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संधिकाव्य-समुच्चय
को वि भिक्ख भिक्खयर न जाणइ अज्ज वि जणु तिणि भिक्ख न आणइ छुहिउ पिवासिउ घरि घरि हिंडइ जंगमु कप्परुक्खु महि मंडइ
कि विनर तरल-तिक्ख-तुक्खारिहिं सामि निमंतहिं तिहुयण-सारिहिं कणय-कडय-कडिसुत्त-किरीडिहिं अवरि पवर-कप्पूरिहिं बीडिहिं तार-तरलतर-तिक्ख-कडक्खिहिं हरिस-परावस जा खलु पेक्खहिं अवरि ताउ ढोयहिं निय-कन्ना तइयहिं जेहिं दिछु ते धन्ना सामि सव्वु तमकप्पु "विगप्पिवि झत्ति नियत्तइ किंपि अजंपिवि कच्छ-पमुक्ख भिक्ख अलहंतय छुह-बाहिय हुय तावस ते गय
५
पत्ता
जिणु निरसणु हिडइ तहिं समइ जि वंदहिं
दुरियइं खंडइ मंडइ महियलु निय-पइहिं ते चिरु नंदहिं संपूरिज्जहिं संपइहिं
॥६
[७]
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।२
उन्हालइ दीहरतर वासर अग्गि-फुलिंग-तुरल तरणिहिं कर तिव्वु तवइ तवु जगि वक्खाणिउ तह वि न सामिउ पारइ पाणिउ वरिस-कालि घणु वरिसइ वाइं जण-सरीर थरहरहिं खराइं निप्पकंपु निम्मलउ निरुत्तउ झाणु झाइ जिणनाहु तिगुत्तउ सीयालइ सीयलउ समीरणु वाइ तुसार-सारु सोसिय-वणु अइ-दीहर-रयणीसु निरंतर अविचल-चित्तु झाइ परमेसरु विहरिवि पुर-पट्टण-गिरि-गामिहिं निरसण-पाणु अडवि-आरामिहिं वच्छर-छेहिं जिणिंदु तिगुत्तउ गयपुर-पट्टण-बारि पहुत्तउ
पत्ता
जं जणिहिं रवन्नं धण-धन्न-समिद्धं
तरुवर-छन्नं धवलहरिहिं अइ-धवल किउ भुवण-पसिद्धं महि-महिलहिं तिलउ व्व ठिउ ॥७
2. P विगप्पहि. 3. P पमुख
4. P मंडलि
5. P संपूरिज्जइ
1. P केवि 6. P त्ति
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