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अंतरंग-संधि
[४] तं सुणिय वयणु अभविउ भणेइ 'ए वत्त न उत्तम तुह मुणेइ मुहु अग्गलि किं हुभ तुह' न लज्ज असमंजसु पयांतह अणज्ज महवा न हु दूसणु तुज्झ एउ सुह-कम्म-पिसुणि पाडिउ विमेउ पिसुणह अनु सप्पह एगु ढालु पर-छिदु लहिअ पवेसिइ कालु दो-नय ग-उवरि खलु तइउ नित्तु पिसुणह विहिं निम्मिउ किंपि गुत्तु *जिणि पिवह पर-दोस वि असंत नो विज्जमाण अप्पर्ण अणंत दुग्जण अनु कंटय भणिय सस्थि दो चेव उवाया तइउ नस्थि कइ किज्जइ खल्लइ मुहह भंगु अहवा परिहरियइ दूरि संगु८ विस-वयण विसम-गइ पिसुण दीह दोजीहह समहिअ लहइ लोह लग्गेइ कन्नि अवराणमेव
पाणेहिं विमुच्चई अवर चेव दुज्जण-जण वायस-तुल्ल-सिट्ठि पर-मंस-तुट्ठि कय-वंक-दिट्टि पामेति ताव न हु सुहु अणिट्ठ जा कुंथई न हु पर-तंति-विट्ठ १२ अह-निम्मले वि रयणम्मि खुद्द मणियारउ व्व कि वि कर इं छिंद तं चेव अवर सज्जण-सहाव प्रति गुणेहिं महागुभाव वर-नयण-वयण सरला सुवेस । घण-माय पिसुण-जण अहव(?)वेस ता चेव हरइं पर-मणु अबुज्झु जा चेव न लभइ ताण मज्झु मिल्हेवि करहु जिम खीर-रुक्ख कंटालए पु मुहु विवइ मुक्त परमन्नु पुर-ट्ठिउ मिल्हि साणु मुहु पल्लइ विट्ठहं जिम अयाणु, १८ मुंचेवि नइ-ट्ठिय-दिट्ठि(?)वारि जिम रासहु न्हाइ मलिण-छारि तिम मिल्हवि गुण जण-जणिय-तोस पयति दोस दुजण सरोस २० नइ जंति घल्लि[3] किअउ ग्रि कढि[ण]त्तणु तह वि हु घरइ भूरि । उत्तरइ नेहु तह तसु उबाइ नो सहजु(?णु) कहवि मिल्हणउं जाइ २३ सइ गंथि वेदि गप-पुराणि जं अस्थि निसिद्ध अणेग-ठाणि निय-सामि-भज्ज-देसाण चाउ सो अम्ह करावइ पयड-पावु २४ निय-सामि-दोहवंचण-करस्स नरए वि ठाणु नत्थि हु नरस्ससयलाण सुद्धि हुइ पावगाण न य पायछित्त पहु-वंचगाण , २२ __ 1. B नज्ज 2. B जिण 3. B अप्पणु 4 B खड्ड 5 B भज्जा 6 B एवगाण
7 B एहु
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