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मयणरेहा-संधि
घत्ता
इय वयमिय कडविहिं जिणपहऽणुसरंतह
विरइउ भाविहिं गुणत-सुणतहं
मयणरेह-नमिरिसि-चरिउ निहणउ भवियहं तमु तुरिउ॥२५
मज्झे महासईणं पढमा रेहा उ मयणरेहाए जीसे सील-सुवन्नं निन्नु(व्व)डियं वसण-कसबट्टे ॥२६ एसा महासईए संधी संधीव संजम-निवस्स जं नमि-निवरिसिणा सह सक्करा खीर-संजोगो ॥२७ बारह सत्ताणउए वरिसे, आसोअ-सुद्ध-छट्ठीए सिरि-संघ-पत्थणाए, एयं लिहियं सुआभिहियं ॥२८
अंत: इति मयणरेहासंधि समाप्ता ॥
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