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________________ गीयत्थु अप्पु एवं करेवि आवस कराहि तुह एग-चित्त वज्जेसु ति दंड ति-गारवाइ पालेहि महन्वय निरइयार भय सत्त वज्जि अट्ठ य मया य ते पंच समिद्दि य तिन्नि गुत्ति दसविह स्वमाइ तुह समण धम्मि अहिया सुवसग्ग- परीसहाई माणपमाण उवगरण - जुत्त नसु होइ नाण- दंसण-चरित्तु सत्तरस भेउ संजमु करउ विहरेहि वसुह तुहं मासकपि आराहिउ गुरुजण-पायजुयल परियाउ चरणु पालिउ विसालु संलिहिउ देहु संलेहणॉइ तणु- सुद्धि करिवि मल-रेयणेण सिद्धंत - भणिय- आराहणाहिं एरिस - विहाणि जइ तणु चएसि इय पंच महत्वय तो पालि अणुव्वय मिच्छत्तु वज्जि बहु- दोस- कूल संकाइ दोस तं रहिय होइ अरहंतु देउ गुरु साहु-भत्ति खम्मत एहु जिण भणिउ सारु पाणिवह थूल - विरहं करेसि दुविहं पि थूल परिहरि अदत्तु 1. गीयत्त 2. अदषु Jain Education International रंग भावण-संधि गुरु-पाय- कमलु भमरो व सेवि दो राग-दोस परिहहि सत्तु सन्नाई चउग्विह चउकसाय रक्खाहि जीव छच्च प्पयार आयारहिं अट्ठ पवयणह माय रक्खाहि जीव नव बंभ-गुत्ति उमहि भावि बारस तवम्मि तिरि- मणुय - विहिय मलकन्नगाई बायाल- दोस-रहियं च भत्तु तिहिं तिन्नि जीव अप्पर पवित् अट्ठार सहस्स सीलंगु धरउ मम्मत्त - रहिउ थेराण कप्पि पडिबोहिउ पुहविहिं भविय-कमल निय मुणिउ जीव तई आउ काल १८ छम्मासिय-चउ-छट्ठट्ठमाइ गीयत्थ भणिव निजामएण आहारु चउन्विहु पच्चक्खाहिं तइए भवम्मि ता सिवु लहेसि धत्ता जइ विहु सव्वय तिन्नि गुणव्वय ६३ [५] गिहि-धम्मु करहि सम्मत्त मूल सम्मत्त - रयणु पुणु दुलहु लोइ कीरइ य ईय जीवाइ तत्ति जीवा तरंति जिणि भवु अपारु कन्नाइ अलिय मा तुहुं चबेसि पर-रमणिहिं वालहि नियय-चित्तु For Private & Personal Use Only ६ ८ १० १२ १४ न तरिसि धरिडं जीव तुहुं सिक्खा - वय - चउहुँ पिसउं ॥ २३ १६ २० २२ ४ www.jainelibrary.org
SR No.002656
Book TitleSamdhikavya Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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