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संधिकाव्य-समुच्चय
[२] मुक्ख रे जीव भुक्खाइ दुक्खं सयं. नर य जम्मम्मि पत्तम्मि जे पत्तयं तस्स दुक्खस्स णं तस्स माणं पुणो केवलन्नाणि जाणेइ नन्नो 'जणो २ मेरु-हिमवंत वेभड्ढ-पमुहा सुभा . लोग-मज्झम्मि जे पव्वया विस्सुमा तेह माणेहिं मन्नाई कु वियप्पए सयल सलिलं समुदाण पुण घप्पए ४ तह वि नरएस सव्वेमु जे सत्तया । पुज्व-कम्माण दोसेण संपत्तया कह वि तेहिं तु तित्तो न संपज्जए तेण आहार-रस-गिद्धि न हु किज्जए ६ पुण वि सुणि जोव तिरिअत्तणे पत्तए सहिम दुक्खे अकामेण रे जं तए हत्थि-जम्मम्मि भुक्खाइ सुक्काडिओ गलिअ-गत्तो सि गत्तासु तं पाडिओ ८ 'स्वर-करहेमु महिसेसु आसे विसे संबरे सूअरे वेसरे तह ससे बहुअ दिवसेसु असणं न वा पाणयं पावि नवि अ इ8 'तए ठणयं १० जलय-मच्छाइ-जम्मम्मि रस-गिद्धओ गलिय-गय-आमिसह कग्जि गलि विद्धमओ खयर-मज्झम्मि कण-कग्जि जालं गयो गहिय अन्नेहि वड़ियो म कालं गमओ १२ तह य विगलिंदि-चउरिदि-तेईदिए जार्य तं जीव बेहदि-एगिदिए एह आहार-कम्जेण
पत्त-मरणो सि असरण कालंतरे १४ जस्स देवेसु उववाय न हु अन्नभो सो वि हरिवास-वासि वि ही जुगलियो वेरि-देवेण भरहम्मि इह आणि मो करिम पावाई रस-गिद्धि कुगई गओ १६ जस्त भीआउ मुद्धाभिसित्ता गया नयण-नीराभिसिच्चंत सेसं गया बाल-मंसम्मि रसिओ स-रज्जं पि सो हारिउ जाय सोदास वणि रक्खसो १८ इंद-आएसि धणएण जा निम्मिआ बारवइ-नयरि निवसंत-बहु-धम्मिआ जा य दीवायण-क्वित्त-जलणामया मज्ज-दोसेण तक्काल गय-नामया २० कन्ह-सेणी-पमुह सुद्ध-सम्मत्तया तित्थकर-वयण-नोरेण संसित्तया बार-भेअं तवं मूल-रूवं विणा सग्ग-अपवग्ग-फल-रहिअ हुम तक्खणा २२
घत्ता इणि' परि गुरु संपइ मह हिअ जंपइ कंपइ भव-भड-भइण मण ता निरुवम सत्तिअ तव-वर खत्तिअ झत्ति अ किज्जइ जिअ सरण ॥ २३ 1. B. जिगो 2. B. थपए 3. B. मुक्काडिओ 4. B. करह 5 B. अइद्ध 6. B. जाइ 7. A इणपरि
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