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संधिकाव्य-समुच्चय पुण भणिउ तेण 'लक्खण-सुजाणि “वहु एग अत्थि गुण-रयण-खाणि" मई पुच्छिउ "सहि सा कवण देसि वर-रमणि-सिरोमणि छइ सुवेसि" ६ सो भणइ "मत्थि संजमभिहाणु वर-नयरु सयल [ल]च्छी-निहाणु पुढवाइ-मेय-रक्षण-समिद्ध
जहिं सत्तर पाडय जग-पसिद्ध सीलंग सहस निम्मल अढार जहिं धवल-गेह दीसई सुसार चुलसी य जत्थ आसण चहुट्ट तह विविह अभिग्गह विउल-हट्ट नहिं सुगइ-पोलि तह समिह-रच्छ निवसंति साहुजण जहिं अतुच्छ जहिं सुमण-मणोहर चरण-मेय आराम-रम्म सोहई अणेय जहिं भावणा य जण-हरिय-चित्त नच्चंति रंगि नच्चिणि सुपत्त आवस्सयाइं पासाय सिद्ध
जइ-पडिम-सयं वर-वावि-सुद्ध सुद्धावएस जहिं दाण-साल
वर-दाण-सोल-तव सर विसाल गंभोरयाइ-गुण-समिय-दाह
नहिं अगड उदय-संजुम अणा(१गा)ह१६ जहिं तिन्नि-गुत्ति पायार चारु
जहिं सुद्ध-झाणु जग्गइ तलारु जहिं उग्गमाई दोसा असेस
चंडाल 3 व्व न लहइं पवेस १८ जहिं राग-दोस-विसयाई ते ण छुटुंति दंडि मरणंतिएण इंदिय जहिं तिहुमण-छलण-तुट्ठ धुत्तारउ व्व दंडियई दुटु २० तहि करइ [ ज सिरि-त्रीयराउ वयरी नण-मत्थइ देवि पाउ गुणवंत-कंत तसु हुय नि अत्ति मणि जासु अणोवम कंत-भत्ति २२ तमु पुत्त इगु वर साहु-धम्मु तह अवरु सुसावग-धम्मु रम्मु तसु हुआ सुबुद्धि-नामेण पुत्ति
जगि भमइ अणग्गल जासु कित्ति २४ ससु सम्मदिट्ठि अइ निउणु मंति चउरा वि बुद्धि जसु मणि वसंति तसु रज्जि संति गणहर पहाण
सामाइ-भेय-सपमाण-जाण अइसय गुण-सेवग भत्त तासु
न कया वि जासु पर-राय-तासु जा वरउ सस्स सा तुम्हि कन्न ता तुम्ह मिल्हि नो अवर धन्न" २८
घत्ता इय पर-उवयारगि कुमई-निवारगि एह वत्त तिणि मू कहिय तो इउ पुरु मुंचवि निय-वहु वंचवि अणुसरोअई जिणराय-पय' ॥२९०
1 B रवण्णु 2. A. शिरोमणि 3 'सुद्धोवएस......संजुअ अणाह' सुधीनो पाठ B. "मां नथो. 4. A विसयाय 5 B कुमय 6 अंतः A तृतीयोधिकारः॥ B. इति अभव्यं प्रति भव्य-मित्र-उपदेशदानो नाम तृतीयोधिकारः॥
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