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________________ चउरंग-भावण-संधि छुह-तण्ह-विवज्जिय निद-हीण दिण जंति 'निरत्था तासु दंण धेर(?विरह)ग्गि-पत्तु जोव्वण-विमुक्कु जिम मककडु तिणि स्वणि ड'ल चुक्कु विउसेहिं ठाविउ कह वि मग्गि मा सोगु करहि तुहुं धम्मि लम्गि मिच्छत्त-छहउ' पर तित्थियाण उवविसइ पासि सो लिगियाण निसुणेइ लोइउ मिच्छ-नाणु भावेइ हियइ तं सो अयाणु रामायणाइ संगाम-सस्थ संसार-हे उ ते पुण निरस्थ अप्पत्थु भत्तु जह आउरस्स अहियं कु-सत्थु निपुणतयस्स पुज्विं पि य नरय-कसाय-अग्गि। __उरि जलइ निच्चु भभइ य कुमग्गि पज्जलइ कुसस्थिहिं दीविउ य जह वड्ढइ तरु जलि सिंचिउ य कारेइ सुणेइ पसुमेह-जन्न गिह-भूमि-लोह-रुप्पय-सुवन्न धम्मत्थु देइ जत्ताहलाई गिन्हेइ हिडु कन्नाहलाई घत्ता इय कु-समय-बोहिउ मिच्छ-विमोहिउ मन्नइ जिउ न हु निण-वयणु संसारि भमंतउ दुक्ख सहतउ पावइ पुणु बहु जर-मरणु ॥३१ ४ मह कह वि सुगुरु चारित्त-जुत्तु गामागराई विहरंतु पत्तु तसु पासि न गच्छइ सो इमेहिं सुय-साहिय तेरह कारणेहिं बहु-मालस-विनडिउ अकय-पुन्नु निचिंतउ चिट्ठइ घरि निसन्नु सुगुरूण मूलि जाएवि धम्मु न सुणेइ कह वि जिण-भणि रम्मु मोहेण विमोहिउ सो वराउ रक्खंतु ठाइ धण-अंगणाउ गुरु-मति न सुणइ जिणिंद-वयणु जिणि जिउ लहेइ सम्मत्त-रयणु जंपेइ नईण अवन्नवाउ मन्नेइ मूढु ते जण-सहाउ हउं इक्कु वियक्खणु मणुय-लोइ जिण-वयण-समागमु तिणि न होइ माणेण न जाइ जईण पासि जह दंसणि नासइ पाव-रासि सिद्धत-वयणु न सुणइऽभिमाणि तसु थड्ढ होइ पारत्त-हाणि कोहेण वि चिट्ठइ धगधगंतु कइया वि न दीसइ सो पसंतु साइ न तस्स उवएसु दिति आऊ-दलाई एमेव मंति 1. नरत्था 2. छईउ 3. अप्पत्तु 4. कुसत्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002656
Book TitleSamdhikavya Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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