________________
१७. हेमतिलयमूरि-संधि [कर्ता : अज्ञात
रचना-प्तमयः ई.स.१४०० पूर्व]
ध्रुवक पाय पणवि सिरि-वीर-जिणिंदहं अनु सिरि-गोयम-सामि-मुणदो(दह) . हेमतिलयसुरिहिं गुण-डे सो
संधि-बंधि हउ किं पि भणेसो ॥१
अस्थि नयरु नायोरु पसिद्ध उ । घण-कण-कंचण-रयण-समिद्धउ तहिं निवसइ गंधीय-कुल-मंडणु वीज उ साहु दुहिय-दुइ-खंडणु असत तसु घरि घरणि पहाणी सीलि विमल किरि सीता राणी तासु उयर-सरि हंस-प्तमाणू पुत्तु उवन्नउ पुन्न-पहाणू दोल उ नामु निरुपम-लखणु सरल-सहावु विणीय वियक्वणु कंचण-गोर सरीर प्रमाणू(१) दिणि दिणि वढइ सोहग-सारू
घत्ता सो कलिय-कलागमु रूवि मयण-समु चउद वरिसनउ जं थियउ तं जण-मण मोहइ महियलि सोहइ सुर-कुमार जं अवयरिउ ॥७
__[२]
वड्डइ गछि वाइयदेवसूरि
अणुकमि सिरि-जयसेहरसुरि सुविहिय-विहिहिं विमुहि (?वसुहि)विहरंता अन्न-दिवसि नायउरि पता तहि भवियण-जण मण आणदिहिं गरुव महूसव गुरु-पय वंदिहिं देसण सुणहिं मुणहिं किवि तत्त लियहिं विरति किवि किवि सम्म तू ? दोलउ कुमरु निसुणि गुरु-वाणी 'संजमु टेसु' इसउ मनि जाणी माय ताय कहमवि मुकलावइ गुरह पासि व्रतु टेवा आवइ गुरु वीनवि थापिउ सुमुहुत्त
मेलिउ दस-दिसि संघ बहुत्त कुडु-नयरि रिसह-जिण-मंदिर नंदि रचिय उछवि अइ-सुंदरि
पत्ता तेरह तेवन्नइ (१३५३) वरिस रवन्नइ समण-धम्मु दल र लियइ तहिं संघि बइठ्ठइ
सुह-गुरि तुट्ठा हेमकलसु तसु नाम किउ ॥९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org