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________________ भूमिका १०. चतुरंग-भावना-संधि : उत्तगध्ययन सूत्रना तृतीय अध्ययन- नाम चतुरंगीय अध्ययन छे. तेमां जीवोने दुर्लभ एवी चार वस्तुओ गणावी छे-मनुष्यत्व, धर्मश्रवण, धर्मश्रद्धा अने संयमनी शक्ति. 'उत्ताध्ययन' नी प्रसिद्ध टोका 'सुख वोधा' मां आ चारे दुर्लभ वस्तुनी सदृष्टांत चर्चा मळे छे. ए ज वस्तु अहीं संधिरूपे रजू थई छे. ११. आनंद-श्रावक-संधि : सप्तम अंग 'उपासकइशा' ना प्रथम अध्ययनमा आवतुं आनंद उपासकनु जीवनचरित्र आ संधिनो विषय छे. आनंद भगवान महावीरना जीवनकाळमां थयेला तेमना अनुयायी मुख्य श्रावकोमांनो एक हतो. श्रावकनी अगियार प्रतिमा पाळी तेणे महान अवधिज्ञान मेळव्यु हतु ते कथा आ संधिनो विषय छे. १२. अंतरंग संधि : आ एक रूपकात्मक काव्य छे, अंतरंग शत्र मोहरूपी राजाने पराजित करी जिनेन्द्र भगवंते भव्य जीवोने केवी रीते बचाव्या तेनुं वर्णन नाट्यात्मक रीते आमां करवामां आव्यु छे. आ रचना मौलिक जणाय छे. प्राचीन गुर्जर भाषामां रूपककाव्य तरीके मळती जूज रचनाओमा आथी आ महत्वपूर्ण छे, १३. केशी-गौतम संधि : _ 'उत्तराध्ययनसूत्र' ना २३ मा 'केशोगौतमीय' अध्ययनमा २३ मा तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथना एक गणधर केशी अने भगवान महावीरना प्रथम शिव्य गौतम गणधरना मिलननी बात छे. ते प्रसंगे भ. पाश्वनाथ अने भ. महावीरना अमुक सिद्धांतोमा देखाती भिन्नता विशे केशी गणधरने थयेल शंकाओनु गौतम निवारण करे छे. आ बे वच्चेना संवादने कविए कुशलतापूर्वक आ संधिमां गुथी लीधो छे. १४. भावना संधि : वैराग्यने उपकारक एवी १२ भावनाओ जैन धार्मिक साहित्यमा जाणीती छे. छेक 'आचाशंगसत्र' ना द्वितीय श्रुतस्कंधमां १२ भावनाओ वर्णवाई छे अहीं एने केन्द्रमा राखी सामान्य मनुष्ये जीवनमां शुं करवु जोईए एनो उपदेश आपवामां आवेल छे. अहीं आपेला मनुष्यजन्मनी दुर्लभता अंगेना दश दृष्टांतो हरिभद्रसूरि-रचित उपदेशपदमां आवे छे. १५. शीलसंधि : शील एटले के चारित्र्यनो महिमा अहों गावामां आध्यो छे. भगवान महावीर प्रणीत पांच महाव्रतमा चोथु ब्रह्मचर्य व्रत छे. तेना पालनथी थता अपूर्व लाभ अने भगथी थतां नुकशाननां अनेक दृष्टांतो आपी कविए शीलपालननो उपदेश आप्यो छे. १६ उपधान संधि : आमा जैन-धर्म-प्रसिद्ध उपधान -नामक तपश्चर्यानु माहात्म्य जगावी, तेना अनुष्ठाननी विधि विगते आपवामां आवी छे.. १७ हेमतिलकसूरि संधि : ईस्वी चौदमी सदीना प्रारंभकाळे थई गयेला हेपतिलकसूरि नामक आचार्यना जीवनप्रसंगोने रजू करती आ संधि तेमना ज कोई शिष्य के प्रशिष्ये रची होवानो संभव छे. अने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002656
Book TitleSamdhikavya Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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