________________
संधिकाव्य-समुच्चय पारण-विहाणु पई किंव कुमार जाणियउ जिणह कय-सुकय-सार सेयंसु पयासइ पुत्व-भवु जिंव जाइ-सरणि जाणियउं सव्वु २ पुंडरिगिणि-नयरिहिं रिसह-जिउ सिरि-वइर-नामु संसार-भीउ जिण-पासि आसि सूरि प्पहाणु तित्थयर-कम्म-करणेक्क-ताणु ।३ हउं सारहि तिणि सहं गहिय-दिक्खु सिक्खिय-दुपक्ख-अक्खंड-सिक्खु मई जाणिउ मुणिहिं अकप्पु कप्पु तुब्भ वि कहेमि तं जण अणप्पु ।४
घत्ता
जाणिवि सेयंसह पासि सुवंसह जणु अखंड-भिक्खाए विहि तो जिणवर-सीसहं चरण-गुणीसहं भिक्ख पयट्टइ सोक्ख -निहि ॥१४
१
।२
विहरिवि वरिस-सहसु छउमत्थउ केवलि जायउ जाउ कयत्थउ बहुलेक्कारसि फग्गुण-मासह पुरिमतालि जिणु असि विलासह समवसरणु सक्केहिं कराविउ तहिं जि' चउव्विहु संघु सुठाविउ भरहह पंच-पुत्त-सय दिक्खिय तह नत्तुय सय-सत्त सुसिक्खिय जे वि' हुया वण-तावस हुंता ते सव्वे वि साहु संवुत्ता चउरासी गणहरह मुहाणइ भरह-पुत्तु पुंडरिउ महा-मइ 'चउरासी जइ सहस-जगुत्तम तिन्नि लक्ख साहुणी सुसंजम भरहु पहिल्लउ सावगु सुप्परि गोमुहु नक्खु देवि चक्केसरि कमि कमि अट्ठाणवइ बाहुबलि सामि-पुत्त संजाया केवलि सामिहि पुव्व-लक्खु पज्जाऊ ते चउरासी पुणु सव्वाऊ
घत्ता
दस-सहसिहि साहुहु सह महबाहुहु अट्ठावइ विच्छिन्न-रिणु माहाऽइम-तेरसि निस्सम-सुह-रसि गउ निव्वाणि जुगाइ-जिणु ॥१५
1. P जिवु 2. L चइरनाहु 3. L सुक्ख 4. P जायइ 6. L ति 7. L साहु चउरासी य सहस 8. P महाइम. ॥ इति श्री ऋषभ-पारणक-संधिः समाप्तः ॥
5. P जिव 9. अंत : PL
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org