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________________ भूमिका ___ला. द. विद्यामंदिरना पुण्यविजयजी संग्रहनी नं. १२८६नी एक मात्र प्रति उपरथी आ संधिनु संपादन करेल छे. परिचय माटे जुभो सधि ११नी प्रति-A. साधि-२० A. हेमचंद्राचार्य जैन ज्ञान मदिरनी प्रति नं. ९०३२. जुओ संधि ११ नी प्रति B. B. ए ज ज्ञानमंदिग्नी कागळनो प्रति नं.९०३३. २६४११ से. मो. मापना २ पत्रो पर १ शील संधि अने २ उपदेश संघि लखायेल छे. आ पहेलां केटलांक संधिकाग्यो जुदा जुदा समये जुदा जुदा सामयिक-ग्रंथादिमां प्रसिद्ध थयेल छ-मुनि श्री जिनविजयजीए प्राकृत 'नर्मदासुन्दरिकथा' ना परिशिष्टमां 'नर्मदासुदरिसंधि', बेचरदासजी दोशीए संस्कृत 'मदनरेखा-आख्यायिका' ना परिशिष्ट मां 'मदनरेखासंधि', प्रा. मधुसूदन मोदीए 'भावना संधि', मुनि रमणीकविजयजीए 'आनंदसंधि' अने डा० हरिवल्लभ भायाणी तथा श्री अगरचंद नाहटाए 'प्राचीन-गुर्जर-काव्य-संचय'- मां 'केशीगौतम संवि', 'शोलसंधि' अने 'नर्मदासुंदरि संधि संपादित करी प्रकाशित करेल छे. वळी भीअगरचंद नाहटाए वर्षों पूर्व 'राजस्थानी' नामक सामयिकमा संधिकान्योनो परिचय आपतो लेख लखेल तथा डा० भायाणीए पोताना लेखादिक संग्रहोमां एक करतां वधु वार संधिकाव्यो वि परिचयात्मक नोंध लखेल छे. आ बधी सामग्रीनो उपयोग करवा बदल हुँ उपरोक्त विद्वानों नो आभारी छु संधिकाव्यो अंगे उपर जणाच्या प्रमाणेनुं कार्य थयु होवा छतां अर्धा उपरांतनी संधिओनी हज सुधी संशोधनात्मक आवृत्तिभो थई न हती, तेम ज प्रकाशित थयेल केटलीक संधि ओनी वधु जूनी अने सारी हस्तप्रतो हवे सुलभ थई हती, आथी उपलब्ध बधी ज संधिओ संशोधित आवृत्ति अने शब्दकोश साथे प्रसिद्ध थाय तो ते अपभ्रंश अने प्राचीन गुर्जर भाषाना अध्ययन-संशोधनमा एक महत्त्वपूर्ण सामग्री बनी रहे एवा ख्यालयी आ नम्र प्रयास में कर्यो छे. छ वर्ष पहेला अमदाबादमां भरायेल प्राकृत सेमिनार माटे में संधिो विशे परिचयात्मक लेख लखेलते समये मने प्रगट अप्रगट संधिो जोई अवानी तक मळी. त्यार बाद में प्रणेक मैत्रिओ संपादित पण करी. दरमियानमां मारी पासेनी आ सामग्री अने तैयारी जोईने मु० श्री भायाणी साहेबे आ बधी संधिओ समुच्चयरूपे प्रगट करवा प्रेरणा आपी. अने ए रीते आ समुच्चयन कार्य साकार थयु. श्रीभायाणी साहेबना अमूल्य सलाहसूचनो अने सतत मार्गदर्शन विना आ ग्रंथ तैयार करवानुकाये मारे माटे मुश्केल हतु. तेमना प्रत्ये मारी कृतज्ञता व्यक्त करु छ. ला. द. ग्रंथमाळामां आ ग्रंथ प्रकाशित करवा बदल तथा वारंवार ताकीद करो प्रकाशन झडपी कराववा बदल ग्रंथमाळाना सामान्य संपादको पू. श्री दलसुखभाई मालवणियाजी तथा मु. श्री. नतीनभाई शाइनो हूँ अत्यंत आभारी छु' अधा संधि तथा हेमतिलकसर-संधिती नकलो जाणीता विद्वान श्री अगरचंदजी नाहटाए पोतानी पासेनी प्रतोमांथी में लख्य केनरत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002656
Book TitleSamdhikavya Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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