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अंतरंग-संधि
[२] मह तत्थ भविय-अभविय-भिहाण सहवुढिय-कीलिय वय-समाण निवसति दुन्नि मित्ता पहाण निय-कन्न दिन्न राएण ताण ते हठ-तुट्ठ ठिय तासु संगि संचिंति पाव-भरु विविह-मंगि नचंति मत्त इव विसय-रंगि मच्चंति अहिय दुज्जण-पसंगि सेवंति वसण सत्त वि हसंत हिंसंति जीव विरसंत संत घण-कूड-कवड बुल्लइ असंत हिंडं त सयल तिहुयणु मुसंत मन्नंति तत्तु मेहुन्न-सन्न । कुव्वंति मुच्छ बहुविह अहन्न' काऊण पावु पुण गहगहंति पर-वसणु दिक्वि तह कहकहंति बहु-रोस-भरिय-तणु थरहरंति न य गम्मु अगम्मु वि परिहरंति न य किच्चु अकिच्चु वि संभरंति न य राउल-वाइय-मउ धरंति ते पुन्न-सुन्न घण-पाव-पुन्न किल मुत्तिवंत रक्खस उइन्न जाणेवि 'राइ अन्नाय-सत्त नरयाइ-गुत्ति-मज्झम्मि खित्त नियगाण वि जाणिउ गुरु अनाउ वह-बंध-पमुह कारेइ राउ मंगुट्ठ वि अप्पणु सप्प-द? छिंदिज्जइ किं न हु सडिउ दुटु ते सहई तत्थ वेयण अपार कइया वि कोवि नवि करइ सार सा भज्ज वि तेपिं कुबुद्धि नामि खणमवि न हु मिल्हइ नियय-सामि एगति हकारिउ नियय-मित्तु जंपेइ अन्न-दिणि भविय मित्तु 'सुहकम्म-नाम-नेमित्तिएण इम वत्त कहिय मह मित्तगेण'
पत्ता
तं वयणु सुणेविणु कन्नु' घरेविणु 'मुहकम्म-सुजाणिण नाण-पमाणिण
अभविउ पुच्छइ हरिस-जुउ किसिय वत्त सहि कहिय तुय' ॥१९'
अह भणइ भविउ 'इय भणिउ मित्ति “वहु तुम्ह एस विसकन्नग त्ति पाविठ्ठ दुछ लक्खण-विमुक्क तुम्हि एह संगि निय सुक्ख चुक्क० २ ता "छह छड्डहु रंड एह जिम छुट्टहु तक्ख'ण गुत्ति-गेह" मई भणिउ मित्त रमणी-विहीण न वहंति गेह कहमवि गिहीण ..
1. A विरसं रसत 2. B तनु 3. B अन्न 4. B राइअअन्नाइ 5. B अभाड 6. B कया वि 7. B कन्न 8. B सहिय तुय 9. अंत: A B इति द्वितीयोधिकारः। 10. B. चक्ख 11. B. छड्डहु दुहु रमणि एह
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