुक्ख15 नीसल्लयं लहसि केवल्ल-कल्लाण-14बाहुल्लयं २० पत्ता निम्मल-गुण-भूरिहिं सिदिवसरिहिं पढम-सीस जयदेव मुणि किय भावण संधी भाव-सुयंधी निसुणउन्नु वि धरउ16 मणि ॥२१ 1.B.जमा-जर० 2. Aअलगेहव्वए 3.B परित्तेसि खलिओसि किं कृ. 4.B ता सजिओ 5. Bउज्जुओ 6. B मलसि 7. B सयण 8 B विण 9 B. ज्जसे 10 A जिम 11 Bनिसणिरे 12. A निउणो 13. B निस्सल्लय. 14. A वाहलयं 15. B निसुणह 16.Bधरह 17अंतः A भावनासंधिः ॥छ।। B. इति भावनासंधिः समाप्ता । लिखिता श्रीमति महीशानकनगरे ॥छ।। श्री।। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५. सील-संधि [कर्ताः जयशेखरसूरि-शिष्य रचना-समय : ई.स.१४०० पूर्व लेखन-समय : ई.स.१४१३] ध्रुवक सिरि-नेमि-जिणिंदह पणय-सुरिंदह पय-पंकय 'सुमरेवि मणि वम्म ह-उरि-कीला कय-सुह-मीलह सोलह संथवु करिसु हां जे सोल धरहि नर निरइयारु ___ तव-संजम-नियमह मज्झि सारु इह जम्मि वि सिरि-कित्तिहि सणाह विष्फुरइ समीहिय-सिद्धि ताह दीहाउ महायस इड्ढिमंत अहमिंद महा-बल-तेय-जुत्त अखंड-सीलधर भविय सत्त सुर-सुक्ख लहहि पर-लोय-पत्त तित्थयर-चक्कि-बल-वासुदेव सुर-खयर-नरिंदिहिं विहिय-सेव अन्ने वि जि तिहुयण-सिरि-निहाण ते सील-कप्पतरु-कुसुम जाण भुंजेविण सुर-नर-खयर-भोग आजम्म-काल-गय-रोग-तोग अखंड-सील-सोहिय-सरीर निव्वाण-सुक्ख लहु लहहि धीर सो दाणु सव्व-किरिया-पहाणु तवु सु ज्जि सयल-सुक्खह निहाणु सा भावण सिव-साहण-समत्थ अखंड धरिज्जइ सील जत्थ १० महिलाउ जाउ पर-रक्खियाउ लज्जाइ बंभ-वय-धारियाउ ताउ वि जंति सुरलोय चंगि जिणु भासइ पन्नवणा-उवंगि घत्ता जं कलि-उप्पायण जण-संतावण नारय-पमुह वि सिद्धि गय निम्मूलिय-हीलह निम्मल-सीलह तं पभावु पसरइ पयडु ॥१३ [२] निविड-सीलंग-सन्नाह-संनद्धया रमणि-जण-नयण-वाणेहिं जि न विद्धया चत्त-गिहवास सिव-सुक्ख-संपइ-°कए तेसि पणमामि भत्तीइ 'पय-पंकए २ तिव्व-तत्र-चरण-निद्धविय- रस-पेसिणो बहुय दोसंति लोयम्मि सुमहेसिणो . गरुय-सीलंग-भर-वहण-कय-निच्छया विरल किवि अस्थि पुण मुक्ख-तल्लिच्छया ४ जे बियाणंति धम्मस्स तत्त जणा सग-अपवग्ग-संपत्ति-कय-निय-मणा रमणि-जण-रूव-लावन्न- वक्वित्तया ते वि भव-भोय बंभम्मि चल-चित्तया ६ ___ 1. B समरेवि 2 B करिस 3. A कालु 4. B. सुरलोइ 5. A. बाणेहि 6. B. संपय 7. A. भत्तीय 8. A बह 9. B. निव्वया Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सील-संधि कोडि-सिलमिक्क-बाहाइ जे धारही बलिण दप्पिट नर स्वयर वसिकारही विसम-सर-पसर-पडिलग्ग'-प्तव्वायरा ते वि सोलंग-भर-वहणि अइ-कायरा ८ सीसु नामंति जे कस वि न हु अत्तणो सुहड-भडिवाय-पडिभग्ग- पडिससुणो । राग-निगडेहिं मयणेण* पुण दामिया ते वि अबलाण पाएसु नर नामिया १० बंभु चउ-बयण किउ रुद्द नच्चाविओ इंदु सहसक्खु तवणो वि तच्छाविमो सयल सुर विसय-जंतेण इय घल्लिया 'मयण मल्छेण इक्खु व्व संपिल्लिया १२ नाणवंता वि तह तविय-निय-देहया तिव्व-भावेण परिचत्त-धण-गेहया . 'राग-गह-गहिय पुण वोसमित्ताइणो लोग-पयडा वि अब्बंभ-पडिसेविणो १४ पत्ता सेणिय-निव-पुत्तु वि अइसय-जुत्तु वि नंदिसेग जिण-सीसु जह हूँउ विसयासत्तउ इंदिय-जित्तउ ता घिरत्थु इंदिय-बलह ॥१५ · [३] गुरु-धयण-अमय-रस-सित्त-अंग। वेरग्ग-खग्ग-हय-सयल-संग वम्मह-मय-भंजण दढ-पयन्न अक्खड सीलु पालहिं ति धन्न मयरद्धय-सबल-प्तमीरणेण सुरगिरि-गरुयाण'' वि चालणेण सील दुम कंपिउ नेव जाह गुरु-भत्तिहि पणमउं"पाय ताह" उन्भड-नवजुव्वण-आण-सज्ज नव-रंग चत्त जिणि अट्ठ" भज्ज़ मोहारि-अगजिउ सिद्धि-गामि सो जयउ जयउ जगि जंबु-सामि वेसह घरि छहि रसि रप्ति महारु वीसासिवि तिहुयण-मल्ल मारु झाणग्गि दहवि जिणि तसु विणासु किउ थूलभदि पय नमउं तासु .. रहनेमि पराजिउ विसय-वग्गि । पडिबोहि व ठाविवि जीह मग्गि सा सीलवंत उगसेण-धूय __सीलिग तिहु भुवणिहि पयड य १० "अभयादेवि संकडि पाडिएण मणसा वि न खंडिउ सीलु जेण महमहइ महारिसि-मज्झि" तस्स सिय-जसु गिहिणो वि सुदंसणस्स १२ 1. A. पडिभग्ग 2. A. वहण 3. A. पडिलग्ग 4. B मयणेसि 5 B मयणामोहेण 6. A. भव भविय 7. B. रोग 8. A जइ 9 A बलहो 10. B. धन्ना 11. B. गरूयाण 12. A पणमउ 13. A ताय 14. A आठ 15. A वीसासवि 16. B. थूलभद्द 17. B अभयादिवि 18 B मज्झ । Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ संधिकाव्य-समुच्चय १४ निय-सील-भंग-भय-भीरुयाहि अवि रज-लच्छि परिचत्त जाहि ते 'नमयासुंदरि-मयणरेह धुरि लहहिं महासइ-मज्झि रेह निय कंतु मुत्त सुमिणे वि जाउ पर-पुरिम् न' कंखहिं इत्थियाउ स्वसग्ग-संगि निव्वडिय-सत्त ताउ वि महासइ जिणिहिं वुत्त पत्ता सुभदा रइसुंदरि अंजणसुंदरि दोवइ-दवदंती-पमुह गुण-रयण-समिडिय भुवण-पसिद्धिय जयहिं महासह सील-घर ॥१७ अहह पिच्छेह सीलस्स माहप्पय राम-भज्जाइ अइ अच्छरिय-कप्पय पाय-फरिसेण फिडेवि जं पावओ नोरु लहलहा रोगग्गि-उल्हाविमो रोग-जल-जलण-विस-भूम-गहमुग्गया सीह-करि-सप्प-चोसार-उवप्तग्गया मारि-डमराह भय-करण जे दीसही सीलवंताण नामेण ते नासही ४ भाउ अइ-दीह रोगेहि परिचत्तय रूव-लावन्न-प्लोहग्ग-बल-जुत्तय नं च मन्नं पि अभिराम जगि गिज्जए सीलवंताण तं सयलु संपज्जए पणय-नीसेस-खयरिंद-नर-प्तामिओ नियय-भुय-बलिग इंदो वि जिणि नामिओ। अन्न-रमणीय कय-चितु लंकावई करवि कुल-नासु सो पत्तु अहर-गई ८ निरय-भवि अगणि-पुत्तलिय-परिरुंभणं तिरिय-जोण सु संढत्त-वह-बंधणं मणुय-जम्मम्मि दोहग्ग-छवि-छेयणं सोल-पब्भट्ठ पावंति बहु वेयणं १० मणुय-जम्मम्मि सरयन्भ-चंचलतरे गिरि-नई-वेग-सरिसम्मि जुवण-भरे । असुइ-तुच्छेसु विसासु नर लुद्धया मुक्ख-सुक्खाइं हारंति ही मुझ्या १२ सुहम-नव-मक्ख-जीवाण संहारणं देह-धण-कित्ति-धम्माण स्वय-कारणं सयल-दुह-मूल-महुबिंदु-सम-सुक्खयं विसय-सुह चयहु अहिलसहु जइ मुक्खयं१४ विसय विस सील अमयाण फल बुझिओ सील-भट्ठाण संसग्गमवि अग्निमो : सुद्ध-प्तीलम्मि ठावेह अप्पा गयं जेम अचिरेण पावेह निव्वाणयं १६ . पत्ता इय सीलह संधी अइय सुबंधो जयसेहरसूरि-सीस-कय भवियहु निसुणेविणुहियइ धरेविणु सील-धम्मि उज्जमु करहु ॥१७ 1. A नम्मया० 2. A कंखिहि 3. अंतः A.B. इति सीलसंधि समाप्ता । Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६. उवहाण-संधि [कर्ताः जयशेखरसूरि-शिष्य रचना-समयः ई. स. १४०० पूर्व] ध्रुवक फलवद्धिय-मंडणु दुह-सय-खंडणु पास-जिणि[द] नमेवि करि जिण-धम्म-पहाणहं तव-उवहाणहं संधि सुणहु जण कन्नु धरि ॥१ [१] सिरि-चरम जिणेसर-वद्धमाणि पमणिउ जह गोयम महुर-वाणि सिद्धत-मज्झि जसु पढम लोह तसु भणिउ पमाणु महानिसीह २ जह गिरिहिं मेरु गह-गणहं चंदु निवईण चक्कि सुर-गणि सुरिंदु तह वीर-जिणेसरि तव-पहाणु वहाणु भणिउ गुण-गण-निहाणु ४ जे निम्मल-वयण जण सोलवंत सम्मत्त-कलिय तह पुन्नत नीरोग-देह दढ-धम्म-गेह तव-सत्ति-जुत्त परिचत्त-गेह एवंविह सावय साविया य उवहाण वहहिं कय भावि भाव साहज्जिण नियय कुडं बयस्स सामग्गि सुगुरु निम्मल वयस्स ८ आरंभ नंदि-चेईहरम्मि कारावहिं भवियण उत्स(च्छ)वम्मि गुरु सीसि वासु तसु पक्खिवंति परमिट्टि पंच तव उद्दिसंति पत्ता साहम्मिय-वच्छलु कार व निम्मल सुगुरु-पासि पोसहुलियहि समभाव-सइत्तउ जयण करंतउ तव करेइ निज्जिय-करणु ॥११ [२] अह पढमुत्रहाणि उवास पंच करि वायण गिण्हइ पयह पंच अंबिल अड अहमु तह य अति बिय वायण पोसह सोलसं ति २ पडि कमण-खधि बोयम्मि जाणि तवु वायण पोसह पढम-माणि पण-संपय-वायण एग इत्थ बोया तिहुं संपय होइ तित्थ ४ भावारिहंत सक्क-थयम्मि अट्ठमि तवि वायण पढम जम्मि . तो सोलस अपिल वायणा य पुण सोलप्त करि फल लेहि काय ६ वायण तिहुं तिहुं संपएहिं पणतीसिहि पुजहि संपोसएहिं अरिहंत-वइण उववास अंति अबिल तिय पोसह चउ हवंति ८ इय वायण अह पंचम-तवम्मि गुरि वायणि दिग्जहिं तिन्नि तम्मि अट्ठम अनु अंबिल पंचवीस पोसह परिजहि अट्ठबीस १० Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० संधिकाव्य-समुच्चय घत्ता उवहाणु सुपत्थइ पोसहु पालेविणु चित्ति पसत्थइ वायण लेविणु करि चउत्थु पण अबिलइ मणुयत्तणु सहल करह ॥१२ इहु मणि उवहाण तवु पहाणु इक्कासी अंबिल जासु माणु उववास इत्थ च उवीस हुति पोसह पंचुत्तर सउ लियंति अह बाल वुड्डु तव-सत्ति-हीणु न हु सक्कइ इणि परि करि निहोणु सो अंबिल निवि य इगासणेहिं पूरइ उववास बि-आसणे हिं पासाइ कलसु बिंबिहिं पइट्ठ सोहइ जह देउलु वय विसिट्ठ भोयणु तंबोलि वर-तिलउ भालि तिमु सोहइ तवु उज्जमण-कालि उवहाण वहि वि जे माल लिंति ते सिद्धि-सुक्ख निच्छइ लहति ते अन्न-जम्भि न हु दास पेस मणुयत्ति न पावहिं दुह-विसेस । अह रु(क)णय माल जिण कारवेवि साहम्मी गुरजण बंधु लेषि कारंति नंदि अइ-उच्छवम्मि नक्खत्त-जोग सुंदर-दिणम्मि पत्ता भोयण-तंबोलिण वत्थ-विसेसिण सम्माणवि साहम्मि-जण पुरि उत्स(छ)वु कारहिं संघु हकारहिं गुरु पडिलाहहिं सुद्ध-मण ॥११ [४] अह तिन्नि पक्खिण जिण करेवि वंदेविणु चेइय वास लेवि गुरु मंत-मुट्ठि तसु सिरि खिवेइ 'तित्थारग पारग पारगु' तं भणेइ २ तो नियम देइ देसण करेइ कर-अंजलि सो विरइवि सुणेइ 'भो तई फलु लाद्धउ मणुय-जम्म अरु दिन्नु जलंजलि असुह-कम्म ४ जम्मंतरि तुहुं हुअ सुलह बोहि भव-भ[म]ण-पाव किय तइं विसोहि मह संघ चउब्धिह वास लेवि तं धन्नु सुलक्खणु भणि विवेइ ६ सुगंध कुसुम वा(१) माल ताम तसु बंधु ठवेइ कंठि जाम बज्जति गहिर तं पंच-सदि नच्चहिं अनु गायहिं अइ सु-सदि ८ उवहाण पवरु तव इम करेइ निय-धण-तणु-जीविय-फल गहेवि जई सिद्धि न पावहिं काल-जोगि सुह लहहिं तह वि गय अमर-लोगि १० पत्ता इय तव-उवहाणह . संधि पहाणह .. जयसेहरसूरि-सीसि कय जे पढहिं पढावहिं अनु मनि भावहिं ते पावहिं सुह-परम-पय ११. अंतः ।। इति उपधान-संधि ॥ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७. हेमतिलयमूरि-संधि [कर्ता : अज्ञात रचना-प्तमयः ई.स.१४०० पूर्व] ध्रुवक पाय पणवि सिरि-वीर-जिणिंदहं अनु सिरि-गोयम-सामि-मुणदो(दह) . हेमतिलयसुरिहिं गुण-डे सो संधि-बंधि हउ किं पि भणेसो ॥१ अस्थि नयरु नायोरु पसिद्ध उ । घण-कण-कंचण-रयण-समिद्धउ तहिं निवसइ गंधीय-कुल-मंडणु वीज उ साहु दुहिय-दुइ-खंडणु असत तसु घरि घरणि पहाणी सीलि विमल किरि सीता राणी तासु उयर-सरि हंस-प्तमाणू पुत्तु उवन्नउ पुन्न-पहाणू दोल उ नामु निरुपम-लखणु सरल-सहावु विणीय वियक्वणु कंचण-गोर सरीर प्रमाणू(१) दिणि दिणि वढइ सोहग-सारू घत्ता सो कलिय-कलागमु रूवि मयण-समु चउद वरिसनउ जं थियउ तं जण-मण मोहइ महियलि सोहइ सुर-कुमार जं अवयरिउ ॥७ __[२] वड्डइ गछि वाइयदेवसूरि अणुकमि सिरि-जयसेहरसुरि सुविहिय-विहिहिं विमुहि (?वसुहि)विहरंता अन्न-दिवसि नायउरि पता तहि भवियण-जण मण आणदिहिं गरुव महूसव गुरु-पय वंदिहिं देसण सुणहिं मुणहिं किवि तत्त लियहिं विरति किवि किवि सम्म तू ? दोलउ कुमरु निसुणि गुरु-वाणी 'संजमु टेसु' इसउ मनि जाणी माय ताय कहमवि मुकलावइ गुरह पासि व्रतु टेवा आवइ गुरु वीनवि थापिउ सुमुहुत्त मेलिउ दस-दिसि संघ बहुत्त कुडु-नयरि रिसह-जिण-मंदिर नंदि रचिय उछवि अइ-सुंदरि पत्ता तेरह तेवन्नइ (१३५३) वरिस रवन्नइ समण-धम्मु दल र लियइ तहिं संघि बइठ्ठइ सुह-गुरि तुट्ठा हेमकलसु तसु नाम किउ ॥९ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ संधिकाव्य-समुच्चय [३] अह अहिणव मुणिवर सेवंतउ पंच-महन्वय-भारु वहंतउ किरिय-कलावि सयावि अचुक्कउ कसु कसु कुणइ न चित्ति चमक्कउ २ पंच-समिय तिहुं गुत्तिहिं गुत्त उ दस-विह-समण-धम्म-उववत्तउ दिइ तिणि अहिणव मुणिर ए संघह मणि न हु हरिम समाए जयणा-जणिय- नगज्जिय-रक्खणु अमिय-महुर-मिय-वयणु सुलक्खणु निम्मल-प्सीलि कलिउ भवि सारउ सो मुणि थिउ मुणिवरहं पियारउ ६ जिम जिम सुद्ध-सहावु सऊजमु हेमकलस-मुनि पालइ संजमु तिम तिम सुइ-गुर-चित्ति वइट्ठउ ऍहु मुण होस्यइ गुणिहिं गन्दुिर ८ पत्ता तो सो मुणि धन्नउ सुह-गुरि दिन्नउ पढण-कग्जि सुय-सिरि-हरहं कय-सपय-पइट्ठा मुणि-मण-इट्ठह वयरसेण-सूरीसरहं ॥९ तो सिरि-वयर सेणसूरि-राओ तासु उवरि कय-गरुय-पसाओ शत्ति पढावइ क(?प)य-व-माणू आगम-लक्खण-छंद-प्रमाणू सुविहिय-विहि सवि जोग वहाविय सयल सुद्ध सिद्धत वचाविय सुहम विचार-सार सिक्ववियउ हेमकलसु तो गणि-पदु(दि) ठवियउ ४ सुह-गुरु-साथिहिं तित्थ नमंतउ देस-दिसंतरि विहि विहरंतउ वेयावाचु विण उ पयडंतउ हेमकलसु थिउ गणि विहरंतउ मह सुइ-गुरु सांभरिहिं पत्ता तत्थ साह पाल्हइ विन्नत्ता 'इकु पलाउ सामिय महु दिन । हेमकलसु वाणारिउ किज्जउ' ८ पत्ता तो मुह-गुरि विस्थरि सत्तरइ वच्छरि किउ वाणारिउ हेम गणि तहिं संघु हकारिउ उच्छ उ कारिउ पाल्हइ साहि विसुद्ध-मणि ॥ ९ [५] भासोजहिं जिम [घण?] गंभोरो सोम जिम सुपसन्न सरोरो रूवि मयण जिम मणु मोहंतउ तव-तेयहिं रवि निम दिपंतउ हेम कळस गणि पंडिय-राउ संजम-प्तिरि-थिर-कब-अणुराउ महियलि विह[१]इ विछाय-पमाउ भज्जंतउ वदिय-भडिवाउ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमतिलयसूरि-संधि जत्थ जत्थ पुरि पट्टणि मावइ तत्थ तत्थ संघह मणि भावइ जिम जिम आगम-तत्तु पयासइ तिम तिम मिच्छा-मग्गु पणासइ ठामि ठामि उन्नइ कारंतउ पंडिय-राउ एम विहरंतउ अन्न-दिवसि सुर-गुरि तेडाव्यउ कय-बहु-उच्छवि अहिपुर आयउ ८ पत्ता तहिं गुरु नमेविणु आइस लेविणु दियइ संघ उवएस-वरो तं सुणि जणु जंपइ होसइ संपइ एहु जि सुह-गुरु-पट्टधरो ॥९ [६] तहिं पुरि नाह'-स-पसिद्धउ ___ संघाहिव फम्मणु सुसमिद्ध उ अमर मेह पित्थड तसु पुत्ता । वयरसेणसूरि-गुरु-पय-भत्ता अचु दोल: जढियह(2) कुल-मंडणु गुरु-पय-भत्तु दोण-दुइ-खंडणु सधिय साह गोपति जसु भाई धम्मह कजि विसेप्स तहाइ ते विन्नवहिं सुगुरु 'पहु एइ. हेमकलसु निय-पट्टि ठवेहू' तं तूठइ सुह-गुरि अणुमनिउ रलियाइत थिय साह ति विन्नउ चउहत्तरई वरिसि जि हासिय वीयहं संघ मिलिय मण हरिसिय वीर-मुवणि महिपाल-पुरंतरि वट्टतइ आणदि निरंतरि पत्ता वज्जतइ तूरिहिं वयरसेणमूरिहि हेमकलस सुपट्टिहिं ठविउ अनु तसु जगि सारउ मंगल-कारउ हेमतिल कसूरि नाम किउ ॥९ [७] हेमतिलयसूरि पट्टि बयटुहं बहुविह-लद्धि-प्तमिद्धि-विसिहं भविय-जोय पडिबोह करतई बार वरिस जं गय विहरंतह तो तसु सुइ-गुरु भरु अप्पेविणु आरासणि निय आउ मुणेविणु दस-दिण अणपणु पालि निरुत्तउ । वयरसेणसरि सग्गि पहुत्तउ तक्वणि मिल्हवि मणह विसाउ हेमतिल कसूरि गणहर-राउ । महि-मंडल विहरइ गुणवंतउ दिणि दिणि गच्छ-प्तहिउ जयवंतउ तो गुरि बहु मुणि साहुणि दिक्विय झत्ति पढाविय विहि-मुह सिक्खिय तह तणा गुण जाणि जहिट्ठिय मुणि साहुणि जह-जुग्गि पइट्ठिय Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ वीलाड पुरवरि जसु महिम करंतइ सो गुरु निय- गच्छ संधिकाव्य-समुच्चय अह गुणि गरवउ सो गणधारू थेरा वसि नायउरि पहूतउ साठि वरिस ऋतु पालिउ निम्मलु अम्ह सव्वा वरिस चहत्तरि हव पुण थाकई जे दिण केई इम मणि संधु क (स्व) मावइ सुह-मणु मुणिहिं गुणी समइ सुहारभि गच्छ सीख देविणु सुह- चित्तू मणु-सय-त्रच्छरि सुगुरु-सुपट्टिई घत्ता [<] जणि गुणवंत अणु मुसि घत्ता निरइयार - विहि-विह (हि) य-[वि] हारू आउ जाणि तो भणइ निरुत्तर सात जात करि लियउ चरण- फलु मास तिन्नि ते पूरिय सत्वरि सफल करउं ते अणसणु लेई एगारस दिन पालइ अणसंणु बाह (रु?) त्त' इमाह वदि बारसि हेमतिलकसूरि दिव संपत्त अंत : ।। इति श्री हेमतिलकसूरि संधि ॥ पदमि साहि उडवु कियउ रणसिहरसूरि थपियउ ॥९ त्रिण - साणि (!णु) उज्जोइयउ संघह मण-छिय दियउ २ ४ 118 Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ तव-संधि [कर्ताः विशालराजसूरि-शिष्य रचना-समयःई.स.१४०. पूर्व, लेखन-समयःई.स.१४४९] ध्रुवक सायर-पणमिर-सुर-वीर-जिणेसर पणमवि पणय-पसन्न-मण तव-तिव्व-हुआसण-हुआ-कम्मिधण जो संपत्तउ नाण-धण [१] रे जीव तविज्जइ तव पहाण पामिज्जइ निम्मल जेण नाण जाणिम जिणमय तव बार-भेम निन्नासिम भव-भव-भमण-खेल २ अमय-आहार सुर-जम्मि किद्ध अनइ नर-जम्मि परमन्न निद्ध मोदक-दल सुत्तिम सेव सिद्ध खज्जाइ खद्ध घेउर पसिद्ध सालीय-दालि-घय-घोल-दुद्ध फल-जाई बहुपरि खद्ध मुद्ध तह वि न हु तित्तीम तुज्झ जाय रे जीव कीव पामिसि अपाय ६ किं किज्जइ जइ तई भणिम सत्थ किं किज्जइ जाणिअ बहुभ 'मत्थ महुरा-मंगू अवि निउण-लह रलिउ रस-गिद्धिइं अजिअ-जीह ८ पच्छाम वि सोमसि विगय-सन्नु भरुअच्छ महिस जह हुम रिहन्नु अवगणिम जणय वयण इं जो अ अकय-तव-चरण संपत्त-सोम तणु-मिसिए भरि तुह जाण लग्ग जउ सबलउ तउ तंउ नरय मग्ग अह निबलउ तउ छोडीवि देह लहु पहुचिसि जिम निम-मुत्ति-गेह १२ वरिसाण सहस पालेवि दिन तव-दूमिम छंडिअ-सुद्ध-भिक्ख रस-गिद्धि-प्तिइं कंडरीअ मुक्ख संपत्तउ सत्तम-नरय-दुक्ख १४ रे जीह रंकि तुह 'फिसिउं कान सहु लेसिइ ए उदर जि अलज्ज सरस सरस सवि आहार सार गल-तलि लेई करिसिइ असार १६ लंघण विणु निम नवि कोइ अत्थ अप्पइ अप्पउ' लहणउ जि इत्थ तिम किम विणु असणह रोड एह अप्पेसिइ सिव-सुह नरह देह १८ भवि भवि तूं खामि पियसि जीव पुण जिणमय-तव न तवेसि कीव तुह खर्बु नवि तोलाइ सेलि । तुह पिटुं नावई गणण-मेलि घत्ता इय चिंतिअ रे जिम करि नं निअ-हिअ बार-भेष-तव-तवण-पर 'तवि नवि पडिबद्धय जे रस-गिद्धय 'लहि सिई ते नर दुक्स्व-भर ।।२१ 1. A. असस्थ 2 A तुं न. 3. A. किस 4 A अप्पणउ 5. A. भावइ 6. B. अचिंतिअ 7. B तव 8 A लहसिई Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ संधिकाव्य-समुच्चय [२] मुक्ख रे जीव भुक्खाइ दुक्खं सयं. नर य जम्मम्मि पत्तम्मि जे पत्तयं तस्स दुक्खस्स णं तस्स माणं पुणो केवलन्नाणि जाणेइ नन्नो 'जणो २ मेरु-हिमवंत वेभड्ढ-पमुहा सुभा . लोग-मज्झम्मि जे पव्वया विस्सुमा तेह माणेहिं मन्नाई कु वियप्पए सयल सलिलं समुदाण पुण घप्पए ४ तह वि नरएस सव्वेमु जे सत्तया । पुज्व-कम्माण दोसेण संपत्तया कह वि तेहिं तु तित्तो न संपज्जए तेण आहार-रस-गिद्धि न हु किज्जए ६ पुण वि सुणि जोव तिरिअत्तणे पत्तए सहिम दुक्खे अकामेण रे जं तए हत्थि-जम्मम्मि भुक्खाइ सुक्काडिओ गलिअ-गत्तो सि गत्तासु तं पाडिओ ८ 'स्वर-करहेमु महिसेसु आसे विसे संबरे सूअरे वेसरे तह ससे बहुअ दिवसेसु असणं न वा पाणयं पावि नवि अ इ8 'तए ठणयं १० जलय-मच्छाइ-जम्मम्मि रस-गिद्धओ गलिय-गय-आमिसह कग्जि गलि विद्धमओ खयर-मज्झम्मि कण-कग्जि जालं गयो गहिय अन्नेहि वड़ियो म कालं गमओ १२ तह य विगलिंदि-चउरिदि-तेईदिए जार्य तं जीव बेहदि-एगिदिए एह आहार-कम्जेण पत्त-मरणो सि असरण कालंतरे १४ जस्स देवेसु उववाय न हु अन्नभो सो वि हरिवास-वासि वि ही जुगलियो वेरि-देवेण भरहम्मि इह आणि मो करिम पावाई रस-गिद्धि कुगई गओ १६ जस्त भीआउ मुद्धाभिसित्ता गया नयण-नीराभिसिच्चंत सेसं गया बाल-मंसम्मि रसिओ स-रज्जं पि सो हारिउ जाय सोदास वणि रक्खसो १८ इंद-आएसि धणएण जा निम्मिआ बारवइ-नयरि निवसंत-बहु-धम्मिआ जा य दीवायण-क्वित्त-जलणामया मज्ज-दोसेण तक्काल गय-नामया २० कन्ह-सेणी-पमुह सुद्ध-सम्मत्तया तित्थकर-वयण-नोरेण संसित्तया बार-भेअं तवं मूल-रूवं विणा सग्ग-अपवग्ग-फल-रहिअ हुम तक्खणा २२ घत्ता इणि' परि गुरु संपइ मह हिअ जंपइ कंपइ भव-भड-भइण मण ता निरुवम सत्तिअ तव-वर खत्तिअ झत्ति अ किज्जइ जिअ सरण ॥ २३ 1. B. जिगो 2. B. थपए 3. B. मुक्काडिओ 4. B. करह 5 B. अइद्ध 6. B. जाइ 7. A इणपरि Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तव-संधि १०७ [३] अह बार-भेम-तव-तवण-लग्ग छंडेविणु घर-पुर-रमणि-वग अणुकमि अणुमोअसु' साहु-सत्थ तुह होइ जेण' जीहा पप्तत्थ छम्मास भमंतई गामि गामि मोदक मिसि जिणि निम-कम्म पामि रिमें ऊरीकय नाण-सार । समरिज्जइ सो ढंढणकुमार ऊणोअरिआ तव तविअ जेहिं संग्ग-अपवग्ग-सुह लहिम तेहिं गोसालाइसु जे पुण विसेस तं जाणेवउं तव-महिम लेस जो चउ निम-निअमह भंग-भीरु न.. नरय-खयर-तिरि-जम्म-बीरु उज्झिय गय सुरगई धम्म-मूल सो नंदउ नंद उ वंकचूल साहिअ समग्ग भरहेण जेण तणु जाणिय परवस अ मयेण रस-छंडिअ वप्ति-किम-लद्धि-सिद्ध गय सगि सणकुमारो पसिद्ध जिणि तत्त-सिलोवरि निअ-सरीर सुक्का डिम लहु किय तेण धीर पत्तउ उत्तम-सब-सिद्धि सो सालिभद्द आसन्न-सिद्धि सिवि' रहिवं अचल अणंत काल तिणि कूव-पट्टि जो उभिआल सिक्खेइ थिरत्तण चउर मास संभूति-सीस सो दुइ-विणास निम-कम्मकार मण-वयण-काय तसु दोस जणाविम सु गुरु-राय तिन्नि वि छंडिअ जो मुत्त जाय सो जयउ सुज्ज सिव-सुह-सहाय विणएण जेण सि रे-वीर-सामि पामिश्र कामिअ किम वेरि नामि सो पुकसाल' वय-गह-रसाल जयवंत विणइ-जण-कुसुममाल । जिणि वाहिअ वेआवच्चि देह "दासह जिम भाडङ दिद्ध एह सुर-भोग पवर-रमणी-सिणेह सो नंदिसेण होसिइ अदेह विग्गह किम जिणि हठि वरिस बार निय-देह-दुग्ग-ठिअ कम्म-वार अक्सर-बलि कड्ढिम पत्त-नाण सो मास-तुसउ "मुणि-सुहड जाण. दढ झाण जस्स नाणेवि खे वि सुर-नर निअ-सिर धूणति ते वि जाणिम निसेह तिणि सिद्धि-पत्त सु पसन्नचंद-रिसि भव-विरत्त २४ सोवन्न-सेल-सम-पह-थिरस्स उस्सग्ग-राग जसु संठिअस्स. पासे धुब जिम धुव-दीव जाय सो नंदउ चंदवडिंस राय 1. B. अणुमोहसु 2. A. जेम 3. A. चूरी 4. A. सग्गाप० 5. A. जाणेसु 6. A. रिय 7 B. सिब 8. A च्यारि 9. A पुषमाल 10. A दीसहि 11. B. रिसि 12. B. सुंदर २६ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ इय जीन वियाणिय बहुविह कम्मासय संधिकाव्य-समुच्चय घत्ता आणिय संवर अइ उद्दामय माणिीय गुरु वय अमय-सम नामय निय-सत्ति विसम । २७ [४] * अह व पालेसि निच्च वयं निम्मलं देसि दाणं जाणंदणं बहुपरे भणिअ जाणेसि अत्थे पसत्ये तभो अहव पालेसि सम्मत्तयं सुव्वयं तो तया निम्मिआ धम्मु सवे परे चितयंता इमं नेव फलवद्धिणो एह आहार दिवसंतरा संभवे दिण पुहुत्तेण आहार वन्निज्जए वरिस - सहसेण जाएइ असणे मणो सुणि-न रे जीव तं किं पि कोऊहलं अहव जत्ताउ तित्थेसु कारेसि रे बारसंगाईं सव्दो वि सिद्धंतओ सत्त वित्तेसु सत्तीइ दव्य व्वयं एग गिद्धिं न छंडेसि जइ जीव रे किं पयं देसु एअस्स रसगिद्विणो भवण - नंतर जहन्नम्म देवे भवे झमाणं तहा "जोइसाणं जए भवणवइ-चमर - इंदाइ जम्मे पुणो पढम-बिम्मि सग्गम्मि दोहिं तहा दसहिं तह चउदसहि पंचमे टूए इगिग सहसेण जाणिज्न वुड्ढी इमा जाव नवमम्मि आहार गेविज्जए तह यतित स सह तेहिं तेणुत्तरा चक्कवट्टिस्स देवाइ- साहण-कए वासुदेवा बला मंडलस्सामिणो मुक्खि पत्ताण सत्ताण पाणासणं एह ठाणा अन्नं पयं सोहणं as वि एआण अन्नयर पय दिज्जए तेण एयरस तिरिअत्तणं जुज्जए सव्व पावाई कम्माई दुट्ठा गहा जोइणी-साइणी-भूम-वे आलया २२ 1. B. जइ वि 2. B जा इसाणं 3. B. येहिं 4 B. ठाणो ण 5. B जत्ता 6. A. बाइणी 7. B सोणु ● कास-सासाइ कुट्ठाई दुक्खावहा तिब्व-तव-साणुभावेण सव्वे गया ४ ६ तइय- चउथम्मि सहसेहिं सत्तहिं खु हा १० सत्तमे सतर- सहसेहिं मण-इट्ठए सेस - सग्गेसु गीवेअगेसु क्कमा एगतीसेहिं सहसेहिं वन्निज्जए विहि आहार-कामा मणेणं सुरा ठाण-ठाणम्मि अट्टम तवो किज्जए कज दुस्साह साहंति तव कारिणो नत्थि ते वि काळे विकइआ विणं नत्थि तेलुकिक सुक्खाण आरोहणं तो वि एसो विसीएइ किमु किज्जए जत्थ रत्तिम्मि दीसम्मि पुण स्वज्जए २० १६ ८ १२ १४ १८ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सो न मंतो न ततो न जंतो वि सो तं न कज्जं न सुक्खं जए. विज्जए नारयाण दुखाण व निवारणं तवउ तिव्वं तवं भविअ भावुज्जुआ सिरि-सोम सुंदर सिरि-विमालराया पय- नमिय सीसिइ सिव- सुक्ख कारण तव - संधि सो न देवो न सो दाणवो रक्खसो जं न तवसा खणेणावि संपज्ञ्जए सग्ग-प्रपवग्ग सुक्खाण पुण कारणं जं तुमं सिद्धि ईहेइ रिद्धि जुआ धत्ता गुरु-पुरंदर सुर-राया तासु सीसिह दुह-निवारण 1. B. मंतो 2 अंतः A इति श्री तपःसंधि समाप्त । सं. १५०५ वर्षे ॥ B. इति श्री तपस्संधि लिखिता देवकुले श्री तपापक्षे कृतमास्ते ॥ छ ॥ १०९ २४ पाय-पंकय-हंसओ चंद - गच्छवयंसमो एस संधी निम्मिआ तव उवएसइ वम्मिया ॥ २८ २६ ॥ २७ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कर्ता : अज्ञात पय पणमवि सिद्धह साहू गुणवंत १९. अणाहि-महरिसि-संधि रचना - समय : ई. स. १४०० पूर्व, लेखन समय : ई. स. १४३०] ध्रुत्रक नंदणवण - उम्मु धम्मत्थ-गई निसुणेहु तत्तु जीवहि ममत्त मोहिय-मणाहं' इह जंबु-दीव भारहु पसिद्धु तर्हि गरि पुरिहिं पायार- तुंगु नरवइ हि सेणिउ करइ रज्जु अन्नह दिणि राउ विहार-भूमि उज्जाण पलोहय चूय- चारु नालियर केलि नारिंग जाइ कोकिल - कुल बहु सारंग मोर तर्हि रुक्ख दःख नाणाविहाण - खति-संजुत्तउ नाग-समिद्धह चरण- पवित्तह पिक्खवि मुणि मणि चितइ नरिंदु अह सोम-मुक्ति संपुन्न- चंदु कुमाल के लि-गन्भह समाणु बपु दंतु खंतु गंभीर धीरू उवसम-निहाणु संचत संगु वंदे याहिण पुण करेउ अइ दूरि नवि य आसन्न -ठाउ अशुद्ध मूल पाठ : 1. मणांहु 2. तांह 7 उवससु० 8. दिय 9 सुकमालु सासय-ठाण- पर्यायह जोव अणाह सणाह किय [१] पडे सुगुरु निय-गुणहिं जुत्तु अणुसट्ठि देइ सुय भणिय ताह मिग-देषु धण-कण समिछ रायगहुँ नयरु जिणहरहिं चंगु हय-गय-रह-चड भड-कोडि- सज्जु उ मंडकुच्छि वर- वेइयम्मि चपय- असोय- वड- 'पीययारु (1) पाडल सेवत्तिय केवि जाइ कलहंस कीर वायस 'चकोर जोअंत जाइ तरु फल- निहाण घत्ता सुठु मणोरमु गुत्तिहिं गुत्तर ॥ १ ४ [२] किं खेयरु किं सुरु अह सुरिंदु तव तेयवंतु किरि दिणयरिंदु वपु देह - कंति - लक्खणह ठाणु मु'ण अमल-चित्तु नह सरय - निरु निच्छइ सुणिअइ मणि घरिउ रंगु उवविसइ नरेसरु नर - समेउ मुण पुच्छर अंजलि करिउ राउ 3. रायग्गिहु 4 तर्हि 5. रजु 6. पीयायारु ८ १० तर्हि पिक्खइ मुणि गुण-निलउ जिण दिट्ठइ पावह विलउ ॥ ११ २ ४ ६ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११ अणाहि-महरिसि-संधि 'अग्ज वि पहु तरुणउ जुव्वणत्थु काम-ऽत्थ-भोग-भुजेण-तमत्थु ८ सामन्नु एहु किम वहसि अज्ज तरुणत्तणि अइ दुक्कर पवज्ज महु कहहि सयलु निय-चरिउ एहु किम मुक्क दारु धण सयण गेहु' १० पत्ता मुणि रायह अग्गई कहह समग्गइ निय-वित्तंतु सुमहुरै-झुणि 'कारण सामन्नहं भव-निधिन्नहं निसुणहि नरवर एग-मणि ॥ ११ हउं अणाहो य नवि नाह महं कु वि जए कुणवि अणुकर बह सरणु पडिवज्जए' हसवि वयणं च पभणेइ मगहाहिवो। 'एस तुह इढेिमंतस्स नवि नाहओ २ होमि हउ नाह तुह विलसि सुह-संपया पंचविह विसय मणहरण सह-भज्जया देमि तव रज्जु पासाय हय गय भडा सेज वर-तूल तंबोल रस विच्छडा'. 'पढम अप्पणु अणाहो सि तुहुँ' नावरा नाहु किम होसि अवरह पुहवीसरा' भणिउ रिसि एव जा सेणि३ वयणयं चित्ति संभंतु पडिभणह मिन्नं हियं ६ 'वयणु सुणि नाह तुह एहु अपुव्वयं । भणिसि जं में अणाहो य सुह-संपयं मझ हय हस्थि रह जोह पुहई" धणं दास दासी य वर कामिणी परियणं ८ माणवडि मो य व इ मह परिमणो एरिसा रुद्धि भुजेमि सुह-गय-मणो सव्व गुण काम महु रुद्धि हं नरवई कह अणाहो [ह]उ भणसि जुद्र जई १० 1. भुजण 2. अयह 3. सुमुहर 4. महि 5. इच्छिमं० 6. पसाइ हइ ग० 7. तुह 8. अवरांह 9. संजंतु 10. पुहइ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ संधिकाव्य-समुच्चय पत्ता 'नवि मुणवि मणाहह अहव सणाहह नवि लब्भहि परमत्थु निव निम होइ अणाहु वि महर्व सणाहु वि सुणि अक्खडं हउं तुम्हि तिव ॥११ [४] निसुणि मं वित्तु मह पुच्छए तुह कह जिम अणाहो य जण-मज्झि हउं दुह सहं नयरि कोसंबिधण-रिद्धि-जण-संकुला पुरि पायारि मंदिरिहिं रयणुज्जला २ करइ तहि रज्जु मह बप्पु जण-सुहकरो तुरय-गय-लक्ख भड-कोडि अरि-खयकरो तत्थ मह देहि उदंड इय वेयणा पीड सव्वंग दाहेण गय चेयणा तिक्व-सत्थेण देहस्स अभिंतरे कुविउ जिम मरि विदारेइ उयरंतरे अदिठ-चम्मावसेसो निराणंदमओ। रयणि-दिवसाई वोलेइ गय-निदओ मज्झ दुक्खेहि मह जणउ तल्लिच्छ भो जेम सिल तत्त उवरम्मि जल-मच्छो राय-वयणेण आयरिय बहु आगया विज्ज मंतेहिं तेगिच्छ गह-कुसलया 'नरवरिदेण भणिया य तेगच्छिणो कुणहु नह होई नोरोगु मह नंदणो देमि तुम्ह रज्जु सार-भु(?) विउलं धणं __ देस नगराई वर-कन्न-रयणं कणं १० पत्ता एवं ते निमुणवि मंतगविग्ग वि निय निय सस्थ समायरहिं जसु कित्ति सुणंतह धनु इच्छंतह निय-आगम-बुद्धिहिं सहियं ॥ ११ 1. वन्भहि 2. अहवि स० 3. धधण 4: उडंडं हुय 5. दोहेण 6. आइरिय 7. नरवारिदे०8. जोइ 9. नवारांई व. 10. सहिया Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गह-गणिउ भणहिं जो जोइसीय पूयई बहु मंगल राहु केउ मंनिग जोइन पिंगल भणति चउअ य मंडल पूयंति अवरे विमास जव सरिसवाई गुग्गल दहंति मुद्दा धरेउ जुज्नंति विज्ञ सीयल पलेव काढेइ रस दिज्जहिं चंदणाई पाईज्जहि सीयल एल-नौर कय होम-संति दिय चाउनेय घय- टिल्ल कुंभ गाविहिं सवच्छ जुत्ता हल वाहण भूमि- दाण एवंविह विज्ञ्जह वेयण नवि फिट्टइ अणाहि महरिसि संधि [4] इत्थंतरि महु माय समागय भणइ वच्छ तुइ कई कई दुक्खइ बंधव जिट्ट फिरहिं चउ - पक्खिहि जे समस्थ अरि-दल संहारहिं जे कणिट्ठ मह वल्लह भाई य est भणहिं किं भाइय किज्ज जिट्ठ बहिण मंगल बोलती य अवरि कणिट्ठ सगी य सवक्किय अन्न वि सुसर वग्ग सालय-जण मित्त चयहिं जे जीउ मह कारणि धत्ता राय सविज्जह दाहु न त्रुट्टइ रवि - शह-पीड सुणि विप्प ईय नव-गह पूया कीरंति ते उ जल - रक्खसु रय- पीडा करंति बलि दी कुसुम नवि पीड जंठि ताडंति लक्षण जलणस्स माहिं नवि सकइ पीड को अवरेउ चंदण-पउमिणि-जल-जोय सेय सक्कर परितिज्जइ चाउचाई घल्लज्जइ अच्छण अल्ल चर दिज्जति दाण बहु विविइ-भेय बहु उडद लोण तिल रोह रच्छ दिजहिं तेडवि दियवर पहाण [ ६ ] गय निष्फल उववाय सवि हउं चिंतेमि अणाहु भुवि पुत्त-सोगि रोएवा लग्गिय सौगु करइ पुणु दुक्खु न रक्खइ हुय सन्नद्ध-बद्ध भड-लक्खिहिं मह अगाह ते पीड न वारहिं ते महु दुक्ख सुणवि सहु आविय तो नवि वेयण लइ न हु विविज्ज (1) सुणवि पीड मह पासि पहुत्तिय दाहु न फिट्ट कन्हइ थक्किय माहव माउल मिलिय सदुह-मण निरथ दुह सायर-तारणि १-१३ ४ 1. हिं. 2. कुसम 3. अवदारेड 4. हिज च० 5. पायज्जद्दि 6 हउ 7. पक्खय १५ ८ १२ ॥१३ ६ ረ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ संधिकाव्य-समुच्चय चुल्ल-माइ भउजाई य फूई य मंगल-रक्स करहिं बहु भंगिहि भज्ज-जणणि पित्रिय-मा बहिणि य तो वढइ दाहु सव्वंगिहिं घत्ता इउ इत्तउ मिलियउ जा मह वल्लह पिय जणु कलकलियउ सा कन्हई थकिय तो अणाहु हउं मगह-निव गयणि मयंकह जुण्ह जिंव ॥१३ 0 0 दुक्खि मह पत्त सा रायवह कन्नया नेउ पासाउठेइ (?) आदन्नया (?) चलण चंपेइ फरसेइ सिरु करयलं पिट्टि' जंघोरु उयरं च वच्छत्थल' ताण मुक्कं असण-पाण-तंबोकयं गंध-मल्लं च ण्हाणं च वर-तृलियं पइहि सिरु देवि नीसासु गुरु मुंचए अंसु-पुण्णेहिं नयणेहिं उरु सिंचए ४ मुक्कु सिंगारु नवि विरयएं केसया सुसिय सव्वंग हुय अद्वि-तय-सेसया । भणिउ मई मिल्लि पिय सोगु पइ अन्नयं भणइ तुह सरिस जलु असणु जिउ मरणयं६ जिम जिम देहि वढेइ मह वेयणा पडइ मुच्छाइ विच्छाय निच्चेयणा : धाह मिल्हे वि पभणेइ पिय-सामिणो पियर-कुल-देवि विन्नवइ सुरवर-गणो ८ मज्ज नाहस्स फेडेइ पीडा दुहं दासि तुम्हं तिम करहु जिम होई सुहं . कुरु घिउ दुद्ध न भुजेमि तंबोलयं देमि तुम्ह भोगु बलि सय-सहम-मुल्लयं १० एस मैंह भग्न अणुरत्त-रूवं सया पियइ नवि नीरु जेमेइ अणुमन्निया नेय दुक्खाउ मोएइ बहु भत्तया मह अणाहस्स दुह पीड सव-गत्तया १२ घत्ता जा फिइ नवि दुहु होइ न मह सुहु ता मई चिंतिउ जइ किमइ रोगिहि मिल्लिज्जउ ता पडिवज्जउं जिणह दिक्ख पसरइ11 तिमइ ॥१३ [८] जाव चिंतेवि जिण-दिक्ख मई निय-मणे ताव सुह लग्गु पसरणह सिरि तक्खणे उरह उयरस्स अरूण जंघाउयं जेम विसु मंत-जोएण तिम दुइ गयं २ एम निसि खयह गय वेयणा खय गया सच्छ निय-देहि संबद्ध मई निदया ता पभायम्मि पिय-माइ बंधव-जणो अगि न हु भाइ हरसिउ सयलु परियणो ४ विज्ज-मंतिग य नेमित्त-जोइस-जणा सयल निय संत्ति फोरवहिं हरसिय-मणा 1. दीहु 2. नष्ट पंक्ति 3. चल्लण 4. पिद्धि 5. कच्छच्छेल 6. वियरए 7. जेम 8. तुम्हा 9. हुइ 10. महन्भज्ज अणु• 11. ०रह ति० 12 मई 13 मिई 14. मंलग 15. सति फोखहि. Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ अणाहि-महरिसि- संधि भणिउं मई वहउ मा को वि मणि गव्वयं अवर नं ओसहं जेण मह दुह गयं ६ नाव जीवं च सेवेमि तं 'ओसहं सव-सावज्ज-जोगे य वज्जियमहं: करि पसाउ य मुक्कलहुं मह बंधवा लेमि जिम दिक्ख महवयह चत्तासया ८ नेह-नियलाई भंजेमि गुरु दुक्खिमा चत्त-संगो य कय जलं व कुक्षिणा (१) गहिवि जिण-*दिक्ख दस-भेउ जई-धम्मो समीई-गुत्तिय-उत्त समभावो १० पुढवि जल जलण वाउ य वणकाइणं बि-त्ति य चउरिदि-पंचिंदिय-पाणिणं . जाउ हउं नाहु अपाण अन्नु वि जणे वसुह विहरंतु संपत्त तव काणणे १२ घत्ता कम्मह खय-रणु भव-दुह-वारणु सरणु सहायउ रायवर जिण-वयणु सुगंतह चरणु धरंतह अप्प इ अप्पउ नाह वर ॥१३ अप्पा च नरय-गइ-दुक्खु देइ अप उ सासय-सुहि मुक्खि नेहि अप्पउ नंदणवणु कामघेणु निय-अप्प दुटु अरु सुठु सयणु २ बंधइ अणवट्ठिउ असुह-कम्म अप्पा सुपइट्ठइ करइ धम्मु विसु अमीउ सहोयरु सत्तु लोइ भव-मुर्ख-हेउ सुणि जेम होइ जे गहवि दिक्ख महवयई लेवि सामन्नु धरहिं अंगीकरेवि रस-गिद्धि न अप्पउ वसि करंति बंधेवि कम्मु भव-दुह सहति उवउत्त न जे इरिया यं भास । न हु वज्जइ बायालीस दोस मायाण-समीई नोसग्गयाहिं ते मूढ न जिण-मग्गेण जाहिं चिरु लिंगु धरहि तव-नियम-हीण अप्पं च किले सहि मूढ दीण । 13 उस्मुत्त कहहिं कुडो कहाहिं वीससिय जंतु लिउ नरय जाहिं कोऊहन जो जोइस सुमिण मंत लक्षण य कुहेडय विज्ज तंत आवजहि गारव-गिद्ध जि जणु दुहि पत्तइ ते न हु "हुति सरणु १२ घत्ता न वि करइ त केसरि विसु मरि अहि करि नवि वेयालु न जल-जलणु दय-खति-विवग्जिउ अप्पु न निजिउ करइ जु जीवह दुद्र-मणु ॥१३ 1. उसहं 2. हिक्ख 3. जय-धम्मउ 4. समीय 5. बाऊ य 6. सन्नु 7. मुक्खु 8. अगी. 9. इ 10. ०मीय 11. जांएहिं 12. उसत्त 13. हति Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ • आहारु उबहि जे वसहि पत्तु विमुयहि सचित्त अचित कुद्ध तणु पासहिं घोवहिं भूसहिं गत्तु कुलि गामि वहिं ममत्तु करहिं अन्न वि मुणि जे जिण आण-जुत्त बलु सत्ति न गोवहिं वीरियारु पाणि-बहु अढत्तु लीड वज्जइ अदत्त वहिं कसाय इंदिय दमंति नाणिणे दक्षणि चरिणिण तवेण दसविह- जइ धम्मु करंति धीर आवरसम्गहणासेवणं ति उज्जुय पर - उवयारिहि निरोह - दुम-पक्विि जे तवि तणु सोसहि संधिकाव्य-समुच्चय [१०] घत्ता मासुववासिहिं संजमु पोसहि अणएसण भुंजहिं राइ भत्तु वह - पायरम्मि तन्ह लुद्द ६ ते अणि अप्पर हुंति सत्तु सलु वि अणिच्चु नवि चित्तु घरहिं ४ विहरहिं जगि निस्सह समय गुत्त निय सत्ति वहहिं सीलिंग-भारु मेहुन्न परिग्गह जं दुट्ठ भत्त ते अप्प नाहु अप्प करंति वोरिय भाव सत्तिण बलेण उवसग्ग- परीसह सहण - वीर अपमत्त काल - पडिलेहणं ति अभिय-चित्त जह पवर सीह [ ११ ] कहिउ तुह राय निय-सयल - वित्तंतया जिम अणाही सणाहा व जगि सत्तया रविवयवो पाउ य तणु-वय-मणो लद्धि कुल - जम्म खित्तम्मि आरिय-जणे धम्मु जिणनाह रूवं अरोग्गत्तणं साहु- सामग्गि सा य जिण सासणं धम्मु अणगारु गिह-धम्मु निय-सत्तिणा धारिया य भावण सुह- कंखिणा' ८ १० णाणा विहहिं अभिग्गह हिं लीलइ वच्चई सिव- सुहइ ॥ १३ १२ ४ 1. नाणिणी 2 अक्ख० 3 ० विहइ अभिअहहिं 4 अणाहां सणाही य जंगि 5 सहा 6. अहिमारु 7. वो Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणाहि-महरिसि-संधि तुटु नरनाहु कय-अंजलि पभणए 'कहिउ जहट्ठिउ अणाहत्तयं मह तए खमसु पहु जाण-वाघाउ जो तुह कउ . खोहु मायासु आसायणा अविणउ काम भोगेहिं जं मूढ न हु तिप्पए' कुणवि पयाहिणं पुणु वि पुणु खामए भत्तिसारं च पणमेइ मुणि सेणिउ पत्तु निय-नयरि दिण गमइ जिण-धमि रउ मुक्क-संगो य मुनि विहरए महियलं सुद्ध-चरणेण मणु सरिस सारय-जलं भविय बोहंतु रक्खंतु वर-संजमो सिद्धि बहु-संगमस्थं करंतुज्जमो अत्थु पुत्तस्स (१) संमुँह रिसि वइयरो 'कहिउ निय-मण-सुहो अवर-जण-सुहयरो चरिउ मुणिराय जे सुणहिं भावहिं मणे : साहं न दुहु होइ सुहु लहहिं अणुदिणु जणे १२ घत्ता रिसी- चरिउ सुणेविणु चरणु मुर्गविणु होहु भविय स-मुत्ति थिर चंदुथ(ज्ज !)लु मणु करि समुपतिठायरि (१) खमहु कम्म संचिय जि चिर॥१३ 1.माएयनलं 2 संमह वि रि०3. मणु 4 अन्तः ॥ इतिः श्री अनाथी महर्षि संधि समाप्तः । लोक-संख्या १११ ॥द०॥ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कर्ता : हेमसार २०. उवरस-संधि रचना-समय : ई. स. १५०० पूर्व ] ध्रुवक दीहर-नयणो हंस-गमणि सरसइ समरे निम्मल-बुद्धीय भणिसु संधि उवएस वरे ॥१ 'ससहर-सम-वयणी जिण धम्म-पसिद्धिम रे जीव तणो गति विसम जाणि हिंडइ चउरांसी लक्ख वाणि जिम अंजलि-धारिलं गलइ नीर तिम परिअण धण जीविअ सरीर तो दुलहु लहेविणु मणु[य]-जम्मु ।। सावय-कुल करुणा-रम्म-धम्मु 'सम्मत्त-रयणु तिहुं भुवणि सार बारह वय पालहुँ निरईयार पालोजह जीवदया विसाल भासिज्जा हासा-मिसि न आल में हु चोरी कीनइ नरय-कार पालीजइ सील अखंड-धार अति लोभ न कोजइ हिअय-सूल संतोस धरीजइ" घरम मूलु दमि इंदिअ चचल चैल-सहाव धाईजह न स्त्री-हावभाव लोपोजह न हु गुरु-वचन-लीह . बोलीजइ मधुरी वाणि जीह न वैसीजइ नट-क्टि-खूट-संगि . उवयार करीजइ विविह भगि पत्ता नवकार सरीजइ मनि समरीजइ ."एक-झाणि अरिहंत पर सुह-गुरु पणमीनइ भाव धरीजइ . सुह-गुरु-देसण अणुसरहो" ॥११ [२] अह हियह धरीजइ सुगुरु-वाणि अविमासिकीज न जाइ ठाणि भासिज्जइ नवि पर-मम्म'-मोस अकोस न दीजइ "माल दोस तह धरीइ मनि सम्मत्त सार पामीजइ जिम संसार-पार नवि दीण-वयण जंपिअह लोइ जीविज्जइ जां लगि जीव-लोइ ? 1. B. ससिहर 2. B. पसिद्धि बुद्धि-समिद्धी 3. B. पर 4 B. होंडइ 5. A चुरासो 6. B भो 7 A. सम्मत रयण तिहि भुवण सार 8. A वारर इ9. A पालउ निरतिचार 10. A चोरी नवि को 11 A. हिअइ मूल 12. A. गुणह मूल 13 A. तर-स. 14 A. मूकिजइ स्त्री-जन-हाव० 15. A वइसीजई 16. A. इक्क प्राण 17 A. सरउ ए 18 A. कीड 19. A. मर्म 20 A कह वि दोस 21. B ता 22. A बोलिइ लोय 23. A लगइ 24. B लोगि Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११९ उवएस-संधि न हु कीजइ 'पत्थणहार भंग टालजइ दुव्रण जण कुसंग अप्पाण पसंता मा करेह सिंगार सउभड मा घरेह 'नवि कोजइ वयरी-जण-विसास नवि कीजइ वीससिमां-विणास जगि कीनइ गुणि नण-गोठि रंगि* राहि जिणागम नवल-रंगि छडिज्जइ न निय-कुल-आचार ववहार सरीजइ दय-धम्म-सार" मन रोस कसाय न करि कलीय इम दजइ दुक्ख जलं नली य १० पत्ता10 जस-माल वरीजइ धन वेचीजइ सत्त-खेत्ति सइ हत्थि करे तप-दान सरीजइ भाव धरीजइ भावण भावहु विविह परे ॥ ११ अह गारव-माया-मय निरासि . सिद्धत सुणीजइ सुगुरु-पासि 15भावणु उवहोजइ 1 धरम-मूल जो वसीकरण' विणु-मंत-मूल 1°ववहार करइ जो धण-पमाणि जो' बुल्लइ अवसर जाणि वाणि जो जाणइ निय-पर-जण-विसेस तमु सेव करई दुजण असेस पर-गेहि म 1 वच्चहु प्रीतिहीणु जम्मंतरि भासि म वयण होण अवगणीइ नवि नर राय रंक निम जोवह न चडइ दोस-पंक परु गणीइ अप्प-समाणु जीव नवि कुडउं वचन न दोह कीव पडिवन्नउ1 पालइ वयणु लोइ तसु जीव न दुक्ख कयावि होइ झाइज्झइ एकु जि वीअराउ जिण-आण-भणी धरि चिति भाउ इम बुद्धि धरतां रयणि-दीस सवि पूजई मनि आसी जगीस 1A धम्मह भा भंग 2.B न करीजइ 3. A विणाण 4. A रंगु 5. A सहसि जि रंगि 6. B सरिस दय धम्म 7. A. भार 8 B. कसाया करि 9 A. दोष 10. A. वस्तु 11 A सप्त क्षेत्रि B, सत्त खेति 12. A. भावउ 13. A. सोविण य बड़ी. 14. B घरम 15. B. वसीकरणा 16 B. विवहार करे 17. A. बोलइ 18. A. नाइसि 19. B. न हु दाखी अइ हीणु । 20. A. जीव न चुहरइ 21, A न्न वयण पालइ ज लोय 22 B इक्क वि 23. A. करंत 24 B आसा Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० संधिकाव्य-समुच्चय पत्ता उवएसह संघिम' निरमल-बुद्धिम जो पढइ पढावइ सुह-मणि भावइ हेमसार इम' रिसि कहइ वह रुद्धि वद्धि सो लहइ ॥ ११ 1. B संधि निरमल बंधी 2. A इम वीनवई ए 3. A सुणइ सुगावइ 4 A सिवसुह 5. अंत: AB. इसि उपदेस संधि समाप्त ।। Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दकोश [अहीं महत्त्वपूर्ण शब्दो ज, संधि, कडवक अने पंक्तिना निर्देश साथे नोंध्या छे. ते ते शब्दोना संस्कृत पर्याय गोळ समां अने गुजरातो अर्थ कौंस बहार आप्या छे. देश्य शब्दोनो मात्र अर्थ आप्यो छे. जरूरी विशेष नोंध गुजराती अर्थ पछी चोरस कौंसमां आपी छे. शंकास्पद शब्द के अर्थ (१) चिह्न वडे सूचवेल छे. संक्षेप: अप०-अपभ्रंश, जू० गु० जुनी गुजराती, जै० परि० =जैन परिभाषा, तुल०=तुलनीय, दे० ना०-देशी-नाममाला, पासम=पाइअ-सद्द-महण्णवो, प्रा.प्राकृत, प्रा० व्या प्रांकृत व्याकरण (सिद्धहेमगत अष्टम अध्याय), म-मराठी, रवा रवानुकारो शब्द, राज-राजस्थानी, वै० सं० वैदिक संस्कृत, सं०-संस्कृत, स्त्री०=स्त्री लिङ्ग, हिं० हिंदी ] अउज्झ १.१.२ अयोध्या अनइ १८.१.३ (अन्यदपि) अने अउर १.१३.२ (अपरं) अवर, हिं० और अनु ६.२.७ ( अन्यद् ) अने अंक २.३.७ (अङ्क) रत्न-विशेष अत्थिजण १.३.८ (अथि-जन) याचक अंध १०.२.५ आंध्रदेशीय मनुष्य अद्द १४.४.५ (आर्द्र) आदु अंबिल १६.२.२ (आचाम्ल, प्रा० आयंबिल) अप्पणि १९.१०.३ (आत्मना) पोते आंबिल, तप-विशेष अप्पाराम ७. ११ आत्माराम अंबोडय २.११.३ (केशकलाप) अंबोडो अम्मा-पिइ ९.१.८ (अम्बा-पितृ) माता-पिता अक्खुडिय ११.९.११ (अखण्डित) अखूट अरबाग १०.२.४ (अरबक) आरब अखलिय ९.६.१ अस्खलित अराल ५.३.३ (अराल) वांकडियु अगड १२.३.१६ (कूप) कूवो अरिह १०.५ २३ अर्हत् अगाह ६.५.४ अगाध अरु १.१२.९, १.१३.६ (अपरं च, प्रा. अग्गल १.२.९ अधिक हिं• अरु) अने अग्गलि ११.४.२, १२.४.२ (अग्र+ल+ अलस ११.५.४ (अलस) अळसियु इसमीपे) आगळ अवट्ट ५.९.९ (आवत) वमळ अग्गि (स्त्री०) १३.८.१ (अग्नि) आग (स्त्री०) अवरीर १.४.४ (अपर) अन्य अच्छइ १३.१३.२ (प्रा० व्या० ४. अवसु २.१०.५ अवश्य २५), अछइ १३.११.२, छइ १३. अहिनाण ९. ३.१३ (अभिज्ञान) एंथाण ११.३ (अस्ति ) छे. आउहि ११.५.१५ (आकुट्टि) हिंसा अच्छण १९.५.९ आसन ? आगइ १२.६.६ (अग्रे) आगळ, हिं. आगे अजीरमाण ४.२.६ (अजोर्यमाण) पच्या विनानु आणवडिअ १९.३.९ आज्ञावर्ती अठ १६.२.२ (अष्ट) आठ आपणपउं १३.६.३ पोताने अड्ड-२.८.९, ४.८.१० (-आरोपय्) आराडिअ १४.४.१४ चीत्कार करतु धारण करणे आरिअ १०.२.११ आर्य अढार १२.३.९ (अष्टादश) अढार आल २.६.८, आलि १०.३.१६ (व्यर्थ) एळे अणच्छ २.३.६ अनल्प आलस १०.३.३ (आलस्य) आळस अणेसण ७.२.७ (अन् एषण एषणा-रहित) आवारिअ ४.१२.३ (आवरित) पहेरान्यु शुद्धि - रहित [जै०परि०] आस १३.९.४ अश्व Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आसवार २.७.७ (अश्ववार) असवार आसोज १७.५.१ (आश्वयुज) आसो, हिं० आसौज इंदियाल १४.१.२ इन्द्रजाल इउ १९.६.१३ (इदम्) आ इक्कल्ल १४.१.४ (एक+ल) एकलु इक्कासी १६.३.१ (एकाशीति) एकाशी इट्टा ३.१२.४ (इष्टका) ईट इणि १६.३.३ (एन) एणे इम ११.१.२ (एवम्) एम इसउ १७.२.५ ( इदृश) एवं हिं. ऐसा ईह - १३.१४.६, १८.४.२६ (ईक्ष- ) जो उंबर २.५.६ ( उदुम्बर) उबरो उगसेण १५.३.१० उग्रसेन उजुवालिया २.१९.८ ऋजुवालिका, नदी- विशेष उज्जम - १०.४.११ ( उद्यम ) उद्यम करवो उज्जाल - १.८.१ ( उज्ज्यालयू) उजाळवु उज्जित ३.१.११ ( उज्जयन्त) गिरनार उछव १७.२.८ उत्सव उठाइ १२.९.१९ ( उत्थापित) ऊठाभ्यु, ऊँचु कर्यु उडद १९.५.११ ( माष) अडद उन्हालअ १.७.१ ( उष्णकाल ) उन्हाळो १२२ उतिम्म ११.४.४ उत्तम उत्तरायण १३.१.१ ( उत्तराध्ययन) आगमग्रंथ - विशेष उत्तरितु ५.४.८ ( अवतरत् ) ऊतरतु उन्भिल १८.३.१३ ऊमेलु उमागि १३.९.१ उन्मार्गे उयपट्ट ४.४.७, ४६.७ ( उदकपट्ट १ ) वस्त्र - विशेष उल्हाविअ १३.८.२, १५.४.२ (निर्वापित) ओयु • उवम्म १९.१.११ (० उपम) -नी उपमावाळु उववाय १९.५.१३ उपाय उवहाण १६.१.१ उपधान, तप - विशेष उवास १६.२.१ उपवास उस्सूर २.१०.९ ( उत्सूर) असूर्य, मोडु ऊखल ११.६.९ ( उदूखल) ऊखळ, खांडणियो ऊरीकय १८.३.४ (ऊरीकृत) अंगीकृत एकलडइ १३. ५ . २ ( एकाकिना) एकलडे, एकलाए एवड ९.३ १३ एवं एह १७.३ ८ ( एषः) आ, हिं० यह ओघउ ११.३.९ ( उपकरण विशेष, रजोहरण ) ओघो [ जै० परि० ] ओलक्ख - २१७.६ ( उपलक्षय्- ) ओळखवु ओलोअण ९.१.२१ अवलोकन कइ १२.४.८ के कउतिग २.१.६ कौतुक कउल २.१३.३ कपोल कंटी ५.६.५ कांट कथारी ५.६.५ ( कन्थारी) वनस्पति- विशेष कंबी २.११.९ ( यष्टि) कांत्र, लाकडी कटरि १.८.५ कटरे २.१४.६ (आश्चर्यम्) आश्चर्योद्वार [अप०, प्रा०व्या० ४.३५० ] कडयड १४.५.९ ( कडकड - रवानुकारी ध्वनि) कडकड अवाज करवो कढकढत १४.५.१० कडकडतु कणइर ९.३.२५ कणेर कणकणिर ५.१३ (रवा० ) कण कण अवाज करतु कन्नाडी ६.५.१० ( कर्णाटी) कानडी, कर्णाटकदेशीय स्त्री कन्ह १८.२.२१ (कृष्ण) कहान कन्हइ १९.६.८ (समीपे ) कने कलाय ११.१.१८ ( कलाय) वटाणा कवण १२३.६ (क: पुनः ) कोण कस १५.२.९ (कस्य) कोनुं कह कह - १२.२.८ ( वा० ) कह कह अवाज करवो Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३ खजूरय ११.५.५ (खजूरक) कानखजूरो खर ४.११.५ खरो, खरेखरो खल २.१०.४ खोळ (खली, दे० ना० कहण लग्ग १२.८ २३ कहेवा लाग्या, हिं० कहने लगे काउसग्ग १.६.२ (कायोत्सर्ग) शरीरनी निश्च लता सायेनु ध्यान [जैन. परि.] काढ-१९.५.८ (कर्ष) काढवू काणि १.३.५ लज्जा, संकोच कारु २.१३.७ (कारु। कारीगर कासिय १०२.४ काशिक, काशी देशनो कासु १.१२.४ (कस्य) कोनु किडु११.६.८, किद्धउ १२.६.३ (कृतम्) कीधु, कयु किमु १८.४.१९ (किम्) केम कियाणउं ४.७.९ (क्रयानकम्) करियाणु किरि १७.१.३ (किल, प्रा० किर) खरे किरिय १०.४.४ क्रिया । किरियाणग १२.१.५ (क्रयानक) करियाणु किल १०.२.४ मनुष्य-जाति-विशेष किसउ १३.६.४ (किदृशम्) केवु, हिं• कैसा । किसिय १२ २.१९ (किदृशी) शी, हिं० कैसी कील १०.२.१३ (कैल) खीलो कुंच १०.२.६ क्रौञ्च, मनुष्य-जाति-विशेष कुडंग ५.६.५ झाडी। कुडी १९.९.१० (कुटिला) कूट, कपटी कुमर १.८.५ (कुमार) कुंवर कुलख १०.२.५ मनुष्य-जाति-विशेष कुहाडी १४.४.८ (कुठारी) कुहाडी कुहेडय १९.९.११ (कुहेटक) कोयडो कूडउ २०.३.७ (कूट) कूडु केकइय १०.२.६ (कैकय) मनुष्य-जाति-विशेष केकय-देशीय केरउ ५.४.२ (-सम्बन्धिन्. -सत्क) केरु' (अप०, प्रा. व्या० ४२२.२०) खंदग ३.११.५ (स्कन्दक) मुनि-विशेष खधरा २.१६.१ (कन्धर) खांध खपण १२.१.१९ (लाउ-छन) खांपण, खोड खल्ल १२.४.८ (उपानह) जोडां खस १०.२.४ खासी, मनुष्य-जाति-विशेष खाइय-दसण २.१९.८ (क्षायिक-दर्शन ) खायग-सम्म-दिहि ३.१.८ (क्षायिकसम्यक-दृष्टि) कर्मक्षयथी प्राप्त सम्यग दर्शन [जै० परि०] खाल ९.३.३४ खाळ खित्त २.७.१ क्षेत्र खोरी १.१०.८ (झरेयी) खीर खुडहडिया १४ ५.४ नाळियेरनु कोपरूं ? खुडुक्क-३.६.११ (शल्याय-) खटकवु, म. खुडकणे [प्रा० व्या० ४.३९५] खुड्डाग ८.१.६ (क्षुल्लक) नानु, हलकु खुंट २०.१.१० माथाभारे माणस ? खूण ४.९. ४(क्षण) न्यूनता खेल्लण ३.९.२ (क्रीडनक) रमकईं हिं० खिलौना गउडी ६.५.१० (गौडी) गौड-देशीय स्त्री गंजणकर १२.६.२७ (गञ्जनकर) हलकु पाडनार गंधीय १७.१.२ (गान्धिक) गांधी गछ १७.२.१ (गच्छ) गच्छ गज्जर १४.४.५ (गृञ्जन) गाजर गड्डा १४.३.६ (गर्ता) खाडो, हिं० गड्ढा. . गड्डुय ३ २.६ (शकट) गाडु गणण-मेल १८.१.२० (गणना-मेल) गणत रीनो मेळ गहिली ९.३ ३९ गहिलिआ ९.४.५ (ग्रहिल+ई) घेली गुडिय १२.८.२३ गुड्यु, घोडा व ने कवचथी सन्ज कर्या गुड्ड १०.२.३ गौड, मनुष्य-जाति विशेष Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ गुड्डी १.१२.९ (पताका) नानो ध्वजा, म. गुडी गुणिआ ९.३ ३८ गणिका गोठि २०.२.८ (गोष्ठि) गोठडी गोस २.२०.९ प्रभात घंघसाल ५.२.८ अनाथालय घटिल (?) १४.३.६ हडकायु घडियाल १४.५.४ (घटिकालय) नारकनु उत्पत्ति-स्थान (जै. परि.] घडी १२.६.१४ (घटिका, लघु घट) नानो घडो घणउं ३.५.८ घणु घल्ल-९.३.१५ घालवु घि १९.७.१० (घृत) घी घुट-८.१.१८ (पिब्) पिवु घेउरय ११.१.१९ (घृतपूरक) घेवर चउअट्ट १९.५.४ (चतुष्वम) चौटु चउथ १८.४.१० चतुर्थ) चोथु चउद २.१९.९ (चतुवर्म) चउद चउरासी १.१५७ (चतुरशोति) चोराशी, ... हिं० चौरासी चंगअ ४.२.११ चंग १.१४-५ सुन्दर [दे. ना० ३.१] चंचुय १०.२.६ (चञ्चूक) मनुष्य-जाति विशेष चंडक्किय २.११.६ रोष युक्त चंदोदय ४.६.२ (चन्द्रातप) चंदरवा चक्क २.३.७ (चक्र) आभूषण-विशेष, चाक चच्चर ५.१.२ (चत्वर) चाचर, चोक चट्ट ३.८.९ चेलो चंडण १२.५.२२ (आरोहण) चडाण चमक्क १.१३.४ चमक्कम १७.३.२ चमत्कार, विस्मय चलवलंत ४.८.४ (चञ्चल) चळवळतु चवेडा ३.११.६ (चपेटा) थपाट, हिं० चपेट चहु १३.१.१ (चतुर) चार चहुट्ट-११.३.२ चोंटवु चाणग १०.१.५ चाणक्य चार-४.१.३ (चारयू) चारवु चारग २.११.९ कागगार [दे० ना० ३.११] चारहडी २.१.९ (चारभटी) शौर्यवृत्ति चिड ११.५.६ पक्षी, हि. चिडिया चियारि ११.१.१० (चत्वारि) चार चिलाय १०.२.५ (किरात) मनुष्य-जाति विशेष चीण १०.२.६ (चीन) मनुष्य-जाति-विशेष, चीना चीण-चीर ४.६.२ (चीन-चीर-चीनाशक) चीनी रेशमी वस्त्र चुक्क-३ ११.९ (भ्रय) चूकQ चुप्प १२.८.१७ चूप चेडाराय २.६.२ चेटक राजा चेलुक्खेव २.१५.४ (चेलोत्क्षेप) वस्त्र उछाळवां चेल्लुग ५.११.६ (शिशु) बच्चु [चिल्ल, दे. ना० ३.१०] चोट्टि ३.८.९ चोटली चोडी ६.५.१० (चोली) चोलदेशीय स्त्री चोप्पड ३.८.९ तेल, स्निग्ध द्रव्य चोरिक्क ३५८ (चौर्य) चोरी छ ३.५.३ (षष्) छ छंट-१.५.८ (सिच्) छांटQ छडिय ४ ६.९. (सिञ्चित) छांटेल छइड-१.१३.९ (छर्दय् = मुच्) छोडबु छल ४.११.८ (छल) बहानु छह १५.३.७ (षष्) छ, हिं• छह छिडूड १०.१.१८ (छिद्र) दोष छेह १.७.८ (छेद) छेडो, अंत जइ २.६.९ (यति) जति जगडिअ ७.१ १ जगडीअ१०.३.१० (कदर्थित) पीडित जडिय १.८५ (जटित) जडेल Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जणद्दण ३.१३.१ जनार्दन जणेर ५.११.७ ( जनयितृ) जनक जप्ताहल १०.२.३० यात्राफल जम्मण १४.४.१९ जन्म जवण १०.२.३ यवन, मनुष्य जाति - विशेष जां लगि २० २.४ ( यावत् ) ज्यां लगी जायव ३.१२.११ यादव जिम ४.२.५ ( जिम् = भुज् ) जमवु जिय ८.१.१ जीव जीइ १५.३.९ ( यया) जेणे जीम- ११३.८ जीमाव - ११.२.९ दृष्टव्य- 'जिम' जुङ ११.८ १५ (असत्य) जुट्ठ, हिं० झूठ जेमण ४.२.६ (भोजन) जमण जोडिय ३.१०.२ (योजित ) जोड्यु - जोडेल जोहार - २.१६.४ ( नमस्कृ) जुहारवु, हिं० जुहारना जोहार २.१८. १ (नमस्कार) जुहार झं पण १२.१.१९ ( आक्रमण ) आक्रमक झणण - ६.५.६ ( वा० ) झणहणवु झरहरझर - ४.१०.९ ( वा०) झरहर झलक्किर ५.१.५ (दिप्त ) झळकतु झलहल - १२.९.२७ (जाज्वल ) झळहळवु झवाल १.१३.१९ आटोप १ झामिय २.१८.९ ( दग्ध) बळेल झिल्ल - १२.९.१२ नहावु झूर- ३.६.४ ( खिद् ) झूरवु [प्रा० व्या० १२५ ४.१३२] टंक ४.१५.५ (टङक) खडकाळ भौंय टंक १४.४.१० टांकणु [दे० ना० ४.४] टगमग १.१२.८, ३.४.११ टगर टगर टल- २.५.७, ४.७.१२, २०.२.५ टळवु टलवल- ४१०.५ टळवळं ठाव ३.५.६, ३.८.९ (स्थान, वै०सं० स्थाम) ठाम, ठेकाणु डंभ १४.३.१९ (दाह) डाम डाल १०.२.२१ (शाखा) डाळ, हिं० डाल डुंब १२.५.२४ (डोम्ब) चंडाल, हिं० डोम डुंबिय १२.५.३४ एक प्रकारनो साप डुड्ड १०.२.३ मनुष्य जाति विशेष डोल - १३.१०.२ ( दोलय् ) डोलं डोहलअ ४. ३.४ ( दोहद) दोहलो [ प्रा० व्या० १.२१९] ढँक १४.५.९ ( वायस) कागडो ढाल- ३.११.१ ढाळं ढाल १२.४.४ गति, प्रकृति [तुल० गु० ढाळ] दुक्क- २.४.६ ( ढौक) द्वकबुं दुलहुलदुल २.१३.३, ३.६.६ (वा० ) ases दुलिअ १२.५.३२ ढोळाईने ढोअ - ४.७.४,४.७.१३ ( ढौक्) वहन कर, हिं० ढोना ढोयणीआ ४.७४, ४.७.१३ उपहार, भेट तइज्जअ ३.२.१० तृतीय तंबग १२.९.२९ (वाद्य - विशेष) बाळु तंबोलिय २.१६.३ (ताम्बूलिक) तंबोळी तक्खणि १३.१३. ४ ( तत्क्षणे ) ते समये तच्छ- १५.२-११ ( तभ ) त्रोफवु, छोलवुौं, [प्रा० व्या० ४.१९४] तडफड १४.५.९ तडफडवु तडयड- १४.५.१० (वा० ) तड तड अवाज करवो तणउ ३.५.८, १२.६.१२, तणु ५.९.११ (- सत्क, सम्बन्धिन) [अप०, प्रा० व्या० ४२२.२०] तणुं तलार १२.३.१७ ( नगर- रक्षक) कोटवाळ तल्लिच्छअ १५.२.४, १९.४.७ तत्पर [दे० ना० ५.३ ] ताड- १९.५.५ अग्निमां नाख के छांटवु, होम ? Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ तार तारु ४.३.८ अतिशय तार-स्वरे तालं दिय- २.११:९ ताळु देवू तास १२.३.२७ त्रास तिड्ड ११.५.५ (शलभ) तीड तिणि १.३.८ तेणे तिम्मण ११ १.२० (तेमन) भोजननो प्रकारविशेष तियासी १.४.१ (यशीति) त्यासी तिल-जंत ३.११.५ (तैल-यंत्र) घाणी तोह १७.७.८ (तस्य) तेनुं तुक्खार १.६ ५ (अश्व) तोखार तुहारउ २.१६.५ (त्वदीय) तार तूं १८.१.१९ (त्वम्) तूं तूली ४.१०.८ (शय्या) तळाई तेगिच्छ १९.४.८ तेगच्छिण १९.४.९ चिकित्सक तेड- ९.३.११, १७.५.८ (आकारय् ) तेडवू, बोलावg तोरुक्क ११.१.१६ (तुरुष्क) लोबान तोल- १८.१.२० (तोलय) तोळवू त्रुट्टः १९.५.१३( त्रुट) तूटवू थक्किय १९.६.८ (स्थित) रह्य थट्ट १.१३.६ समूह [तुल गु० ठठ] थप्पियअ १७.७.९, थवियअ २.१३.५ थापिअ १७.२.७ (स्थापित) थाप्यु थय १६.२.५ स्तव थरहर- १.७.३, १२.२.९ दमिल १०.२.५ द्रविड, जाति-विशेष दाउ १०.१.९ (घात ?) दाव दालि ११.१.२ (दालि) दाळ, हिं. दाल दावणी २ ७.५ (दामनी) दामणी दिच्छ- ५.५.८ (दीक्ष्य) दीक्षा आपवी दिद्ध ११.६.११ (दत्त) दीधु दिय ३.९.६ द्विज दीस १८.४.२० दिवस दुइज्ज २.१२.५ (द्वितीय) बीजु, हिं• दूजा दुकय १४६.१७, दुकड १०.५.२३ (दुष्कृत) दुष्कर्म दुगुणा १ २.९ (द्विगुण) बेगणु, हिं० दो गुना दुजाइ ३.१०.७ (द्विजाति-द्विज) ब्राह्मण दुज्झ- २.१६.८ (दुह्य) दूझg दुम्मिल्ल १०.२.५ जाति-विशेष दुलंभ १०.३.२९ दुलह १०.५.२, दुलहअ १०.२.१ दुर्लभ दुवर १.१० ४ द्वार [प्रा० व्या० २.११२] दुहेलअ १३.३.५ (दुर्लभ) दोहलु देव-दूस २.१८.५ (देव-दुष्य) दिव्य वस्त्र दो ३.१०.१ (द्वि) बे, हिं० दो धगधगंत १०.३.११ (रवा०) धगधगतु धम ११.५.२ धमणनो वायु धम १९.११.८ धर्म । धमधमिअ १२.८.३ धमधम्यं धरम २०.३.२ धर्म धसक्किय २.१०.२ ध्रासको पडेल धाअ-२०.१.८ (भ्या) ध्यान करj धुत्तारउ १२.३.२० (घूर्त) धूतारो धुरि १५.३.१४(प्रारम्भे) मोखरे [तुल० गु० धरथी, धरमूळथी] धूलहडी १२.६.१२ धूळेटी ध्रा- ४.२.५ धरावू नड ७.२.१७ (पीड्) नडवू नत्थियवाइय १२.५.२५ नास्तिक नरीसर ६.१.८ नरेश्वर थरथरवु थाम ३.३.३ (स्थान) ठेकाणु थाली.४.१३.८ (लघु घट) तुल०गु० थाळी थिअ १७.३.६, थियउ १७.१.७ थथु थी ९.४.१९ स्त्री थेरा-वसि १७ ८.२ (स्थविर-वसति) उपाश्रय दंग १.१०.२ (द्रङ्ग) नगर दंतण ११.१ १३ (दन्त-पवन) दातण दंतवण, दे० ना० २.१२] Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवकार १०.५.२५ (नमस्कार) मंत्र-विशेष, नवकार [जैन०-परि०] नवि १०.१.१२ (न अपि) नव, नहीं हल्लिहण ४.१२.२ (नखोल्लेखन १) नख कापवा नालिय २.१६.३ (नालिक) कोईक नीचो व्यवसाय करनार, नाळी नालेर १४.५.४ (नालिकेर) नाळियेर निअत्ति १२.३.२२ निवृत्ति नितु ४.८.१०, ११.९.१२ (नित्य) नित निप्पट्ट ४.१२.४ केवळ, संपूर्ण, हिं. नीपट निरुतउ १.५.१ निश्चित [प्रा. निरुत्त, दे० ना० ४.३०] निलुक्क २.११.५ (निलीन) छुपायेल, हिं० लुका हुआ निस्सम १.१५.११, ३.९.१० (निःसम) असाधारण नीइ-वमिउ १२.९.५ (नीति-वान्त) नीति-रहित नीहर ६.१.१५ (निर + सू) नीकळधुं नेत्तपट्ट ४.४.७, ४.६.७ नित्रपट्ट ) वस्त्र विशेष नो देय ७.१.२१ (नो-इन्द्रिय) मन [जै० परि०] न्हाविअ २.११.९ (नापित) नाई पइठाविअ ६.४.१३ (प्रतिष्ठापित) प्रतिष्ठा करी पक्कणिय १०.२.३ अनार्य-देशीय मनुष्य जाति-विशेष पक्वरिय १२.८.२६ (संनद्ध) कवचथी। सज्ज करेल पखि १३.१.५ पक्षे पच्छल ९.३.१५ पाछळ पट्टेसुय ४.१२.४ (पट्टाङशुक) रेशमी वस्त्र विशेष पट्ट-हीर २१५.८ हीरनु वस्त्र पडि- २.१५.८ वस्त्र - विशेष पडिख- २.३.२ (प्रति+ ईक्ष ) प्रतीक्षा करवी पडिछंद ९.३.१२ (प्रतिच्छन्द) मुख ? पट्टोल १.४ ३ (पट्टकुल) पटोलु पत्तल २.९.२ पातळु [दे० ना० ६.१४] पन्नत्ति-विजजा ६.२.६ प्रज्ञप्ति विद्या पन्नवणाउपंग १५.१.१२ (प्रज्ञापना उपाङ्ग) आगमिक-ग्रंथ-विशेष पयक्खिण १६.४.१ प्रदक्षिणा पय-वक्क-माण १७.४.२ (पद-वाक्य-मान) न्यायशास्त्र पराणिअ २.१७.४ (प्राप्त) पहाच्यु पलित्त ५.१०.३ (प्रदिप्स) तुल. गु० पलितो पलुट्ट- १.११.६ (परि + अस) नीचे पडवं (प्रा० व्या० ४.२०० पलोट्ट-) पल्लंकि ११.१.२० पालक नो भाजी पबयणह माय १०.४.९ (प्रवचन-माता) पांच समिति अते त्रण गुप्तिरूप धर्म (जै० परि०) पसर ३.४.७ प्रभात पसुमेह जन्न १०.२.२७ पशुमेध यज्ञ पहिल १२.८.२० (प्रथम) पहेलु हिं. पहिला पहुच-१८.१.१२ पहुच्च ४.१३.५ पहुच्च २.१७२ (प्र +भू) पहोचवु, हिं० पहुचना पहूत १७.२.२, पहुतअ ९.१.१८ (प्रभूत) पहोंच्यु पाइक २.८.४ (पादातिक) पायक, पायदळ्नो सिपाई पाउल १.१३.८, ३.८.१०, ४.६.११ (पापकुल, पा.स.म) राजसेवामा रहेल कनिष्ठ अनुचर पाडय १२.३८ (पाटक) पाडो, महोल्लो पायछित्त १२.४.२६ प्रायश्चित पारण २ १.१ (पारण) पारणु पारस १०.२.४ (पारस) जाति विशेष, पारसी पासंड ३.१०.९ (पाखण्ड) व्रत पाहण १.१२.७ पाषाण Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ पिअ-हर ९.४.९, पिइयहर २.१३.८, पियर ९.४.१० (पितृ-गृह) पियर पिंगल १९.५.३ (पिङ्गल) मंत्रोच्चार कि ९१.२२ पाननी पीचकारी, हिं. गु. पीक पियारअ ३.१.५ (प्रियतरक) प्यार पिल्लग ५.६.७ पेल्लग ५.६.८ वच्चुं पीययार १९.१७ (प्रियाल ?) वनस्पति-विशेष पीलण ३११५ पीडन पुत्थय १०.५.१४ पुस्तक पुयर ११.५.४ (कीट-विशेष) पुलिंद १०.२.४ पुलिन्द, मनुष्य-जाति-विशेष पुव्विल्ल ९.४.१४ (पूर्व + इल्ल) पहेलानु पूरी २.१४.६ (पूर्णा) पूरी पोअत्त ९.२.२८ (पोत) जलयान पोइणी १.५.८ (पद्मिनी) पोयणी पोक्कार ३.१३.४ (पुत्कार) पोकार पोली १.९.२, १२.१.३ (प्रतोली) पोळ पोसाल ११.२.८ पौषधशाला [जै० परि.] फाड- १३.३६ (पाट्य फालिह ५.३.५ स्फटिक फिर- ६.३ १५, ११.८.४ (भ्रम्) फरवु, हिं. फिरना फिरि फिरि ३.८.१० फरी फरी फूई १९.६.१२ (पितृ-स्वसा) फूई फेर १२.१.७ (भ्रमण) फेरो । फोरव- १९.८५ (स्फोर) निरन्तर प्रवृत्त करवं, फोरबवु [जै० परि०] बइस- १३.२.२ (उपविश्) बेसवु, हिं. बैसना बपु रि २१५.५, ४ २.४ आश्चर्योगार [तुल० गु० बाप रे] बब्बरय १०.२.३ बर्बरक, जाति-विशेष बलिमड्ड १.१२.५ बलात्कार बहिण १९६.७ (भगिनी) बहेन, हिं. बहन बहु परि १८.१.५ बहु परे १८.२.१४ (अनेकविध) बहु पेरे बार ११.७५ (द्वादश) बार बारि २.११ ७ (द्वारे) बारे, बहार बारवई ३.१.१ (द्वारावती) द्वारका बाली २.१०.५ (बाला) नानी बावीस ११.६.७ (द्वाविंशति) बावीश बाहत्तरी २.२०.६ (द्वासप्तति) बौतेर बाहिर २.१४ ७ (बहिर) बहार, हिं• बाहर बि-आसण १६.३.४ (द्वि-अशन) बेसणु दिवसमा मात्र बे वार जमवू [जै० परि०] बिंब १६ ३.५ (बिम्ब) जिन-प्रतिमा बिहप्फइ ६.५.१८ बृहस्पति बोड १.१३.४ बीडी १.६.६ (बीट) बीडु, बीडी बुक्कस १०.२ ५ अनार्य-जाति-विशेष, चंडाल बूझ - १३ ६.६ (बुध्) बूझवु, जाणवू बेट्टउ ४.१.७ (पुत्र) बेटो, हिं• बेटा बेडी १३.१२.२ बेडुलडी १३ १२.१ (लघु नौका) बेडी, बेडली बोड २.११.८ (मुण्डित) बोडु बुल्ल - १२.२.६ बोल ३.४.१० (कथय् ) बोलवू भडारअ ३.१.७ (भट्टारक) पूजनीय भडिवाय १५.२.९, १७.५.४ (भटवाद) सुभटपणु भणी २०.३.९ (प्रति) भणी भत्तिज्जी २.६.३ (भातृव्या) भत्रीजी, हि भतिजी भद्द ४.३.६ (भद्र = वर्धापन उत्सव) वधामणु' भाड- १३.१०.१ (भ्रम्) भमयु भमर १०.२५ अनार्यजाति-विशेष । भराडउ ३.२.१३ (भट्टारक ?) पूजनीय भविय १.१.१ (भव्य) मोक्ष पामवाने शक्ति___ मान [ जै० परि.] भवियण ८.१.३१ (भव्य + जन) भविजन, मोक्ष पामवाने शक्तिमान [जै. परि.] भसुया ५.९.५ (शगाली) मादा शीयाळ . [दे० ना० ६. १.१ ] Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाइणिजि २.१७.९ (भागिनेया) भाणेजी भाडअ १८.३.१७ ( भाटक) भाडु भिट्ट - १२.६.२९ भेटषु भिल्ल १०.२.५ भील, जाति- विशेष झुंड १४.५.१३ भुंडु भुय ३.१०.१ ( धुत १) नष्ट, विगत भुल्ली २.१३.४ ( भ्रमिता ) भुली भेडि १२.६.२६ झगडो [तुल० हिं० मुठभेड ] मंड २७७ मंडी २.५.९ ( खाद्य पक्वान्नविशेष) राज० मांडा १२.६ २६ ( आरम् ) मांडवु मंडुकि ११.१.२० ( मण्डूकिका) वनस्पति विशेष मंड - ― मार्गशीष + मंतिग १९.५.३ ( मान्त्रिक) मंत्रवादी मक्कड १०.२.२१ (मर्कट) माकडुं मगहा ४.७.११ मगध मग्गाइम २.३.९ (मार्ग = आदिम = शुक्ल) मागशर सुदि मज्झ १.९.९ (मा) मुज मट्टी ११.५.१ ( मृत्तिका) माटो मणियारअ १२.४.११ (मणिकार) मणियार मन १४.१.६-७ मा मा मन्नाव - २.३.२ ( मन्य् - मानय् ) मनाववु मयगल ३.८.४ ( मदकल) मेगळ, हाथी मयहरी २.१९.६ ( महत्तरा ) मुख्य साध्वी, गणिनी मल कन्नगाई (?) १०.४.१२ मल- कन्यादि परिषह [जै० परि० ] मसाण ३.१०.४, ५. ९.४ ( श्मसान ) मसाण महतारी ४.१३.१२ ( महत्तरा ) माता महल्ल १०.३.२१ (महत्) मोटु महार ३.४. ५ ( मदीय) मारुं महियारी ४.१३.६ महियारी महेस १३.२.९ महर्षि मा ३.९.४ ( माता ) मा मा १.१०.२ (मा - ) मावु, समावु - १२९ माअ २.१६.४ ( माया) कपट माग १३.१० १ (मार्ग) धर्म माझ १३.३.८ ( मह्यम्) मुज माण - ७.१.४ ( मानय् ) माणवु मासखमण ४.१.१० मासखवण ४.१३.१ ( मासक्षपण) महिनाना उपवास माहा १.१५.११ (माघ) महा मास • माहि ११.८.१८, १२.८.३ ( मध्ये) मांहि मिच्छ १०.२.८ ( म्लेच्छ) यवन, अनार्थं मिच्छक्कड ११.६.१२ ( मिथ्याकृत) मिथ्या थयेलु 0 मिच्छत्तिअ ९.१.५ ( मिथ्यात्वी + क) मि थ्यात्वी [ जै० परि० ] मिल्हणअ १२.४.२२ मिलन मिल्ह देवु मिसि २०.१.५ (० मिषेन) ० बहानाथी मीसिअ १०.१.७ मिश्रित ० मुकलाव - ९.२.२, १२.२.६, १७.२.६ मोकलाव, विदाय आपवी १४.१.१ (मुच्) मेलवु, मूकी - मुक्कल १९.८.८ (मुच्) छूट करवु, रजा आपवी, तुल. गु. मोकळु करवु मुक्ख ६.५.१२ मोक्ष मुहपति ११.३.९ ( मुखपत्रेका) मुहपत्ति [ जैन परि० ] मुहाइ १.१५.६ ( मुख्य स्थाने ?) गणधरपदे मूं १२.३.२९, १२.८.११ (मम) मने मूझ - १३.६.६ ( मुह्य) मुंझावु मून १२.५३७, मूण १२.८.१५ मौन मूल १४.४.५ ( कन्द - विशेष ) मूळो मेल - - १७.२.७ (मेल्स् ) मेळववु, एकट्ठ क मोक्कल ५.३.९ ( मुक्त + ल) मोकळु मोग्गर २.१३.१ ( मुद्गर) मोगरी मार २०१५.६ ( मयूर) मोर मोस २०.२.२ ( मृषा) असत्य Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० रंगावली ४.६.५ (रंगावली) रंगोळी रक्ख १४.६.११ राक्षस रच्च - १४.१.७, १४.२.१६ (रङ्ग ) राचवु रच्छ १९.५.११ राच-रचीलु ? रय-पीडा १९.५.३ (रजःपीडा) ? रलिअ १८.१.८ रोळ्यु? रलियाइत १७.६.६ रळियात, रळ्यिामणु । रह - ९१.९, १८.३.१३ रहेवु' राउल ३.१४.४ (राजकुल) राजा, तुल रावळ राणउ २.१.९ (राजक) राणो, राजा राणी १.२.७ (राज्ञी) राणी राव ९.४ ६ राव , फरियाद रास ८.१.३ (राशि) समूह राहाडी २.१४.६ इच्छा ? रिहन्न १८.१.९ व्यक्ति-विशेष ? रुणझुण-७.१.९ आक्रद करवु रुप्पिणी ३.१.९ रूक्मिणी रुय १०.२.६ जाति-विशेष रेवय ३.९.९ (रैवतक) गिरनार • रेसी ३.५.२,१०.२.१२ ने कारणे, ने वास्ते ( तादर्थं निपात, अप०) [प्रा. व्या० ४. ४२५ ] रेसु १२.५.१४ (लेश) रोअ १९.६.१, रोय २.१७.६ (रुद्-रोद्) रोवू रोमय १०.२.४ (रोमक) जाति-विशेष, रोमन रोह १९.५.११ अश्व आदि वाहन ? ल- २.९.४ (ला) लेवु .. लउस १०.२.३ जाति-विशेष लंकिल्लअ ५.३.७ (कटितट) लांक लंख - ९.३.३७ (क्षिप् ) नाखवू लखण १७.१.५ लक्षण लट्ट -- १४.३.८ (लुछ्) प्रवृत्त थत्रु लड्डु १९.६.६ (लालन) लाड लड्डुय २.५.१० (मोदक) लाडु लल्लुर ३.९.२ (लल्लर) कालु घेलु लवित्त ६.१.४ (लचित्र) दातरडु लहणअ १८.१.१७ (लभनक) लहेणु लाडी ६.५.११ (लाटी) लाटदेशीय स्त्री लावय ११.५.६ (लावक) पक्षि-विशेष लिंपण ९.३.३५ (लेपन) लिंपण लिय - ३.१०.९ (ला) लेवू लिल्ल १९.५.११ पूर्ण, भरेल लुअ- १४.६.२ (लू) कापवु लूणिय १४.५.६ (नवनीत ?) माखन ? [म० लोण] लूहण ११.५.१५ (प्रोञ्छन ) लूछ' लोण १९.५.११ (लवण) मीठ लोप – २०.१.९ (लुप् -) लोपवू ल्हसीअ १०.१.१० (स्रस्त) सरी गयेल पइरिअं ३.१०.११ (वैरम् ) वेर वइस १.१३.८ वेश्या वंक १४.३.१९, बंकुड १३.३.४ (वक्र) __ वांकु, वांकडु वंदुरवाल २.१५.४ (वन्दनमाला) तोरण, हिं० बंदनवार वखाण - १३.१०.३ (व्याख्यानय् ) विवरण करवू, व्याख्या करवी वच्छर १.७.८ ( वत्सर ) वर्ष वच्छरु ४.१.३ (वत्स) वाछरु वच्छायण १०.२.१५ वात्स्यायन वजाव - १२.८.२४ (वादय् ) बजावयु, वगाडधु वट्ट ३.१०.१० (वर्मन् ) वाट वट्ट-१२.७.१० वाटवु' वढ १७.१.६ (बृध-वर्ध ) वधवु, हिं. बढना वणसइ ११.५.३ वनस्पति वणिउत्त ९.१.७ वणिकपुत्र वणिजारअ ४.४.११ ( वाणिज्यकारक ) वणजारो Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वणी ४.५.८ ( वणिक) वाणियो, वेपारी वत्थुल १४.४.६ ( वस्तुल) बथवानी भाजी वदी १७.८.६ ( बहुलपक्ष - दिन ) वदि वद्दिय १७.५.४ (वादिन् ) वादी वद्धार - १. १३.८ ( वर्धापय् ) वधावबुं वधार - ६.२.५ (वर्धय्) वधावुं वम्मिय १८.४.२८ ( वर्मित ) कवचयुक्त करेल वयणुल ३.९.२ ( वचन + उल ) वचन वयमिय ६.५.२५ ( व्रत - मित) पांच वराडिया १०.१.२७ ( वराटिका) कोडी वलि ११.१.२० वाल ? वहु १२.३.१ ( वधू ) वहु वाडी १.१.६ ( वाटिका) वाडी वाणारिअ १७.४.८ ( बाचनाचार्य) उपाध्याय [जै० परि० ] वायणा १६.२.१ ( वाचना ) शास्त्रपाठ [ जै० परि० ] वारअ १०.१.३ (वारक) वारो वासिअ २.७.५ उपवासित विंछी ११.५.५ (वृश्चिक) वींछी विगहा १०.३.१४ विकथा विगोइअ १२६.१२ (विगोपित) वगोन्यु विट्ठि १०.३.२३, १२.५.२९ वेट विठु ३.७.९ विट्ठल, कृष्ण विससिअ २०.२.७ विश्वस्त वीरिअ १०.३.३३ (वीर्य) पुरुषार्थ वीसमित्त १५.२.१४ विश्वामित्र सउन्न १.९३ ( स्वप्न ) सोणुं संघाडअ ३.२.१० (संघाटक ) संघाडो, मुनि-युगल संधि १३.१.१ संधी १४.६.२१ सर्ग, विभाग संधिबंध १.१.१, १३.१.१ संधिवद्ध संभर - १४.४.२ ( सं + स्मृ ) संभारखं संभल - १२.६.१० (श्रु ) सांभळवु १३१ सग १०.२. ३ ( शक ) जाति - विशेष सच्चहा ३.१.९ सत्यभामा सतरह १०.४.१ सप्तरस १०.४.१५ ( सप्तदश ) सत्तर सत्तण २.१७.१ ( सक्त १) आसक्त १ सत्तावरी १४.४.५ शतावरी सनीड ४.४.८ ( सनीड) समीप सबर १०.२.५ शबर, जाति- विशेष समित्त ४.१४.६ समेत सयाणिअ २.६.१ शतानिक सयाणिअ २.६.८ (सज्ञान) शाणो सयाणो २.१२.७ (शज्ञाना ) शाणी सरसइ २०.१.१ सरस्वती सरीखअ १३.११.५ ( सहक्ष : ) सरखु सलसलतां १४.३.१९ ( वा० ) सडसडतां सवरसत्थ १४.४.१० ( शबर - शस्त्र शबरोनां शस्त्र सवि ७.२.१७ ( सर्वे) सर्व सह - ३.१०.४ (सहू) सहेबु साचइ १३.१४ ६ (सत्यमेव ) साचे सात १७८. ३ (सात) सुख साथ १७.४.५ (सं. सार्थ प्रा० सत्थ) 3 साथ सामिसाल २.५ २ स्वामि [ अप० ] सार १२.२१५ ( सार) सार, संभाळ साव ११.२, ३.१.१ (सर्व) साव [ प्रा० व्या० ४.४२० ] साव ९.१.२८ शाप सासुग्य ९.१.१९ ( श्वसुर ) साम्मी १६.३.९ ( साधर्मिक) समान धर्मवाळु, धर्मबंधु सिउं १०.१९ ( समं) साथै सिंहकेसर ३.२ ६ ( सिंहकेशर) लाडु नो एक प्रकार सियाणी २.८.४ ( सज्ञाना) शाणी सिराह - २.१६.४ (श्लाघ्) वखाणवु, हिं० सराहना Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ सीख १७.८.८ (शिक्षा) शीख सीयालअ १.७.५ (शीतकाल) शीयाळो सुकसाला २.२०.३ (शुल्कशाला) जकात नाकुं सुकड १०.५.२३ (सुकृत) सत्कृत्य सुक्क ३.११.३ (शुक्ल) श्वेत सुक्काडिम १८.२.८ सूकव्यु सुजम २६.९ (सुयम) व्रतधारी, सुज्ज १८.३.१६ व्यक्ति-विशेष सुद्धि ९.३.१८ शोध सुपरि १.५.९, सुप्परि १.१५.८ सुपेरे सुय-माइय ३.८.९ (श्रुत-मातृका) बाराखडी सुविणअ ३.८.४ स्वप्न सुहा - २.९ ९ (सुखापय् ) सुखो करवू सेवत्तिया १९.१८ (शतपत्रिका ?) शतपत्र कमळ ? सोमाण ११.९.७ सोपान सोवाग १२.७.१८ (श्वपाक) चंडाळ सावालअ ५.३.७ (सुकुमार) सुवाळु हउं १.१४.७ (अहं) हुँ हक्कारण २.१३.७ (आकारण) हकारवू, बोलावq हठ १८.३.२१ हठ हव १७.८.५, हिव १२.९.२२, हेव ८.१.२५, १२.५.१९ (अधुना ) हवे हासा-मिसि २० १.५ (हास्यमिषे) हसवाना बहाने हियडर्ड २.८.७, ५.४.७ (हृदयम् ) हैडु हिआविअ ४.११.१४ (हितविद् ?) हित करनारं हीरउ ५.११.२ (हिरक) हिरो हीरपट्ट ४.४.७ होरनु वस्त्र हुँ ६.२.१० (अहम्) हु हुम्मिअ १०.१.२१ क्यु हेला ४.११.४ (शीघ्रता) सहेलाई [दे. ना. ८.७१] होडियअ ४.११.१४ होड करी होण १०.२.४ हण, जाति-विशेष - Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंक्ति Go माटे ज. महानि ग्रंथीय रचना सं. संवत् कडवक शुद्ध शुद्धि-पत्र भूमिका अशुद्ध माटे ज महानिग्रंथाय खना स. टिप्पण १ मा उमेरो:- पृ. १९१. सं त् मूळ पाठ पंक्ति अशुद्ध सुनदं जिणि-दिन्नी हिडइ बिंबंह ग-तार दति दतग्गल उबरु अगि... सउ उ कलकु कलती हियउ न पेल्लिउ कहि कतु सकलकु सहावउ कबिहि सुनंद जिण-दिन्नी हिंडइ yawn mw " . . . . . चिंबई तुंग-तार दंति दंतग्गल -उंबरु अंगि ... सउ मुट्ठउ कलंकु कलंती हियर्ड नं पेल्लिउ कहिं कंतु सकलंकु सहावलं कबिहिं ताल तालं सह सई . कचणु उबर सपत्ता वदुर सुदरि सुदरु चडाविउ ...मदिरि तस्सावहति लछियउ कुन्वतु...गजिउ कंचणु उंबर संपत्ता वंदुर सुंदरि सुंदर चडाविअ....मंदिरि तस्सावहंति लंछियउ कुवंतु...गंजिउ . . . Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कडवक पंक्ति अशुद्ध शुद्ध & 5 सुकसालाए सह काचरखड सुंकसालाए सई काचखंड 5 5 w • Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधि कडवक पंक्ति अशुद्ध शुद्ध ۲ सुसखुड़ सुसंवुड د د मयक-मडलि मयंक-मंडलि د Mmmmm""3 د د د د -दडु निसुणतउ निसुणंतउ तुधुरु...स्टठउ...झणि... तुंबुरु...रुडउ...झुणि... निसुणतउ निसुणंतउ पयडमेव...परूवतया पयडमेवं...परूवंतया त जारिस....त तारिस तं जारिस...तं तारिस मच्चतमुक्कठिओ...पहेण मच्चंतमुक्कंठिओ...पहेणं सम्म सम्म दिक्ख च सिक्ख च सपइ दिक्खं च सिक्ख च संपह د د د د د तं د ४ , mxnrw , vran mr » 9 m» د د 53rwww१ ک नाह ससाहणं भोग सुगो सपय कथारि गधेण कथारि कुडगहि अतरालि कुकुम ک नाहं संसोहणं भोगूसुगो संपयं कथारि गंधेण कंथारि-कुडंगहि अंतरालि कुंकुम कुडंग चंदजसु इत्थंतरि वंदद ک ک ک ک ک चदजसु इत्थतरि वदह सदेहा० वदिय सुदसणपुरि णि जाइउ संदेहा० ک ک वंदिय सुदंसणपुरि णिजाइउ ک و ک »»»»» MMMAN و و .com वछ उ भक्खण पत्तय و वंछीउ भक्खणं पत्तय दुहं सुंदरि و و सुदरि Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधि कडवक पंक्ति शुद्ध अशुद्ध नरिंदु धम्म लिगियाण . १ २ २ २७ २३ २८ ~ नरिंदु धम्मि लिंगियाण सिंचिउ परवाय चउरिदिय . ~ चिउ परिवाय . ~ ~ , * ~ करई हिंडति . ~ चउरिदिय दोह कर हिंडत सा चउरो सुगयसुकुमालओ लहहि सुरलोय सा ~ Mmmurar चउरो सु गयसुकुमालओ ~ लहहिं सुरलोइ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ s in Education International