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वीलाड पुरवरि
जसु महिम करंतइ सो गुरु निय- गच्छ
संधिकाव्य-समुच्चय
अह गुणि गरवउ सो गणधारू थेरा वसि नायउरि पहूतउ साठि वरिस ऋतु पालिउ निम्मलु अम्ह सव्वा वरिस चहत्तरि हव पुण थाकई जे दिण केई इम मणि संधु क (स्व) मावइ सुह-मणु मुणिहिं गुणी समइ सुहारभि गच्छ सीख देविणु सुह- चित्तू
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मणु-सय-त्रच्छरि
सुगुरु-सुपट्टिई
घत्ता
[<]
जणि गुणवंत
अणु मुसि
घत्ता
निरइयार - विहि-विह (हि) य-[वि] हारू आउ जाणि तो भणइ निरुत्तर सात जात करि लियउ चरण- फलु मास तिन्नि ते पूरिय सत्वरि सफल करउं ते अणसणु लेई एगारस दिन पालइ अणसंणु बाह (रु?) त्त' इमाह वदि बारसि हेमतिलकसूरि दिव संपत्त
अंत : ।। इति श्री हेमतिलकसूरि संधि ॥
पदमि साहि उडवु कियउ रणसिहरसूरि थपियउ
॥९
त्रिण - साणि (!णु) उज्जोइयउ संघह मण-छिय दियउ
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