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प्रधान संपादकीय
डॉ. र. म. शाहे संपादित करेलां ई.स.नी १३मी थी १५मी सदीना गाळामां रचायेला वीश संधिकाव्योनो समुच्चय 'सधिकाव्य-समुच्चय' नामे प्रकाशित करतां आनंद थाय छे. आ संधिकाव्यो संशोधित पाठ साथे सौप्रथम ज प्रकाशित थाय छे.
काव्यरसिको अने भाषाशास्त्रीओने उपयोगी सामग्री आ संधिकाव्योमांथी उपलब्ध थशे. आ संधिकाव्यो भाषानी दृष्टि अपभ्रंश अने प्राचीन गुजराती वच्चेनी कडी समान छे. बीजा प्राचीन गुजराती काव्यप्रकारो करतां आ काव्यप्रकारमा अपभ्रंशनी असर विशेष छे. सांस्कृतिक सामग्रीना अभ्यासनी दृष्टिले पण आ काव्योनु महत्त्व छे.
डॉ. शाहे अभ्यासपूर्ण भूमिकामां संधिकाव्यन स्वरूप, तेनो उद्भव अने विकास, संचित संधिकाव्योन विषयवस्तु अने मूलस्रोत, तेमनुं कर्तृत्व अने रचनासमय, छंदोविधान अने प्रतिपरिचय -आ बघानी समुचित माहिती आपी छे. वळा, अंते तेमणे भाषानी दृष्टिले महत्त्व धरावता शब्दोनी सचि आपीने ग्रंथने वधु उपयोगी बनाव्यो छे. आ बधा माटे डॉ. र. म. शाह अभिनंदनने पात्र छे.
जूनी गुजराती साहित्यकृतिओमा प्रकाशनमा सहकार आपवा बदल गुजरात राज्यना भाषानियामकश्री हसितभाई बुच अने नायब भाषानियामक श्री ई. शि. जोषीपुरानो हुँ अंतःकरणपूर्वक आभार मार्नु छु. आ प्रथना प्रकाशनमा आर्थिक सहाय करवा बदल गुजरात सरकारनो हुँ आभारी छु'.
ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद : ३८० ००९ १ जान्युआरी १९८०
नगीन शाह
अध्यक्ष
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