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संधिकाव्य-समुच्चय
परिगह-विरइउ पुणु निसिहि भत्त जिणि भुत्तइं विणसहिं बहुय सत्त करि दिसि-पमाणु भोगोवभोग- संखा-कएण न हु हुँति रोग ८ परिहरहि चउव्विहऽणत्थदंड बंधति जीव जिणि कम्मु चंडु सामाइ उ गिहत्थहं पवर-धम्मु अइयार-रहिउ करि एहु रम्मु दिणि दिसि-पमाणु करि पोसहं च पव्वेसु य पुन्न चउन्विहं च पारणइ मुणीण य भत्त-पाणु सुविसुद्ध देह भुंजह सुजाणु कारावहि जीव जिणिंद-वयणु (भवणु) जिण बिब-पइट्ठा प्य ण्हवणु आगम-विहीय तह पुत्थयाई सिद्धत-सार सुप[स]स्थयाई जिण-जम्म-दिक्ख-निव्वाण-भूमि वंदेसु तित्थ सउं परियणम्मि वर-गंध-धूव-पुष्फक्खएण
जिण-ण्हवण-प्य करि आयरेण पूएसु संघु निय-गेहि पत्तु
वत्थन्न-दाण-वर-भत्ति-जुत्त अणुकंप-दाणु किर दुत्थियाण दीगंध-पंगु-जण-जुंगियाण इय विहिणा पालउ सावगत्तु
संलिहउ देह मरणम्मि पत्त उद्धरिय सल्लु सुगुरूण पासि
खामेसु सव्वु तुहं जीव-रासि अहिगरण अठारह पाव-ठाण
वोसिरसु जोव रुहट्ट-शाण संथार-दिक्ख मुणिवरह अंति गिन्हह व गेह-अणसण-पवित्ति अणुमोय सुकड दुकडाण गरिह तिय-लोय-नाह झाएह अरिह मरणाइयार मा धरिसि चित्ति
चउसरण-गमणु नवकार अंति
२४ भाराहणाइ एरिसिय जुत्तु
नवकार सरंतउ पाण चत्त उप्पज्जइ सावउ देव-लोइ
तइय-भवि सत्त भवि मोक्खु होइ २६
घत्ता इय लद्ध सुरंग तइं चउरंग जीव म हारिसि एहु वर कम्मट्ठ-पणासणु ___ भव-दुह-नासणु जायइ न हु पुणु देह-धरु ॥२७
1. संकाकरण 2. जंगियाणं
अंत:॥छ। चउरंग-संधि सम्मत्ता ॥छ।।
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