SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका प्रास्ताविक ईसुनी १३मी थी १५मी शताब्दी सुधोना त्रणसो वर्षना गाळामां प्राचीन गुर्जर भाषामां रचायेला 'संधि' नामे ओळखातां वीश काव्यो संशोधित पाठ साथे संगृहीत करी अहीं प्रथम वार प्रगट करतां आनंद थाय छे. गुजरातमा ईसुनी बीनी सहस्त्राब्दीना प्रारंभथी ज भाषामा प्रादेशिक वलणो देखा देवा लाग्या हता. जो के शिष्टमान्य साहित्य-भावा तरीके अपभ्रंशनु स्थान हेमचंद्राचार्यना समय सुधी अविचळ हतु, छतां तेमां य प्रादेशिक लाक्षणिकताओ स्पष्टपणे जणाती हती. भोजे गुर्जरोने पोतानो आभ्रंश प्रिय होवान का छे, ते पण आवा गुर्जर लाक्षणिकता ओवाळा अपभ्रंशने माटे ज दशमीथी बारमी शताब्दी सुधीना आ अपभ्रंशनी गणी गांठी रचनाओ ज आपणने प्राप्य छे-धाहिलनु पउमसिरिचरिय, साधारणनी विलासवई-कहा, हरिभद्रन नेमिनाहचरिय अने केटलीक प्राकृत कृतिओमानों अपभ्रंश अंश वगेरे. ____ हेमचंद्राचार्यनी पछी तो प्रादेशिक तत्त्वोथी भरपूर भाषानुं ढगलाबंध साहित्य मळवा लागे छे. रास, चोपाई, फागु, वीवाहलु, कक्क, चर्चरी वगेरे जेवा नवा काव्य-प्रकारोमां रचायेलो सेंकडो कृतिओनी जैन भंडारोमांथी थयेली उपलब्धि अने छेल्ला पचासेक वर्षमा आवी अनेक कृतिओना थयेला प्रकाशनोथी उपरोक्त हकीकत सिद्ध थाय छे.१ आ प्रादेशिक तत्त्वोथी भरेली भाषा ते प्राचीन गुर्जर भाषा. लगभग १२ मी शताब्दीना अंतथी मळती संधि श्री पण आ प्राचीन गुर्जर भाषानी रचनाओ छे. जो के तेनुं बाह्य स्वरूप सीधु अपभ्रंशमाथी ऊतरी आव्युं होई रासादि अन्य काव्योनी तुलनाए तेमां अपभ्रंशनी अप्पर विशेष छे.. त्रणसो वर्षना गाळामां रचायेल आ संधिकाव्योमां प्राचीन गुर्जर भाषाना तत्कालीन सीमाप्रदेश एटले के हालना गुजरात, पश्चिम राजस्थान अने माळवाना भाषा, इतिहास अने संस्कृतिना अभ्यास माटे महत्त्वपूर्ण सामग्री सचवाई छे. संधिकाव्य : स्वरूप, उद्भव अने विकास जेम संस्कृत महाकाव्य सर्गोमां अने प्राकृत महाकाव्य आश्वासोमां विभक्त थाय छे, तेम अपभ्रंश महाकाव्य 'संधि' नामक भागोमां विभक्त थाय छे. अपभ्रंशनु उपलब्ध साहित्य जोवाथी ए वातनी तरत ज प्रतीति थाय छे के अधिकतर अपभ्रंश महाकाव्यो ‘संधिवद्ध' के 'संधिबंध' छे. बे-चारथी लई सोथी पण अधिक सुधीनी संधिओमां रचायेला चरित-काव्यो. कथा-काव्यो अने पुराण महापुराणो अपभ्रंशनी ज विशेषता छे. आ 'संधिबंध' ना संधिनुं विभाजन पार्छ 'कडक' मां थाय छे. प्रारंभमां संधिबंध काव्योमां आ कडवक आठ पंक्तिओ के कडीओनु रहेतु अने संधिना आरंभमां तथा प्रत्येक १. जुओः गुजराती साहित्यनो इतिहास, गु. सा. परिषद, भा-१, विभाग-२. २-प्राचीन गुजराती अने अपभ्रंश वच्चेना संबंध तथा प्रा. गु. नी लाक्षणिकताओ व. माटे जुओ-गुजराती साहित्यनो इतिहास भा-१ (प्रकरण-२ अने ४, ले. ह. चू. भायाणी) ३. 'पद्य प्रायः संस्कृत-प्राकृतापभ्रंश-ग्राम्यभाषा-निबद्ध-भिन्नान्त्य-वृत्त-सर्गाऽऽश्वास-संध्यवस्कंध-बंध सत्संधिशब्दार्थ-वैचित्र्योपेतं महाकाव्यम् ॥' -काव्यानुशासन ८.६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002656
Book TitleSamdhikavya Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy