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१८ तव-संधि [कर्ताः विशालराजसूरि-शिष्य रचना-समयःई.स.१४०. पूर्व, लेखन-समयःई.स.१४४९]
ध्रुवक सायर-पणमिर-सुर-वीर-जिणेसर
पणमवि पणय-पसन्न-मण तव-तिव्व-हुआसण-हुआ-कम्मिधण
जो संपत्तउ नाण-धण
[१] रे जीव तविज्जइ तव पहाण
पामिज्जइ निम्मल जेण नाण जाणिम जिणमय तव बार-भेम निन्नासिम भव-भव-भमण-खेल २ अमय-आहार सुर-जम्मि किद्ध
अनइ नर-जम्मि परमन्न निद्ध मोदक-दल सुत्तिम सेव सिद्ध
खज्जाइ खद्ध घेउर पसिद्ध सालीय-दालि-घय-घोल-दुद्ध
फल-जाई बहुपरि खद्ध मुद्ध तह वि न हु तित्तीम तुज्झ जाय रे जीव कीव पामिसि अपाय ६ किं किज्जइ जइ तई भणिम सत्थ किं किज्जइ जाणिअ बहुभ 'मत्थ महुरा-मंगू अवि निउण-लह
रलिउ रस-गिद्धिइं अजिअ-जीह ८ पच्छाम वि सोमसि विगय-सन्नु भरुअच्छ महिस जह हुम रिहन्नु अवगणिम जणय वयण इं जो अ अकय-तव-चरण संपत्त-सोम तणु-मिसिए भरि तुह जाण लग्ग जउ सबलउ तउ तंउ नरय मग्ग अह निबलउ तउ छोडीवि देह
लहु पहुचिसि जिम निम-मुत्ति-गेह १२ वरिसाण सहस पालेवि दिन तव-दूमिम छंडिअ-सुद्ध-भिक्ख रस-गिद्धि-प्तिइं कंडरीअ मुक्ख संपत्तउ सत्तम-नरय-दुक्ख १४ रे जीह रंकि तुह 'फिसिउं कान सहु लेसिइ ए उदर जि अलज्ज सरस सरस सवि आहार सार
गल-तलि लेई करिसिइ असार १६ लंघण विणु निम नवि कोइ अत्थ अप्पइ अप्पउ' लहणउ जि इत्थ तिम किम विणु असणह रोड एह अप्पेसिइ सिव-सुह नरह देह १८ भवि भवि तूं खामि पियसि जीव पुण जिणमय-तव न तवेसि कीव तुह खर्बु नवि तोलाइ सेलि । तुह पिटुं नावई गणण-मेलि
घत्ता इय चिंतिअ रे जिम करि नं निअ-हिअ बार-भेष-तव-तवण-पर 'तवि नवि पडिबद्धय जे रस-गिद्धय 'लहि सिई ते नर दुक्स्व-भर ।।२१ 1. A. असस्थ 2 A तुं न. 3. A. किस 4 A अप्पणउ 5. A. भावइ 6. B. अचिंतिअ 7. B तव 8 A लहसिई
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