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________________ मयणरेहा-संधि १४ तसु देवि पुप्फमालाभिहाण सो हुउ कमेण य पवर-राउ विवरीय-सिक्ख-तुरएण हरिउ पिक्खेविणु तुह सुउ अइ-सुचंगु अंतेउरीण गुण-गण-पहाण बीओ वि चविउ तुह पुत्तु जाउ सो राउ फिरइ अङवीइ तुरिउ नेयइ निय-नयरिं हरिसियंगु घत्ता इय कय-वद्धावणु तोसिय-पुरजणु नमिय नराहिव सयल जसु निरुवम-गुण-गामू नमि किय नामू वद्धइ वद्धिय-विमल-जसु ॥१७ [४] . इत्थंतरि सम्गह वर-विमाणु तमु मज्झि देउ इंदह समाणु अवयरिउ विमल-गुण-गणह गेह ति-पयाहिणि पणमिय मयणरेह २ अह पच्छा वदइ मुणिवरिंदु तउ चित्ति चमक्किउ खेयरिंदु सदेहावणयणु तियसि किउ . निय-चरिउ कहिउ अक्खेवणीउ तउ तोसिउ भावइ खयरराउ बपु वपु रि अहो धम्मह पभाउ जीवहं ताव चिय होइ दुक्खु जावह न लद्ध जिण-धम्म-लक्खु धम्मगुरु भणिय तियसेण वुत्त किमहं करेमि आगम-निउत्त तउ एउ मयणरेहाइ वुत्तु मिहिलापुरीइ मह दंसि पुत्तु तहिं वदिय विहिणा तित्थसार अनु गुरुणी पणमिय सोवयार तद्देसण-सवणिहिं गय-सिणेह पव्वज्ज पव्वज्जइ मयणरेह कय-सुव्वय-नामा तवु तवेइ सो सुरु सकप्पि सुहु अणुहवेइ अह पिउणा नमि परिणावियाउ अट्ठोत्तरु सहसु सुबालियाउ अह रम्ना जाणि विभव असारु निय-पइ पइठाविउ नमि-कुमारू अप्पणि वउ पालिउ निरइयारु केवल-सिरि-सोहिउ सिद्ध-सारु अह नमी नराहिवु इउ पयंडु तसु हत्थि-रयणु आलाण-वंडु पाडेविणु बहु पडिकार-वरंगु गुरु-वेगि सुदसणपुरि विलग्गु १६ सुचंदजसि नराहिवि तउ नमि तसु कारणि घत्ता बहुविहि वाहिवि बहु-परिवारि णि वसि किउ निसंकि उ धरिउ जाइउ पुर रोहइ तुरिउ ॥१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002656
Book TitleSamdhikavya Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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