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________________ संधिकाव्य-समुच्चय ४. शालिभद्र संधि: एक दरिद्र कामवाळीनो पुत्र पोताना माटे महामुश्केलीथी माताए रांधेल खीर साधुने वहोरावी, अतिशय पुण्य प्राप्त करी, मरीने गोभद्र सार्थवाहना पुत्र शालिभद्र रूपे जन्मे छे. जेना वैभवनी वात सांभळी राज अणिक पण चकित थई जाय छे, तेवो शालिभद्र पोते य स्वतंत्र नथी एम जाणतां ज बधो वैभव त्यजी साधु बनी जाय छे. एनी सुंदर कथा आ संधिमां छे. 'स्थानांग सूत्र' नी अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिमां आ कथानक प्रथम वार मळे छे. ५. अवंतिसुकुमाल संधि : महावैभवशाळी सार्थवाह-पुत्र अवंतिसुकुमालने आर्य सुहस्तिसूरिना प्राताध्यायगानथी मातिस्मरण थाय छे अने ते मातानी अनिच्छा छतां वैभव छोडी दीक्षा ले छे. अने ते ज दिवसे उग्र तपश्चर्या करी, शीयाळे शरीर फोली खावा छतां ध्यानमा अडग रही, केवळज्ञान अने निर्वाण साथे ज पामे छे. 'आवश्यकचूर्णि' मां आ कथानक प्रथम वार आवे छे. ६. मदनरेखा संधि : 'उत्तराध्ययन सूत्र' ना नवमा 'नमि-प्रव्रज्या' नामक अध्ययनमां आवता नमि राजर्षिनी कथा नेमिचन्द्रसूरिकृत 'सुखबोधा' नामक टीकामां विस्तारथी आपवामां आवेल छे. प्रस्तुत संधिनी कथावस्तु ए ज छे. नमि राजर्षिनी माता मदनरेखा जैम सतीओमां प्रसिद्ध छे. बारमी शताब्दीमां बयेल प्रा. जिनभद्रसुरिए संस्कृतमा 'मदनरेखा-आख्यायिका' नामे विस्तृत रचना आ कथानक लईने करेल छे. ७. अनाथि संधि: मनुष्य गमे तेटली भौतिक समृद्धि धरावतो होय पण एना पोताना ज जन्म, जरा अने मृत्युना विषयमा ए परतत्र छ, निःसहाय छे ए दर्शावती अनाथि मुनिनी कथा 'उत्तराध्ययन सत्र'-गत वीशमां 'महानिर्गथाय अध्ययन' मां आवे छे. आ संधिमां तेम ज १९ मी संधिमां आ कथानकने काव्यरूप अपायु छे. ८. जीवानुशास्ति संधि : संधिना नाम प्रमाणे आमां जीवोने अनुशास्ति एटले के शीखामण आपवामां आवी छे. जीव केवी केवी गतिमां जईने, केटलां दुःखोने अंते मनुष्य-भवमां आवे छे अने त्यां विषयरसमां लुब्ध थई देव-गुरु-धर्मने भूली जाय छ-ए दर्शावी कवि जीवने उपदेश आपे छे अने जिन भगवानने अनुसरवा कहे छे. ९. नर्मदासुंदरी संधि : जैन धार्मिक साहित्यमां सती नर्मदासुंदरीनी कथा पण प्रसिद्ध छे. 'आवश्यक-सूत्र' नी नियुक्तिमां नर्मदासुन्दरीन नाम मळे छे. तेनी पल्लवित थयेल कथा आ.देवचन्द्रसूरि-कृत मूलशुद्धिप्रकरण-वृत्ति (ई. स, १०८९) मां सौ प्रथम मळे छे. ई. स. ११३० मा महेन्द्रसरि नामक आचार्य प्राकृत भाषाबद्ध विस्तृत नर्मदासुन्दरीकथा रची छे. अहीं ए ज वस्तु संधिरूपे मळे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002656
Book TitleSamdhikavya Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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