________________
४६
संधिकाव्य समुश्चय
[५]
तउ मयणरेह गुरुणी-मईइ निय-भाय-समप्पिय-सयल-रज्जु नमि दो वि रज्ज पालइ नएण तसु अन्नयाइ छम्मास दाहु अंतेउरीउ चंदणु घसंति इक्विक्कु धरिउ तासु वि मुयति । पुहईसर देवी अवणियाई जइ कह वि एह रोगाउ मुक्कु नरवइ इमाइ चिताइ सुत्तु कन्नाडि-कडक्खिहिं नेय खुद्ध लाडी-लडहत्तिहिं नेव भिन्नु निय-पुत्तु पइट्ठिउ नियय-रज्जि अह चित्ति चमक्किउ सक्कु एइ नमि निम्ममत्तु सयणाइएसु पई निज्जिय दुज्जय भड कसाय को तिहुयणि तुह समु समण-सीह ति-पयाहिणाहिं नमिऊण सक्कु रायरिसि बिहप्फइ जिम सुवक्कु गंगा-पवाहु जिंव सुमण इ? अप्पप्पणकतिहिं जुअ अणेय तं पहु पहाइ परिवड्ढमाणु विहरंतु पत्तु पुरि खिइपइट्ठि करकंडु-दुमुह-नग्गइ-पसिद्ध . आवस्सगाइ-गंथिहिं जु वुत्तु ।
पडिबोहिय दो वि महासईइ चंदजसु राउ साहइ स-कज्जु वद्धइ धणेण नायागएण निय-देहि हूउ विज्जहं अगाहु वलयज्झुणि सवणा पीडयंति निवु पुच्छइ किं न हु झणहणंति ६ इह दूहवंति बहु मेलियाई ता हं गहेसु संजमु अचुक्कु मेरुम्मि सुविण-वियणा-विउत्त चोडीणं चाडुयहिं न रुद्ध गउडी-गीयाईदिं न य निसन्नु अप्पणि पहु' लग्गउ मुक्ख-कज्जि १२ दिय-रूवि निउण पुच्छा करेइ पच्चक्ख हूउ थुणई सुरेसु पइ सामि महिय विसय-पिसाय पत्तेय-बुद्ध-पह लद्ध-लीह १६ सोहम्मि जाइ मुणिगुण-अमुक्कु पुण जगगुरु वक्कत्थ मणमुक्कु परिवंकउ जडमउ नेव दि? गोवइसंगिई पुण विगय-तेय
२० हूअउ पुण अणुवम-गुण-निहाणु पत्तेयबुद्ध तहिं हूअ गोट्ठि
२२ चउरो वि एग-समएण सिद्ध तह इत्थ कहिउ भव्वह निरुत्तु २४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org